Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation
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थी। प्रवचन के दौरान जोधपुर के संभागीय आयुक्त एन.के. जैन का द्वारा लिखे गए सम्पूर्ण साहित्य का विस्तार से विवेचन किया गया है। आना हुआ। उन्होंने मंच पर बताया कि मेरे पास श्री चन्द्रप्रभ की कुछ श्री चन्द्रप्रभ जीवन, जगत और धर्मशास्त्रों के शोधकर्ता भी रहे हैं। किताबें थीं जिन्हें मैं रोज पढ़ा करता था, जिससे मुझे आत्मिक आनंद उनका शुरुआती लेखन अनुसंधानपरक ही रहा है। उनके द्वारा
और अतिरिक्त ऊर्जा मिलती थी। मेरे चाचाजी को शुगर थी, एक बार वे महोपाध्याय समयसंदर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लिखा गया शोधबीमार पड़ गए, उनकी शुगर बहुत ज्यादा बढ़ गई। डॉक्टरों को उनका प्रबंध विद्वत् जनों में समादत हुआ है। उनके द्वारा संकलित व संपादित एक पाँव काटना पड़ा। उनके बार-बार मुझे फोन आते - मैं बहुत दुखी हिंदी व प्राकृत सूक्ति कोशों को देखने से पता चलता है वे और निराश हो गया हूँ। दिनभर घर बैठे-बैठे तंग आ गया हूँ। इस तरह अनुसंधानकर्ता के क्षेत्र में भी आगे हैं। उनके साहित्य से योगिता यादव वे डिप्रेशन में आ गए। मैंने श्री चन्द्रप्रभ की किताबें चाचाजी को भेज द्वारा संकलित किया गया पाँच हजार से अधिक सूक्त वचनों का बोधि दीं। अचानक कुछ समय बाद उनका फोन आया। वे कहने लगे- तुमने बीज' नामक कोश देखने योग्य है। आयारस्तं, समवायसत्तं, पता नहीं कैसी किताबें भेजीं, इन्हें पढ़कर मेरे जीवन में चमत्कार हो खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास, जिनसूत्र, प्राकृत-हिन्दी सूक्ति गया। अब जीने का अंदाज ही कुछ और हो गया है। आयुक्त साहब ने कोश. हिन्दी सक्ति संदर्भ कोश, पारिभाषिक शब्द कोश आदि उनकी कहा - इस घटना के बाद मैं श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य का भक्त बन शोधपरक कृतियाँ रही हैं। उन्होंने धर्म को अनुसरण की बजाय गया। अब मैं किसी भी कार्यक्रम में जाता हूँ तो अपनी ओर से रुपयों ___ अनुसंधान की चीज माना है। उन्होंने शास्त्रों पर भी शोध किया और की बजाय किताबों का सेट देता हूँ जिसे सामने वाला जिंदगी भर याद महापुरुषों के अमृत वचनों पर भी। उनकी शोधमूलक निम्न घटनाएँ रखता है।
उल्लेखनीय हैंश्री चन्द्रप्रभ द्वारा लिखित 'समय के हस्ताक्षर' नामक काव्य दलाई लामा हुए प्रभावित - श्री चन्द्रप्रभ पार्श्वनाथ शोध पुस्तक राष्ट्रीय स्तर के समीक्षक एवं मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. प्रभाकर संस्थान, वाराणसी में अध्ययनरत थे। उस दौरान तिब्बतीयन धर्मगुरु माचवे को सम्पादन हेतु भेजी गई। पुस्तक के संदर्भ में उन्होंने दलाईलामा का वाराणसी में कार्यक्रम आयोजित हुआ। श्री चन्द्रप्रभ का प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मैंने सोचा भी नहीं था कि यह पुस्तक इतनी भी वक्तव्य रखा गया। उन्होंने पहले तो भगवान महावीर के संदेशों से प्रभावशाली हो सकती है, वास्तव में पुस्तक पढ़कर मैं चमत्कृत हो जडी हई गाथाएँ प्राकृत में उच्चारित की फिर उन्होंने जैन और बौद्ध धर्म उठा। आज के लेखकों में काव्यपरक इतना अच्छा लेखन मुझे पहली की शोधमूलक समानता एवं तुलनात्मक समीक्षा पर अपना खास बार पढ़ने व संपादन करने को मिला।" डॉ. नागेन्द्र के अनुसार, "श्री वक्तव्य दिया। इस वक्तव्य से दलाई लामा इतने प्रभावित हुए कि चन्द्रप्रभ का साहित्य सत्य की सूक्ष्म एवं गूढ़ ग्रन्थियों को उद्घाटित उनका सारा वक्तव्य श्री चन्द्रप्रभ पर ही केन्द्रित रहा। उन्होंने अपने करने का लोकमंगलकारी स्रोत है। उनके प्रवचनों में सूक्ष्मता, विद्वता वक्तव्य में कहा कि मैं और मेरे शिष्य भी आगे से वक्तव्य की शुरुआत
