Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 21
________________ जिस ओर गये प्रभु तुम, वही मेरा ठिकाना है। की गहराई का सहज अनुमान लग जाता है। उन्होंने जीवन के बारे में जीवन की यात्रा का वो पथ अनजाना है। लिखा है, "जीवन किसी साँप-सीढ़ी के खेल की तरह है। कभी साँप लख चरण 'चन्द्रप्रभु' के, राजुल तब चलती है।। के जरिए हम ऊपर से नीचे लुढ़क आते हैं तो कभी सीढ़ी के जरिए नीचे श्री चन्द्रप्रभ ने तीर्थंकर आदिनाथ की भक्ति पर रचित जैन धर्म का से ऊपर पहुँच जाते हैं। एक बार नहीं, दस बार भी साँप निगल ले, तब महान स्तोत्र भक्तामर का पद्यानुवाद भी किया है। प्रभु-भक्ति में लिखे __ भी हम उस उम्मीद से पासा खेलते रहते हैं कि शायद अगली बार सीढ़ी गए बोल उनके इस प्रकार हैं चढ़ने का अवसर अवश्य मिल जाए।" संगत का महत्त्व बताते हुए वे जिसने तुम्हें निहारा जी भर, वह क्यों इधर-उधर झाँकेगा? कहते हैं, "दु:खी और बदक़िस्मत लोगों के साथ रहने की बजाय सुखी क्षीर-नीर को पीने वाला, क्षार-नीर को क्यों चाहेगा? और खुशक़िस्मत लोगों के साथ रहें, नहीं तो आपके सौभाग्य को भी और देव निरखे कितने ही, पर परितुष्ट हुआ मैं तुझसे। उनकी बदक़िस्मती का सूर्य-ग्रहण लग जाएगा।" माता-पिता को सावधान करते हुए उन्होंने कहा है, "आप अपने बच्चों को बुरी नज़र से मन-मंदिर में तुझे बसाया, हरे कौन मेरा उर मुझसे।। बचाकर रखते हैं, पर बुरी संगत से? बच्चों को बुरी संगत से बचाइए, नमन तुम्हें हैं संकट-भंजक, वसुधा-भूषण, प्रथम जिनेश्वर। नहीं तो कल आप पर उनकी बुरी नज़र हो जाएगी।" नजरों के प्रति सोख लिया तुमने भव सागर, तीन लोक के हे परमेश्वर ।। सावधान करते हुए वे लिखते हैं, "रावण के बीस आँखें थीं, पर नजर श्री चन्द्रप्रभ ने संबोधि सूत्र में आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हुए सिर्फ एक औरत पर थी जबकि अपने दो आँखें हैं. पर नजर हर औरत लिखा है पर है। फिर सोचो कि असली रावण कौन है?" मन मंदिर इंसान का, मरघट मन शमशान। श्री चन्द्रप्रभ ने युवा पीढ़ी में जोश और जज्बा जगाने की बेहतरीन स्वर्ग-नरक भीतर बसे, मन निर्बल, बलवान्।। कोशिश की है। उन्होंने हार-जीत के बारे में कहा है, "जिंदगी हार का जग जाना, पर रह गये, खुद से ही अनजान। नाम नहीं, जीत का नाम है। हारना गुनाह नहीं है,लेकिन हार मान बैठना मिले न बिन भीतर गए, भीतर का भगवान ।। अवश्य गुनाह है।" वे कहते हैं, "माना कि आज हमारी औकात बूंद कर्ता से ऊपर उठे, करें सभी से प्यार। जितनी होगी, पर बूंद से बूंद मिलाते रहे, तो एक दिन वही बिजली पैदा ज्योति जगाये ज्योति को, सुखी रहे संसार ।। करने वाला बाँध बन जाता है।" उन्होंने याददाश्त के संदर्भ में कहा है, बंधन तभी है जगत जब, मन में विषय की लहर हो। "याददाश्त के लिए थ्री आर का फार्मूला अपनाइए -1.