Book Title: Sandeh Vishaushadhi Nam Kalpsutra Vyakhya
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्या० संदेह - था तां, दारेण विराजत्कुंद मालया परिणऊं ' जलजलितत्ति ' जाज्वल्यमानं, 'जलजखजलितत्ति ' पाठे तु जलवद्देदीप्यमानं वा स्तनयुगलमेव विमलौ कलशौ यस्याः सा तथा तां यादृतैः सादरैः प्रत्ययितैराप्तैर्विज्ञानिकैर्विषितेन विरचितमंमलेन सुजगैर्दृष्टिहारिनिर्जालकैर्गुच्छ विशे षैरुज्ज्व४३ |लितमुक्ताकलापेनोपलक्षितां यथवा या मर्यादया स्थानौचित्येन चिता न्यस्ताः पत्रिका मरकत - पत्राणि तानिर्विषितेनेति योज्यं, कचित् 'यातियपत्तियट्टि ' दृश्यते, तत्र विकं पृष्टवंशस्याथस्तात् समीपोपलदितोऽग्रभागोऽपि त्रिकं, तत्र विकात विकं यावत् प्राप्तिरवकाशो यस्य तदाविकप्राप्तिकं, एवंविधं भूषितं विजूषा येन मुक्ताकलापेन तदवधिप्रलंबमानत्वादिति घटना, नरःस्थया दीनामालया विरचितेन विराजितेन वा कंठमणिसूत्रेण कंठस्थरत्नमयसूत्रेण चोपलक्षितां. यात्वा सोपसक्तमिति विशेषणमपि परं, ततोंसयोः स्कंधयोरुपसक्तं लग्नं यत्कुंमलयुगलं तस्योल्लसंती प्रोच्चखंती शोभमाना सती प्रशस्ता प्रजा यत्र, तथा भूतेनानन कौटुंबिकेन, यथा किल राजा कौटुंबिकैः शोते, एवमाननमपि शोनासमुदयेनेति, मुखनरेंद्रस्य कौटुंबिक प्रायेण शोभागुसमुदयेन चोपलक्षितां, तत्र शोभा दीप्तिः, स एव गुणः तस्य समुदयः प्राग्जारस्तेन, कमलाम For Private And Personal Use Only

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