और रोचकता का त्रिवेणी संगम है।" श्री चन्द्रप्रभ का शास्त्रीय ज्ञान भगवान बुद्ध के पिटक की गाथाओं से करने की कोशिश करेंगे। जितना गहरा है उतना ही उनका व्यावहारिक जीवन का ज्ञान। वे तिब्बतियन रिसर्च इन्स्टीटयट के प्रोफेसर तो उनके प्रशंसक बन गए काव्यशास्त्र के भी ज्ञाता हैं। उन्हें छन्दों व अलंकारों का भी स्पष्ट ज्ञान और उनसे कई बार मिलने आते। बौद्ध भिक्षु भी उनसे चर्चा हेतु आने है। उनका संगीत ज्ञान भी अच्छा है। उन्होंने सैकड़ों भजनों व लगे। उनके प्रभावी वक्तव्य से प्रभावित होकर बनारस सम्पूर्णानंद कविताओं की रचना की है। उनके साहित्य में हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत विश्वविद्यालय में उन्हें वक्तव्य के लिए आमंत्रित किया गया। संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी, गुजराती शब्दों का बहुतायत मात्रा में प्रयोग यह देखकर शोध संस्थान के निदेशक डॉ. सागरमल जैन ने भी गौरव हुआ है जो उनके भाषात्मक ज्ञान की प्रखरता को अंकित करता है। इस का अनुभव किया। तरह श्री चन्द्रप्रभ ने सद्ज्ञान के विस्तार में अमूल्य योगदान दिया है।
पंचांग देखना छोड़ दिया - एक सज्जन श्री चन्द्रप्रभ से विशेष विशाल साहित्य के सर्जक एवं शोधमनीषी
कार्य हेतु मुहूर्त निकलवाने आए। उन्होंने पंचांग देखकर मुहूर्त बता श्री चन्द्रप्रभ ने साधना के साथ साहित्य सजन में खबरुचि दिखाई दिया। मैंने उनसे पूछा, "आप दूसरों को मुहूर्त बताते हैं, पर मैंने है। उनका साहित्य गद्य-पद्य दोनों में है। उनके साहित्य में नई दृष्टि है. आपको अपने कार्यों के लिए कभी मुहूर्त निकालते नहीं देखा, आखिर विज्ञान-अध्यात्म का समन्वय है, पुरानी बातों का परिष्कृत रूप है एवं इसका क्या कारण है?" उन्होंने कहा, "पहले मैं देखा करता था, पर वर्तमान को उन्नत बनाने की प्रेरणा है। उनका साहित्य भाषा, भाव, एक दिन बड़े भाईसाहब प्रकाश जी दफ्तरी कोलकाता जाने वाले थे। शैली, काव्य आदि सभी दृष्टिकोणों से रोचक व परिपूर्ण है। उन पर उन्होंने भाईसाहब से कहा - आज मत जाइए, क्योंकि पंचांग के सरस्वती की असीम कृपा है। उन्होंने मनोरंजन करने वाला साहित्य अनुसार आज इस दिशा में जाना वर्जित है, कुछ गलत हो सकता है। सृजन नहीं किया है वरन् साहित्य द्वारा जीवन को नई दिशा एवं दष्टि फिर भी वे चले गए और सकुशल पहुँच भी गए, वापस भी आ गए। देना उनका मुख्य उद्देश्य है। उनका साहित्य देशभर के विद्वानों एवं उन्हें लगा - पंचांग से ज्यादा प्रभावशाली प्रभु की व्यवस्थाएँ होती हैं। समाचारपत्रों द्वारा प्रशंसित हुआ है। डॉ. नागेन्द्र ने लिखा है, "श्री उस दिन के बाद उन्होंने अपने काम के लिए पंचांग देखने बंद कर चन्द्रप्रभ ने साहित्य, दर्शन एवं इतिहास से जुड़ी भूमिकाओं को जिस दिए।"वे कहते है सभी दिन प्रभु के है उसमें छंटनी क्या करना! सफलता के साथ निभाया है वह हिन्दी जगत के लिए कीर्तिमान है।" गीता के मर्मज्ञ एवं महान प्रवक्ता उनके साहित्य से विविध भाषाओं एवं विविध विषयों का ज्ञान सहज श्री चन्द्रप्रभ जैन संत होते हए भी उनकी गीता पर पकड मजबूत ही हो जाता है। शोध-प्रबंध के दूसरे एवं तीसरे अध्याय में श्री चन्द्रप्रभ है। उनके द्वारा गीता पर की गई व्याख्याएँ आश्चर्यकारी हैं। अब तक 16 » संबोधि टाइम्स
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