Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 111
________________ धाराओं में समन्वय स्थापित करते हुए कहा, "हृदयवान लोगों के लिए मौन रहना और कर्मयोग में मग्न रहना।" श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में भक्तियोग का, बुद्धिप्रधान लोगों के लिए ज्ञानयोग का और श्रमप्रधान भगवान की सत्ता मनुष्य के हृदय में व सृष्टि में सर्वत्र मानी गई है। श्री लोगों के लिए कर्मयोग का मार्ग है, पर इन सभी मार्गों को पूर्णता देने के चन्द्रप्रभ कहते हैं, "प्रभु हम सबके पास हैं, प्राणिमात्र में उसी प्रभु का लिए ध्यानयोग का मार्ग है।" इस तरह उन्होंने धर्म व साधना के संदर्भ निवास है जिसमें अनन्य भक्ति होती है, वह प्रभु को पहचान जाता में नये दृष्टिकोण उजागर किए हैं। है।" वे प्रभु से अच्छा स्वभाव, औरों की भलाई व दायित्वों का पालन निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि दोनों दर्शन ध्यानयोगमार्गी हैं। श्री करने की शक्ति देने की प्रार्थना करने की सीख देते हैं। उन्होंने प्रभुअरविंद ने पांडिचेरी में व श्री चन्द्रप्रभ ने हम्फी की गफाओं में साधना भक्ति के लिए समय निकालने व हर परिस्थिति में प्रभु पर विश्वास करके आत्म-प्रकाश को उपलब्ध किया व प्राणिमात्र को योग से जडा रखने की प्रेरणा दी है। सरल मार्ग प्रदत्त किया। दोनों दार्शनिकों की समन्वयात्मक एवं उदार आचार्य विनोबा भावे एवं श्री चन्द्रप्रभ ने नैतिक जीवन जीने पर दृष्टि वर्तमान विश्व के विकास के लिए बहुत उपयोगी है। संक्षेप में बल दिया है। विनोबा भावे ने नैतिक मूल्यों के अंतर्गत अहिंसा, सत्य, जहाँ श्री अरविंद ने आध्यात्मिक एवं दार्शनिक तत्त्वों को चेतनागत निर्भयता, ब्रह्मचर्य, सत्यप्रियता, शिष्ट वाणी, क्षमा, सद्व्यवहार, विकासवाद के दृष्टिकोण से विवेचित किया वहीं श्री चन्द्रप्रभ ने अपरिग्रह आदि को जीवन में आत्मसात करने का मार्गदर्शन दिया है। जीवनगत दृष्टिकोण से विवेचित कर उन्हें सर्वजन उपयोगी बनाने में उन्होंने इन पर अच्छा प्रकाश डाला है। श्री चन्द्रप्रभ नैतिक मूल्यों को योगदान दिया। समाज व राष्ट्र के निर्माण की नींव मानते हैं। वे कहते हैं, "देश की तरक्की केवल चौड़ी सड़कों और पुलों के निर्माण से नहीं, सत्य व विनोबा भावे एवं श्री चन्द्रप्रभ ईमान की प्रतिष्ठा करने से होगी।" उन्होंने भगवान के मंदिरों से ज़्यादा वर्तमान दार्शनिकों की श्रृंखला में विनोबा नीति के मंदिरों की आवश्यकता बताई है। वे पंथ-परम्परा के मूल्यों की भावे एवं श्री चन्द्रप्रभ का विस्तार-दर्शन समाज बजाय राष्ट्र-मूल्यों को महत्त्व देने व रूढ़िवाद की बजाय राष्ट्रीय को नई दिशा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण स्थान भावनाओं पर विचार करने की प्रेरणा देते हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने नैतिक रखता है। दोनों दार्शनिकों ने न केवल मूल्यों के अंतर्गत निम्न सूत्रों को अपनाने पर जोर दिया है - आध्यात्मिक तत्त्वों की व्याख्या की वरन् उसे 1.