Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 18
________________ कार्य हेतु भेंट की। जब उनको इस बात का पता चला तो उन्होंने उसे बुलाकर पूछा, "भैया, आप तो दिन में दो-तीन सौ रुपये कमाते हैं और मशीन देने का मतलब है कि एक महीने की कमाई समर्पित करना।" उसने कहा, "मुझे लगा कि पांडाल बँधवाकर सत्संग करवाने का सौभाग्य तो अभी मेरी किस्मत में नहीं है, पर कम-से-कम एक जरूरतमंद बहिन को सिलाई मशीन देकर उसे पाँवों पर खड़ा करने का सौभाग्य तो मैं प्राप्त कर ही सकता हूँ।" उन्होंने उस व्यक्ति की भावनाओं को प्रणाम किया और उसे अगले दिन मंच पर खड़ा करके लोगों को उससे प्रेरणा लेने की सीख दी। ऐसे दिखाई ईमानदारी जोधपुर की घटना है एक महानुभाव ने बताया कि वह गाँधी मैदान से प्रवचन सुनकर घर पहुँचा। जल्दी में उसके रुपयों का बैग टैक्सी में ही रह गया। टैक्सी ड्राइवर ने रुपयों का बैग देखा तो अपने पास रखने की बजाय मुझे घर लौटाने आया। बैग देखकर मेरी जान में जान आयी। मैंने टैक्सी ड्राइवर से पूछा, "रुपये देखकर भी आपका मन बेईमान नहीं हुआ, आखिर तुम इतने ईमानदार कैसे हो?" उसने बताया, "मुझे ईमान पर चलने की प्रेरणा श्री चन्द्रप्रभ की गाँधी मैदान में चल रही प्रवचनमाला को सुनकर मिली।" मुझे लगा, "ये रुपये रखकर मैं तो सुखी हो जाऊँगा, पर इसके मालिक का क्या होगा । भला, दूसरों को दुःखी करके मैं कैसे सुखी हो सकता हूँ।" वे टैक्सी ड्राइवर हैं - श्री नरपतसिंह जी राजपुरोहित । आखिर हुआ चमत्कार- उदयपुर की घटना है। गोर्धन विलास कॉलोनी के एक महानुभाव श्री चन्द्रप्रभ से कहने लगे - आपके टाउन हॉल मैदान में चल रहे प्रवचनों का जो चमत्कार मैंने देखा, ऐसा चमत्कार मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। मेरे दो बेटे हैं, पर उनकी पत्नियों में बिल्कुल भी आपस में नहीं बनती थी। किचन में अगर कोई एक होती तो दूसरी नहीं आती और दूसरी आ जाती तो पहली वाली बाहर निकल जाती। इतना ही नहीं, यदि किसी के कार्यक्रम में जाना होता तो दोनों कभी एक गाड़ी में बैठकर नहीं जातीं। मैं दोनों बहुओं को समझाते समझाते हार गया, पर वे वैसी की वैसी रहीं। जब से आपकी प्रवचनमाला टाउन हॉल मैदान में शुरू हुई है तब से ये दोनों प्रवचन सुनने जाने लगीं। मैंने शहरभर में आपकी तारीफ सुनी, पर मुझे नहीं लगा कि आप लोग भी इस अनबन को दूर कर पाएँगे क्योंकि आपके प्रवचन सुनते-सुनते इनको बीस दिन जो बीत चुके थे। मुझे लगा शायद भगवान भी क्यों न आए, मेरी बहुएँ वैसी की वैसी रहेंगी। - शायद परिवार सप्ताह का चौथा दिन रहा होगा। मेरी बहुएँ आपका प्रवचन सुनने के लिए मैदान जाने की तैयारी कर रही थी। यह देखकर मैं दंग रह गया कि घर के बाहर गाड़ी खड़ी थी, मेरी छोटी बहू आकर उसमें बैठ गई, वह रवाना होने ही वाली थी कि बड़ी बहू भी उसमें आकर बैठ गई। दोनों एक-दूसरे को देखकर थोड़ा मुस्कुराई । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैं दोनों को साथ में देखने के लिए दौड़ता हुआ आया, तब तक वे रवाना हो चुकी थीं। मैं भी प्रवचन सुनने मैदान जा पहुँचा। मुझे यह देखकर विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरी दोनों बहुएँ पासपास बैठी हैं और आपका प्रवचन सुनने में मगन हैं। उन महानुभाव ने कहा मैं आपके इस एहसान का जिंदगी भर ऋणी रहूँगा कि आपने मेरे घर की डूबती नैया को पार लगा दिया। श्री चन्द्रप्रभ ने कहाभगवान करे, आपके घर में यह सौभाग्य सदा बना रहे । 