Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 44
________________ एवं विचार शैली से पुस्तक समृद्ध है। पुस्तक में जैन-हिंदू एवं बौद्ध प्रधान परम्परा को श्रेष्ठ मानते हैं। उन्होंने सेवा के लिए समता, विनम्रता मतों का भी स्पष्ट जिक्र हुआ है, जिससे पुस्तक ज्ञानार्जन की दृष्टि से के गुणों को आवश्यक माना है। भी महत्त्वपूर्ण बन गई है। पुस्तक की समीक्षा करते हुए डॉ. रमाशंकर संभावनाओं से साक्षात्कार त्रिपाठी (अध्यक्ष, श्रमण विद्या संकाय एवं बौद्ध दर्शन विभाग, इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने अध्यात्म से जुड़े विविध विषयों पर वाराणसी) कहते हैं, "क्षमा के स्वर ग्रन्थ लघुकाय होते हुए भी विचार अपनी मौलिक दृष्टि प्रदान की है। सत्य, अस्तित्व, ईश्वर, मृत्यु, एवं भाषा की दृष्टि से समृद्ध है । श्री चन्द्रप्रभ ने भारतीय संस्कृति की वर्तमान, ध्यान जैसे गूढ़ रहस्यों को उन्होंने इतनी सरलता-सहजता से जैन, हिन्दू और बौद्ध तीनों धाराओं के प्रामाणिक ग्रंथों को आधार समझाया है कि हमें आश्चर्य के साथ विश्वास भी होने लगता है। सभी बनाकर क्षमा के लक्षण, भेद एवं स्वरूप का विवेचन किया है। उन्होंने अध्यायों की शैली व्याख्यात्मक है। विस्तार देने व उसकी प्रामाणिकता विषय को स्पष्ट करने के लिए अनेक दृष्टांतों का उद्धरण दिया है तथा सिद्ध करने में श्री चन्द्रप्रभ सिद्धहस्त नज़र आते हैं। इस पुस्तक में श्री उनके आधुनिक प्रश्न उपस्थित कर उनका समुचित समाधान प्रस्तुत चन्द्रप्रभ ने क्रमश: व्यक्ति को उसके सत्य से साक्षात्कार करवाया है, किया है।" पुस्तक की भाषा-शैली अत्यंत सुगम्य है। इसके स्वाध्याय उसे उसका वास्तविक बोध दिया है। उन्होंने जन्म से लेकर मृत्यु तक से हमें क्षमा पर विभिन्न धर्म-दर्शनों के मतों की भी जानकारी हो जाती और मृत्यु से भी पार पहुँचाने का राजमार्ग बताया है। जीवन में किनहै। क्षमा के माहात्म्य को जानने व क्रोध को जीतने के लिए यह पुस्तक किन मूल्यों को अपनाने की ज़रूरत है इसका भी वे बेहतर मार्गदर्शन बेहद उपयोगी है। देते हैं। उन्होंने ध्यान को सभी संभावनाओं के उजागर होने का मुख्य हम विषपायी हैं जनम-जनम के आधार सिद्ध किया है। स्वयं को जानने, स्वयं में जीने और संसार को इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन में आध्यात्मिक उत्थान के स्वर्ग बनाने की भावना रखने वालों के लिए यह पुस्तक चिराग का काम लिए सरल मार्ग प्रशस्त किया है। वे व्यक्ति को पहले उसकी करती है। वास्तविकता से परिचय करवाते हैं फिर व्यक्तित्व के अनुरूप ज्योति जले बिन बाती मार्गदर्शन देते हैं। उन्होंने इन अध्यायों में व्यक्तित्व के बहुआयामी इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान, साधना और समाधि से जुड़ा अंगों, आत्मविकास की विविध अवस्थाओं का जिक्र किया है। इस बेहतर मार्गदर्शन प्रदान किया है। उन्होंने सूक्ष्म तत्त्वों की जितनी सरल पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित किए गए 14 व्याख्या की है वह अद्भुत है। पुस्तक में ध्यान से अंतर्यात्रा करने की गुणस्थानों के क्रम की क्रमिक व्याख्या कर व्यक्ति को आत्म-विकास बार-बार प्रेरणा दी गई है। ध्यान क्या? क्यों? कैसे? जैसे प्रश्नों का की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया है। इन अध्यायों से मन, चित्त, अलग-अलग तरीके से बहुत ही रोचक