Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 56
________________ आज बताया है। उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों की वैज्ञानिक विवेचना भी की है। अहम भूमिका निभाई है। 'स्वयं भी सुख से जिओ और औरों को सुख उन्होंने अधर्म पर प्रहार करते हुए धरती पर स्वर्ग निर्माण में धर्म की से जीने दो' की कला के रूप में धर्म की अभिव्यक्ति देकर उन्होंने धर्म उपयोगिता का सुंदर वर्णन किया है। इस पुस्तक में उन्होंने धर्म, जीवन, की आत्मा को पुनर्जीवित किया है। समाज, अध्यात्म परम्पराओं से जुड़ी सैकड़ों जिज्ञासाओं का सुंदर श्री चन्द्रप्रभ द्वारा गढ आध्यात्मिक तत्त्वों की जो सरल एवं सहज समाधान प्रस्तुत किया है। शब्दों में व्याख्या हुई है वह सहज ग्राह्य है। इस तरह की विवेचना अन्यत्र चलें फिर एक बार - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में समाज, मिलना कठिन है। उन्होंने अध्यात्म को गुफावास, एकांतवास, कठोर संस्कृति, शिक्षा, धर्म, अध्यात्म, मनोविज्ञान, विकार-निर्विकार, साधना अथवा संन्यास की अनिवार्यता जैसी परम्परागत धारणाओं से मुक्त आचार-विचार, मानवाधिकार, पर्यावरण, नारी, राजनीति और किया है और व्यक्ति को संसार में जीने की आध्यात्मिक कला' बताई है। लोकतंत्र से जुड़े विभिन्न बिंदुओं पर नई एवं उपयोगी विवेचन प्रस्तुत उन्होंने 'संबोधि ध्यान' मार्ग की प्रायोगिक एवं व्यावहारिक विधि देकर किया है। आध्यात्मिक साधना को और अधिक सरल बना दिया है। डॉ. दयानंद चिंतन अनुचिंतन - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में अपनी भार्गव ने लिखा है, "श्री चन्द्रप्रभ को मैंने कई बार सुना है और ध्यान पर अनुभूतियों एवं उदात्त विचारों को प्रकट किया है, जो प्रत्येक व्यक्ति उनका पर्याप्त साहित्य है। ध्यान संबंधी इस आधुनिक साहित्य में वर्तमान को आंदोलित कर सुमार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। की समस्याओं के प्रसंग में ध्यान का विशेष रूप से विश्लेषण हुआ है। तीर्थ और मंदिर - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में तीर्थ एवं मंदिरों उनक सबाध ध्यान स जुड़ उद्बाधन मनुष्यमात्र का कल्याण पथ पर के संदर्भ में नवीन दृष्टि प्रदान की है। उन्होंने तीर्थ को अध्यात्म का लगाने में निमित्त बनेंगे।" सम्पूर्ण विज्ञान कहा है। उन्होंने धरती पर स्थित अनेक तीर्थों की श्री चन्द्रप्रभ का ध्यान योग एवं अध्यात्मपरक साहित्य व्याख्या एवं वहाँ हुई अनुभूतियों का जिक्र किया है। उन्होंने जीवन को आध्यात्मिक शक्तियों के जागरण के साथ विश्व के उज्वल भविष्य के निर्मल और रोशन करने के लिए तीर्थों में जाने और वहाँ की निर्माण में पथ-प्रदर्शक का काम करता है। श्री चन्द्रप्रभ ने महापुरुषों आध्यात्मिक रश्मियों के सम्पर्क में जीने की प्रेरणा दी है। वे मंदिरों की पर भी विस्तृत साहित्य लिखा है। उन्होंने एक ओर राम, कृष्ण, उपयोगिता भी निर्विवाद रूप से स्वीकार करते हैं। उन्होंने स्थिर एवं महावीर, बुद्ध, पतंजलि, अष्टावक्र जैसे महापुरुषों के जीवन एवं अस्थिर दोनों प्रकार के मंदिरों की व्याख्या की है। वे जीवन की नैतिक उपदेशों पर बेहतरीन साहित्य लिखा है तो दूसरी ओर परवर्ती युगों में यात्रा मंदिरों से शुरू होना मानते हैं। उन्होंने मंदिरों को पजारियों के हुए आचार्य कुंदकुंद, योगीराज आनंदधन और श्रीमद् राजचन्द्र जैसे भरोसे छोड़ने को अनुचित