Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 117
________________ सुखी बनाने के लिए रामायण को आदर्श बनाने की सिखावन दी है। वे आचार्य श्रीराम शर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विश्लेषण से स्पष्ट कहते हैं,"आज राम का नाम जपने और पूजा करने की ज़रूरत कम है, होता है कि वे सदा भारतीय संस्कृति के उन्नयन के लिए समर्पित रहे। ज़्यादा जरूरत रामायण को जीवन से जोड़ने की है तभी घर को पवित्र उन्होंने प्रखर स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका निभाने के साथ समाज सुधार, बनाया जा सकता है।" उन्होंने पारिवार में मिठास घोलने के लिए प्रेम धर्म उद्धार, मानव-एकता, नारी कल्याण में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। व त्याग का मंत्र अपनाने की बात कही है। उनका पारिवारिक दर्शन घर वे ऋषि परम्परा के बीजारोपण करने वाले युग निर्माता, गायत्री तीर्थ व को कैसे स्वर्ग बनाएँ, माँ की ममता हमें पुकारे, चार्ज करें जिंदगी नामक ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के संस्थापक, वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के समर्थक पुस्तकों में सुंदर तरीके से विवेचित हुआ है। थे। उन्होंने वेद, उपनिषद, स्मृति, आरण्यक, ब्राह्मण योग, मंत्र-तंत्र पर श्री चन्द्रप्रभ एवं ओशो ने समाज निर्माण पर भी बेहतरीन दष्टि आधारित विपुल साहित्य की रचना की। उन्होंने इक्कीसवीं सदी को नारी प्रदान की है। ओशो पूँजीवाद के समर्थक हैं। उन्होंने गरीबी को सभी सदी बताया। उन्होंने बड़े स्तर पर अखण्ड ज्योति पत्रिका का प्रकाशन समस्याओं की जड़ माना है। वे नए समाज और नए मनुष्य का निर्माण किया। उन्होंने सहस्रादि यज्ञ का आयोजन करवाया। गायत्री मंत्र विज्ञान, करना आवश्यक मानते हैं। वे कहते हैं."आदमी को बदले बिना साधना पद्धतियों का रहस्य, चेतन-अचेतन-सुपर चेतन मन, अध्यात्म व समाज को बदला नहीं जा सकता और आदमी को बदलने के लिए विज्ञान, यज्ञ, षोडश संस्कार, भारतीय संस्कृति का स्वरूप, तीर्थउसके पुराने मन को बदलना होगा।" उन्होंने इसके लिए सर्वसुख पाने उपयोगिता, स्वास्थ्य, नारी-उत्थान, शिक्षा-विद्या, सामाजिक-नैतिकव सबको सुख पहुँचाने की प्रेरणा दी है। श्री चन्द्रप्रभ स्वस्थ समाज का बौद्धिक क्रांति, वैज्ञानिक धर्म, ईश्वर, विवाह, गृहस्थ जीवन, राष्ट्रोत्थान आधार नैतिकता, अहिंसा, सौहार्द व एक-दूसरे के काम आने की आदि विविध बिन्दुओं पर विस्तार से मार्गदर्शन प्रदान किया। भावना को मानते हैं। उन्होंने समाज-दर्शन में अमीरों को अपरिग्रह आचार्य श्रीराम शर्मा एवं चन्द्रप्रभ के दर्शन की तुलनात्मक सिद्धांत अपनाकर गरीब भाइयों का उत्थान करने की प्रेरणा दी है। वे विवेचना से स्पष्ट होता है कि जहाँ आचार्य श्रीराम शर्मा ने गायत्री मंत्रसमाज में बढ़ रहे पैसे के महत्त्व को लेकर एवं संतों द्वारा केवल अमीरों साधना पर बल दिया वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि ध्यान साधना के को सम्मान देने की भावना को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने समाजोत्थान अंतर्गत ओंकार मंत्र साधना को महत्त्व दिया। आचार्य श्रीराम शर्मा ने हेतु शिक्षा को फैलाने, आपस में संगठित करने, धार्मिक समन्वय बनाए साधना द्वारा गायत्री महाविद्या को पुनर्जीवित किया और गायत्री रखने व एक-दूसरे को आगे बढ़ाने का मार्गदर्शन दिया है। तपोभूमि की स्थापना की। वे कहते हैं, "गायत्री मंत्र प्राणऊर्जा की उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि श्री चन्द्रप्रभ एवं ओशो का अधिष्ठात्री शक्ति है। आज का सबसे बड़ा संकट है आत्मबल की विचार-दर्शन पूर्ववर्ती दार्शनिक धाराओं से हटकर है। जहाँ ओशो ने कमी, मानव