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एणी रे काया में प्रभुजी सात समुद्र,
तेनुं नीर छे खारु मीठं.
एणी रे काया में प्रभुजी नवसें नावडीयो, तेनो स्वभाव न्यारो न्यारो.
एणी रे काया में प्रभुजी पांच रतनीया, परखे परखण हारो.
खुट गयुं तेल ने बुज गई बतीयां,
मंदिर में पड गयो अंधेरो.
खस गयो थंभो ने पड गई देहीयां,
मीट्टी में मील गयो गारो.
आनंद घन कहे सुन भाई साधु,
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आवा गमन निवारो निवारो. करमचंदनी सज्झाय ( राग : तारी जारूं बलिहारी)
कई कई नाच नाचवे करमचंद, कई कई नाच नचावे; ए अचरिज मन आवे करमचंद, कई कई नाच नचावे. सागरचक्री साइठ हजार, सुत युग महापराक्रमी; तुम प्रसादे एकन साथे, हुवा पलकमां भस्मी आदि जिनेश्वर अंतरयामि हुवा आदिना कर्ता;
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सुं० ३
सुं० ४
सुं० ५
सुं० ६
सुं० ७
सुं० ८
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कंई० २