Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 61
________________ दौरा नहीं पड़ता। हँसना खुद ही एक श्रेष्ठ टॉनिक है चाहे आपको टेंशन स्वास्थ्य के लिए शरीर रूपी साधन का स्वस्थ होना जरूरी मानते हैं। रहता हो या डिप्रेशन, मिर्गी की बीमारी हो या हार्ट की, आप हँसने की उन्होंने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए निम्न आदत डालें। आप चमत्कारिक रूप से टेंशन फ्री हो जाएँगे, हार्ट और सूत्र प्रदान किए हैं - किडनी पर भी हँसने-हँसाने के अच्छे प्रभाव पड़ेंगे।" उन्होंने 1. सूरज उगे, उससे पहले उठ जाइए और हर दिन उगते सूरज खुशहाल जीवन के लिए तीन मिनट तक मुस्कुराते हुए आती-जाती का अभिवादन कीजिए।सूर्य की ऊर्जा आपको विटामिन डी देगी। श्वासों का अनुभव करने के प्रयोग को प्रतिदिन करने की सीख दी है। 2. सुबह आँख खुलते ही एक मिनट तक प्यार से मुस्कुराइए। जीवन में मुस्कान को विस्तार देना जरूरी मानते हैं। प्राय: व्यक्ति बाहरी यह सुबह का विटामिन आपको दिनभर मुस्कान से भरे रखेगा। निमित्तों से खुश होने की चेष्टा करता है पर बाहरी निमित्त प्रकृति की 3. सुबह खाली पेट टहलने अथवा स्वास्थ्यवर्धक योगासन करने तरह परिवर्तनशील है। विपरीत निमित्त आते ही व्यक्ति अशांत हो जाता की नियमित आदत डालिए। योगासन शरीर तंत्र को मजबूत रखेगा। है। अगर व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर उद्वेलित होता रहेगा तो वह कभी 4. तली हुई चीजों एवं बाजारू मिठाइयों से परहेज रखिए। ये खुश ही न हो पाएगा। व्यक्ति प्रकृति की परिवर्तनशीलता को समझ कर स्वादयुक्त ज्यादा स्वास्थ्ययुक्त कम होती हैं। इससे बच सकता है। श्री चन्द्रप्रभ का मानना है, "जो हर हाल में मस्त 5. पानी ज्यादा पीजिए। पानी अशुद्ध तत्त्वों को बाहर निकाल देता और मुस्कान से भरा रहता है उसे दुनिया की कोई ताकत दुःखी नहीं है। कर सकती है। विपरीत वातावरण बन जाने पर भी हम अपनी सहजता 6. नाखूनों को काटिए। नाखून का मैल शरीर में कीटाणुओं को और मुस्कान को जीवित रखते हैं तो समझना कि हम मानसिक रूप से, पैदा करता है। आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हैं खुशहाल हैं।" उन्होंने खुशहाल जिंदगी 7. प्रतिदिन आधा से एक-घंटा अच्छी पुस्तकों को पढ़ने की जीने के लिए हर दिन की शुरूआत एक मिनट तक तबीयत से आदत डालिए, इससे मानसिक प्रसन्नता में अभिवृद्धि होगी। मुस्कुराकर करने और स्वयं को विनोदप्रिय बनाने के मंत्र दिए हैं। ___8. नींद पूरी ली जा सके, इसके लिए देर रात तक पढ़ने, टी.वी. जीवन और स्वास्थ्य देखने अथवा जगने की आदत से छुटकारा पाइए। स्वास्थ्य शांति और समृद्धि का आधार है। स्वस्थ रहना जीवन की 9. चाहे जमीन पर बैठे या कुर्सी पर, मगर सीधी कमर बैठिए। सबसे बड़ी दौलत है। कुछ परम्पराओं ने मन की स्वस्थता पर जोर दिया इससे मेरूदण्ड स्वस्थ व सक्रिय रहता है। तो कुछ ने तन की स्वस्थता पर । विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि तन 10. स्वयं को मानसिक दबाव के बोझ और तनाव के मकड़जाल और मन अलग नहीं पूरक तत्त्व हैं। जहाँ स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का