Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation
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छायातप महाकवयित्री महादेवी वर्मा की 'यामा' हो। उन्होंने रहस्यमयी सिलसिला - इस पुस्तक में चार बड़ी कहानियों को श्री चन्द्रप्रभ सत्ता के प्रति रागात्मक प्रणय निवेदन, विरहजन्य दुःख, दुःख की ने व्याख्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। संवेदनशीलता, प्रकृति में छिपे रहस्य, भविष्य का परम रूप, बाह्य मैंने सना है - इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ के छोटे-छोटे प्रेरणादायी जगत में छिपा परम ध्येय आदि विभिन्न स्थितियों को काव्य के रूप में प्रेरक प्रसंगों का संकलन है, जो हमें सहज ही आनंदविभोर करते हुए ढालकर प्रस्तुत किया है।
सन्मार्ग प्रदान करते हैं। अधर में लटका अध्यात्म
ज्योति के अमृत कलश - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में भगवान इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा आत्मा और मन के बीच झूला- बुद्ध, भगवान महावीर एवं संतपुरुषों से जुड़ी घटनाओं को कहानियों झूलते हुए व्यक्ति की दशा का चित्रण कविताओं द्वारा किया गया है। वे के रूप में प्रस्तुत किया है। कहानियाँ छोटी हैं, पर अध्यात्म के मार्ग पर अध्यात्म का मतलब कहने-करने के विभाजन से मक्त दशा को मानते क़दम बढ़ाने के लिए प्रेरणा मंत्रों का काम करने में मुख्य भूमिका हैं। काव्य पुस्तक के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि श्री चन्द्रप्रभ सागर निभाती हैं। पुस्तक में कुल 32 कहानियाँ हैं। को सार में कहने में सिद्धहस्त हैं। हर कविता अपने आप में एक शास्त्र श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियाँ - इस पुस्तक में नैतिक समाज को समेटे हुए है। ये कविताएँ न केवल अध्यात्म का श्रेष्ठ मार्ग प्रदान एवं संस्कृति के आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना करने वाली कहानियों करती हैं, वरन् जीवन जगत धर्म की वास्तविकताओं का भी बोध प्रदान का संकलन किया गया है। कहानियों के पात्रों का अंतर्द्वन्द्व आधुनिक करती हैं।
मनोविज्ञान के अनुकूल है। शीर्षक सटीक है। पुस्तक में श्रृंखलाबद्ध जिनशासन
घटनाओं का उल्लेख है। घटनाएँ भले ही अतीत की हैं, पर वर्तमान की इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा जिनत्व और निजत्व के परिपूर्ण
आभा से युक्त हैं। इन कहानियों में श्री चन्द्रप्रभ की भाषा-शैली की विराट वैभव पर रचित की गई कविताओं का संकलन हुआ है। इनमें
प्रभावकता नज़र आती है। उन्होंने वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक एवं भाषा की ताजगी के साथ विश्लेषण की गहराई भी है। इस काव्यकृति
संवादशैली का पूर्ण उपयोग किया है। कहानियों के अनुशीलन से स्पष्ट
होता है कि श्री चन्द्रप्रभ प्रतिष्ठित कहानीकार हैं,जीवंत चित्रण करने में में ज्ञान और ध्यान का सुंदर क्रम दिया गया है। जिनशासन की कविताएँ
वे दक्ष हैं। इनका आचमन कर हम जीवन व समाज में नई दिशा दे क्रमश:सम्पूर्ण जैन साधना को स्पष्ट करती हैं और मुक्ति पथ पर आगे बढ़ने का उद्घोष करती हैं। परमेष्ठी संसार चक्र, आत्मजागरण,