रिमेम्बरिंग,2. मन निर्विषय यदि विषय से, तो मुक्ति बोले मुखर हो।। रिवाइजिंग, 3. राइटिंग। यानी याद कीजिए, दोहराइए, लिखकर उसे संसार क्या है वासना का, एक अंधा सिलसिला। और पक्का कीजिए।" निर्वाण तब, जब वासना से, मुक्ति का मारग मिला।। श्री चन्द्रप्रभ ने कार्यशैली की विवेचना करते कहा है, "बहुत श्री चन्द्रप्रभ ने मन की भटकन का सुंदर चित्र खींचा है। वे संत से काम खराब ढंग से करने की बजाय थोड़े काम अच्छे ढंग से करना बेहतर है।" उनकी दृष्टि में धनार्जन का अर्थ है, "यदि गृहस्थ की मनोदशा के बारे में कहते हैं - आपको धन कमाना है तो यह मत सोचिए कि पैसों के बिना कैसे जब संन्यास में होते हैं, लगता है शुरू करूँ? बल्कि यह सोचिए कि यदि आप शुरू ही नहीं करेंगे, गार्हस्थ्य अच्छा; जब गार्हस्थ्य में तो पैसे कहाँ से आएँगे।" श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन में प्रेम और क्षमा होते हैं, लगता है संन्यास अच्छा। को अपनाने की प्रेरणा देते हुए कहा है, "जो काम रुमाल से हो जैसे पिंजरे के पंछी को, लगता है सकता है उसके लिए रिवाल्वर मत निकालिए।" गरमी-नरमी पर आकाश अच्छा; आकाश विहारी उन्होंने लिखा है, "अगर गरमी रखोगे तो लोग ए.सी. में बैठना पंछी को, लगता है पिंजरा अच्छा।। पसंद करेंगे, पर अगर नरमी रखोगे तो लोग तुम्हारे पास बैठना श्री चन्द्रप्रभ केवल मुक्ति का संदेश ही नहीं देते वरन् मुक्ति का पसंद करेंगे।" मार्ग भी स्पष्ट करते हैं। उन्होंने इस भावना को काव्य में प्रकट करते श्री चन्द्रप्रभ ने परिवारों में प्रेम और मिठास का अमृत घोला है। हुए लिखा है - उनकी पारिवारिक रिश्तों को लेकर की गई व्याख्याएँ अद्भुत हैं। मुक्ति का पथ, धार खड्ग की, विरले ही होते गतिमान। परिवार की नई परिभाषा देते हुए उन्होंने लिखा है, "परिवार का मतलब लगातार जो चलते रहते, पाते हैं वे लक्ष्य महान ॥ है : Family और फेमिली का मतलब है : F=Father,ASAND, M = दीप जलाएँ श्रद्धा-घृत से, ज्ञान की बाती, कर्म प्रकाश। Mother, I = I, L= Love, Y= YOU अर्थात् फादर एण्ड मदर आई लव जीवन ज्योतिर्मय हो उठता, पाते मुक्ति का आकाश ॥ यू।" उन्होंने माँ को इस तरह व्याख्यायित किया है, "माँ का 'म' इस तरह श्री चन्द्रप्रभ जीवंत काव्य की रचना करने में सफल रहे हैं। महादेव, महावीर और मोहम्मद साहब की महानता लिए हुए है और माँ शब्दों के कमाल के जादूगर का'अ' आदिब्रह्मा, आदिनाथ और अल्लाह को अपने आँचल में समेटे हुए है। आप माँ की वंदना कीजिए, सृष्टि के सभी देवों की वंदना श्री चन्द्रप्रभ शब्दों के कमाल के जादूगर एवं चलते-फिरते अपने-आप हो जाएगी।" वे 1 और 1 को नए स्वरूप में परिभाषित शब्दकोश हैं। उन्होंने जीवन, जगत और अध्यात्म से जुड़े विविध । करते हुए कहते हैं, "कितना अच्छा हो कि हम दो भाइयों के बीच 1X1, पहलुओं की जो व्याख्याएँ की हैं वह अद्भुत हैं, जिससे उनके चिंतन संबोधि टाइम्स » 21 Jain Education International For Personal & Private Use Only vnivw.jainelibrary.org

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