से मुक्त रखिए। निवास होता है वहीं स्वस्थ मन ही स्वस्थ तन का आधार हुआ करता 11. सदा वही खानपान कीजिए जो आपके खानदान को है। श्री चन्द्रप्रभ तन और मन दोनों की स्वस्थता को स्वीकार करते हैं। वे गारमामय बनाए। देह को नश्वर मानकर उसकी उपेक्षा करने की प्रेरणा नहीं देते वरन् उसे 12. प्रतिदिन पन्द्रह मिनिट नंगे पाँव घूमने जाइए। स्वस्थ, सक्रिय रख उसका सदुपयोग करने का मार्गदर्शन देते हैं। हायोग को काम 13. ताँबे के बर्तन में पानी भरकर रखिए और फिर उसका सेवन उन्होंने भगवान को मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारे तक सीमित गटा तक सीमित कीजिए।इससे पेट-शुद्धि अच्छी तरह होगी। रखने वालों को नजरिया बदलने की सलाह दी है। हमने अब तक धरती 14. प्रतिदिन खुली हवा में पन्द्रह मिनट प्राणायाम कीजिए। के मंदिरों को मंदिर माना है, पर श्री चन्द्रप्रभ हमें जीवित मंदिर से प्राणायाम हमारी प्राणऊर्जा में बढ़ोतरी करेगा। मुलाकात करवाते हैं। उनकी दृष्टि में, "मनुष्य स्वयं एक जीता-जागता 15. प्रतिदिन ध्यान धरिए। ध्यान से मन एकाग्र और शांत रहता है। मंदिर है।" उन्होंने जीवन की मूल्यवत्ता समझने एवं इसके प्रति 16. रसोईघर में सफाई रखिए। स्वच्छता में ही स्वस्थता का जागरूक होने की प्रेरणा दी है। वे तन-मन की बजाय सम्पूर्ण जीवन के निवास होता है। स्वास्थ्य के समर्थक हैं। वे कहते हैं, "जीवन के सम्पूर्ण सौन्दर्य और 17. सुबह-सुबह दूध पीजिए। खाली पेट चाय मत पीजिए, माधुर्य के लिए केवल उसका रोगमुक्त होना ही पर्याप्त नहीं है. वरन क्योंकि इससे कब्जी हो जाती है। शारीरिक आरोग्य के साथ विचार और कर्म की स्वस्थता, स्वच्छता 18. घर में सामूहिकता रखिए, मिल-जुलकर काम कीजिए। और समरसता भी अनिवार्य चरण है।" इससे भाव-शुद्धि में बढ़ोतरी होगी। दुनिया में दो तरह की परम्पराएँ रही हैं - भोगवादी और तपवादी। 19.खाना खाते समय न टी.वी.देखिए और न ही अखबार पढ़िए। भोगवादी परम्परा ने शरीर को महज भोग का साधन मान लिया और 20. बाजार से जो भी चीजें लाएँ, उनकी साफ-सफाई का ध्यान तपवादी परम्परा ने शरीर को केवल तपस्या का साधन मान लिया। वेदों रखिए। ने जहाँ शरीर को धर्म का पहला साधन माना वहीं कुछ शास्त्रों में शरीर 21. प्रकृति के साथ जुड़े रहिए। प्रकृति में परमात्मा का सान्निध्य को नश्वर कहकर उपेक्षा करने की प्रेरणा दी गई। श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन निहित होता है। के मुख्यत: तीन सेतु माने हैं - शरीर, विचार और भाव । गीता ने तीनों जीवन और सफलता की शुद्धियों को राजयोग कहा है। श्री चन्द्रप्रभ तीनों की विशद्धि एवं भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थ माने गए हैं - धर्म, अर्थ, काम और विपश्यना को जीवन का कायाकल्प कहते हैं। वे न तो अतियोग के मोखामोशी समर्थक हैं न अतितप के। उन्होंने शरीर को साधने की प्रेरणा दी है। वे । आर्थिक सफलता का युग है। सफलता का मूल्यांकन आर्थिक दृष्टिकोण से For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स - 610 1.प्रार Jain Education International

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