Book Title: Sandeh Vishaushadhi Nam Kalpsutra Vyakhya
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्सेत्यादि' श्रमणस्य महातपसो नगवतः समग्रैश्वर्यादियुक्तस्य महावीरस्य दिव्याद्युपसर्गऽप्यविचः | लितसत्वतया महांतमपि पर्वत मेरुमीरयतिस्मेति वा देवैर्महावीरेति प्रतिष्टितनाम्नः, आदिकरस्य प्र. थमतया श्रुतधर्मकरणशीलस्य चरमतीर्थकरस्य पूर्वतीर्थकरनिर्दिष्टस्य, यावत्करणात 'सयंसंबुधस्से. त्यादि ' ' सिधिगश्नामधेयं गणं' इत्येतदंतं दृश्यं. 'संपाविनकामस्सेति' यद्यपि नगवतः सिहिंगतौ कामो नास्ति, ‘मोक्षे नवे च सर्वत्र । निःस्पृहो मुनिसत्तमः ॥' इति वचनात् , तयापि तदनुरूपचेष्टनात् संप्राप्तुकाम व संप्राप्तुकामस्तत्र संप्राप्त श्यर्थः तस्य.
'तगयंति ' ब्राह्मणकुंमग्रामे देवानंदाकुदो स्थितं 'हाएत्ति ' अवसौधर्म कल्पे स्थितो. ऽहं नगवंतं वंदे, कस्मादेवमित्यत आह-पासेश्मेत्ति' पश्यति मां नगवान तवान श्हगतं झानेनेति शेषः, “ति कन्टु' इति कृत्वा ति हेतोः 'वंदेशत्ति' पूर्वोक्तस्तुत्या स्तौति, नमः स्यति शिरोनमनेन प्रणमति, “पासेनत्ति पाठे' पश्यतु मां भगवतांस्तत्रगत श्हगतं, ‘ति क टु' इति भणित्वेति योज्यं, 'पुरबाभिमुहे ' पूर्वाभिमुखः सन्निषम जपविष्टः. 'अयमेयारूवे । यादि' अयमेतपः संकल्पः समुदपद्यत, कयं नृत श्याह-मनोगतः मनसि गतो व्यवस्थितो |
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156