तरीके से समाधान दिया गया ध्यान, सत्य, संशय, व्यक्तित्व जैसे बिन्दुओं का स्पष्टीकरण सहज है। साधकों, मुमुक्षुओं, जिज्ञासुओं को जीवन की नई समझ देना इस प्राप्त हो जाता है। आत्मविकास की ओर बढ़ने वाले साधकों के लिए ये पुस्तक की खासियत है। ध्यान की व्यावहारिक, सैद्धांतिक, शास्त्रीय अध्याय उपयोगी हैं। और विवेचनात्मक संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यह पुस्तक जैनत्व का प्रसार :सेवा के दायरे में बेहद उपयोगी है। ध्यान, समाधि, मन, चित्त, षट्चक्र जैसे गूढ़ तत्त्वों इसमें श्री चन्द्रप्रभ ने जैन धर्म के मानवतावादी सिद्धांतों का जिक्र पर जितनी सरलता से इस पुस्तक में समझाया गया है वह अन्यत्र दुर्लभ करते हए सेवा भाव को श्रेष्ठ बताया है। वे जैन सिद्धांतों को फैलाने के है। पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते मानो साधना की भूमिका निर्मित होती चली साथ सेवा धर्म को अपनाने की प्रेरणा देते हैं। जैनत्व का प्रसार : सेवा जाती है। जीवन के आध्यात्मिक रहस्यों को समझने के लिए यह के दायरे में' की व्याख्या करते हए श्री चन्द्रप्रभ ने जैन धर्म को पुस्तक सहादर का काम करता है। मानवतावादी, राष्ट्र-उद्धारक और आत्मोत्थान से जुड़ा सिद्ध किया है। हंसा तो मोती चुगै उन्होंने भगवान महावीर के अहिंसा, करुणा, प्रेम, न्याय, सेवा और इस पस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन को नई दृष्टि से जीने की प्रेरणा विश्व-बंधुत्व जैसे सिद्धांतों को फैलाने की प्रेरणा दी है। उन्होंने धर्म दी है। वे चाहते हैं कि व्यक्ति संसार में रहे, पर हंस-दृष्टि को साथ को मंदिरों-स्थानकों-उपाश्रयों तक सीमित मानने के कारणों का जिक्र रखकर ताकि वह मन के द्वन्द्वों में उलझने से बच सके। उन्होंने हंसकिया है। जैन धर्म की अन्य धर्मों के साथ उन्होंने तुलना भी की है। वे दृष्टि का मार्ग प्रदान करने के लिए पहले जीवन-जगत-अध्यात्म से मुक्ति के पहले शांति को फैलाना ज़रूरी मानते हैं। उन्होंने जिनशासन जुड़े विविध पहलुओं को उजागर किया है फिर यह सोचने के लिए का सार बताते हुए कहा है, "जो तुम अपने लिए चाहते हो, वह औरों प्रेरित किया है कि सत्य क्या है? यह पुस्तक हंस-दृष्टि को उपलब्ध के लिए चाहो, जो स्वयं के लिए नहीं चाहते हो, वही औरों के लिए भी करने में सहयोगी है। व्यक्ति के पास आँख तो है, पर वह दृष्टि नहीं मत चाहो - यही जिनशासन है।" उन्होंने भगवान महावीर के सूत्रों के जिससे वह भीतर की दुनिया देख सके। भीतर के सत्य को समझकर ही आधार पर सेवा को तपस्या और पूजा से भी उत्तम बताया है। उन्होंने व्यक्ति समस्याओं का वास्तविक समाधान प्राप्त कर सकता है। सत्य मदर टेरेसा की सेवा भावना की अनुमोदना करते हुए हर नारी को उसे को समझने में यह पुस्तक रोशनी देने का काम करती है। आदर्श बनाने की प्रेरणा दी है। उन्होंने धर्म के प्रचार के लिए संकुचित सत्यम् शिवम् सुंदरम् विचारों की बजाय विशाल हृदय को अपनाने की बात कही है। वे चार इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ ने अ से ह तक विविध शब्दों की वर्णों की परम्परा को धर्म-विरोधी बताकर महावीर द्वारा प्ररूपित कर्म- व्याख्याएँ समय के आलोक में नए ढंग से की हैं जो सहज ही हमें - 44 » संबोधि टाइम्स www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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