Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ - ध्यान चित्त को एकाग्र कर तन-मन-चेतना में चमत्कारी परिवर्तन करने का उपक्रम है। श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान योग की प्राचीन व आधुनिक अनेकानेक विधियों को जाना और समझा है। स्वयं भी उनसे गुजरे हैं । उन्होंने अपने अनुभव 'संबोधि' पुस्तक में लिखे हैं। वे कहते हैं, “विधियों में जो फर्क है वह केवल प्राथमिक चरणों में है। ध्यान की गहराइयों में सभी फर्क मिट जाते हैं।" श्री चन्द्रप्रभ ने साधकों को ध्यान का अभ्यास हो जाने पर ध्यान की विधियों और क्रियाओं से मुक्त होने की सलाह दी है। यद्यपि श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि ध्यान के अंतर्गत अनेक ध्यान विधियों का सृजन किया है, जिनका आज लाखों लोग दैनिक जीवन में उपयोग कर रहे हैं, पर श्री चन्द्रप्रभ यह भी स्वीकार करते हैं, " ध्यान करने-कराने की चीज नहीं होती है. ध्यान तो स्वतः होता है और जिस दिन 'करने' से मुक्ति मिल जाएगी और 'होने' में प्रवेश हो जाएगा तभी साधना की सिद्धि हो जाएगी। तब आदमी का जीना, उठना-बैठना, सोना-जागना सब कुछ सुंदर हो जाएगा।" 44 " I संबोधि ध्यान किसी विधि का नाम नहीं, वरन् बोधपूर्वक ध्यान में उतरने का नाम ही संबोधि ध्यान है। आगे हम देखेंगे कि संबोधि ध्यान के अंतर्गत कई नए-नए प्रयोग हुए हैं और कई-कई विधियों को महत्त्व मिला है। वर्तमान में जहाँ ध्यान परम्पराओं द्वारा विधियों के प्रति आग्रह- दुराग्रह रखा जाता है वहाँ श्री चन्द्रप्रभ की यह दृष्टि बेहद उपयोगी है, "मेरा न तो किसी विधि के प्रति आग्रह है न ही किसी पंथ और न ही किसी ग्रंथ के प्रति दुनिया में अच्छे लोगों की अच्छे मार्गों की कमी नहीं है, जो भी हमें जीवन के लिए सार्थक लगे उसे बिना किसी आग्रह दुराग्रह के स्वीकार कर लेना चाहिए। अच्छी बात तो दुश्मन की भी क्यों न हो, ग्रहण करने योग्य होती है।" ध्यान से पूर्व व्यक्ति को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए यह महत्त्वपूर्ण बात है। जैसे नींव मजबूत हो तो मकान सुरक्षित रहता है वैसे ही संबोधि ध्यान साधना से पूर्व श्री चन्द्रप्रभ ने 'सफल होना हो तो ' एवं 'साधना के सुझाव' नामक पुस्तकों में निम्न बातों का ध्यान रखने की प्रेरणा दी है 1. संबोधि साधना ध्यान योग की व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि है। अपने प्रत्येक कार्य को, यहाँ तक कि अपनी श्वास को भी होश और बोधपूर्वक संपादित करना संबोधि साधना की मूल दृष्टि है। 2. संबोधि साधना के प्रभावी परिणामों को पाने के लिए संबोधि ध्यान की नियमित बैठक अनिवार्य है। समय, स्थान और प्रयोग नियत व नियमित हाँ तो और श्रेष्ठ है। 3. संबोधि ध्यान साधना के पूर्व योगासन व प्राणायाम करना सहज लाभप्रद है। इससे सम्पूर्ण शरीर और नाड़ी तंत्र जाग्रत और स्फूर्त होता है। ये हमारे चित्त को और अधिक सुखद बनाने में सहयोगी बनते हैं । 4. ध्यान में पूर्व या उत्तर दिशा का चयन करना उपयोगी है, हाथों को गोद में या ज्ञान मुद्रा में रखें, सहज सीधी कमर बैठें, लेकिन अकड़कर नहीं। 5. शांत, स्वच्छ और एकांत स्थान में ध्यान करें। ध्यान के लिए सूर्योदय, सूर्यास्त का समय सर्वश्रेष्ठ है। महिलाएँ दोपहर में भी ध्यान कर सकती हैं। 6. शुरुआत में ध्यान की बीस से तीस मिनट की बैठक हो। अति तनाव या अति थकान में ध्यान की बजाय कायोत्सर्ग (रिलेक्सेशन) करना श्रेष्ठ है। 