Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 59
________________ प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का मानना है कि 'अध्यात्म अंदर की खोज है तो विज्ञान बाहर की। सर्वांगीण विकास के लिए दोनों की जरूरत है।" ओशो ने नई सदी के मानव से यह अपेक्षा की है कि वह न्यूटन, एडीसन, रदरफोर्ड, आइंस्टीन आदि के विज्ञान से समृद्ध हो, तो साथ ही बुद्ध, कृष्ण, महावीर, ईसा और मोहम्मद के अध्यात्म से भी स्वामी चैतन्य कीर्ति ने तो यहाँ तक कहा कि सबसे बड़ा योग विज्ञान और अध्यात्म का योग हैं। श्री चन्द्रप्रभ का मानना है, “विज्ञान वस्तुगत सत्य से जुड़ा है। वह वस्तु और पदार्थ का ही अन्वेषण करता है इसलिए वह अधूरा है। विज्ञान पूर्णरूप तभी ले सकता है, जब वह अध्यात्म में निमज्जित हो जाए।" भारतीय दर्शन की समीक्षा 44 यद्यपि पाश्चात्य दर्शनों ने भारतीय दर्शनों को निराशावादी और परम्परावादी बताया, पर यह गलत है। संसार को दुःख युक्त बताने के पीछे उनका उद्देश्य व्यक्ति को संसार से संन्यास की ओर ले जाना अथवा ईश्वर से जोड़कर दुःख से मुक्ति दिलाना था। दूसरा : दर्शनों का मूल स्रोत भले ही एक रहा, पर वे क्रमशः आगे बढ़ते रहे और नए-नए दर्शन अस्तित्व में आते रहे जो कि परम्परागतता का नहीं, प्रगतिशीलता का परिचायक है। भारतीय दर्शन केवल सत्य से प्रेम नहीं करता वरन् सत्य-दर्शन में विश्वास रखता है। वह 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का संदेश देकर प्राणिमात्र की सेवा करने और द्वेष, ईर्ष्या, घृणा, क्रोधादि नकारात्मक विचारों से मुक्त होने की प्रेरणा देता है। मनुष्य केवल इन्द्रिय सुखों तक ही सीमित नहीं है, उसके पास बुद्धि, विवेक, विचार भी है। वह विविध दर्शन शास्त्रों से प्रेरणा लेकर जीवन जीता है। उसके आचार-विचारों की शुद्धि में 'दर्शन' अपनी विशेष भूमिका निभाता है। भारतीय दर्शनों में सभी प्राचीन - आधुनिक विचाराधाएँ आ हैं। समन्वय इसकी मुख्य विशेषता रही है। आधुनिक दार्शनिकों ने विविध दृष्टि से जीवन जगत्, अध्यात्म, धर्म, बंधन, मोक्ष, स्वर्ग-नर्क, आचार-शुद्धि पर व्याख्याएँ की हैं परिणाम स्वरूप भारतीय दर्शन समृद्ध एवं उन्नत होता गया है। विभिन्न विचारधाराओं एवं दार्शनिक परम्पराओं की इसी कड़ी में श्री चन्द्रप्रभ का सिद्धांत एवं विचार दर्शन' ने भारतीय दर्शन को समृद्ध बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिसका विस्तार से आगे विवेचन किया जा रहा है। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में कबीर की क्रांति, बुद्ध की मध्यम दृष्टि, महावीर की साधना एवं आइंस्टीन की वैज्ञानिक सच्चाई है। उसमें वर्तमान जीवन का दिग्दर्शन है तो भविष्य को सँवारने का मार्गदर्शन भी। उन्होंने भारतीय दर्शनों में छिपे सत्य को उजागर किया है तो मूल्यहीन परम्पराओं को नकारा भी है। श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन व जगत के सूक्ष्म रहस्यों को अपनी पैनी अंतर्दृष्टि से देखा है। विज्ञान के बढ़ते प्रभाव एवं उत्पन्न हुए दुष्प्रभावों की भी स्थिति प्रत्यक्ष अनुभव की है। उन्होंने सब सत्यों को अपने अनुभव के सत्य को परखते हुए नवीन मूल्यों की स्थापना की है। श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन की समस्याओं का समय-सापेक्ष समाधान दिया है, अध्यात्म की नई व्याख्या दी है, धर्म एवं समाज में व्याप्त अंधविश्वासों एवं रूढ़िवादिताओं पर प्रहार किया है । देश में बढ़ रही अनैतिकता पर चिंता प्रकट की है। भारतीय संस्कृति पर प्रहार करने वाले तत्त्वों पर तीखी प्रतिक्रिया करते हुए समाधान के Jain Education