Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation
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में विस्तारित करने का संकल्प जगा लें तो विश्व में शांति और सुरक्षा किया गया उतना प्रयास राष्ट्रीय मूल्यों के विकास के लिए किया होता का नया सवेरा लाया जा सकता है।" उन्होंने 'महावीर : आपकी एवं तो आज भारत का स्वरूप कुछ और ही होता। देश के संतों, मठाधीशों, आज की हर समस्या का समाधान','कैसे पाएँ मन की शांति', 'शांति शंकराचार्यों, पादरियों, मौलवियों को अपने-अपने धर्म की तो चिंता है, पाने का सरल रास्ता' नामक पुस्तिकों में विश्वशांति की स्थापना के पर देश की नहीं। राम, कृष्ण, महावीर जैसे महापुरुषों का देश आज लिए निम्न सूत्र दिए हैं -
भ्रष्टाचार, बेईमानी, चोरी, चरित्रहीनता, अनैतिकता के बोझ से दबता 1. प्रबुद्ध एवं शांतिप्रिय लोग सारे विश्व में फैल जाएँ।
जा रहा है। आज भगवान के मंदिरों से ज्यादा नीति के मंदिरों की जरूरत 2. अहिंसा का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार किया जाए।
है। पश्चिम की आलोचना करने वालों को चाहिए कि वे उनकी 3.अहिंसक लोग हर माह एक मांसाहारी को शाकाहारी बनाने का ईमानदारी, नैतिकता, राष्ट्रभक्ति जैसे मूल्यों से प्रेरणा लें।" उन्होंने संकल्प लें।
नैतिक मूल्यों के रूप में दूसरों को दुःख देने, रक्तशोषण न करने, 4.व्यक्ति प्रतिक्रियाओं से बचे व सहजता से जीवन जिए। जरूरतमंद की सेवा करने, चोरी-बेईमानी न करने और चरित्र के प्रति 5. प्रत्येक बिन्दु पर हम अनेकांतवाद की दृष्टि से सोचें।
निष्ठाशील रहने के संकल्प लेने की प्रेरणा दी है। 6. हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहें।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि श्री चन्द्रप्रभ ने देश को धर्म और 7. हर समय सौम्यता व प्रसन्नता से भरे रहें।
मजहब से ऊपर रखकर राष्ट्रीय भावना को विकसित करने का प्रयास 8.जीवन को आरोपित, कृत्रिम व बनावटी बनाने से बचें। किया है। भारत एक ऐसा देश है, जहाँ सभी धर्मों, पंथों और परम्पराओं 9.अतीत को भूलें और भविष्य के ख्वाब न देखते रहें।
को अपने तरीके से पूजा-आराधना करने का अधिकार है। ऐसी स्थिति 10. मन में शांति का चैनल चलाते रहें।
में सबके बीच सद्भाव रखते हुए राष्ट्रीय आदर्शों को महत्त्व देना ही हर इस तरह श्री चन्द्रप्रभ ने अहिंसक चेतना के विस्तार के द्वारा हिंसा भारतीय का कर्तव्य है। का सामना करने का प्रभावी मार्गदर्शन दिया है।
9. अन्य - श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में इन प्रमुख बिन्दुओं के 8. नैतिक मूल्य - किसी भी राष्ट्र की धरोहर उसके नैतिक मूल्य अतिरिक्त परिवार नियोजन, शिक्षा-प्रौद्योगिकी, धर्मांतरण, सफाई, होते हैं। नैतिक मूल्यों के अभाव में राष्ट्र की उन्नति पर प्रश्नचिह्न लग शराब-निषेध जैसे पहलुओं पर भी नया दृष्टिकोण प्रतिपादित किया जाता है। राष्ट्रोत्थान के लिए नैतिक मूल्यों का पालन जरूरी है। श्री गया है - चन्द्रप्रभ के दर्शन में धर्म से ज्यादा नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने पर परिवार नियोजन - श्री चन्द्रप्रभ ने देश के लिए परिवार नियोजन बल दिया गया है। वे धर्मभक्त बनने से पहले राष्ट्रभक्त बनने की प्रेरणा को विकासवाद का अनिवार्य अंग माना है। वे जनसंख्या में हो रही देते हैं । नैतिक मूल्यों की