7. शांत गति की गहरी लंबी श्वासों के साथ ध्यान में प्रवेश करें। Jain Education International 8. ताजा, हल्का और पोषक भोजन साधना व स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी रहता है। 9. सहजता, सकारात्मकता, सजगता व निर्लिप्तता साधना के मूल मंत्र हैं । 10. हर ध्यान - विधि को सवा माह तक लगातार करें। हर छह माह में सात दिन का शांत - एकांतवास अवश्य करें। संबोधि साधना मार्ग में जिन ध्यान विधियों के प्रयोग करवाए जाते हैं उनमें मंत्र ध्यान, साक्षी ध्यान, चैतन्य ध्यान, मुक्ति ध्यान और संबोधि ध्यान मुख्य हैं। मंत्र ध्यान विधि का मार्गदर्शन 'स्वयं से साक्षाकार' नामक पुस्तक में साक्षी ध्यान विधि 'ऐसे जिएँ' पुस्तक में चैतन्य ध्यान विधि' संबोधि साधना का रहस्य' पुस्तक में मुक्ति ध्यान विधि 'साधना के सुझाव' पुस्तक में से दी गई है। 7 2 मंत्र- ध्यान विधि के पाँच चरण हैं। पहले चरण में सात बार ओम् का उद्घोष व सात बार अनुगूँज करते हैं। दूसरे चरण में ओम् का ह जाप होता है। तीसरे चरण में ओम व श्वास की अंतर्यात्रा, चौथे चरण में तेज श्वासों के साथ ओम का अंतर-मंथन व अंतिम चरण ज्योति-दर्शन में ललाट के तिलक प्रदेश पर ओम् का स्वरूप स्थापित करते हुए उसके ध्यान में निमग्न होना होता है। : : साक्षी ध्यान विधि के चार चरण हैं। पहला चरण श्वास दर्शन एका बोध है। जिसमें क्रमश: 50-50 दीर्घ श्वास, मंद श्वास व सहज श्वास का अनुभव करना होता है। दूसरा चरण 'देह दर्शन संवेदना बोध' है। इसमें कंठ से पाँवों की ओर फिर पाँवों से मस्तिष्क की ओर हर अंग में होने वाली संवेदनाओं पर एकाग्र होते हैं। तीसरा चरण 'चित्त दर्शन : संस्कार बोध' है। इसमें चित्त की स्थिति का निरीक्षण होता है। अंतिम चरण 'शून्य दर्शन : आत्म-बोध' है। इसमें देहभाव-मनोभाव से ऊपर उठकर स्वभाव में स्थित होना होता है । : चैतन्य ध्यान विधि के भी चार चरण हैं। पहला है उदघोष अर्थात् ओम का नौ बार उच्चारण। दूसरा चरण है : मंत्र-साधना अर्थात् गहरी श्वासों के ‘ओम् नमः' मंत्र का 108 बार स्मरण । तीसरा चरण है शक्ति जागरण अर्थात् रीढ़ के ऊपरी छोर से निचले छोर तक साँस अर्थात् ऊर्जा के सूक्ष्म प्रवाह का अनुभव करना और क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञाचक्र और सहस्रार प्रदेश पर पाँच-पाँच मिनट एकाग्र होना चौथा चरण है: सहज विश्राम अर्थात् समाधिस्थ दशा में डूबे रहना और अंत में तीन बार ओम् का उद्घोष कर प्रार्थना या भजन गुनगुनाना व बैठक पूरी करना। मुक्ति ध्यान विधि के पाँच चरण हैं। पहला है: एकाग्र योग अर्थात् श्वास के प्रति साक्षी भाव दूसरा चरण है शांति योग अर्थात् वृत्तियोंविचारों के प्रति साक्षी भाव के साथ चित्त शांत... विचार शांत का आत्म सुझाव तीसरा चरण है आत्मयोग अर्थात् हृदय में एकाग्र होना चौथा चरण है: बोधि योग अर्थात् हृदय से ऊर्ध्व मस्तिष्क में एकाग्रता व अंतिम चरण है: परमात्म- योग अर्थात् ब्रह्माण्ड की परा - सत्ता में विलीन हो जाना। संबोधि ध्यान विधि के पाँच चरण हैं। पहला है : एकाग्र योग अर्थात् 21 बार ओम् का उद्घोष । दूसरा चरण है: ओंकार का जाप अर्थात् आती हुई श्वास के साथ' ओम्' और जाती हुई श्वास के साथ 'नमः' का 108 बार जाप करना व तत्पश्चात् लयबद्ध तेज गति की संबोधि टाइम्स 81 www.jainelibrary.org. For Personal & Private Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148