Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 73
________________ बलि जैसी कुरीतियाँ कम हुई हैं और लोग एक-दूसरे के सुख-दुःख में चन्द्रप्रभ का दृष्टिकोण है, "सामाजिक उत्थान के लिए शिक्षा पहला सहभागिता निभाने को आगे आने लगे हैं। भूकम्प या बाढ़ जैसी विकट मूलभूत आधार-स्तम्भ है। अब मंदिरों के साथ-साथ जीवन-निर्माण परिस्थिति का जब-जब भी सामना करना पड़ता है, तब-तब लोग करने वाले विद्यालयों का भी निर्माण किया जाए।" देश का प्रसिद्ध जाति या भाषा के भेद को भूलकर एक-दूसरे के लिए सहयोगी बन व्यापारिक समूह अंबानी बंधुओं को प्रेरणा देते हुए श्री चन्द्रप्रभ ने जाते हैं। यह सामाजिक दृष्टि से बड़ी उपलब्धि की बात है। लिखा है, "पूरे देश में पेट्रोल पम्प की तरह अगर अंबानी ग्रुप उच्चसमाज का जहाँ विकसित रूप देखने को मिलता है, वहीं कुछ स्तरीय महाविद्यालय स्थापित कर दें तो दुनिया उन्हें सदा सिर माथे पर नकारात्मक पहलू भी समाज पर हावी हुए हैं। फिजलखर्ची. बिठा कर रखेगी।" जीमणवारी और प्रदर्शन को बढ़ावा मिला है। यह सच है कि गरीबी- श्री चन्द्रप्रभ समाजोत्थान के लिए समन्वय के सूत्रों को अपनाने अमीरी की भेद-रेखाओं में कमी आई है, आम इंसान का जीवन कुछ की भी प्रेरणा देते हैं। उनका दृष्टिकोण है, "दुनिया में एकता से बढ़कर सुखी हुआ है, सुविधायुक्त हुआ है, पर जो कमियाँ आई हैं, हमें उन्हें कोई ताकत नहीं है। हम आपस में जुड़ें, आगे बढ़ें और ऐसी संस्थाएँ दूर करने के प्रति जागरूक होना होगा। श्री चन्द्रप्रभ सामाजिक मूल्यों बनाएँ जो हमें संगठित कर सके।" उन्होंने किसी धर्म-परम्परा विशेष के प्रति जागरूक हैं। संत और उसमें भी मानवतावादी विचारों के तक सीमित रहने वालों को विशाल हृदय रखने की सीख देते हुए संवाहक होने के नाते वे समाज की हर दुखती नब्ज को पहचानते हैं। मंदिर-मस्जिद, स्थानक-उपाश्रय में भेदभाव न करने और सब जगह जो लोग जनता से धन एकत्रित करते हैं फिर उसी धन से बड़े-बड़े जाने की प्रेरणा दी है। इससे स्पष्ट होता है वे पंथ परम्परा से मुक्त होकर जीमण करते हैं, संतों की भक्ति करते हैं, मिठाइयाँ और नारियल बाँटते मानवीय एकता में विश्वास रखते हैं। समाज की एकता के लिए हैं। क्या यह उचित है? इस संदर्भ में श्री चन्द्रप्रभ का दृष्टिकोण है,"धर्म धर्मगुरुओं का निकट आना भी बहुत जरूरी है। अगर संत एक हो जाएँ के नाम पर धन एकत्रित करके तीन-तीन मिठाइयों का अगर जीमण तो अनुयायी वर्ग का एक होना सहज-सरल है। इस संदर्भ में श्री होता है तो ऐसा करके लोगों के द्वारा धर्म के नाम पर दिए गए धन का चन्द्रप्रभ ने हकीकत उजागर करते हुए बताया है, "जब नाई नाई से, दुरुपयोग करना कहलाएगा।आज अगर किसी संत को बादाम खाना है धोबी धोबी से मिलता है, तो राम-राम करता है, फिर संत-संत से तो वे बड़े प्रेम से खाए। संत आपके घर आये, आपने उन्हें बादाम मिलने पर अकड़ा क्यूँ रहता है।" उन्होंने सभी संतों से निकट आने व खिलाई यह बात तो समझ में आई, पर दुनिया से पैसा इकट्ठा करके अमीर-गरीब सभी को समान महत्त्व देने का निवेदन किया है। . किन्हीं संतों की भक्ति करना, गुरुजनों का 'हरककोड' करना धर्म के श्री चन्द्रप्रभ का धर्म-दर्शन समाजोत्थान के लिए समानता व प्रतिकूल है। धर्म के नाम पर उतना ही लिया जाना चाहिए जिसे व्यक्ति सहभागिता की नीति को आवश्यक मानता है। जिस समाज में सभी को प्रभु का प्रासाद मान कर स्वीकार कर सके।" समाज में बढ़ रही। अवसर प्रदान किये जाते हैं एवं हर कार्य सर्वसम्मति व सर्वसहयोग से जीमणवारी पर तीखी टिप्पणी करते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "आज सम्पन्न होते हैं वह समाज तेजी से प्रगति करता है। व्यक्ति पारिवारिक स्तर की तारीख में समाज में धर्म के नाम पर धन खर्च कर केवल पर कछ भी करे.