Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 122
________________ 6. समाज सच्चरित्र व सेवा करने वालों को महत्व दे और गरीबों के दुःख-दर्द को दूर करने के लिए सदा तत्पर रहें। श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने जातिगत आरक्षण को अनुचित ठहराया है। श्री रविशंकर ने इस संदर्भ में कहा है, "जाति के आधार पर आरक्षण सामाजिक अंतर को मिटा नहीं सकता है। पिछड़े और गरीब लोग हर जाति वर्ग में हैं. सभी की आर्थिक उन्नति जरूरी है। भारत की मुख्य ज़रूरत हर स्तर पर लोगों को एक करना है। जातीयता के आधार पर आरक्षण न केवल देश को बाँटेगा, बल्कि लोगों के आत्मविश्वास भी चोट पहुँचाएगा। राजनीतिज्ञों को चाहिए कि वे जाति-धर्म के नाम पर भेदभाव व आंतरिक कलह को बढ़ावा नहीं दें।" श्री चन्द्रप्रभ जातिगत आरक्षण को देश का दुर्भाग्य बताया है। उनका मानना है, 'आरक्षण से देश का विकास कम, बँटवारा ज़्यादा हुआ है। इसका लाभ गरीबों की बजाय जाति विशेष को मिल रहा है। अगर आरक्षण के नाम पर देश की प्रतिभा पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसका असर भारत के विकास पर पड़ेगा।" उन्होंने जातिगत आरक्षण का विरोध करने, सरकारों पर योग्यता व गुणवत्ता से जुड़े मापदण्ड लागू करने का दबाव बनाने का मार्गदर्शन दिया है। श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ सर्वधर्म सद्भाव का वातावरण बनाने के लिए एकमत एवं प्रयत्नशील हैं। दोनों दार्शनिकों की प्रेरणा से समय-समय पर विराट सर्वधर्म सम्मेलन हुए हैं। श्री रविशंकर ने भिन्न-भिन्न धर्मों एवं विचारों के लोगों द्वारा एक स्थान पर बैठकर आपस में विचार-विमर्श करने को सभ्य समाज का लक्षण माना है। श्री चन्द्रप्रभ ने उसी धर्म को धर्म माना है जो मानवता को एक करता हो, टूटे दिलों को जोड़ता हो । उनकी दृष्टि में, " धर्म का काम है सारी मानव जाति को एक सूत्र में बाँधना। जो धर्म मानवता को बाँटता है वह धर्म, धर्म नहीं इंसानियत के कंधे पर ढोया जाने वाला जनाजा है।" उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान करने की प्रेरणा दी है। वे कहते हैं, "दुनिया के हर धर्म, पंथ, मजहब में महान् से महान् सिद्धांत हैं, विचार हैं, चिंतक एवं चमत्कारी महापुरुष हैं। हम उनके प्रति अपनी दृष्टि को विशाल एवं उदार बनाएँ ताकि हर परम्परा, पंथ और संत से लाभान्वित हो सकें।" इस तरह दोनों दार्शनिकों ने विभिन्न धर्मों को निकट लाने की कोशिश की। श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने आतंकवाद की समस्या के कारण व निदान पर भी विचार रखे हैं। श्री रविशंकर ने आतंकवाद के निम्न कारण बताएँ हैं - लक्ष्य प्राप्ति में निराशा व उससे उत्पन्न उग्रता; पुण्य, स्वर्ग व ईश्वर के विषय में भ्रमपूर्ण धारणा, जीवन के प्रति सम्मान का अभाव और मानव मूल्यों को भूला देना। उन्होंने आतंकवाद की समस्या का समाधान करने हेतु निम्न मार्गदर्शन दिया है - 1. मदरसों में सभी संस्कृतियों की शिक्षा दी जाए। 2. बच्चों को विशाल दृष्टिकोण अपनाने व मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रोत्साहन दिया जाए। 3. जातिभेद- लिंगभेद न किया जाए। 4. धर्मगुरु दूसरी धर्म - संस्कृति को जानें। 5. विचारों की विविधता स्वीकार की जाए। 