Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation
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गृहस्थी में जीने के लिए रामायण को आदर्श बनाकर एक-दूसरे के प्रति रहने वाले कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा दी है। परिवार का पहला रिश्ता है माता-पिता और संतान का रिश्ता । संतान को संस्कारशील बनाना जहाँ माता-पिता का पहला दायित्व है वहीं माता-पिता की सेवा संतान का मुख्य फर्ज है। वर्तमान स्थितियों पर दृष्टिपात करें तो पता चलता है। संतानें अपना दायित्व निभाना भूल गई हैं। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन संतानों को दायित्व बोध कराने में पूर्ण सफल हुआ है। श्री चन्द्रप्रभ वैचारिक संदेशों से प्रभावित होकर परिवार में प्रेम व मिठास बढ़ा है। श्री चन्द्रप्रभ ने बेहतरीन रिश्तों का सृजन करने के लिए निम्न मार्गदर्शन दिया है
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1. परिवार अर्थात् फैमिली जिसका मतलब है एफ फादर, ए एण्ड, एम = मदर, आई आई, एल = लव, वाय = यू अर्थात् फादर एण्ड मदर आई लव यू। जिस घर में माता-पिता का सम्मान और भाईबहिनों से प्रेम होता है, उसी घर को परिवार कहते हैं।
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2. भले ही बूढ़ा पेड़ फल नहीं देता, पर छाया तो अवश्य देता है, इसलिए व्यक्ति मंदिर में जाकर देवी को चुनरी और भोग बाद में चढ़ाए, पहले माता-पिता के कपड़ों व भोजन की व्यवस्था करे ।
3. जिन भगवान की मूर्तियों को हमने बनाया उनकी तो हम खूब पूजा करते हैं, पर जिस माँ-बाप ने हमें बनाया उनकी पूजा करना हम क्यों भूल जाते हैं।
4. बेटा वह नहीं होता, जिसे माँ-बाप जन्म देते हैं, जो बुढ़ापे में माँ-बाप की सेवा करे, वही असली सपूत कहलाता है।
5. अगर आप श्रवणकुमार की माँ बनना चाहती हैं तो पहले अपने पति को श्रवण कुमार बनने की प्रेरणा दीजिए।
दूसरा महत्त्वपूर्ण रिश्ता है पति-पत्नी का, इस रिश्ते में आपसी संतुलन होना अनिवार्य है अन्यथा जीवन समस्या बन जाता है। तलाक लेने की स्थितियाँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं जो कि चिंता का विषय है। ऐसे में श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन पति-पत्नी के संबंधों को मधुर बनाने के लिए एक-दूसरे को भरपूर सम्मान देने, सहयोग करने, परस्पर विश्वास बनाए रखने व प्रेमभाव बढ़ाने के सूत्रों को अपनाने की प्रेरणा देता है। परिवार का तीसरा रिश्ता है सास-बहू का रिश्ता । यह रिश्ता परिवार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसी रिश्ते पर परिवार की खुशहाली निर्भर है। सास बहू में सामंजस्य स्थापित करने के लिए श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन वर-वधू की बजाय सास-बहू के गुण मिलाने की प्रेरणा देता है। उनका दृष्टिकोण है, "पराए घर से बहू लाना आसान है, पर उसका दिल जीना मुश्किल है। सास बहू को इतना प्यार दे कि वह पीहर के फोन नम्बर तक भूल जाए और बहू सास का इतना सम्मान करे कि वह ससुराल गई बेटी को भूल जाए।" श्री चन्द्रप्रभ ने सास-बहू के रिश्ते प्रेमपूर्ण बनाने के लिए निम्न सूत्रों का मार्गदर्शन दिया है -
1. सास-बहू परस्पर न लड़ें।
