Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 119
________________ निर्विचार, प्रवृत्ति-निवृत्ति, प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा, राजनीति, लोकतंत्र, समाज, निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि इन दोनों दार्शनिकों ने अपनेजैन-धर्म दर्शन, अन्य दर्शन आदि विभिन्न बिंदुओं पर विस्तार से अपने ढंग से दर्शन को नया स्वरूप दिया। जहाँ आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रकाश डाला है। उन्होंने जीवन-जगत के सभी तत्त्वों को धर्म-अध्यात्म के हर बिन्दु की विवेचना की वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने आध्यात्मिक-वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान की है। वे चेतना के ऊर्ध्वारोहण जीवन-जगत के हर तत्त्व की व्याख्या की है। यद्यपि दोनों दार्शनिक को जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने एक-दूसरे से कम प्रभावित रहे फिर भी अध्यात्म के कुछ तत्त्वों पर आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व के निर्माण की विशेष पहल की। दोनों के विचारों में सामंजस्य देखा जा सकता है। श्री चन्द्रप्रभ ने उनकी दृष्टि में, "हर व्यक्ति वैज्ञानिक और आध्यात्मिक बने, वह अध्यात्म से दो क़दम आगे बढ़कर जीवन निर्माण से जुड़ा दर्शन देकर कोरा वैज्ञानिक अथवा आध्यात्मिक न बने। आध्यात्मिक और दर्शन की दुरूहता को कम किया है और जिससे आम व्यक्ति के लिए वैज्ञानिक इन दोनों का योग की वर्तमान समस्या का समाधान है।" इस उपयोगी सिद्ध हुआ है। तरह आचार्य महाप्रज्ञ का दर्शन मुख्यतः अध्यात्म-सापेक्ष रहा है। उन्होंने दर्शन को वैज्ञानिक स्वरूप देने में सफलता अर्जित की है। उनके श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ द्वारा प्रतिपादित जीवन-विज्ञान और प्रेक्षाध्यान ने वर्तमान समाज को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारतीय शिक्षा-साधना के संदर्भ में नया मार्ग दिया है। दार्शनिकों में श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ का श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन की आचार्य महाप्रज्ञ के दर्शन से तुलनात्मक दर्शन जीवन का नव-निर्माण करने में, विवेचना करने पर स्पष्ट होता है कि दोनों समकालीन दार्शनिक रहे हैं। श्री युवाशक्ति को ऊर्जाभरा मार्गदर्शन प्रदान करने चन्द्रप्रभ ने अध्यात्म की बजाय जीवन-सापेक्ष दृष्टिकोण को दर्शन में में प्रकाशज का काम कर रहा है। श्री प्रस्तुत किया। वे जीवन लक्ष्य के रूप में चेतना के ऊर्ध्वारोहण के स्थान पर रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने प्राचीन भारतीय जीवन-निर्माण पर जोर देते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने जहाँ जीवन-विज्ञान में आध्यात्मिक व दार्शनिक ज्ञान संपदा का शरार, श्वास, प्राण, मन, भाव, कर्म और चेतना इन सात तत्त्वो को शिक्षित सरलीकरण किया, उसे आम व्यक्ति के लिए उपयोगी बनाया और करने की प्रेरणा दी है वहीं श्री चन्द्रप्रभ जीवन में शरीर, मन, आत्मा, जीवन जीने की नई राह प्रदान की। दोनों दार्शनिक व्यक्ति के बाहरी परिवार, व्यापार और समाज इन छ: तत्त्वों में संतुलन साधने की सीख देते एवं भीतरी व्यक्तित्व को ऊपर उठाने के लिए प्रयत्नशील हैं। श्री हैं। वे कहते हैं, "इंसानका जीवन छहतार वाले गिटार की तरह है।