सकेंगे। द्विविध आचार-मार्ग, पंचव्रत, दसविध धर्म, षडावश्यक कर्म, बारह
अहसास - इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ की चर्चित 15 कहानियों भावना, अध्यात्म मार्ग और तत्त्व दर्शन पर श्री चन्द्रप्रभ ने कविताएँ
का संकलन है। परिकल्पना, मनोवैज्ञानिकता, सामाजिक चेतना, रचित की हैं। जिसमें सम्पूर्ण जैन-दर्शन का काव्यात्मक परिदृश्य
देशकालीन परिस्थितियाँ एवं व्यक्ति विशेष की विवशताओं से घिरी प्रस्तत होता है। वास्तव में दर्शन और धर्म के क्षेत्र में रचित यह काव्य- हुई इन कहानियों में श्री चन्द्रप्रभ की उस मनोदशा का चित्रण है जिसे कृति जीवन को प्रेरणा देते हुए आज के संत्रस्त युग में शांति की सघन
उन्होंने जीवन जगत में अनुभव किया है। हर कहानी की अपनी छाँव उपलब्ध कराती है।
विशेषता है। आधुनिक मनोविज्ञान के अनुकूल प्रतीत होने वाली इन
कहानियों में विशिष्ट भाषा-शैली के अंतर्गत मधुरता, नैसर्गिकता, षड्दर्शन-समुच्चय
परिस्थिति की अनुकूलता का विशेष ध्यान रखते हुए वर्णनात्मक एवं इस पुस्तक में जैन धर्म एवं भारतीय दर्शनों के महान् ज्ञाता पण्डित ।
विश्लेषणात्मक शैली के साथ कथोपकथन का प्रभावी आश्रय लिया आचार्य हरिभद्र सूरि द्वारा रचित षड्दर्शन-समुच्चय पर श्री चन्द्रप्रभ ने
गया है, ताकि कोरे मनोरंजन की बजाय किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति पद्यबद्ध रचना लिखी है, जिसमें षड्दर्शनों का परिचय दर्शन की कुंजी होणार के रूप में प्रस्तुत किया है। यह मूल का परिचय करवाने वाली प्रतिनिधि कृति है। पुस्तक के प्रारंभ में मूल एवं हिन्दी अर्थ दिया गया है
गीत-भजनपरक साहित्य तत्पश्चात् बौद्ध, न्याय, जैन, सांख्य, वैशेषिक तथा मीमांसा दर्शन पर (1) जिनेन्द्र चौबीसी (3) संबोधि साधना गीत उन्होंने कविताएँ लिखी हैं, जो गागर में सागर की तरह हैं। सम्पूर्ण
(2) प्रार्थना
(4) प्रार्थना के पुष्प। भारतीय दर्शनों को श्री चन्द्रप्रभ ने अपनी काव्य प्रतिभा से मात्र कुछ
उपर्युक्त साहित्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - पंक्तियों में समेट डाला है। पुस्तक के अंत में सरलार्थ सहित
जिनेन्द्र चौबीसी - इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म के पारिभाषिक शब्दकोश श्री चन्द्रप्रभ की इस कृति की मुख्य विशेषता है।
आदिकर्ता 24 तीर्थंकर महापुरुषों की स्तुति की है। प्रत्येक तीर्थंकर का कथा-कहानीपरक साहित्य
एक-एक स्तवन श्री चन्द्रप्रभ द्वारा रचित किया गया है। इस तरह 24 (1) सिलसिला
स्तवनों का संकलन इस पुस्तक में हुआ है। प्रत्येक स्तवन में अलग(4) श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियाँ (2) मैंने सुना है (5) अहसास
अलग तरह के गुणों से तीर्थंकरों की भक्ति की गई है। आदिनाथ से
लेकर महावीर स्वामी तक हुए 24 तीर्थंकरों की महिमा गाते हुए उनसे (3) ज्योति के अमृत कलश
मुक्ति की प्रार्थना की गई है। यह पुस्तक भक्त को भगवान के प्रति उक्त साहित्य का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है -
समर्पित होने की प्रेरणा देती है और हमारी श्रद्धा को निर्मल व पवित्र
1854-संबोधि टाइम्स
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