Book Title: Sadhubhai Samaya Sudharas Pije
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org साधुभाई ! समय सुधारस पीजे... संपादक पू. मुनिश्री पद्मरत्नसागरजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिव्यआशिष परम वंदनीय योगनिष्ठ आचर्य श्रीमद् बुद्विसागरसूरीश्वरजी महाराज सूर्य कीरण २२ मई दुपहर २. मीनीट श्री महावीरस्वामी भगवान कोबातीर्थ, गांधीनगर दिव्यकृपा गीतार्थ गच्छाधिपति श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज गुरुकृपा राष्ट्रसंत आचार्य प्रवर श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुभाई समय सुधारस पीजे.... प्रस्तावना आलेखन : मुनि श्री अमरपद्मसागरजी प्रकाशन स्थल : आ.श्री कैलाससागरसूरी संयम वाटिका शुभनिमित्त : मुमुक्षु ऋषभ संघवी दीक्षाके उपलक्ष्य में संस्करण प्रति वीर सं. वि.सं. ई.स. मूल्य सौजन्य : प्रथम : 1000 :2532 : 2062 : 2006 : 20.00 : श्रीमती कंचनबेन कांतिलालजी सतावत परिवार (गुडाबालोतान) : श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र (श्रुत सरिता बुक स्टोल) कोबा - 382007. गांदीनगर फोन नं. 079 - 23276204, 205, 252 55721159 फेक्स 079 - 23276249 श्री विश्वमैत्री धाम जैन तीर्थ अक्षरधाम के सामने, ज रोड, बोरीज-382020 गांधीनगर फोन नं. 079 - 55727181, 23243180 For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुभाई समय सुधारस पीजे... (सज्जाय, पद, भजन) दिव्य आशिष यो.आ.श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजा दिव्य कृपा अजातशत्रु गीतार्थ गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराजा गुरुकृपा श्रुतसमुद्धारक आचार्यदेव श्रीमद् पदमसागरसूरीश्वरजी महाराजा प्रेरक मुनि श्री प्रशांतसागरजी संपादक मुनि श्री पद्मरत्नसागरजी संकलन मुनि श्री पुनीतपद्मसागरजी For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना जैन दर्शन में सज्ज्ञाय शब्द महान अर्थ का द्योतक है। सज्ज्ञाय शब्द और स्वाध्याय शब्द में भाषाकीय भेद हैं। निश्चय से तो सज्ज्ञाय (स्वाध्याय का अर्थ स्व अर्थात् आत्म तत्व का अध्याय-अध्ययन-परिचय-परिशीलनअनुप्रेक्षा की प्रकिया के द्वारा परंपरा से स्वकीय तत्व की पूर्ण उपलब्धि ही है। जब तीरर्थंकर परमात्मा ज्ञानावरणीय कर्म दर्शनावरणीय कर्म मोहनीय कर्म और अंतराय कर्म का संपूणतिया नाश करके कैवल्य लक्ष्मी को प्राप्त करते है तब धर्मदेशना के माध्यम से जीवादि नव तत्व, अनित्यादि बारह भावना, मैत्र्यादि चार भावना, मित्रादि आठ दृष्टि, सम्यकत्वादि आत्म परिणाम तथा मोहविजयी महापुरुषों के आदर्श दृष्टान्त, क्रोधादि कषाय और आहारदि संज्ञा के दुपरिणाम विगेरे पदार्थों को बारह प्रकार की वर्षदा के समक्ष अमोध रुप से प्रस्तुत करते है। उन्ही पदार्थों को पूर्व के महापुरुषों ने मनोहर शब्द संरचना के द्वारा काव्यों में सज्ज्ञाय माला का निमणि किया महार्षिओं द्वारा बनायी गई सज्ज्ञाय माला को प्रतिदिन चतुर्विधि श्री संघ प्रतिक्रमण के समय मधुर कण्ठ से गायन के द्वारा स्वयं के गले में आरोपण करके निर्जश को स्वामी बनता है। प्रस्तुत सज्ज्ञाय माला जिज्ञासु वर्ग के लिए पूज्यपाद वरम् वागीश राष्ट्रसंत आचार्य देवेश श्री के अन्तेवासी मुनिराज श्री पद्मरत्नसागरजी म.सा. ने संयोजन और संपादन करके . परोपकार करने के प्रयास किया है। इसमें क्रम आयोजन का कार्य प:श्री नविनभाई जैन ने किया है। एतदर्थ धन्यवाद के पात्र है। आचार्य श्री कैलासागरसूरी ज्ञानमंदिर में कार्यरत केतनभाई शाह तथा संजय गुर्जर ने कंपोझ का कार्य कीया है | सज्ज्ञाय माला के उपयोग द्वारा आराधक वर्ग आत्म तत्व की उपलब्धि में प्रयत्नशील बने यही मंगलकामना For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका साधु भाई! समय सुधारस पीजे, साधु भाई! ध्यान समाधि वरीजे बीज तिथि सज्झाय ..... बीज तिथि सज्झाय .................................... पंचमी तिथि सज्झाय ........................... अष्टमी तिथि सज्झाय ................................ अष्टमी तिथि सज्झाय ........ .................. एकादशीनी सज्झाय...... ................. नवपद सज्झाय................. ............. ....... १० पर्युषण पर्व सज्झाय ............................... पर्युषणपर्वनी सज्झाय ....... .......... पडिक्कमणानी सज्झाय अरणिक मुनि सज्झाय .. ....... १५ बाहुबली सज्झाय ............ ......... प्रसन्नचंद्र राजर्षि सज्झाय .... मेघकुमार सज्झाय ............... स्थूलिभद्र सज्झाय .............. मन वश सज्झाय ...... .......... ........ ......... For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोक्षनगर सज्झाय ..... धोबीडा सज्झाय........... नवकारवाळी सज्झाय . ................... निदा सज्झाय ..................................... आप स्वभाव सज्झाय.. जग सपना सज्झाय ........ ............. छट्ठा आरा सज्झाय .............. शीयलव्रत सज्झाय .. ............................... कर्म सज्झाय .............. ............. क्रोध सज्झाय .................. ............... मान सज्झाय ............... ............. माया सज्झाय ... ............. माया सज्झाय ...... ....... वैराग्यनी सज्झाय .... .......३० वैराग्यनी सज्झाय ............. वैराग्यनी सज्झाय वैराग्यनी सज्झाय ...... वैराग्यनी सज्झाय .............. ......... वैराग्यनी सज्झाय ....... .......... ........ For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैराग्यनी सज्झाय चना सज्झाय .............. ................ वैराग्यनी सज्झाय .................................. वैराग्यनी सज्झाय ................. वैराग्यनी सज्झाय वैराग्यनी सज्झाय .... .............. ४० आत्मबोध सज्झाय ................................. अध्यात्म सज्झाय ............... अध्यात्म सज्झाय .................................. अध्यात्म सज्झाय .... ........... .....४४ अध्यात्म सज्झाय ...... अध्यात्म सज्झाय .... ......... ..४५ अध्यात्म सज्झाय..... ......... अध्यात्म सज्झाय ... ..४७ अध्यात्म सज्झाय अध्यात्म सज्झाय .... ......... ४८ अध्यात्म सज्झाय ........ अध्यात्म सज्झाय ....... ......५० नवकार मंत्रनी सज्झाय ............. .......५१ समकित सज्झाय ......... ...५२ ........ ४७ ............ ४९ ............ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० दश श्रावकनी सज्झाय ............................... हीर विजयसूरी सज्झाय .............................. सात व्यसननी सज्झाय .... ......५५ आशातनानी सज्झाय ......... .......५७ मेतारज मुनिनी सज्झाय...... ...... ५९ धन्ना-शालीभद्रनी सज्झाय ....... ....... धन्ना अणगारनी सज्झाय .............. ......६२ जंबूस्वामीनी सज्झाय .............................. ६३ गजसुकुमालनी सज्झाय ...... ......६४ रहनेमिनी सज्झाय ............... विजयशेठ-विजयाशेठाणीनी सज्झाय............... कृष्णराजानी सज्झाय ............. नंदिषेणमुनिनी सज्झाय .......... ....६९ वज्रस्वामीनी सज्झाय ............ खंधकमुनिनी सज्झाय ............. ......... ...... ७२ कुरगडुमुनिनी सज्झाय ............ ....... ७५ अनाथीमुनिनी सज्झाय ............ ......... ......७६ द्रौपदी (कडवा तुंबडा)नी सज्झाय ................ देवानंदानी सज्झाय .......... ...७९ ६५ ......६६ ........ ........... For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनोरमा सती सज्झाय .... चंदन बाळानी सज्झाय ............................... स्वार्थनी सज्झाय .................................. आत्मानी सज्झाय ................................. शिखामणनी सज्झाय ........ ............. उत्तराध्ययना दशमा अध्ययननी सज्झाय ........... मनुष्यभवनी सज्झाय .... ............. कर्म विडंबनानी सज्झाय .......................... पंचगतिनी सज्झाय .. ............. विनयनी सज्झाय ... विनयनी सज्झाय ..... विनयनी सज्झाय .............. .......... नारी संग निवारवानी सज्झाय ..... .......... जीवदयानी सज्झाय ............ .......... दान-शील-तप भावनी सज्झाय ................ वर्धमानतपनी सज्झाय ......... ............. हिंसा पापस्थानकनी सज्झाय .. ............... मैथुन पापस्थानकनी सज्झाय ..................... दशमा अध्ययननी सज्झाय .. ................ For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म दृढतानी सज्झाय .............................. अशरण भावनानी सज्झाय .......................... अमृतवेलनी सज्झाय............................. ......१०३ अईमुत्ता मुनिनी सज्झाय ........................ ......१०७ ऋषभदेवनी सज्झाय....... ................ ......१०८ इलाची मुनिनी सज्झाय ........ ......१०९ ढंढण ऋषिनी सज्झाय ........ ......११० आत्माने उपदेशनी सज्झाय .................... ........११२ वणझारानी सज्झाय ............ .............. ......११३ करमचंदनी सज्झाय ................................ नरक दुःखनी सज्झाय ........................ .....११५ उणोदरी व्रतनी सज्झाय.................... ......११७ संसार असारनी सज्झाय ..... .....११८ बेइंद्रियनी सज्झाय ............. घीना गुणनी सज्झाय ........................... बाहुबलीनी सज्झाय ............ ............. रात्री भोजननी सज्झाय ..... ............... .....१२४ कायानो महेल नथी तारो रे ..................... ......१२६ भजन करी ले भजन करी ले ................ ....१२७ For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......१३२ भजन कर मन भजन कर मन ...................... हवे हुं समज्यो जिनवर नाम ......................... फूल्यो शुं फरे छे फूली रे...... .....१२९ जडनो राग निवारो, चेतन! ....................... सहुने छे मरवानुं अन्ते................. ......१३० अलख देशमें वास हमारा .......................... रे जीव धर्मने धारीए......... ......१३२ चेतन चतुर थईने............................... आप स्वरूप संभाळो, आतम ......... .......१३३ अब हम उत्तर गये भवपारा ........................ संतो! धर्मी तेह कहीजे ......................... .....१३४ आत्म कुटुंबने देखो आतम! .................... ....१३५ मानव भव नहीं हारो, मनुष्यो! ................. ....१३६ माया नहीं छे तारी, आतम! ....... ....१३६ क्यांथी आव्यो क्यां जईश भाई! ................ ....१३७ धर्मी बनो नर नार, जगतमां ...१३८ समता भावमां रे चेतन! ..................... १३९ मायामां मनडुं मोद्यं रे .. ......................... ......१४० माया न मूरख तारी रे ...................... ...१४२ ............. For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .....१४३ ......१४७ गुरुगमथी भाई ज्ञान ग्रहो तुम ..................... पामर प्राणी न पारखे................................ मूरख जीवडा कांई न समज्यो .....१४५ चेतन! अनुभव रंग रमीजे, ..................... .....१४५ चेतन! स्वारथीयो संसार ......................... ......