Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 47
________________ गहराई से निपजी बातें हैं। पुस्तक में साधना की मोटी-मोटी बातें नहीं हुई हैं वरन् उन्हें प्रेक्टिकल रूप से आत्मसात् करने के सूत्र भी दिए गए हैं। चेतना का विकास करने एवं भीतर का अमृत पाने के लिए यह पुस्तक रामबाण औषधि का काम करती है। 7 दिन में कीजिए स्वयं का कायाकल्प यह पुस्तक ध्यानप्रेमियों के लिए बेहद उपयोगी है। इसके अध्याय में संबोधि ध्यान के प्रेक्टिकल प्रयोग, साधकों की जिज्ञासाओं का समाधान एवं साधकों के अनुभवों का संकलन किया गया है। वास्तव में इसमें ध्यान विधि, ध्यान से जुड़ा मार्गदर्शन, ध्यान से जुड़ी जिज्ञासाओं के समाधानों का बेहतर तरीके से संकलन हुआ है। अगर व्यक्ति पुस्तक में दी गई विधियों से निरंतर साधना के प्रयोग करे तो भीतर के नए सत्यों व तथ्यों की उसे उपलब्धि हो सकती है। ध्यान के माध्यम से शांति, सिद्धि और मुक्ति पाने की चाहत रखने वालों के लिए यह पुस्तक प्रकाशपुंज की तरह है। बनना है तो बनो अरिहंत यह एक अत्यंत सुंदर, भावपूर्ण आध्यात्मिक पुस्तक है। श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में बने बनाए मार्गों का अनुसरण करने की बजाय सत्य को जानने की प्रेरणा दी है। पुस्तक में भीतर की जड़ों तक पहुँचने के लिए सुझाया गया सरल मार्ग हमारे लिए उपयोगी है। श्री चन्द्रप्रभ का दृष्टिकोण है कि केवल अरिहंत की उपासना करने मात्र से व्यक्ति अरिहंत नहीं बनता। अरिहंत बनने के लिए हमें अपने भीतर के क्रोध, अभिमान, लोभ और मोह जैसे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनी होती है। साक्षी की आँख श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में भगवान श्री महावीर के आध्यात्मिक सूत्रों पर अपनी दार्शनिक एवं व्यावहारिक शैली में व्याख्या प्रस्तुत की है। पुस्तक को आठ अध्यायों में विभाजित किया गया है। श्री चन्द्रप्रभ ने हर अध्याय में धर्म-दर्शन के विविध पहलुओं को उजागर करते हुए हमें अपने-आपसे मुलाकात करने का मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने धर्म के नाम पर चलने वाली रूढ़ताओं को हटाने के लिए हर व्यक्ति से आह्वान किया है। श्री चन्द्रप्रभ धर्म-अध्यात्म को नए रूप में पेश करते हैं एवं उन्हें जीवन की निर्मलता एवं पवित्रता घटित करने वाला बताते हैं। जीवन निर्माण से लेकर आध्यात्मिक विकास तक के सफर को तय करने के लिए यह पुस्तक मील के पत्थर का काम करती है। मुक्ति का मनोविज्ञान इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा भगवान महावीर के महासूत्रों पर दिए गए अमृत-प्रवचनों का संकलन है। श्री चन्द्रप्रभ मुक्ति के लिए होश व बोध को दो मुख्य आधार स्तंभ मानते हैं। वे कहते हैं, "जीवन इतने होश एवं बोधपूर्वक जिएँ कि मुक्ति का कमल हर क़दम पर खिले ।" इस पुस्तक में मुक्ति को पाने का, महावीर की साधना, अंतर्दृष्टि का स्वरूप, अंतरआत्मा की पीड़ा, आत्मबोध और भयप्रलोभन से जुड़ी जिज्ञासाओं का समाधान आदि विविध विषयों पर अत्यन्त गहराई से व्याख्या प्रस्तुत की गई है। वास्तव में, इतिहास में पहली बार श्री चन्द्रप्रभ ने भगवान महावीर के मुक्तिपरक सूत्रों की वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुति दी है। उन्होंने जीवन और सत्य के अनेक नए Jain Education International पहलुओं से हमें अवगत करवाया है। किताब का हर पत्रा