महत्ता उजागर करते हुए वे कहते हैं, "नैतिक अतिवद्धि को विश्व के लिए खतरा मानते हैं। वे कहते हैं, "छोटा मूल्यों की नींव से ही समाज व राष्ट्र का निर्माण संभव है। समृद्धि का परिवार सखी परिवार का आधार है। परिवार में सदस्य सीमित होंगे तो कितना ही अंबार क्यों न लग जाए, बगैर नैतिक मूल्यों के व्यक्तित्व का आय का कम व्यक्तियों के लिए अधिक उपयोग हो सकेगा। परिवार निर्माण व देश का उत्थान नहीं हो सकता। दूसरे राष्ट्रों के सामने सीना नियोजन से सख-समृद्धि के साधनों में अभिवृद्धि हुई है, ऊर्जातानकर खड़ा होने का गौरव नैतिक मूल्य ही प्रदान किया करते हैं । देश अपव्यय पर अंकुश लगा है और पुरुषार्थ का संचय हुआ है।" की तरक्की चौड़ी सड़कों और पुलों के निर्माण से नहीं, सत्य और ईमान शिक्षा प्रौद्योगिकी - श्री चन्द्रप्रभ राष्ट-निर्माण में शिक्षा एवं की प्रतिष्ठा करने से होगी।" उन्होंने राष्ट्रभक्त बनने की आवश्यकता पर प्रौद्योगिकी को महत्त्वपर्ण मानते हैं। वे आधनिक शिक्षा का विस्तार जोर देते हुए कहा है, "आज की सबसे बड़ी माँग यह है कि इंसान
करने और नई प्रौद्योगिकी का आविष्कार करने के पक्षधर हैं। शिक्षा के धर्मभक्त बनने से पहले राष्ट्रभक्त बने, नहीं तो वह मंदिर का धार्मिक तो
संदर्भ में उनका कहना है, "शिक्षा ऐसी जो सृजनात्मक हो, रटाऊ कम बन जाएगा, पर जीवन का धार्मिक नहीं हो पाएगा। नैतिक मूल्यों से
समझाऊ ज्यादा हो। अब तो सीधे कम्प्यूटरों से पढ़ाई होनी चाहिए। गद्दारी करने वाला कभी सच्चा धार्मिक नहीं हो सकता। व्यक्ति को
इंटरनेट और कम्प्यूटर से पढ़ाई के विविध आयाम विकसित कर लिये हिन्दू, बौद्ध, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई होने से पहले राष्ट्र की संतान होने
जाएँ ताकि छोटे और अविकसित देश भी ऊँची-से-ऊँची शिक्षा की का गौरव होना चाहिए।"
सुविधा पा सकें।" शिक्षा का स्तर कैसा हो इस संदर्भ में वे कहते हैं, श्री चन्द्रप्रभ जन्म से ही बच्चों को राष्ट्रप्रेम का संस्कार देने की "हमें बेहतरीन इतिहास की जानकारी दे, वैज्ञानिक विषयों की खोज अपील करते हैं। उनका मानना है,"हर इंसान को जन्म से ही धर्म से करवाए, जीने की कला सिखाए, सृजन और कला को बढ़ावा दे, ज्यादा राष्ट-प्रेम के संस्कार देना आवश्यक है। धर्म के नाम पर अपराध और आतंक में कमी हो और मनुष्य प्रेम व सम्मान से सबके इंसानियत को बाँटा जा रहा है। मंदिर-मस्जिद के झगड़ों में इंसानियत बीच जीने का सौभाग्य प्राप्त कर सके। श्री चन्द्रप्रभ ने इस प्रकार शिक्षा का मंदिर ढह रहा है। गिरे हुए मंदिर-मस्जिद तो दुबारा खड़े हो जाएंगे, को उच्च-स्तरीय बनाने का मार्गदर्शन दिया है।" पर इसके बीच पिस रहे इंसान का क्या होगा?" श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म से धर्मांतरण - श्री चन्द्रप्रभ धर्मांतरण के विरुद्ध हैं। उन्होंने धन या ज्यादा राष्ट्रीय मूल्यों को स्थापित करने, नीति के मंदिरों को बनाने और ।
सुविधाओं के लालच में धर्मान्तरण करना या करवाने को अनुचित माना पश्चिम के राष्ट्र-प्रेम से प्रेरणा लेने की सीख दी है। उनका मानना है,
है। वे कहते हैं, "धर्म के बदल लेने भर से हम थोड़े ही बदल जाते हैं। "धर्म-मजहबों को स्थापित करने के लिए अब तक जितना प्रयास जरूरत घाटों को बदलने की नहीं वरन पानी में उतरने और पीने की
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