Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation
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जैन, बौद्ध और हिन्दू शास्त्रों पर पकड़ विशेषत: मजबूत है। उन्होंने हर धर्म के महापुरुषों पर अपनी लेखनी चलाई है जो कि उनकी उदार दृष्टि का परिचायक है। उन्होंने शास्त्रों की वर्तमान युग के लिए अप्रासंगिक बातों को नकारा भी है। वे उन्हीं सिद्धांतों को आमजन के सामने रखते हैं जिसे अपनाने पर इंसानियत का भला हो सकता है। स्वर्ग नर्क जैसे बिंदुओं पर उनकी मनोवैज्ञानिक व्याख्याएँ पढ़ने योग्य हैं।
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श्री चन्द्रप्रभ के सान्निध्य में अनेक सर्वधर्म सम्मेलनों का आयोजन हुआ है जिसमें सभी धर्मों के गुरुओं ने शरीक होकर धार्मिक एकता का स्वर बुलंद करने की कोशिश की है ज्योतिषाचार्य पं. प्रमोदराय आचार्य का कहना है, "पूरे देश में घूमा, अनेक समारोहों में सम्मिलित हुआ, पर सर्वधर्म सम्मेलन का जो स्वरूप यहाँ देखने को मिला वह अपने आप में अद्भुत, अनुपम और अद्वितीय है। आज मेरे घर में इनके साहित्य, सीडी और कैसेट्स ही छाये हुए हैं।" अब्दुल सलाम काजी का मानना है, "सर्वधर्म प्रेमी तथा मानवतावादी इन संतों ने सभी धर्मों का सम्मान करते हुए जीवन-विकास का अनोखा कार्य किया है। " विश्व हिन्दू परिषद् के प्रांतीय पूर्व अध्यक्ष प्रदीप साँखला ने कहा था, "हर दिल को छू लेने वाली श्री चन्द्रप्रभ की यह प्रवचनमाला बरसों तक भीलवाड़ावासियों को याद रहेगी। नगर में सर्वधर्मसमभाव का अनूठा वातावरण पहली बार बना। पूरे शहर ने पर्युषण पर्व मनाया और जन्माष्टमी भी । "
श्री चन्द्रप्रभ द्वारा सभी धर्मों के समन्वय पर दिए गए प्रवचन बेहद रसभीने होते हैं और सर्वधर्म सद्भाव का माहौल तैयार करते हैं। वे न केवल सर्वधर्म सद्भाव की बात करते हैं वरन् सभी धर्मों के संतों से मिलते हैं और एकता से जुड़े विभिन्न बिन्दुओं पर चर्चा करते हैं । वे सभी धर्मों के महापुरुषों के मंदिरों में जाते हैं और उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम करते हैं। उनका कहना है, "हम भले ही राम और महावीर के मंदिर में श्रद्धापूर्वक जाएँ, पर बीच रास्ते में मस्जिद आ जाए तो वहाँ पर भी अकड़ कर चलने की बजाय झुककर चलें।" उनके सान्निध्य में निर्मित संबोधि धाम के ट्रस्ट मण्डल में सभी धर्मों के प्रतिनिधि हैं एवं वहाँ सभी महापुरुषों के मंदिर हैं।
श्री चन्द्रप्रभ ने भले ही जैन धर्म में संन्यास लिया हो, पर उनके विचारों में कहीं कट्टरता नजर नहीं आती। वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और हर धर्म के महापुरुष से कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करते हैं। उनके साहित्य में सर्वत्र सर्वधर्म सद्भाव के दर्शन होते हैं। दिगम्बर समाज के प्रवक्ता कमल सेठी कहते हैं, "ये जैन संत नहीं जन संत हैं जिन्होंने हमें जीवन और धर्म की सही समझ दी और हमारे भीतर पारिवारिक प्रेम तथा राष्ट्रीय भावना को पूरी गहराई के साथ स्थापित किया। उनके द्वारा 'ॐ' और 'राम' के बारे में की गई धार्मिक व्याख्याओं में भी यह तत्त्व उभर कर आया है।
श्री चन्द्रप्रभ ने जैन, हिन्दुओं, सिखों, मुसलमानों, ईसाइयों के बीच पलने वाली दूरियों को दूर करने की कोशिश की है। इसी के चलते उनके प्रवचनों का आयोजन मुस्लिम भाइयों द्वारा भी करवाया जाता है। बोहरा मुस्लिम समाज के प्रमुख श्री बाबूभाई ने कहा था, "इंदौर में ऐसा पहली बार हुआ जब पंथ-मजहबों से परे होकर इंसानियत का सीधा पाठ पढ़ाया गया। हिंदुओं को छोड़ो हम मुसलमान तक भी गुरुजी की वाणी के कायल हो गये।" उन्होंने साम्प्रदायिकता