18 संबोधि टाइम्स Jain Education International टूटे-रिश्ते हुए हरे-भरे - महाराष्ट्र से दो वृद्ध सज्जन श्री चन्द्रप्रभ के दर्शनार्थ संबोधि धाम, जोधपुर आए। एक सज्जन ने कहा- हम दोनों सगे भाई हैं और आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि हमने पूरे पचास साल बाद एक-दूसरे का मुँह देखा है और इतने वर्षों में पहली बार एक साथ यात्रा करके सीधे आपके दर्शन करने आए हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने उनसे पूछा- ऐसा कैसे हो गया? छोटे भाई ने कहा- मेरी शादी के बाद किसी बात को लेकर हम दोनों में कहासुनी हो गई। तैश, तकरार और गुस्से में आकर बात इतनी बढ़ गई कि हमने आपस में वैर की गाँठ बाँध ली। इसके चलते एक-दूसरे से मिलना तो दूर, चेहरा न देखने की भी कसम खा ली। पिछले पचास वर्षों से हम एक-दूसरे के दुश्मन बनकर जी रहे थे। श्री चन्द्रप्रभ ने पूछा- फिर आपके बीच में वापस प्रेम कैसे उमड़ आया? उन्होंने कहा मेरे एक मित्र से उपहार में मिली आपके प्रवचन की वीसीडी सुनकर। श्री चन्द्रप्रभ ने पुनः पूछा - लेकिन यह सब हुआ कैसे? छोटे भाई ने बताया एक दिन बड़े भाई मेरे घर आए और मुझे देखते ही हाथ जोड़कर कहने लगे भैया, मुझे माफ कर देना। गुस्से में आकर मैंने बहुत बड़ी भूल कर दी। अब मैं अपने भाई को खोना नहीं चाहता। यह सुनकर मेरी आँखें भी भीग उठीं। मैं भी । उनके चरणों में गिर पड़ा। उन्होंने मुझे उठाकर गले लगाया और इस तरह हमारा वर्षों से टूटा रिश्ता फिर से हरा-भरा हो गया। बड़े भाई ने कहा - यह चमत्कार आपकी प्रवचन की वीसीडी को सुनकर ही हुआ है । - लाइफ और वाइफ सुधर गई हैदराबाद की घटना है। एक सज्जन ने फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि पत्नी के गुस्से और व्यंग्य भरे बाणों से आहत होकर मैंने जहर की गोलियां खा लीं, पर ईश्वर की कृपा से बच गया। मैं हर समय चिंता और तनाव से ग्रस्त रहता। एक दिन मैंने घर में बैठे-बैठे कई वर्ष पहले उपहार में आई श्री चन्द्रप्रभ के प्रवचन की वीसीडी चला दी। प्रवचन सुनने के बाद मुझे लगा जैसे मेरे दिमाग में कोई चमत्कार हो गया है। मैं अपने आप को पूरी तरह रिलेक्स महसूस करने लगा। फिर मैंने जोधपुर, संबोधि धाम से श्री चन्द्रप्रभ का पूरा वीसीडी साहित्य केलेण्डर सेट मँगवाया। आज मेरा पूरा परिवार सुबह शाम आपके प्रवचन सुनता है। इन प्रवचनों से मेरी लाइफ भी सुधर गई और वाइफ भी । मनोवैज्ञानिक शैली के जनक श्री चन्द्रप्रभ मनोवैज्ञानिक शैली के जनक हैं। उनका साहित्य मनोवैज्ञानिकता लिए हुए है। उनके सभी प्रवचन - मार्गदर्शन व्यक्ति के दिलोदिमाग को सीधे छूने वाले होते हैं। उन्होंने जीवन-शुद्धि का विज्ञान, मृत्यु से मुलाकात, चेतना का विज्ञान आदि पुस्तकों में मन के अनेक रहस्य प्रकट किए हैं। बातें जीवन की जीने की और बेहतर जीवन के बेहतर समाधान पुस्तकों में श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन-निर्माण से जुड़ा मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन दिया है। उन्होंने मन के स्वरूप पर विस्तृत व्याख्याएँ की हैं। उन्होंने बाल मनोविज्ञान पर कैसे करें व्यक्तित्व विकास' नामक पुस्तक लिखी है। उन्होंने साधना के लिए मन का अध्ययन करने को आवश्यक माना है। वे मन व चित्त को अलग-अलग मानते हैं। वे चंचल चित्त को मन व एकाग्र मन को चित्त कहते हैं। उन्होंने मन को मौन करना व उसके शोरगुल को शांत करने के प्रयत्न को ध्यान एवं योग कहा है। मन को मौन करने के लिए श्री For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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