Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 25
________________ जहाँ सास-बहू और देवर-भाभी, प्रेम से हिल-मिल रहते। जीवन से जोड़ने की प्रेरणा दी और दुर्व्यसनों से मुक्त होने का मार्ग जहाँ संस्कारों की दौलत है, और मर्यादा को जीते। दिया। श्री चन्द्रप्रभ के अमृत प्रवचनों से, सत्संग एवं सान्निध्य से अब वहाँ 'चन्द्र' स्वयं लक्ष्मीजी आकर, अपना धाम बनाए।। तक हजारों लोगों के स्वभाव बदले हैं। हिंसक लोगों ने अहिंसा का मार्ग श्री चन्द्रप्रभ ने घर के कमरों को कब्रिस्तान न बनाने की सीख देते स्वीकार किया है। मांसाहारी शाकाहारी बने हैं। काफी तादाद में लोगों हए कहा है, "जिस घर में भाई-भाई सास-बह. देवरानी-जेठानी के ने बुरी आदतों का त्याग किया है। समाजों के बीच की दृरियाँ कम हई प्रति प्रेम और समरसता होती है वह घर मंदिर की तरह होता है. पर हैं। लोग एक-दूसरे के धर्मों के निकट आए हैं। उनकी उदार सोच के जहाँ भाई-भाई, पिता-पत्र आपस में नहीं बोलते. वह घर कब्रिस्तान चलते ही छत्तीस कौम की जनता उनके प्रवचनों में प्रेम से आती है। की तरह होता है। कब्रिस्तान की कब्रों में भी लोग रहते हैं.पर वे आपस उनके उदारवादी विचारों से प्रभावित होने के कारण ही उनकी में बोलते नहीं, अगर घर की भी यही हालत है तो कब्रों और कमरों में सत्संगकथाओं में हिन्दू लोग जैनों का पर्युषण पर्व मनाते हैं और जैनी फर्क ही कहाँ रह जाता है।" वे सुबह से लेकर रात तक की घर की लोग हिन्दुओं का जन्माष्टमी महोत्सव। यह उनके दिव्य वचनों का ही दिनचर्या बताते हुए कहते हैं, "सुबह उठने पर माता-पिता के चरण चमत्कार है कि अब तक उनकी प्रेरणा से लाखों जैनी गायत्री मंत्र सीख स्पर्श कीजिए और भाई-भाई गले मिलिए, यह ईद का त्यौहार बन चुके हैं तो लाखों हिन्दू नवकार महामंत्र को। इस तरह उनके मार्गदर्शन जाएगा। दोपहर में देवरानी-जेठानी साथ-साथ खाना खाइए, यह होली से परिवार व समाज को नई दिशा मिली है। परिवार-निर्माण एवं का पर्व बन जाएगा। रात को बडे-बजर्गों की सेवा करके सोइए. समाज-निर्माण के संदर्भ में उनकी कुछ घटनाएँ इस प्रकार हैं - आपके लिए आशीर्वादों की दीवाली हो जाएगी।" श्रवणकुमार की माँ कैसे बनें - एक बहिन ने श्री चन्द्रप्रभ से श्री चन्द्रप्रभ ने संतानों से कहा है, "जब हमने जीवन की पहली कहा - मैं श्रवणकुमार जैसी संतान की माँ बनना चाहती हूँ क्या यह साँस ली थी, तब माता-पिता हमारे क़रीब थे, जब वे जीवन की आज के युग में संभव है? उन्होंने कहा - आपकी यह इच्छा अवश्य आख़िरी साँस लें, तब हम उनके क़रीब अवश्य हों। परिवार में अगर पूरी हो सकती है, पर... । बहिन ने पूछा - पर, क्या? उन्होंने कहा - धन का बँटवारा हो तो आप जमीन-जायदाद की बजाय. माता-पिता इसके लिए आपको एक कठिन काम करना होगा। बहिन ने उनसे कहा की सेवा को अपने हिस्से में लीजिएगा। धन तो उनके आशीर्वादों से - मुझे इसके लिए एक तो क्या दस काम भी करने पड़ें तो मैं तैयार हैं। स्वत: चला आएगा।" वे बड़े-बुजुर्गों की उपयोगिता बताते हुए कहते उन्होंने कहा - तब फिर आप अपने पति को श्रवणकुमार बना दो। हैं, "बुजुर्गों के साये में रहिए। वे उस बूढ़े वृक्ष की तरह होते हैं जो फल । अगर आपका पति श्रवणकुमार बन गया तो आपको श्रवणकुमार की माँ भले ही न दे पायें, पर छाया तो अवश्य देते हैं।"