की अशक्ति । इस आस्था संकट से पीड़ित मानव जाति को वर्तमान सामाजिक-धार्मिक-राजनैतिक व्यवस्थाओं की अनुपयोगिता जिस संजीवनी जीवन बूटी की आवश्यकता है वह गायत्री महामंत्र के सिद्ध की है और नई व्यवस्थाओं के निर्माण हेतु नया विचार-दर्शन रूप में विद्यमान है।" उन्होंने गायत्री मंत्र का गुह्य विवेचन, उसके प्रस्तुत किया है वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने वर्तमान व्यवस्थाओं को स्वीकार चमत्कार, उसके साधना क्रम, गायत्री मंत्र की पंचकोशी साधना व किया है साथ ही उन्हें और अधिक बेहतर बनाने के लिए सकारात्मक उसकी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर विस्तृत विवेचन किया है। मार्गदर्शन दिया है। इस तरह ओशो का ध्यान-अध्यात्म संबंधी श्री चन्द्रप्रभ ने ओंकार मंत्र साधना की विस्तार से विवेचना की है। दष्टिकोण विश्व के लिए उपयोगी साबित हआ है. पर अन्य क्षेत्रों में उनको दृष्टि में,"आम् ध्वनि-विज्ञान की पराध्वनि है। ओम में हस्व. उनका विचार-दर्शन विशेष परिवर्तन नहीं ला पाया और श्री चन्द्रप्रभ के दीर्घ और प्लुत-भाषा के तीनों स्तर समाए हुए हैं। त्रैलोक्य की समस्त विचार-दर्शन से परिवार, समाज, धर्म, अध्यात्म एवं विश्व का प्रत्येक दिव्यताएँ ओम् में समाविष्ट हैं। यह ब्रह्म बीज है, मंत्रों का मंत्र है। क्षेत्र लाभान्वित हो रहा है। विशेषकर उनकी जीवन-निर्माण से जुड़ी अंतर्मन की शांति और शक्ति को जगाने का प्रकाशपुंज है।" श्री दृष्टि युवा पीढ़ी को विशेष रूप से प्रभावित कर रही है। चन्द्रप्रभ ने संबोधि साधना के अंतर्गत चैतन्य ध्यान की व्याख्या में कहा है, "यदि हम श्वास और शब्द में, चेतना और ओम् में एक सघन आचार्य श्रीराम शर्मा व श्री चन्द्रप्रभ अंतरमंथन करें तो प्रकाश के साक्षात्कार में बहुत मदद मिल सकती वर्तमान भारतीय दार्शनिकों की श्रृंखला में है।" उन्होंने ओंकार मंत्र साधना की विधि का उल्लेख '7 दिन में कीजिए स्वयं का कायाकल्प' नामक पुस्तक में किया है। श्री चन्द्रप्रभ जिन दार्शनिकों ने धर्म को वैज्ञानिक स्वरूप ने ईशवंदना में नवकार मंत्र, गायत्री मंत्र व शांति मंत्र का संयुक्त उपयोग प्रदान कर उसे जनोपयोगी बताया उसमें आचार्य श्रीराम शर्मा एवं श्री चन्द्रप्रभ का मुख्य किया है जो कि उनके उदार दृष्टिकोण का परिचायक है। स्थान है। दोनों दार्शनिकों ने युगानुरूप धर्म आचार्य श्रीराम शर्मा एवं श्री चन्द्रप्रभ ने मन के अनेक स्तरों की प्रस्तुत किया। आचार्य श्रीराम शर्मा ने व्याख्या की है। आचार्य श्रीराम शर्मा ने चेतन मन, अचेतन मन व सुपर | परम्परागत धर्म में आई विकृतियों को दूर कर चेतन मन की व्याख्या की है और श्री चन्द्रप्रभ ने चित्त और मन का विवेचन उसे नया स्वरूप दिया और श्री चन्द्रप्रभ ने परम्परागत धर्म की बजाय किया है। आचार्य श्रीराम शर्मा ने व्यक्तित्व के विकास के लिए अचेतन मन जीवन-उत्थान से जुड़े धर्म का मार्ग प्रशस्त किया। जहाँ आचार्य श्रीराम के सुधार पर बल दिया है। उन्होंने सुपर चेतन के प्रगटीकरण हेतु अन्तः शर्मा का दर्शन यज्ञादि विधि-विधान, गायत्री मंत्र साधना व धर्म-शास्त्रों करण की पवित्रता तथा प्रेम-भाव के विस्तार को अनिवार्य बताया है। चित्त के विशद विवेचन पर केन्द्रित रहा वहीं श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन सुखी, और मन की विवेचना करते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "चित्त व्यक्ति का सफल एवं मधुर जीवन के निर्माण पर केन्द्रित है। सोया हुआ मन है और मन व्यक्ति का जागा हुआ चित्त है। चित्त का संबंध For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स >117 Jain Education International

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