Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 52
________________ की जिंदगी का हिस्सा बनाते हैं तो हमारा घर-परिवार, समाज और कोश भी बन गया है। उन्होंने इस कोश के निर्माण में जैन आगम शास्त्रों विश्व विकास के नये आयाम छू सकता है। एवं प्राकृत साहित्य का उपयोग किया है। अनुसंधानपरक साहित्य प्राकृत भाषा की सूक्तियों के संकलन का कार्य तो अब तक हुआ है, पर सामान्य स्तर पर ही। श्री चन्द्रप्रभ ने इस पर विशेष कार्य किया है (1) आयार-सुत्तं (5) हिंदी सूक्ति-संदर्भ कोश जो उत्तम होने के साथ अभिनंदनीय भी है। प्राकृत-साहित्य सूक्तियों (2) जिनसूत्र (6) खरतरगच्छ का आदिकालीन का ख़जाना है। यह ख़जाना इस ग्रन्थ में प्रस्तुत हुआ है। इसमें प्राकृत(3) प्राकृत-सूक्ति कोश इतिहास साहित्य के प्रसिद्ध ग्रन्थों से आचार-विचार को श्रेष्ठ बनाने वाली (4) महोपाध्याय समयसुंदर :(7) अष्टावक्र गीता सूक्तियों का विषय वर्ण के क्रम से संकलन हुआ है। इस ग्रन्थ में 364 व्यक्तित्व एवं कृतित्व (8) समवाय-सुत्तं । अलग-अलग विषयों पर लगभग 1545 सूक्तियों को लिपिबद्ध किया गया है और 132 प्राकृत साहित्य ग्रंथों का आदरपूर्वक उपयोग हुआ है। उक्त साहित्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - जनसाधारण के लिए यह ग्रंथ ज्ञानार्जन में बहुत लाभदायक है एवं आयार-सुत्तं शोधकर्ता और लेखक भी इसके संदर्भ कोश से बहुत फायदा उठा आयार-सुत्त जैन धर्म का पहला आगम शास्त्र है। इसमें भगवान सकते हैं। महावीर की देशना का सार है। इसमें मुनियों के आचारगत सिद्धांतों एवं महोपाध्याय समयसुंदर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नियमों की विवेचना की गई है। यह न केवल जैन परम्परा के लिए वरन् यह ग्रंथ श्री चन्द्रप्रभ द्वारा 28 वर्ष पूर्व जैन धर्मदर्शन के महान हर परम्परा के लिए प्रकाश-स्तंभ है। इसमें साधना मार्ग पर विद्वान डॉ. सागरमल जैन के निर्देशन में लिखा गया था। इसी ग्रंथ पर सर्वतोभावेन समर्पित होने वालों के लिए विशेष मार्गदर्शन है, साथ ही उन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद द्वारा महोपाध्याय की उपाधि भगवान महावीर की साधना का उल्लेख भी है। इसका रचनाकाल प्रदान की गई थी। समयसुंदर के विराट व्यक्तित्व एवं विशाल कृतियों ईसा-पूर्व छठी से तीसरी शताब्दी मध्य है। यह सूत्रात्मक शैली में है। को इस ग्रंथ के माध्यम से सरलता एवं संक्षिप्तता से समझा जा सकता इसकी भाषा अर्धमागधी है। इसमें शांत और वैराग्य रस झलकता है। है। यह ग्रंथ हर रूप से आदर्श बनकर उभरा है, इसमें गहन खोजबीन श्री चन्द्रप्रभ द्वारा इस प्रथम आगम शास्त्र का संपादन एवं अनुवाद की गई है। शोधकार्य किस प्रकार करना चाहिए यह सीखने के लिए किया गया है। यह न केवल हिंदी अनुवाद है, वरन् अनुसंधान भी है। वे भी यह ग्रंथ बेजोड है। आयार-सुत्तं को साधना मार्ग से जुड़ा मील का पत्थर कहते हैं। उन्होंने क्त-संदर्भ कोश तनाव-संताप से झुलसते विश्व को शांति की राह दिखाने में इसकी निर्विवाद उपयोगिता स्वीकार की है। इस ग्रन्थ में श्री चन्द्रप्रभ की सूक्ष्म इस ग्रन्थ में श्री