आगे पढ़ने के लिए उत्सुकता पैदा करता है। उन्होंने पुस्तक में मुक्ति से जुड़े गंभीरविषयों को भी व्यावहारिक और मधुर ढंग से प्रस्तुत किया है। मुक्ति के मार्ग पर क़दम बढ़ाने वालों के लिए ही नहीं, मुक्ति के स्वाद से अनभिज्ञ लोगों के लिए भी यह पुस्तक नई दिशा व नई दृष्टि देने का काम करती है। संबोधि इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि सूत्र पर मार्मिक एवं आध्यात्मिक प्रवचन दिए हैं, साथ ही साधकों की जिज्ञासाओं का बेहतर समाधान किया है। प्रस्तुत पुस्तक में दशहरा मैदान, नीमच में संबोधि साधना शिविर के अन्तर्गत साधकों को दिए गए प्रवचनों का एवं उनके द्वारा पूछी जिज्ञासाओं के समाधानों का संकलन है। श्री चन्द्रप्रभ ने वर्तमान धर्म, समाज, व्यक्ति का चित्रण करते हुए धर्म, ध्यान व अध्यात्म के प्रयोगों को जीवंत बनाने के कारणों का जिक्र किया है। उन्होंने आंतरिक शुद्धि को मन की शांति के लिए आवश्यक माना है। उनका मानना है, "जब तक व्यक्ति भीतर में नहीं उतरेगा तब तक धर्म-अध्यात्म परिणामदायी नहीं बन पाएँगे, केवल मानसिक संतुष्टि बन जाएँगे।" इस पुस्तक में साधना की जीवन सापेक्ष समझ दी गई है और धर्म के नाम पर चल रही रूढ़िवादिताओं को नकारा गया है। जीवन जीने की अध्यात्मपरक सरल व उत्तम शैली क्या हो सकती है इसका विश्लेषण पुस्तक में वैज्ञानिक तरीके से हुआ है। जो लोग साधना का व्यावहारिक मार्ग प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए यह पुस्तक मील के पत्थर की तरह है। प्रेम की झील में ध्यान के फूल इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने प्रेम के स्वरूप पर सुंदर व्याख्या प्रस्तुत की है। प्रेम को बंधन से मोक्ष में, संसार से संन्यास में बदलने के लिए उन्होंने बेहतरीन मार्गदर्शन दिया है। वे प्रेम में विश्व की हर समस्या का समाधान निहित मानते हैं। उन्होंने महावीर की अहिंसा, बुद्ध की करुणा, मीरा की भक्ति को भी प्रेम का सार बताकर प्रस्तुत किया है। श्री चन्द्रप्रभ प्रेम को विराट नज़रों से देखते हैं और घरपरिवार से प्रकृति और इंसानियत की ओर प्रेम का विस्तार करने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने प्रेम और ध्यान को साधना के दो मार्ग बताकर उनका अंतर्संबंध भी बताया है। प्रेम वास्तव में पवित्र एवं दिव्य मार्ग है जिसके द्वारा व्यक्ति मुक्ति एवं आनन्द को घटित कर सकता है। इस पुस्तक से प्रेम में छिपे साधना एवं वासना के स्वरूपों की स्पष्ट समझ मिलती है। प्रेम को ध्यान की आभा से युक्त बनाने, आत्मविश्वास को जगाने, साधना की दृष्टि निखारने, मौन को जीवन से जोड़ने, अनुप्रेक्षाविपश्यना को समझने और द्रष्टा भाव में स्थित होने के लिए इस पुस्तक में श्रेष्ठ मार्गदर्शन प्राप्त होता है। ध्यान साधना और सिद्धि इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने आध्यात्मिक अभ्युदय के लिए ध्यान एवं योग की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया है। जैसे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सम्यक भोजन ज़रूरी है वैसे ही आत्मिक स्वास्थ्य के लिए ध्यान उन्होंने ध्यान-योग से जो उपलब्ध किया उन्हीं अनुभवकणों को इस पुस्तक में संकलित किया है। ध्यान योग एवं संबोधि साधना के रहस्य का मधुर संबोधि टाइम्स 47g For Personal & Private Use Only

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