माना है। उन्होंने मंदिर को रोजमर्रा की साधक-पुरुषों के पदों पर भी आह्लादकारी प्रकाश डाला है। उनके जिंदगी से जोड़ने व घर को भी मंदिर सरीखा रूप देने की प्रेरणा दी है। इस साहित्य से जहाँ महापुरुषों के प्रति आम लोगों का नजरिया विराट __ अहिंसा और विश्व शांति - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पस्तक में वर्तमान हुआ है, वहीं सर्वधर्म सद्भाव का भी अद्भुत माहौल बना है। उन्होंने में बढ़ रहे हिंसक शास्त्रों पर चिंता व्यक्त की है। वे विश्व विकास के उपनिषद्, भगवतगीता, आगम, पिटक, अष्टावक्र-गीता, योग सत्र. लिए हिंसा के शास्त्रों को बढ़ाने की बजाय अहिंसा को विस्तार देने की अष्टपाहुड़, समयसार, आनंदधन-पदावली,आत्मसिद्धिशास्त्र आदि के प्रेरणा देते हैं। उन्होंने अहिंसा पर देश-विदेश के मूर्धन्य लेखकों के मुख्य सूत्रा पर युगान सदभा म लखना चलाकर उन्हें सरल आर विचारों को प्रकट करते हुए विश्व शांति के लिए प्रत्येक व्यक्ति का जनापयागा बना दिया है। अहिंसा को स्वीकार करने की सीख दी है। उन्होंने अहिंसा को जीने के श्री चन्द्रप्रभ द्वारा लिखित अनुसंधानपरक साहित्य शोधार्थियों के गुर भी सिखाएँ हैं। लिए विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हुआ है। उनके द्वारा तैयार किए गए अमृत संदेश - इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा सन् 1990 में । प्राकृत-सूक्ति कोश और सूक्ति-संदर्भ कोश की विद्वानों ने मुक्त कंठ से जोधपुर चातुर्मास में आयोजित प्रवचनों के दौरान दिए गए संदेशों के प्रशंसा की है। उन्होंने 'जिनसूत्र' के रूप में समस्त जैनागमों की जो सार-सूत्रों का संकलन किया गया है। इन सार सूत्रों में अध्यात्म के नए कुंजी तैयार की है, वह जैन धर्मावलम्बियों के लिए वरदान स्वरूप है। रहस्य समाहित हैं। ये सूत्र मुमुक्षु आत्माओं के लिए अमृत वरदान की उनकी 'खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास' नामक कृति भी तरह हैं। इतिहास पाठकों के लिए उपयोगी है। श्री चन्द्रप्रभ ने काव्य एवं निष्कर्ष भजनपरक कृत्तियाँ लिखकर हिन्दी-साहित्य को समृद्ध बनाया है। उनकी काव्य-प्रतिभा महादेवी वर्मा और सोहनलाल द्विवेदी जैसे इस अध्याय में समीक्षित साहित्य से निष्कर्ष निकलता है कि श्री राष्ट्रीय स्तर के कवियों द्वारा प्रशंसित हुई है। उनकी कविताएँ एवं भजन चन्द्रप्रभ ने भारतीय संस्कृति के प्राणतत्त्व धर्म, अध्यात्म एवं महापुरुषों माता लिाहा जिनका आचमका हदय को सकन और जीवन के सिद्धांतों से जुड़े विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तृत साहित्य मोन टिणा मिलती । यद साहित्य जहाँ यवा पीढ़ी के लिए पथलिखकर सांस्कृतिक गरिमा में चार चाँद लगाए हैं। पंथ, परम्परा और प्रदर्शक है वहीं आध्यात्मिक और आंतरिक चेतना के जागरण का क्रियाकांडों में सिमटे धर्म को सार्वजनिक एवं सार्वजनीन बनाकर श्री र चन्द्रप्रभ ने धर्मजगत में क्रांति की है। उनके धर्मपरक साहित्य में जिस श्री चन्द्रप्रभ के कथापरक साहित्य में प्राचीन शास्त्रीय घटना जीवन सापेक्ष एवं मानवीय कल्याण से जुड़े धर्म की अभिव्यक्ति हुई है, प्रसंगों का व्याख्यात्मक एवं विश्लेषणात्मक शैली में विवेचन हुआ है उसने आम व्यक्ति को विशेषकर युवा पीढ़ी को धर्म के निकट लाने में lain.56 » संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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