Book Title: Samyak Charitra Chintamani
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ लेखकीय वक्तव्य सम्यग्दर्शन धर्मका मूल अवश्य है, पर मात्र सम्यग्दर्शनसे मोक्षरूप फलको प्राप्ति नही हो सकती । मोक्ष प्राप्तिके लिए तो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान से समन्वित सम्यक् चारित्रको आवश्यकता है। जिस प्रकार मूलको उपयोगिता वृक्षको हरा-भरा रखनेमे है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शनको उपयोगिता सम्यक्चारित्ररूपो वृक्षको हरा-भरा रखने में है, इसीलिये उमास्वामी महाराज ने 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्ग : ' सूत्र द्वारा सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयको पूर्णताको हो मोक्ष मार्ग कहा है । सम्यक्त्व-चिन्तामणिमे सम्यग्दर्शनका और सज्ज्ञान- चन्द्रिका ( अपर नाम सम्यग्ज्ञान- चिन्तामणि ) में सम्यग् - ज्ञानका विस्तारसे वर्णन किया गया है । अब क्रमप्राप्त 'सम्यक् चारित्र-चिन्तामणि' पाठकोके हाथमे है । इसमें सकल चारित्र और विकल चारित्रका साङ्गोपाङ्ग वर्णन किया गया है । समन्तभद्र स्वामीने हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्म और परिग्रह इन पाँच पापोके त्यागको चारित्र कहा है । उन पापोका सकलदेश परित्याग करना सकल चारित्र है और एकदेश त्याग करना विकल चारित्र है । सकल चारित्र मुनियोके होता है और विकल चारित्र गृहस्थोके । सकल चारित्रमे पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्तियोकी प्रधानता है, विकल चारित्र मे पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतोका वैभव है । सकल चारित्रके सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात ये पांच भेद हैं। इनमें सामायिक और छेदोपस्थापना चारित्र छठवेंसे लेकर नवम गुणस्थान तक होते हैं, परिहार- विशुद्धि सयम छठवें और सातवे गुणस्थानमे होता है, सूक्ष्मसाम्यराय, एकदशम गुणस्थानमें हो होता है और यथाख्यात संयम ग्यारहवे से लेकर चौदहवे गुणस्थान तक होता है । चौदहवें गुणस्थान में जब परम यथाख्यात चारित्र होता है तब तत्काल मोक्षको प्राप्ति हो जाती है। उसके विना देशोन कोटि वर्ष तक यह मानव ससारमे अवस्थित रहता है । विकल चारित्र ( देश - चारित्र ) एक पञ्चम गुणस्थान में ही होता है। प्रारम्भके चार गुणस्थान असंयम रूप हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 238