भाई-भाई के रिश्ते की बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। बहिन को समझ में आ गया कि जैसे व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा है, "वह भाई कैसा, जो भाई के काम न हम होंगे वैसी ही हमारी संतानें होंगी। आए। राम का पिता के काम आना, सीता का राम के काम आना, ऐसे मना असली रक्षा-बंधन - इंदौर की घटना है। एक व्यक्ति लक्ष्मण का भाई-भाभी के काम आना और भरत का बड़े भाई के लिए ने छह बेटों में से सबसे छोटे बेटे को घर से अलग कर दिया। उनका मिट जाना - यह है धर्म,परिवार का धर्म, गृहस्थ का धर्म।" आना-जाना बंद था। श्री चन्द्रप्रभ के प्रवचन दशहरा मैदान में चल रहे श्री चन्द्रप्रभ ने माता-पिता को बच्चों के प्रति विशेष रूप से थे। पूरा परिवार प्रवचन सुनने आता था। रक्षाबंधन-महोत्सव पर सावधान किया है। वे बच्चों को संस्कारित एवं श्रेष्ठ नागरिक बनाने का प्रवचन सुनकर छोटे भाई का मन पसीज गया। उसने अपनी भाभी को मार्गदर्शन देते हुए कहते हैं, "बच्चों पर समय का भी निवेश कीजिए। फोन किया और कहा - मेरा बार-बार मन हो रहा है कि मैं आपके हाथ आप उन्हें 20 साल तक संस्कार दीजिए, वे आपको 80 साल तक सुख से राखी बँधवाऊँ। भाभी पशोपेश में पड़ गई। वह सीधी श्री चन्द्रप्रभ के देंगे। यदि हम बच्चों के मोह में अंधे होकर धृतराष्ट्र बन बैठे, तो पास पहुँची और कहा - हमारा पूरा परिवार साथ में है, पर देवर अलग सावधान! हमें भी दुर्योधन और दुःशासन जैसी कुलघाती संतानों का रहता है, मैं चाहती हूँ कि वे भी हमारे साथ रहें, पर ससुर जी से उनकी सामना करना पड़ सकता है।" पिता-पुत्र को दायित्व-बोध देते हुए बनती नहीं है। अब मैं ससुरजी को नाराज़ कैसे करूँ। उन्होंने कहा - उन्होंने कहा है, "यदि आप एक पिता हैं तो अपनी संतान को इतना क्या ससुर जी भी प्रवचन सुनने आते हैं। 'हाँ' - बहन ने कहा। उन्होंने योग्य बनाएँ कि वह समाज की प्रथम पंक्ति में बैठने के काबिल बने कहा- आप तो उन्हें राखी के बहाने घर लेकर आ जाओ। आपके ससुर जी को मैं सम्हाल लूँगा। जब पिता ने राखी वाली बात सुनी और बेटे को और यदि आप किसी के पुत्र हैं तो इतना अच्छा जीवन जिएँ कि लोग आपके माता-पिता से पूछने लगें कि आपने कौन से पुण्य किये थे जो घर पर देखा तो उनका हृदय पिघल आया। उन्होंने बेटे से सॉरी कहा और बेटे ने भी पिता के पैरों में झुककर क्षमायाचना की, और इस तरह आपके घर ऐसी संतान हुई।" बच्चों के खानपान के प्रति जागरूकता राखी के बहाने टूटा हुआ परिवार एक हो गया। बरतने की सलाह देते हुए वे कहते हैं, "बच्चों को मिठाइयाँ, चॉकलेट, चिप्स, शीतलपेय आदि विशेष अवसरों पर दें। इनका रोज़ाना सेवन सत्संग का सीधा प्रभाव - इंदौर की घटना है। श्री चन्द्रप्रभ का करने से बच्चों की भूख मर जाएगी और दाँत भी खराब होंगे। बच्चों को सत्संग अभय प्रसाल स्टेडियम में था। वे वहाँ से कस्तूर गार्डन में फल, जूस, सलाद की ओर खींचें। उन्हें बताएँ कि फल खाने से तुम आयोजित भक्ति संध्या के लिए रवाना हो गए। वे जैसे ही चौराहे पर 'शक्तिमान' बनोगे और दूध पीने से हनुमान'।" पहुँचे कि वहाँ एक पति-पत्नी स्कूटर से नीचे उतरे और सड़क पर उनको पंचांग प्रणाम किया। बहिन की आँखों से झर-झर आँसू बह रहे श्री चन्द्रप्रभ ने समाज-निर्माण का अनुपम कार्य किया है। उन्होंने थे। उन्होंने पूछा - बहिन, क्या बात है? रो क्यों रही हो? बहिन ने कहा मानवजाति को नैतिकता के पाठ सिखाए, अहिंसा-प्रेम जैसे व्रतों को For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स-25 Jain Education International

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