International सरल उपाय बताए हैं। विश्व के सिमटते परिवेश में, पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव में जीवन को किस तरह विकास का स्वरूप देना चाहिए, घर परिवार में बढ़ रहे बिखराब को किस तरह थामना चाहिए, नारी को किन मर्यादाओं को अपनाते हुए विश्व-निर्माण में भूमिका अदा करनी चाहिए यह उनकी कृतियों में सर्वत्र प्रस्तुत हुआ है। दर्शन मुख्य रूप से दो भागों में बँटा हुआ होता है. (1) सैद्धान्तिक स्वरूप (2) व्यावहारिक स्वरूप सैद्धान्तिक स्वरूप में जहाँ तत्त्व, प्रमाण, आत्मा, जगत्, ईश्वर, स्वर्ग-नर्क, मोक्ष आदि बिन्दुओं पर विश्लेषण किया जाता है वहीं व्यावहारिक स्वरूप में नीति, धर्म, आचार, विचार, व्यवहार, व्यक्तित्व, मनोविज्ञान आदि बिन्दुओं पर व्याख्या की जाती है। भारत के प्राचीन मध्यकालीन हर दर्शन ने अपने-अपने ढंग से तत्त्वों, नीति-नियमों की व्याख्या प्रस्तुत की है। इसी कड़ी में अगर श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन का विश्लेषण किया जाए तो उनमें सैद्धान्तिक पक्ष की बजाय व्यावहारिक पक्ष ज्यादा उजागर हुआ है। उन्होंने सैद्धान्तिक पक्ष की भी व्यावहारिक ढंग से व्याख्या की है जिसके कारण उनका दर्शन नवीन होने के साथ-साथ सरल हो गया है। वे स्वर्ग नर्क, आत्मा-परमात्मा, बंधन मोक्ष, धर्म-कर्म, ध्यानअध्यात्म आदि सभी को जीवन सापेक्ष दृष्टिकोण में प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने सबसे ज्यादा जीवन तत्त्व को प्रमुखता दी है। वे कहते हैं, " जीवन से बढ़कर न कोई धर्म है न कोई शास्त्र । जीवन-जगत को पढ़ना धरती की सर्वश्रेष्ठ कृति पढ़ना है।" 7 इस तरह वे जीवन जगत को सबसे बड़ा शास्त्र कहते हैं एवं इसे पढ़ने की प्रेरणा देते हैं। श्री चन्द्रप्रभ द्वारा जीवन जगत, अध्यात्म, धर्म, ध्यान, स्वर्ग-नर्क, आत्मा, ईश्वर, व्यक्तित्व, समाज, राष्ट्र आदि अनेक पहलुओं पर की गई व्याख्याएँ एवं प्रस्तुत किए गए विचार प्रासंगिक व उपयोगी हैं। एक तरह से उनका दर्शन 'जीवन-दर्शन' है। जो जीवननिर्माण, जीवन विकास एवं जीवन मुक्ति की बात करता है। श्री चन्द्रप्रभ का जीवन-दर्शन इस प्रकार है. जीवन दर्शन - श्री चन्द्रप्रभ जीवन दृष्टा संत हैं। उन्होंने व्यक्ति को जीवन से जुड़ने और जीवन को साधने की प्रेरणा दी है। वे कहते हैं, "हम जीवन को इस तरह जिएँ कि जीवन स्वयं प्रभु का प्रसाद और वरदान बन जाए।" उन्होंने जीवन को संसार और संन्यास से भी ज्यादा मूल्यवान बताया है। वे आसमान के स्वर्ग में कम विश्वास रखते हैं। उन्होंने जीवन को ही स्वर्ग सरीखा बनाने की नई सोच व्यक्ति को दी है। वे कहते हैं, 'हमारा प्रयास हो कि हम अपने जीवन को स्वर्ग बनाएँ और यह तभी संभव है, जब हमारा जीवन के प्रति सम्मान और अहोभाव हो।" आज हर संत अपने पंथ और धर्म को दुनिया में स्थापित करने के प्रयास में लगा हुआ है। ऐसी परिस्थिति में श्री चन्द्रप्रभ की यह महान जीवनदृष्टि हर किसी के लिए प्रेरणास्पद है कि, "जैनत्व, हिन्दुत्व, इंसानियत अथवा इस्लाम फैले या न फैले, यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं, जितना यह कि दुनिया से हिंसा मिट जाए और प्रेम, शांति और अहिंसा का विस्तार हो जाए। यदि दुनिया को जीवन के अर्थ और मूल्य उपलब्ध हो जाते हैं, तो हर व्यक्ति अपने आप में जैन और हिन्दू हो ही जाता है। अहिंसा है तो जैनत्व है। अहिंसा ही न रहेगी तो जैनत्व कहाँ से रहेगा। बगैर मर्यादा के कैसा हिन्दुत्व | बगैर शांति के कैसा इस्लाम !" वे जीवन को धर्म से भी संबोधि टाइम्स 59 www.jainelibrary.org. 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