शरीर, रविशंकर 'आर्ट ऑफ लिविंग के माध्यम से एवं श्री चन्द्रप्रभ संबोधि मन,आत्मा, घर, व्यापार और समाज इन सारे तारों को साधिए और उनमें साधना' तथा 'द वे ऑफ गुड लाइफ' के द्वारा विश्व जनमानस को संतुलन बैठाइए, आप सफलता के संगीत का पूरा आनंद ले सकेंगे।" सम्यक् मार्गदर्शन दे रहे हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान की उपसंपदा के अंतर्गत भावक्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मितभाषण और मिताहार के पंचसूत्र दिए हैं और श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ द्वारा किए गए योग साधना, श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि ध्यान की नींव सहजता, सकारात्मकता, सचेतनता सत्साहित्य-सृजन, सामाजिक सेवा एवं मानवीय कल्याण से जुड़े और निर्लिप्तता को बताया है। कार्यों की समीक्षा करने से स्पष्ट होता है कि श्री रविशंकर ने प्राचीन श्री चन्द्रप्रभ व आचार्य महाप्रज्ञ के धर्म संबंधी दृष्टिकोण की वैदिक ज्ञान को युगीन-संदर्भो में प्रस्तुत किया। उन्होंने 'आर्ट ऑफ तुलनात्मक विवेचना में स्पष्ट होता है कि आचार्य महाप्रज्ञ वर्तमान लिविंग' संस्था के माध्यम से देश व देश के बाहर हर उम्र व हर क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों को योग, प्राणायाम और ध्यान का प्रशिक्षण धार्मिक-सामाजिक-राजनीतिक-शैक्षणिक संरचना में पूर्ववर्ती धर्मअध्यात्म परम्परा का समन्वय चाहते हैं और श्री चन्द्रप्रभ वर्तमान दिया। उन्होंने तनाव-मुक्ति के लिए श्वास से जुड़ी 'सुदर्शन क्रिया' नामक विधि प्रतिपादित की। इस विधि से तन-मन में होने वाले जीवन का समर्थन करते हुए व्यक्ति को सकारात्मक अंतर्दृष्टि से युक्त करना चाहते हैं। इसी अंतर्दृष्टि को उजागर करते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते परिवर्तनों का वैज्ञानिक अनुसंधान भी हुआ। उनके 'आर्ट ऑफ हैं, "स्वर्ग कहीं आसमान में नहीं है और नरक कहीं पाताल में छिपा लिविंग' के अंतर्गत बेसिक कोर्स, एडवांस कोर्स, सहज समाधि, दिव्य हुआ नहीं है। मनुष्य का अंतर्मन ही स्वर्ग के सुमन खिलाता है और वही समाज निर्माण, आर्ट एक्सल, यश प्लस आदि अनेक योग-प्रशिक्षण नरक का दावानल भी। जहाँ प्रेम, शांति, भाईचारा, सहयोग, कार्यक्रम चलते हैं। वे सरकारी कर्मचारियों के लिए शासनिक सकारात्मकता - ये सब स्वर्ग के रास्ते हैं, वहीं आपसी नफरत,स्वार्थ, कार्यक्रम, प्रबंधन-कर्मचारियों के लिए अपेक्स कोर्स, शिक्षकों के हिंसा, वैर-विरोध, क्रोध, खीझ नरक की पगडंडियाँ हैं। जीवन को लिए टीटीसी कोर्स, गाँवों के लिए फाइव एच प्रोग्राम व नव चेतना स्वर्ग या नरक के आयाम देना मनुष्य के अपने हाथ में है।" शिविर, हिंसक युवाओं की मानसिकता में बदलाव लाने हेतु आचार्य महाप्रज्ञ ने जहाँ धर्म का सार आत्म-साक्षात्कार को बताया अनाक्रमण कार्यक्रम, कैदियों के लिए प्रिजन स्मार्ट, किशोर सुधारगृह है वहीं श्री चन्द्रप्रभ धर्म को मानवीय एकता का आधार व सुख से जीने हेतु वैप कार्यक्रम संचालित करवाते हैं। सुनामी, भूकंप, चक्रवात, की कला मानते हैं। उनका मानना है, "जो धर्म मानवता को बाँटता है बाढ़, आतंकी हमले जैसी विपदाओं में उनके सेवा कार्य चलते हैं। वह धर्म, धर्म नहीं, इंसानियत के कंधे पर ढोया जाने वाला जनाजा भर उन्होंने किसानों के लिए स्वावलंबन कार्यक्रम, नेत्रहीन, विकलांग और है। धर्म का काम है सारी मानव जाति को एकसूत्र में पिरोना।""धर्म कुलियों के लिए अपराजित प्रोजेक्ट चलाए हैं। श्री रविशंकर ने शिक्षा स्वयं सुख से जीने तथा औरों को सुख से जीने देने की कला है। ऐसा विस्तार हेतु अनेक विद्यालय, महाविद्यालयों की भी स्थापना करवाई होने पर ही धर्म मानवता की मुंडेर पर मोहब्बत का जलता हुआ चिराग है। उन्होंने सर्वधर्म-शिक्षा व सर्वधर्म-सद्भाव पर भी बल दिया है। बन जाएगा।" उन्होंने जीवन, सफलता, शिक्षा, प्रेम, ज्ञान, धर्म, ध्यान, योग, अध्यात्म, For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स-1190g Jain Education International

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