Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ महान कवि एवं साहित्यकार महोपाध्याय समयसुंदर के व्यक्तित्व एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान और उन्नत भावदशा का लक्ष्य साधने की कृतित्व पर शोध-प्रबंध भी लिखा। शोधमूलक साहित्य के विश्लेषण कोशिश की है। से स्पष्ट होता कि उनका अध्ययन भाषागत ज्ञान-बहुज्ञता एवं इस तरह श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन एवं साहित्य अनेक विशेषताओं गंभीरता लिए हए है। उन्होंने भाषा या शब्दों का दुराग्रह रखे बगैर सर्वत्र एवं विलक्षणताओं से भरा है। उन्होंने वर्ग, पंथ, सम्प्रदायों की सीमाओं विषयानुकल भाषा का उपयोग किया है। उनकी शोधकृतियों में सर्वत्र से ऊपर उठकर सर्वकल्याणकारी साहित्य सृजित किया है। उनके स्वकीय चिंतन, स्व-अभिमत एवं निष्कर्ष प्रस्तुत हुआ है। उनकी साहित्य में आदर्श एवं यथार्थ का अदभुत समन्वय हआ है। उनके पुस्तकों में नवीनता, प्रभावकता एवं प्रामाणिकता का त्रिवेणी संगम है। साहित्य में सभी धर्मों के सिद्धांतों एवं महापुरुषों की युगानुरूप और नए इस तरह वे कुशल शोधकर्ता एवं समीक्षक रहे हैं। स्वरूप से व्याख्या हुई है। चाहे गीता हो या उपनिषद, धम्मपद हो या श्री चन्द्रप्रभ श्रेष्ठ कवि हैं। उनकी कविताओं में कबीर की गहराई जिनवाणी, श्री चन्द्रप्रभ ने इन पर जो कुछ बोला या लिखा है, वह और मीराबाई की मिठास है। प्रो. कल्याणमल लोढ़ा कहते हैं, "श्री अद्भुत है। उनकी व्याख्याओं ने इन प्राचीन ग्रन्थों को पूजागृह और चन्द्रप्रभ में काव्य प्रतिभा आरोपित न होकर एक जन्मजात संस्कार है, पुस्तकालयों से बाहर निकालकर वर्तमान पीढ़ी के लिए उपयोगी बना जिसका वे अभ्यास व अर्जन द्वारा परिष्करण, परिमार्जन और परिवर्धन दिया है। अपनी इन विलक्षणताओं के चलते श्री चन्द्रप्रभ दर्शन जगत करते हैं।" उनकी कविताएँ दार्शनिकता के साथ धार्मिकता एवं एवं साहित्य जगत में ध्रुव नक्षत्र की भाँति सदा चमकते रहेंगे। नैतिकता लिए हए हैं। उनकी कविताओं की देश के मूर्धन्य कवियों एवं श्री चन्दपभ का साहित्य विद्वानों ने काफी प्रशंसा की है। इनमें महाकवयित्री महादेवी वर्मा, वर्तमान भारतीय दर्शन एवं विश्व दर्शन में श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी, कन्हैयालाल सेठिया, डॉ. सागरमल जैन, किसी दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह है। श्री चन्द्रप्रभ की जीवन-दृष्टि डॉ. प्रभाकर माचवे, डॉ. छगनलाल शास्त्री, डॉ. प्रभात शास्त्री, डॉ. दर्शन की सभी विधाओं में गहरी पकड़ रखती है। उन्होंने दर्शन, फूलचन्द जैन, प्रो. दलसुख भाई मालवणिया, प्रो. कल्याणमल लोढ़ा, चिंतन, अनुसंधान, काव्य आदि सभी विधाओं में साहित्य की रचना की प्रोफेसर संत श्री ब्रह्मानंद सरस्वती, कवि प्रवर उपाध्याय अमरमुनि है। वर्तमानकालीन दार्शनिकों में ऐसे बहुत कम दार्शनिक हैं, जिन्होंने आदि प्रमुख हैं। उनकी कविताओं का ऐतिहासिक, सामाजिक एवं श्री चन्द्रप्रभ की तरह सरल, जीवनोपयोगी एवं यथार्थ मूल्यों पर केन्द्रित आत्मोत्थान की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। उन्होंने स्वकविताओं में विशाल एवं अद्भुत साहित्य-सृजन का काम किया हो। अतीत की गौरव गाथा गाई है, वर्तमान को सुखी और भविष्य को मंगलमय बनाने की प्रेरणा दी है। उनकी कवित्व शक्ति आत्मशोधन, श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य की समीक्षा करने पर स्पष्ट होता है कि