Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ 1+1, 1-1 करने की बजाय वैर-विरोध के सारे x + हटा दें तो यही दो भाई 11 (ग्यारह) की ताकत नजर आने लग जाएँगे।" 'घर में बड़ा कौन ?' के बारे में उनका कहना है, “घर में बड़े वे नहीं हैं जिनकी उम्र बड़ी है, घर में बड़े वे होते हैं जो वक्त पड़ने पर अपनी कुर्बानी देकर अपना बड़प्पन निभाते हैं।" बेटी और बहू की सुंदर व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा है, ‘“बेटी लक्ष्मी है और बहू गृहलक्ष्मी । लक्ष्मी चंचला है और गृहलक्ष्मी स्थायी । गृहलक्ष्मी को इतना प्यार दीजिए कि घर से गई लक्ष्मी की याद न सताए।" लायक - नालायक की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं, “बच्चों को पढ़ा-लिखाकर लायक बनाएँ, पर उस तरह का लायक न बनाएँ कि वे आपके प्रति ही नालायक साबित हो जाएँ।" " श्री चन्द्रप्रभ ने पति-पत्नी के रिश्ते के संदर्भ में 'झेलना' शब्द की विवेचना इस प्रकार की है, " अपने पति पर झल्लाइए मत। वे दूसरों से सौ-सौ लड़ाइयाँ झेल सकते हैं, पर आपकी रोज-रोज की टी-टीं बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। पति का दिल जीतना है, तो उन्हें अपना प्यार, सम्मान और ख़ुशियाँ बाँटते रहिए।" धन और बेईमानी के संदर्भ में उन्होंने कहा है, “ अपने पति को धन कमाने की प्रेरणा दीजिए, पर बेईमान बनने की नहीं। बेईमानी करके वे आपके लिए हीरों की चूड़ियाँ तो बना देंगे, पर कहीं ऐसा न हो कि उनके हाथों में लोहे की हथकड़ियाँ आ जाएँ।" पतियों को सीख देते हुए वे कहते हैं, "पत्नी के अगर सरदर्द हो तो उसे केवल 'सर का बाम' मत दीजिए, दो पल उसके पास बैठकर उसके सिर को सहलाइए। यह सच है कि पत्नी को सदाबहार खुश रखना संसार का सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है, पर याद रखिए पत्नी ख़ुश है तो ही आप ख़ुश हैं, नहीं तो वह आपकी ख़ुशी को ग्रहण लगा देगी।" उन्होंने लक्ष्मी का अर्थ इस प्रकार बताया है, "इंसान की एक लक्ष्मी दुकान के गुल्लक में रहती है और दूसरी लक्ष्मी घर के आँगन में। यदि घर की लक्ष्मी का सम्मान न किया तो याद रखना दुकान की लक्ष्मी से हाथ धो बैठोगे ।" श्री चन्द्रप्रभ ने खानपान-खानदान के बारे में कहा है, "आपका खानपान ही आपके खानदान की पहचान करवाता है। सदा वही खानपान कीजिए जो आपके खानदान को स्वस्थ और गरिमामय बनाए।" वे सुधार की व्याख्या इस प्रकार करते हैं, "कृपया अपना पेट सुधारिए, शरीर स्वत: सुधर जाएगा। मस्त रहिए, मन सुधर जाएगा। आधे घंटे ही सही, भजन अवश्य कीजिए, आपका भव-भव सुधर जाएगा।" उन्होंने गुटखे के बारे में लिखा है, "गुटखा खाने से पहले 'ट' हटाकर बोलिए, फिर भी जी करे, तो प्रेम से खाइए।" अंगप्रदर्शन के बारे में उनका कहना है, " अंगप्रदर्शन करना बैल को सींग मारने के लिए न्यौता देने के समान है।" उनके अनुसार एकता का अभिप्राय है, “0 की कोई कीमत नहीं होती, पर यदि उससे पहले 1 की ताकत लगा दी जाए तो हर 0 की कीमत 10 गुना बढ़ जाती है। " श्री चन्द्रप्रभ ने प्रभु और ईश्वर के बारे में लिखा है, "प्रभु को इस बात से कोई प्रयोजन नहीं है कि आप उसे किस पंथ और पथ से पाना चाहते हैं, प्रभु को सिर्फ़ इस बात से सरोकार है कि आप उसे कितना पाना चाहते हैं। ईश्वर हममें है, अगर हम भी ईश्वर में हो जाएँ तो हमारे जीवन की समस्याओं का खुद-ब-खुद अंत हो जाए ।" प्रेम की विवेचना उन्होंने इस प्रकार की है, "मनुष्य से प्रेम, प्रेम का पहला चरण है। पशु-पक्षियों