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को जीने वालों पर करारा व्यंग्य किया है। उन्होंने महापुरुषों को सम्प्रदायों, पंथों और पक्षों से मुक्त माना है। वे घर-परिवार में जीने के लिए राम व रामायण को आदर्श बनाने, जीवन की उन्नति व विकास के लिए श्रीकृष्ण से प्रेरणा लेने और आध्यात्मिक साधना के लिए बुद्ध व महावीर से सीखने की बात करते हैं। डॉ. नागेन्द्र ने उनकी साहित्य समीक्षा में लिखा है, "यदि चन्द्रप्रभ चाहते तो किसी भी एक विधा में जैन जगत से ही विषय वस्तु का चयन करके साहित्य सृजन कर सकते थे लेकिन प्रबुद्ध साहित्यकार ने ऐसा नहीं किया। मानवीय हित चिंतन ही तो साहित्य में किया जाता है। सचमुच वे मानवता के संदेशवाहक हैं।"
आध्यात्मिक एवं अतीन्द्रिय शक्ति से सम्पन्न
श्री चन्द्रप्रभ अतीन्द्रिय शक्ति से सम्पन्न एवं आध्यात्मिक चेतना के धनी हैं। गुरुकृपा से वे संन्यास लेने के कुछ वर्ष पश्चात् ही प्रवचन देने एवं साहित्य लिखने में सिद्धहस्त हो चुके थे। पर एक बार प्रवचन देते हुए उनके भीतर यह जिज्ञासा जगी कि मैं लोगों को आत्मा, परमात्मा, मोक्ष की बातें बताता हूँ, पर ये वास्तव में है भी या नहीं। या केवल शास्त्रों में जैसा लिखा है वैसा ही मैंने मान लिया है। तब श्री चन्द्रप्रभ ने यह संकल्प ले लिया कि मैं स्वयं सत्य की खोज करूंगा। सत्य की खोज में उन्होंने लगातार पन्द्रह साल लगाए। हिमालय की यात्रा की, पहुँचे हुए योगियों ऋषि महर्षियों से सम्पर्क किया। लगातार कुछ वर्ष मंत्र, तंत्र और ध्यान साधनाएँ की इस दौरान उन्हें अनेक खट्टे-मीठे कड़वे अनुभवों से गुजरना पड़ा। कई बार मौत साक्षात उनके पास से गुजरी। उन्होंने योगियों के साथ ब्रह्मयात्रा भी की। पिछले जन्मों से साक्षात्कार भी किया। उन्हें अनेक अनहोनी घटनाओं का पूर्वाभास भी हुआ हम्फी की गुफा में 17 फरवरी के दिन वे लगातार 16 घंटे तक समाधिस्त रहे । साधना के दौरान उनसे अनेक दिव्य आध्यात्मिक भजनों की रचना भी हुई। अध्यात्म की गहराइयों से जुड़ा 36 दोहों का संबोधि सूत्र तो मात्र कुछ मिनटों में उनके मुख से प्रस्फुटित हो गया, जिसके प्रथम बोल है
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अंतस के आकाश में, चुप बैठा वह कौन । गीत शून्य के गा रहा, महागुफा में मौन || बैठा अपनी छाँह में, चितवन में मुस्कान ।
नूर बरसता नयन से, अनहद अमृत पान ।।
श्री चन्द्रप्रभ का अध्यात्म शास्त्रों से नहीं, भीतर के अनुभव से निकलता है। उन्होंने पहले इसे जिया है फिर सबको दिया है। प्रभु से आध्यात्मिक-प्रार्थना करते हुए श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं -
सबमें देखूँ श्री भगवान ।।
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हम सब हैं माटी के दीये, सबमें ज्योति एक समान । सबसे प्रेम हो, सबकी सेवा, ऐसी सन्मति दो भगवान ।। आँखों में हो करुणा हरदम, होंठों पर कोमल मुस्कान। हाथों से हो श्रम और सेवा, ऐसी शक्ति दो भगवान ।। चाहे सुख-दुःख, धूप-छाँव हो, चाहे मिले मान-अपमान । व्याधि में भी रहे समाधि ऐसी मुक्ति दो भगवान ।।
श्री चन्द्रप्रभ अध्यात्म को संसार का त्याग नहीं वरन् संसार को बारीकी से देखने की कला कहते हैं वे आध्यात्मिक साधना के लिए संबोधि टाइम्स 31
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