चन्द्रप्रभ ने हिन्दी सूक्तियों का संकलन एवं प्रतिभा सर्वत्र नज़र आती है। अनुवाद एवं भाषा-शैली सरल व सटीक संपादन कर विशाल कोश को प्रस्तुत किया है। इसमें वे सभी तरह की है। इसके अनुशीलन से हमें सहज ही साधना का सूक्ष्म मार्ग समझ में छोटी-बड़ी सूक्तियाँ हैं जिसमें हिन्दी साहित्य की आत्मा छिपी हुई है। आ जाता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में सूक्तियों के साथ संदर्भ ग्रन्थ, पृष्ठ संख्या एवं रचयिता का भी उल्लेख किया गया है जिससे यह सूक्ति कोश के साथ संदर्भ जिन सूत्र कोश भी बन गया है। श्री चन्द्रप्रभ ने इस कोश के निर्माण में प्राचीनइस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर अर्वाचीन सभी हिंदी साहित्य का उपयोग किया है। भगवान महावीर स्वामी द्वारा आम जनमानस को दिए गए संदेशों का हिंदी साहित्य सक्तियों का सागर है, हर विषय की, हर तरह की। सार रूप में संकलन किया है। इसमें मूल प्राकृत के साथ हिन्दी अनुवाद श्री चन्द्रप्रभ ने उनका वैज्ञानिक ढंग से संपादन करके इसे प्रत्येक भी प्रस्तुत है। इसमें 27 विषयों पर 351 गाथा-सूत्र दिए गए हैं। इसकी व्यक्ति के लिए उपयोगी बना दिया है। इसमें साहित्य के प्रसिद्ध ग्रन्थों संरचना में समण-सुत्तं' को आधार बनाया गया है। समण-सुत्तं' जिन से जीवन को समृद्ध करने वाली सूक्तियों का संकलन विषय-वर्ण के धर्म का सर्वमान्य ग्रंथ है। समण-सुत्तं के स्वरूप को अधिक सरल, क्रम से हुआ है। इस ग्रन्थ में 583 अलग-अलग विषयों पर लगभग संक्षिप्त एवं सहज बोधगम्य बनाने के लिए इसकी रचना की गई है। 256 विद्वानों द्वारा रचित हिंदी ग्रन्थों के संदर्भो का उपयोग हुआ है। यह जिन सूत्र में हमारे सामाजिक, नैतिक एवं साधनात्मक जीवन का पथ ग्रंथ न केवल आम जनमानस के लिए वरन् लेखकों एवं प्रवचनकारों के प्रशस्त हुआ है। हम भगवान की वाणी का पुन:-पुन: मनन कर जीवन लिए भी बेहद उपयोगी है। ये सूक्तियाँ मित्र एवं गुरु की तरह सुखका पथ प्रकाशित करें, यही इस पुस्तक की प्रेरणा है। दुःख में साथ निभाने में सहयोगी हैं। दैनिक जीवन में इनका उपयोग प्राकृत-सूक्ति-कोश कर हम आत्म-रूपांतरण के साथ विश्व-रूपांतरण भी कर सकते हैं। इस ग्रन्थ में श्री चन्द्रप्रभ ने प्राकत सक्तियों का संकलन एवं खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास संपादन कर विशाल कोश को प्रस्तुत किया है। इसमें वे सभी तरह की खरतरगच्छ जैन धर्म की प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण परम्परा है। इसने छोटी-बड़ी सूक्तियाँ हैं जिनमें भारतीय जीवन दर्शन की आत्मा छिपी जैन धर्म में प्रवेश करने वाली शिथिलता को चुनौती दी। आचार्य हुई है। इस ग्रन्थ में सूक्तियों का मूल, हिन्दी अनुवाद, संदर्भ ग्रंथ के जिनेश्वर सूरि, युगप्रधान जिनदत्त सूरि जैसे महान धर्म पुरुषों ने श्रमण साथ सूत्र संख्या भी दी गई है। जिससे यह सूक्ति कोश के साथ संदर्भ जीवन में आए दुराचारों को चीरकर प्रामाणिकता का शंखनाद किया। 52 » संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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