6. पूरे संसार के प्रति अपनापन का भाव महसूस किया जाए। - 7. अहिंसा शांति को स्थापित करने का आत्मविश्वास पैदा करें व आतंकवादियों के प्रति दया व सहानुभूति का भाव लाएँ। Ja122 > संबोधि टाइम्स श्री चन्द्रप्रभ ने आतंकवाद का मुख्य कारण आर्थिक शोषण, गलत वातावरण, दमित वृत्तियाँ और अचेतन मन के संस्कारों को माना है। उन्होंने इस समस्या का समाधान करने के लिए जो सिखावन दी है वह इस प्रकार है - 1. कारागृहों को सुधारगृह बनाया जाए। 2. आर्थिक विकेन्द्रीकरण किया जाए। 3. औरों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाए। 4. श्रेष्ठ साहित्य और सात्विक विचारों का विस्तार किया जाए। 5. छिछली राजनीति को समाप्त करने की कोशिश की जाए। इस तरह श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने सामाजिक एकता, राजनीति व धर्मनीति का समन्वय ध्यान योग का विस्तार, युवा वर्ग का नैतिक उत्थान करने के लिए विस्तार से मार्गदर्शन प्रदान किया है। उनका जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने जीवन, व्यक्तित्व, समाज, धर्म, अध्यात्म, राष्ट्रोत्थान से जुड़े विभिन्न बिन्दुओं पर सकारात्मक मार्गदर्शन देकर बेहतर वर्तमान एवं उज्वल भविष्य की नींव रखी है। दोनों दार्शनिकों का चिंतन आध्यात्मिकता एवं व्यावहारिकता का निचोड़ लिए हुए हैं। सार रूप में श्री रविशंकर ने जहाँ योग एवं ध्यान के मार्ग को विश्व स्तर पर फैलाया और मानवीय उत्थान से जुड़े विविध सेवा कार्य किए वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने जनमानस में वैचारिक क्रांति लाकर सुखी, सफल एवं मधुर जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया। निष्कर्ष श्री चन्द्रप्रभु के दर्शन का अन्य दार्शनिकों के साथ किए गए तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि श्री चन्द्रप्रभ एवं अन्य दार्शनिकों के विचार काफी हद तक निकटता लिए हुए हैं। पर श्री चन्द्रप्रभ ने जो नई जीवन-दृष्टि आमजन को प्रदान की है वह उन्हें सबके निकट खड़ा करता है। उनके दर्शन की निम्न विशेषताएँ, जो उन्हें न केवल अन्य दार्शनिकों से भिन्न करती हैं वरन् नए रूप में प्रस्तुत भी करती हैं 1. श्री चन्द्रप्रभ ने दार्शनिक तत्त्वों की व्याख्या से जुड़ी दुरूहता को कम किया है। 2. श्री चन्द्रप्रभ ने सभी धर्मों के सिद्धांतों एवं महापुरुषों के संदेशों को निकट लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 3. श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन पूर्ववर्ती दार्शनिकों के अनुसरण की बजाय जीवन के अनुभवों पर आधारित है। 4. श्री चन्द्रप्रभ ने दर्शन को जीवन सापेक्ष स्वरूप देकर जो दार्शनिक दृष्टि प्रतिपादित की है वह अद्भुत है। उनका दर्शन मुख्य रूप से जीवन-निर्माण एवं जीवन-विकास में बाधक समस्याओं के समाधान पर अवलम्बित है। 5. श्री चन्द्रप्रभ ध्यानमार्गी होते हुए भी सभी मार्गों को स्वीकार करते हैं। 6. श्री चन्द्रप्रभ ने सकारात्मक वैचारिक क्रांति पर मानवता को मानसिक समृद्धि प्रदान की है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में सभी दर्शनों का सार युगानुरूप ढंग से समाहित है। पूर्ववर्ती सभी दार्शनिक परम्पराओं को सार-सरल स्वरूप में समझने के लिए एवं जीवन को आनंद उत्सवपूर्ण बनाने के लिए श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन शत प्रतिशत उपयोगी सिद्ध हुआ है। Box For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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