पर सामाजिक स्तर पर वही काम करे जो समाज में पहले जीमणवारी करने का धर्म होने लग गया है।" से मर्यादाएँ निश्चित की गई हैं। अगर एक अरबपति व्यक्ति सामाजिक आज हर समाज में कुछ जरूरत से ज्यादा गरीब लोग हैं तो कुछ नियमों को ताक में रखकर अपने हिसाब से काम करेगा तो समाज में कभी जरूरत से ज्यादा अमीर लोग नाम-प्रतिष्ठा के चक्कर में कोई करोड़ों समानता की भावना विकसित न हो पाएगी। उनका मानना है, "पाँचों स्वाहा कर रहा है तो गरीबों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही, अँगुलियों का महत्त्व तभी तक है, जब तक वे संगठित हैं। अलग होते ही ऐसी स्थिति में उस समाज का भविष्य कभी-भी उज्ज्वल नहीं हो ताकत कमजोर हो जाती है।" वे स्वावलंबी समाज-निर्माण के समर्थक सकता जहाँ अमीर-गरीब, जात-पाँत या छुआछूत की भेद-रेखाएँ हैं। वे चाहते हैं, "हम गरीब को राशन ही नहीं नौकरी भी दें। उन्हें सहयोग विद्यमान होती हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने अमीरों से आह्वान किया है कि के साथ स्वावलंबी भी बनाएँ। दान की रोटी देकर हम औरों को विकलांग "भगवान महावीर द्वारा दिया गया अपरिग्रह का सिद्धांत गरीबों के बनाने की बजाय पाँवों पर खड़ा करें। समाज के कमजोर लोगों को योग्य लिए नहीं, अमीरों के लिए है। वे परिग्रह का त्याग कर गरीब भाइयों को बनाना ईश्वर की सच्ची सेवा है।" ऊपर उठाएँ ताकि स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके।" श्री चन्द्रप्रभ के समाज-दर्शन के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि वे अब सामाजिक संस्थाओं पर भी राजनीति का असर छाने लगा है। समाज के सकारात्मक-नकारात्मक दोनों पक्षों को गहराई से जानते हैं। आपसी चर्चा में सेवा के कार्यों पर ध्यान देने की बजाय एक-दूसरे पर उन्होंने वर्तमान समाज को ऊपर उठाने के लिए जो सीधी-सटीक बातें छींटाकशी ज्यादा की जाती है, परिणाम, न पक्ष काम कर पाता है न कहीं है वे बेहतर समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। विपक्ष। श्री चन्द्रप्रभ ने इसे अनुचित बताते हुए कहा है, "अरे भाई 4. धर्म और मानवीय मूल्य - धर्म का अभ्युदय मानवीय मूल्यों मीटिंग का मतलब है मिल-जुलकर काम करने की सहमति। अगर के विकास के लिए हुआ है। आज धर्म के नाम पर कथाएँ, भाषण, ऐसा है तो मीटिंग समाज के लिए हितकारी है, वरना मीटिंग और प्रवचन खब हो रहे हैं, पर मनुष्य के जीवन में मानवीय मूल्य सिमटते वोटिंग समाज के लिए सबसे बडे सिरदर्द हैं।" अर्थात् उन्होंने व्यक्ति जा रहे हैं। श्री चन्द्रप्रभ ने धार्मिक क्रियाओं की बजाय व्यक्ति का ध्यान को सामाजिक सेवा करने से पहले सकारात्मक नजरिया अपनाने की मानवीय मल्यों की ओर खींचा है। उन्होंने सत्य. प्रेम. न्याय, करुणा. सीख दी है। समाज के विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है। शिक्षा के भाईचारा. मैत्री. परस्पर सहयोग जैसे मल्यों को आत्मसात करने की विस्तार के कारण ही व्यक्ति ने आज नई ऊँचाइयों को छुआ है। श्री प्रेरणा दी है। वे कहते हैं, "जो दूसरों के लिए 'उपयोगी' नहीं बन Jain Education International For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स >739

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