2. सास बहू को बेटी व बहू सास को माँ समझे ।
3. बहू सास के सम्मान में कभी कमी ना आने दे।
4. सास बहू को जीने की स्वतंत्रता दे।
5. सास ज्यादा दखलंदाजी न करे।
6. बहू सास के सामने न बोले ।
7. बहू सास की हर बात मान ले।
अन्य रिश्तों में मुख्य रूप से भाई-भाई का, देवरानी-जेठानी और
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देवर-भाभी के रिश्ते आते है। उनका दर्शन जीवन से जुड़े हर रिश्ते को प्रेमभरा बनाने का मार्ग सिखाता है। इन रिश्तों के संदर्भ में श्री चन्द्रप्रभ ने कहा है, "जिस घर में भाई भाई, देवरानी जेठानी, भाभी देवर के बीच प्रेम व समरसता होती है वह घर मंदिर की तरह होता है, पर जहाँ भाई - भाई, पिता-पुत्र, आपस में नहीं बोलते, वह घर कब्रिस्तान की तरह होता है। कब्रिस्तान के कमरों में भी लोग तो रहते हैं, पर वे आपस में बोलते नहीं, अगर घर की भी यही हालत है तो कब्रों और कमरों में फर्क ही कहाँ रह जाता है।" इस तरह उन्होंने सभी रिश्तों में मधुरता घोलने की प्रेरणा दी है। वे परिवार के निर्माण के लिए निम्न सूत्रों को आत्मसात करने की सीख देते हैं
1. सभी एक-दूसरे का सहयोग करें। 2. प्रत्येक कार्य में परस्पर सहभागी बनें। 3. हिल-मिल जुल कर रहें ।
4. परस्पर पूर्ण सम्मान दें।
5. सुबह उठकर परस्पर प्रणाम करें व मुस्कुराएँ । 6. घर को सभी स्वच्छ रखें ।
7. एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होवें। 8. घर को व्यसन मुक्त रखें ।
9. गलती होने पर तुरंत माफी माँग लें । 10. दिल को बड़ा रखें।
11. भाई होकर भाई के काम आएँ।
12. एक बार साथ-साथ खाना खाएँ ।
13. माता-पिता की सेवा के लिए सदा तैयार रहें।
इस तरह उन्होंने मनुष्य को परिवार में जीने की बेहतरीन कला सिखाई है।
3. बेहतर बच्चों का निर्माण बच्चे परिवार, समाज, देश और विश्व का भविष्य हैं। बच्चों को श्रेष्ठ बनाकर विश्व को श्रेष्ठ बनाना संभव है। प्राचीन भारत में बच्चों के निर्माण के लिए गुरुकुल व्यवस्था थी जहाँ उन्हें शिक्षा के साथ संस्कार भी दिए जाते थे। वर्तमान में गुरुकुल परम्परा का स्थान विद्यालय, महाविद्यालयों ने ले लिया है। आज शिक्षा का स्वरूप उच्चस्तरीय बन गया है, पर संस्कारों का महत्त्व घट गया है। किस तरह बच्चों को संस्कारशील, प्रतिभासम्पन्न बनाया जाए इसका सरल मार्गदर्शन श्री चन्द्रप्रभु के दर्शन में विस्तारपूर्वक प्राप्त होता है। उनके दर्शन का मानना है, "अब भगवान के मंदिरों से भी ज्यादा बच्चों का नव निर्माण करने वाले मंदिरों की जरूरत है अगर बच्चे संस्कारित नहीं हुए तो भगवान के मंदिरों में जाएगा कौन?" उनका दर्शन बच्चों को बेहतर बनाने के लिए निम्न सूत्र देता है
1. बच्चों को संस्कारों की उत्तम दौलत प्रदान करें।
2. टी.वी. पर अच्छे कार्यक्रम दिखाएँ।
3. बच्चों को समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहें ।
4. बच्चों को पाँवों पर खड़ा करें।
5. घर का माहौल अच्छा बनाएँ ।
6. उन्हें छोटे-छोटे काम खुद करना सिखाएँ।
7. उन्हें खिलाकर खाने की प्रेरणा दें।
8. उन्हें ऊँची शिक्षा के साथ ऊँचे संस्कार देने वाले विद्यालयों में
पढ़ाएँ ।
9. उन्हें जीवन प्रबंधन के गुर सिखाएँ।
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