से प्रेम, प्रेम का विस्तार है। पेड़-पौधे, नदीJa 22 > संबोधि टाइम्स " नाले और चाँद-सितारों से प्रेम प्रेम की पराकाष्ठा है।" उन्होंने कट्टरता शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा है, "कट्टरता संसार का सबसे खतरनाक कैंसर है जो कि मानवता और भाईचारे की आत्मा को खोखला कर देता है।" वे भारत के भाग्योदय पर कहते हैं, "भारत का भाग्योदय तभी होगा जब यहाँ का हर नागरिक राष्ट्रीय भावना को प्राथमिकता देगा।" इस तरह वे हर व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व को निखारने की प्रेरणा देते हैं। उनकी हर व्याख्या में नयापन है, नया चिंतन है, नया दृष्टिकोण है जो परिवार, समाज, राष्ट्र, जीवन और व्यक्तित्वनिर्माण में बेहद उपयोगी है। सहज जीवन एवं सौम्य व्यवहार के मालिक श्री चन्द्रप्रभ सहज जीवन के मालिक हैं। सहजता का अर्थ है : हर हाल में आनंद, शांति। वे जीवन के हर पहलू में सहजता का दृष्टिकोण रखते हैं । चाहे सुनना हो या कहना, सहजता उनके लिए पहले है । T उन्होंने सहजता और निर्लिप्तता को साधना की नींव बताया है। उन्होंने संबोधि साधना के अंतर्गत पाँच चरणों का जिक्र किया है (1) सहजता (2) सचेतनता (3) सकारात्मकता (4) निर्लिप्तता और (5) प्रसन्नता । वे आध्यात्मिक शांति और मुक्ति के लिए सहजता अर्थात् हर हाल में आनंद दशा को बनाए रखने को पहला सोपान मानते हैं। उन्होंने आरोपित कृत्रिम और बनावटी जीवन से दूर रहने की सलाह दी है । 'शांति पाने का सरल रास्ता' नामक पुस्तक में उन्होंने सहजता पर विस्तार से प्रकाश डाला है। 2 - | श्री चन्द्रप्रभ सौम्य व्यवहार की साक्षात मूर्ति हैं। उनसे मिलने वाला हर कोई उनके व्यवहार से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । वे सौम्य व्यवहार को सफलता के लिए जरूरी मानते हैं। उनका मानना है, "विनम्र व्यक्ति की तो दुश्मन भी प्रशंसा करते हैं, जबकि घमंडी व्यक्ति को दोस्त भी दुत्कारते हैं।" वे न केवल सौम्य व्यवहार के धनी हैं वरन् उनकी व्यावहारिक ज्ञान पर भी पकड़ मजबूत है। वे कहते हैं, "गुस्सा दिवाला है और क्षमा दीवाली है। गुस्सा भूकिए और क्षमा कीजिए।" श्री चन्द्रप्रभ ने हजारों किलोमीटर की पदयात्राएँ की हैं। उन्होंने जीवन जगत, प्रकृति और लाखों लोगों को काफी करीबी से देखा है। उनके साहित्य में इसकी स्पष्ट झलक है। वे जीवन-जगत को धरती की सर्वश्रेष्ठ कृति मानते हैं और इसे पढ़ना दुनिया की किसी भी महानतम पुस्तक को पढ़ने से ज्यादा बेहतर बताते हैं। वे जीवन का व्यावहारिक ज्ञान पाने के लिए हमें बार-बार प्रकृति के सान्निध्य में जाने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं, "हम फूलों को चूमकर देखें, हमारे हृदय में प्रेम का सागर लहरा उठेगा। हम प्रकृति का सौन्दर्य देखें, प्रकृति का सौन्दर्य हममें नृत्य कर उठेगा।" उन्होंने दुनिया को अनुगूँज कहा है। यहाँ फूलों के बदले फूल व काँटों के बदले काँटे आते हैं। इसके उदाहरण के रूप में श्री चन्द्रप्रभ ने कुएँ में मुँह डालकर बोलने की बात बताई है। अगर कुएँ में गधा बोलेंगे तो वापस गधा शब्द लौटकर आएगा और गणेश बोलेंगे तो गणेश वे कहते हैं, " औरों के लिए अच्छा बनना, अपने लिए और बेहतर बनने की कला है। " इसलिए उन्होंने सबके साथ अच्छा व्यवहार करने की प्रेरणा दी है ताकि वापस अच्छा व्यवहार लौटकर आ सके। उनके सौम्यता भरे व्यवहार से जुड़ी निम्न घटनाएँ प्रेरणारूप हैं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148