Book Title: Sadhubhai Samaya Sudharas Pije
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 188
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्वार्थ सर्यो के दूरे नाशे, स्वार्थे मारामार. हिंसा जूठ चोरी चुगली, व्यभिचार महापाप; स्वारथथी करे लांबी सलामो, स्वार्थे कहे माबाप. सघळो० २ हाजी हा साहेबजी स्वार्थे, कपटकला सहु थाय; स्वार्थ सर्यो के सगुं न स्नेही, कोई न पासे जाय. सघळो० ३ माता पिता भाई पति ने पत्नी, स्वारथमां हुंशियार; स्वारथमां सपडाणा सर्वे, जुल्म करे छे अपार. राजा शेठ ने मंत्री योद्धो, न्यायाधीशो फोजदार; जड सुख माटे स्वार्थ करे सहु, स्वारथमां तैयार. सघळो० ५ आत्म प्रभुमां प्रीतिवाळा, परमार्थी नरनार; बुद्धिसागर परमार्थी संत, धन्य तेनो अवतार. सघळो० ६ समता स्वरूप सदा सुखकारी प्यारी रे, समता गुण भंडार. ज्ञानदशाफल जाणीए रे, तप जप लेखे मान; समता विण साधुपणुं रे, कासकुसुम उपमान. वेद पढो आगम पढोरे, गीता पढो कुरान; समता विण शोभे नहीं रे, समजो चतुरसुजाण. निश्चय साधन आत्मनुं रे, समतायोग वखाण; अध्यातम योगी थवारे, समता प्रशस्य प्रमाण. १७४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only सघळो० १ सघळो० ४ सदा० सदा० १ सदा० २ सदा० ३

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