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श्रीमन्माननीय प्रध्यात्म मर्मज-स्याद्वाद वारिधि, जैनसिद्धांत महोदधि, न्यायालकार, विद्वच्छिरोमणि, श्रद्धेय ब्रह्मचारी पं. वशीधरजी सा. सिद्धांत शास्त्री, प्राद्य अध्यक्ष अ. भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् एवं भू. पू. प्राचार्य सर हुकुमचन्द जैन महाविद्यालय इन्दौर का भी मैं अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, कि जिन्होंने जीवन का अधिकाश समय समयसार के अध्ययन में ही विताया होकर बहुत समय पूर्व ग्रंथ का प्रथम अधिकार देखकर इसे पूर्ण करने का प्रोत्साहन एवं प्रेरणा की थी तथा पुनः आद्योपान्त ग्रंथ का अनुशीलन कर उचितसत्परामर्श दिये और अन्त में प्रस्तावना लिखने का भी कष्ट उठाया। समाज के अग्रणी नेता रावराजा अनेक पद विभूषित मा. श्रीमंत सेठ हीरालालजी सा काशलीवाल का मैं परम आभार मानता हूं, जिन्होंने सहर्ष ग्रंथ के प्रथम सस्करण का परिपूर्ण अर्थ भार वहन कर उसे धर्म प्रभावनार्थ समाज की सेवा में भेंट स्वरूप समर्पण किया ।
गत पर्युषण पर्व में भाद्र शुक्ला चतुर्दशी को इस ग्रन्थ के प्रथम सस्करण का विमोचन समारोह श्री मा. मैया मिश्रीलालजी सा. गगवाल की अध्यक्षता में आयोजित होकर सिद्धात सेविका जैन महिलारत्न, दानशीला मा सा कचनबाईजी सा. के कर कमलो द्वारा सम्पन्न हुआ था। इस अवसर पर हजारों जनता की उपस्थिति मे अध्यक्ष महोदय के अतिरिक्त अनेक पद विभूषित श्रीमत सेठ हीरालालजी सा एव श्रीमंत सेठ राजकुमार सिंह जी सा. तथा पूज्य न्यायालंकार पं वंशीधरजी सा. इन्दौर, श्री प पन्नालालजी साहित्याचार्य सागर एव श्री ५. नाथूलाल जी सा. शास्त्री इन्दौर ने जो अथ की उपयोगिता आदि के सबध मे हार्दिक उद्गार व्यक्त कर अपनी उदारता का परिचय दिया था उसके लिये मैं सभी महानुभवों का प्राभारी हू।
___ अत में इस द्वितीयावृत्ति को इतने शीघ्र प्रकाशित करने में अपने सहयोगी श्री पूरनमल बुद्धिचन्द जी पहाड़या, श्री मिश्रीलाल इन्दौरीलाल जी बड़जात्या, श्री मागीलालजी सा. पाटनी श्री भाई राधेश्यामजी सा. अग्रवाल तथा श्री प. कुन्दनलालजी न्यायतीर्थ आदि स्नेही महानुभावो को मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ !
विनीत :
माया गरी