आत्मविश्वास, जीवन-निर्माण एवं राष्ट्रोत्थान के चिंतन के रूप में उनका साहित्य आध्यात्मिकता एवं व्यावहारिकता का समावेश लिए प्रकट हुई है। श्री चन्द्रप्रभ का काव्यगत एवं भाषागत सौन्दर्य छंदबद्ध हुए है। उनके साहित्य में जीवन-निर्माण, विश्व-उत्थान और एवं छंदयुक्त दोनों रूपों में प्रकट हुआ है। उनका भाषागत सौन्दर्य, आध्यात्मिक विकास से जुड़े सभी पहलू उजागर हुए हैं। प्रबन्धन-गुरु सहज प्रवाह, ऊँची सोच और उदात्त जीवन-दृष्टि उनकी कविताओं डॉ. अनिल मेहता का मानना है,"श्री चन्द्रप्रभ का साहित्य कैसे जीएँ एवं गीतों में परिलक्षित होती है। मधुर जीवन' की कला सिखाने का अनुपम मार्गदर्शन है। उनका हर संदेश आनंदमयी जीवन जीने के साथ नये उत्साह और ऊर्जा का संचार श्री चन्द्रप्रभ महान गीतकार भी हैं। उन्होंने सैकड़ों भजन, गीत, करता है।" निश्चय ही उनका साहित्य सर्वगुणसम्पन्न है। सकारात्मक स्तोत्र एवं चौपाइयों की रचना की है। उनके भजन अत्यन्त रसमय, सोच, आत्मविश्वास, केरियर निर्माण और सफलता जैसे व्यावहारिक ऊर्जाभरे एवं गहराई लिए हुए हैं। उनके भजनों में जीवन शुद्धि, मुद्दों पर जितने प्रभावशाली ढंग से श्री चन्द्रप्रभ ने युवा पीढ़ी को जागृत व्यक्तित्व-निर्माण, आत्म-साधना, प्रभुभक्ति, मानवीय कल्याण का किया है उससे देश के सभी परम्पराओं के संत और प्रबुद्धजन इन पक्ष विशेष रूप से उजागर हुआ है। उनके गीत जन-जन में लोकप्रिय विषयों पर अपनी कलम चलाने के लिए प्रेरित हुए हैं। सुविधा की हैं। 'मीठो-मीठो बोल थारो काई लागे' उनके लोकगीतों में प्रमुख है, दृष्टि से श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य को चार भागों में विभाजित किया गया तो 'जहाँ नेमि के चरण पड़े' उनके भक्ति-गीतों में सर्वाधिक लोकप्रिय । है। 'खुद जिओ सबको जीने दो' और 'बदलें जीवन धारा' गीतों को उनके जीवन-सापेक्ष गीतों में प्रमुखता से देखा जा सकता है। इसी तरह 1.जीवनमूलक साहित्य 2.व्यावहारिक साहित्य आध्यात्मिक गीतों में 'अब कबीरा क्या सिएगा' उनके चर्चित गीतों में 3. सैद्धांतिक साहित्य एवं 4.अन्य साहित्य एक है। जीवनमूलक एवं व्यावहारिक साहित्य श्री चन्द्रप्रभ कुशल कहानीकार भी हैं। उन्होंने कहानियों से श्री चन्द्रप्रभ द्वारा जीवन-निर्माण, व्यक्तित्व-विकास, राष्ट्रसंबंधित साहित्य भी सृजित किया है। सभी कहानियाँ गतिशीलता, निर्माण एवं विश्व-उत्थान पर लिखे गए साहित्य को जीवन-सापेक्ष रसमयता और हृदय की उन्नत अवस्था लिए हुए हैं। उनका कथाशिल्प एवं व्यावहारिक साहित्य की श्रेणी में रखा गया है। श्री चन्द्रप्रभ महान गौरवपूर्ण है। उनकी कहानियों में प्राचीन भारतीय शैली को जीवन दृष्टा हैं। वे जीवन के प्रति अधिक सजग हैं। जीवन में घटित आधुनिकता के साथ प्रकट किया गया है। उनकी कहानियों के शीर्षकों होने वाली परिस्थितियों के प्रति वे सूक्ष्म ज्ञान रखते हैं। जीवन-निर्माण में आकर्षण है। सभी कहानियों में श्रृंखलाबद्धता है। कहानियों में उनके लेखन का मुख्य उद्देश्य है। जीवन को आनंदपूर्ण, उत्साहपूर्ण एव मधुरता और नैसर्गिकता है। कहानियों को वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक ऊर्जावान बनाकर जीने का मार्गदर्शन देने में वे सिद्धहस्त हैं। प्रसिद्ध और संवादशैली में लिखा गया है। कहानियों के जरिये श्री चन्द्रप्रभ ने साहित्यकार बालकवि वैरागी ने उनके व्यावहारिक साहित्य की 136 संबोधि टाइम्स For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148