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सेवा कीजे रे सूधा साधुनी, वहीए जिनवर आण; पराणे जइने रे तेह शुं बोलीए, जे होवे तत्त्वना जाण. म.५ जेहमां जेटला रे गुण लो तेटला, जिम रायणने लींबोल; । सहज करो जीव सुंदर आपणो, सहज सुंदरना रे बोल. म.६
आप स्वभाव सन्झाय आप स्वभावमां रे, अवधू सदा मगनमें रहेना; जगत जीव हे करमाधीना, अचरिज कछुअ न लीना. आप.१ तुम नहि केरा कोइ नहि तेरा, क्या करे मेरा मेरा; तेरा हे सो तेरी पासे, अवर सब अनेरा.
आप.२ वपु विनाशी तुं अविनाशी, अब हे इनका विलासी; वपु संग जब दूर निकासी, तब तुम शिवका वासी. आप.३ राग ने रीसा दोय खवीसा, ए तुम दुःखका दीसा; जब तुम उनकुं दूर करीसा, तब तुम जगका ईसा. आप.४ पारकी आशा सदा निराशा, ए हे जग जन पासा; वो काटनकुं करो अभ्यासा, लहो सदा सुख वासा. आप.५ कबहीक काजी कबहीक पाजी, कबहीक हुआ अपभ्राजी; कबहीक जगमें कीर्ति गाजी, सब पुद्गलकी बाजी. आप.६ शुद्ध उपयोगने समता धारी, ज्ञान ध्यान मनोहारी; कर्म कलंककुं दूर निवारी, जीव वरे शिवनारी. आप.७
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