Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 27
________________ उन्होंने राष्ट्र के सकारात्मक-नकारात्मक दोनों बिंदुओं पर विश्लेषण मिलता। वर्क को वर्शिप मानकर करने की सीख देते हए वे कहते हैं, किया है एवं नकारात्मक पहलुओं से बाहर निकलने का समाधान भी "दुनिया की कोई भी गाय दूध नहीं देती वरन् बूंद-दर-बूंद निकालना दिया है। उन्होंने शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी को विशेष महत्त्व देने की प्रेरणा पड़ता है। वैसे ही किस्मत उन्हें ही फल देती है जो वर्क को वर्शिप दी है। वे रटाऊ शिक्षा की बजाय सृजनात्मक एवं समझाऊ शिक्षा की मानते हैं। दान की रोटी और दया का दूध पीने की बजाय पुरुषार्थ का पहल करते हैं। वे भारत में प्रतिदिन नैतिक मूल्यों के होने वाले ह्रास को पानी पीना गरिमापूर्ण है। बस निठ्ठले होकर मत बैठो, फिर चाहे कहीं देखकर चिंतित हैं। उन्होंने नैतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा करने का ज्यूस की दुकान ही क्यों न खोल दो।" । सिंहनाद किया है। दिनोदिन बढ़ता भ्रष्टाचार, अपराध, मिलावट आदि श्री चन्द्रप्रभ ने सामाजिक-उत्थान के नाम पर औरों से धन माँगको रोकने के लिए उन्होंने युवा पीढ़ी एवं नैतिक लोगों को आगे आने माँगकर इकटठा करने वालों को समाज व देश का अपराधी बताया है। की प्रेरणा दी है। श्री चन्द्रप्रभ ने युवाओं को सफलता पाने के जोशीले उन्होंने अनाथ और विकलांगों की सहायता करने के साथ उनके पाठ पढ़ाए हैं। वे प्रगति में विश्वास रखते हैं और हर किसी को आगे स्वाभिमान को जगाकर पाँवों पर खड़ा करने की प्रेरणा भी दी है। बढने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं, "जो पैदा नहीं कर सकता, वह धर्मकोयगके अनरूप बनाने के प्रेरक बाँझ कहलाता है और जो कुछ काम नहीं करता, वह निकम्मा कहलाता श्री चन्द्रप्रभ धर्मगुरु हैं। उन्होंने जैन धर्म में संन्यास ले रखा है किंतु है। क्या आप अपने मुँह पर इस लेबल की कालिख पोतना चाहेंगे?" वे सभी धर्मों के प्रति प्रेम और सद्भाव रखते हैं। लगभग 32 वर्षों से वे श्री चन्द्रप्रभ ने राष्ट्र से जुड़े हर पहलू का राष्ट्र-निर्माणपरक संन्यास जीवन जी रहे हैं। वे समाज की सच्चाइयों,रूढ़िवादिताओं और साहित्य में विश्लेषण किया है। उन्होंने वर्तमान राष्ट्र से जुड़ी हर कार्यशैली से पूरी तरह परिचित हैं। उन्होंने जैन धर्म की वैज्ञानिकता समस्या का कारण, परिणाम एवं निवारण पर भी मार्गदर्शन दिया है। और मानवतावादिता का अभिनंदन किया है। वे कहते हैं, "जैन धर्म ने उन्होंने आरक्षण को देश के दुर्भाग्य का कारण बताया है। वे युवाओं को धर्म, दर्शन और सिद्धांत की दृष्टि से समग्र इंसानियत को अपने दायरे में कड़ी मेहनत द्वारा स्वर्णिम भारत का निर्माण करने की शिक्षा देते हैं। श्री लेने का प्रयास किया है। व्यवहार में अहिंसा, विचारों में अनेकांत चन्द्रप्रभ प्रतिवर्ष 15 अगस्त को हजारों लोगों के बीच स्वतंत्रता दिवस और जीवन में अपरिग्रह इस धर्म की बुनियादी प्रेरणा है, पर इस धर्म में समारोह मनाते हैं। तिरंगा फहराकर राष्ट्रगान का सस्वर सामूहिक कुछ रूढ़ मान्यताएँ इस तरह घर कर चुकी हैं, जिन्हें बदलने के लिए संगान करते हैं और 'कैसे बढ़ाएँ देश का गौरव' विषय पर दिव्य अब तक या तो सकारात्मक विचार नहीं किया गया या फिर परम्परा सत्संग-प्रवचन कर राष्ट्र के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं ।जब भी चुस्तता के चलते उसे परिणाम तक पहुँचने नहीं दिया गया।" राष्ट्र ने भूकंप, बाढ़ और सुनामी जैसी आपदाओं को झेला तो उन्होंने श्री चन्द्रप्रभ जैन संत होने के नाते पैदल चलते हैं। वे अब तक राष्ट्रभक्ति का परिचय देते हुए न केवल लोगों को सहयोग के लिए प्रेरित किया और सहयोग भिजवाया, वरन वे स्वयं भी ऐसे सेवा कार्यों देशभर में तीस हजार किलोमीटर से अधिक पदयात्रा कर चुके हैं। उन्होंने जीवन-यात्रा पुस्तक में पदयात्रा का समर्थन करते हुए उसे के लिए कटिबद्ध रहे। विश्व-दर्शन की मानवीय तकनीक कहा है। वे पदयात्रा को उचित निष्काम कर्मयोगजिनकी साधना मानते थे, पर अब वे जैन संतों के लिए पदयात्रा के साथ वाहन यात्रा को श्री चन्द्रप्रभ साधना के साथ-साथ निष्काम कर्मयोग में विश्वास जोडे जाने के पक्षधर हैं। उन्होंने धर्म-परम्परा के संदर्भ में लकीर के रखते हैं। वे कहते है, "गीता से मैंने कर्मयोग करने की प्रेरणा पाई है। फकीर बनने को अनुचित माना है। उनकी दृष्टि में, "समाज, संस्था संत होने का अर्थ यह नहीं हुआ कि समाज की मुफ्त की रोटी खाई और संत पुराने रास्तों पर ही चलना पसंद करते हैं। पुराने रास्तों पर जाए। हमें किसी की दो रोटी तभी खानी चाहिए जब हम उससे चार चलना सरक्षित तो है, पर जब तक हम नए रास्तों का निर्माण करने का गुना वापस लौटाने का सामर्थ्य रखते हों, अन्यथा हम पर दूसरों की रोटी हौंसला बुलंद नहीं करेंगे, तो आखिर पुराने हो चुके इंजनों से हम गाड़ी का ऋण चढ़ता जाएगा।" श्री चन्द्रप्रभ पूरी तरह से सक्रिय जीवन जीते को कब तक खींचते रहेंगे। हम सब लकीर के फकीर हैं। हम केवल हैं। उनकी दृष्टि में व्यक्ति का कर्म उसकी पूजा का ही हिस्सा होना दूसरों के परिवर्तनों का अनुसरण न करते रहें वरन् खुद अपने रास्ते चाहिए। अगर कर्ता-भाव से मुक्त होकर कर्म किया जाए तो वह हर बनाएँ। जीवन में सफलता की यही आधारशिला है।" उन्होंने जैन और कर्म हमारे लिए स्वर्ग और मुक्ति की सीढ़ी बना करता है। हिन्दू संतों को ब्रह्माकुमारी एवं आर्ट ऑफ लिविंग जैसे संगठनों से श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं, "पहले 'क' आता है, फिर 'ख'। पहले प्रेरणा लेने की सीख दी है और मानवतावादी धर्म को पूरे विश्व में कीजिए, फिर खाइए।कर्मयोग से जीमत चुराइये।" श्री चन्द्रप्रभ मुफ्त स्थापित करने की प्रेरणा दी है। वे कहते हैं, "केवल हिन्दू संतों की की रोटी खाना अपराध मानते हैं। वे कहते हैं, "व्यक्ति को 12 घंटे तरह भागवत्कथाएँ बाँच लेने भर से और जैन संतों की तरह उपाश्रयों अवश्य मेहनत करनी चाहिए फिर चाहे वह दिन के हों या रात के।" और स्थानकों में व्याख्यान कर लेने भर से धर्म को स्थापित नहीं किया उन्होंने भगवान की पूजा करने के साथ ऐसे कर्म करने की प्रेरणा दी है जा सकता। आज स्थिति यह बन गई है कि जैन संत दूसरों को क्या कि वे कर्म स्वयं प्रभु-पूजा बन जाए। उन्होंने भारत को स्वर्ग बनाने के जैनत्व प्रदान करेंगे, उनके लिए जैनों को भी जैन बनाए रखना लिए 'चरैवेति-चरैवेति' के सूत्र को अपनाने का उद्घोष किया है। चुनौतीपूर्ण हो गया है।" उन्होंने सबह नौ-दस बजे तक खर्राटे भरने वाले भारतीयों पर व्यंग्य यद्यपि श्री चन्द्रप्रभ पदयात्रा से होने वाले लाभों को स्वीकार करते करते हुए कहा है, "अगर भारत में विद्यालयों के खुलने का समय हैं. पर पदयात्रा में नष्ट होने वाली शक्ति, समय और ऊर्जा को बहुत सुबह-सुबह न होता तो आधा भारत दस बजे तक बिस्तरों में ही संबोधि टाइम्स-27 For Personal & Private Use Only हि Jain Education International

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