औरों का दिल न दुःखाएँ। व्यावहारिक जीवन में आत्मसात् करने का 2. रक्तशोषण न करें। मार्गदर्शन भी दिया। जहाँ विनोबा भावे का 3. चोरी-बेईमानी से बचें। जीवन गाँधीवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने, भूदान आंदोलन का विस्तार करने व सामाजिक विकास के लिए समर्पित रहा वहीं श्री 4. चरित्र के प्रति निष्ठाशील रहें। चन्द्रप्रभ का दर्शन धार्मिक एकता स्थापित करने, जीवन-निर्माण व 5. ज़रूरतमंद लोगों का सहयोग व दुर्व्यसनों का त्याग करें। व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने पर केन्द्रित है। विनोबा भावे के विनोबा भावे एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में कर्मयोग को विशेष दर्शन की समीक्षा करने से स्पष्ट होता है कि वे आद्य शंकराचार्य, संत स्थान प्राप्त है। दोनों दर्शन गीता के निष्काम कर्मयोग में आस्था रखते ज्ञानेश्वर व विशेष रूप से गाँधीवादी दर्शन से प्रभावित हैं । विनोबा भावे हैं। विनोबा भावे ने प्रत्येक कार्य को पूजा की भावना से करने की सीख महात्मा गाँधी के पहले सत्याग्रही साधक थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा दी है। वे कहते हैं, "हाथ से काम हो और हृदय में भक्ति हो तभी कार्य महात्मा गाँधी के आश्रम में हुई। उन्होंने गाँधीवादी दर्शन को आगे पूजा करना कहलाएगा। पूजा की भावना के बिना काम समर्पण नहीं बढ़ाया और भूदान आंदोलन कर देश में नई क्रांति की। वे आध्यात्मिक बनेगा।" उन्होंने कर्म को आनंदपूर्ण बनाने के लिए हार-जीत को दृष्टिकोण से साम्यवादी थे और राजनीतिक दृष्टिकोण से समाजवादी समान समझने और सबको साथ लेकर काम करने का मार्गदर्शन दिया थे। उन्होंने प्रभु भक्ति, अध्यात्म-साधना, गुरुदीक्षा, कर्मयोग, धर्म, है।श्री चन्द्रप्रभ कड़ी मेहनत करने के समर्थक हैं। वे किस्मत का फल चित्त-शुद्धि, विकार-मुक्ति, सत्य-अहिंसा, आत्मज्ञान व विज्ञान, पाने के लिए भी पुरुषार्थ करना ज़रूरी मानते हैं। वे कहते हैं, "जब ब्रह्मचर्य, वाणी-विवेक, क्षमा, शिक्षा, गौरक्षा, सेवा, प्राकृतिक जूतों का काम करके कोई बाटा बन सकता है और लोहे का काम करके चिकित्सा, अपरिग्रह, खादी, भूदान-ग्रामदान आदि बिन्दुओं पर भी कोई टाटा बन सकता है फिर हम ऊँचाइयों को क्यों नहीं छू सकते हैं।" विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने कर्म-योग की व्याख्या इस प्रकार की है - विनोबा भावे एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन की तुलनात्मक विवेचना 1. हर कर्म प्रभु को समर्पित करें। करने से स्पष्ट होता है कि दोनों दर्शनों में ईश्वर के प्रति निष्ठा व्यक्त की 2.किसी भी कार्य को छोटा न समझें। गई है और प्रभु-प्रार्थना पर जोर दिया गया है। विनोबा भावे ने प्रभु 3. पूर्ण लगन से कार्य करें और हर कार्य को पूर्णता देकर ही प्रार्थना को दैववाद व प्रयत्नवाद का समन्वय किया है। वे प्रार्थना का विश्राम लें। अर्थ अहंकार रहित प्रयत्न बताते हैं और प्राणिमात्र में हरिदर्शन करना 4.असफलताओं से कभी भी विचलित न होवें।। भी मानते हैं। उन्होंने प्रभु से असत्य से सत्य, अंधकार से प्रकाश और मृत्यु से अमृतत्व ओर ले जाने की प्रार्थना करने की प्रेरणा दी है। उनकी आचार्य विनोबा भावे व श्री चन्द्रप्रभ का धर्म-दर्शन वर्तमान विश्व दृष्टि में, "प्रभु-प्रार्थना में तीन बातों का विवेक रखना चाहिए - दूसरों के लिए उपयोगी है। विनोबा भावे सर्वधर्म-सद्भाव के समर्थक हैं। क को दिखाने के लिए न करना, दूसरों के दोषों को न देखना, दिख जाए तो उनकी दृष्टि में, "जिससे समाज में प्रेम बढे, समाज निर्वेर बने, वही संबोधि टाइम्स > 111 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org,

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