१४६ शाने तुं करे छे माया रे .......................... धर्म कर आतमा धर्म कर आतमा ............... ......१४८ ऊंघ नहीं आतमा ऊंघ नहीं आतमा ............. ......१५० हार नहीं आत्मा ................. ................ ......१५२ सर्व संसारना खेल छे कारमा ...................... स्वार्थना फंदमां सर्व दुनिया फसी अमूल्य शिक्षा .. ............. धर्मी बनो नरनार ........ .............. .....१५८ आत्मानी स्त्री..... ............ अपूर्व संयम सेवीशुं क्यारे अहो, ................ आतम!!! कोई न तारूं रे ............... तपिया! तन कां तपावे ........................... १६१ संतो! अचरिज वात न लागे.................... ....१६३ चार दिवसनुं चांदरणुं संसार- ......................१६४ For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पैसा पैसा पैसा तारी. गप्पा गप्पा गप्पा मारे मन तने शी रीते समजावुं ? निन्दा ...... आतम! क्या करे म्हारूं त्हारूं. छोड दे यारी. हिल मिल चलो ज्ञानी. मुसाफरनुं घर हार नहीं. www.kobatirth.org विषयेच्छा वार! स्वारथियो संसार समता स्वरूप ज्ञानप्राप्ति माटे योग्यता निंदा त्यजो!. मायाना महापाश अरणिक मुनि सज्झाय For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६५ १६६ १६७ १६८ १६८ १६९ १७० १७० १७१ १७२ १७३ १७३ १७४ १७५ १७६ १७८ १७९ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु भाई! समय सुधारस पीजे, साधु भाई! समय सुधारस पीजे, अन्तर आतम हीरो परखी, सुखकर तेह ग्रहीजे. साधु भाई १ शुद्ध स्वरूपे रूपारूपी, नित्यानित्य विलासी, पर पुद्गलथी न्यारो वर्ते, लोकालोक प्रकाशी. साधु भाई २ अन्तर अखय खजानो भारी, वर्ते छे सुखकारी, लक्ष्य लगावी लेवो भाई, समजो नर ने नारी. साधु भाई ३ वेदक आतम पण नही वक्ता, अनुभव अन्तरधारो, खेले आतम आप स्वभावे, तो होवे भव पारो. साधु भाई ४ जो समजे तो समजी लेने, मळीयुं उत्तम टाणुं, जेवू उत्तम षट्रस खाणुं, तेवू शिव वहु आपुं. साधु भाई ५ निजपद वासी तुं अविनाशी, छे तुं गुणगण राशी, बुद्धिसागर आतम ध्याने, झगमग ज्योति विलासी.साधु भाई ६ साधु भाई! ध्यान समाधि वरीजे साधु भाई! ध्यान समाधि वरीजे, आतम समाधि पाकर प्रेमे, भव जलधि कु तरीजे. साधु १ असंख्य प्रदेशी आपो आपे, स्थिर उपयोगे भासे, स्वप्नदशा सम संसारे तब मनडु कबहु न वासे. साधु भाई २ बाहिर वासकु त्यागी अन्तर, शुद्ध वासमां वसीए, For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अखेद प्रवृत्ति निर्भय रूपे, करतां लेश न खसीए.साधु भाई ३ अनुभव दर्शन दृष्टा पामी, वीर्योल्लास विकासे, सहज स्वरूपी रूपारूपी, ज्ञाता ज्ञेय प्रकाशे. साधु भाई ४ ज्यां लो अन्तर तत्त्व ध्यावे, त्यां लो सुख नहि पावे, अन्तर शोधी बोधी पद निज, सत्यानंद कहावे. साधु भाई ५ नाम योगीथी काज न सीजे, युं साहिब क्युं रीझे, सद्गुरु संगे रहीए निशदिन, अनुभव प्याला पीजे.साधु भाई ६ षड् दर्शनका झघडा भेदी, थावे चिद्घन वेदी, छेदी कर्माष्टका झघडा, कबहु न होवत खेदी. साधु भाई ७ बुझो पूजो आतमपदकुं, भोगी पण ते अभोगी, बुद्धिसागर शिवपद साधे, तो निश्चयथी योगी. साधु भाई ८ बीज तिथि सन्झाय बीज तणे दिन दाखवु रे, दुविध धर्म प्रकार; पंच महाव्रत साधुने रे, श्रावकना व्रत बार रे. प्राणी धर्म करो सहु कोय. १ प्राणातिपात जेह कह्यु रे, जावज्जीव ते जाण; बीजुं मृषावाद जाणीये रे, मोटुं तेह वखाण रे. प्राणी.२ जावज्जीव त्रीजु वली रे, नामे अदत्ता-दान; चोथु व्रत घणुं पालतां रे, जगमा वाधे मान रे. प्राणी.३ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नव विध परिग्रह छोडतां रे, पंचमी गति शुभ ठाम; एव्रत सुधां पालतां रे, अणगारी कह्यो नाम रे. पांचे व्रत पाले सदा रे, साधुनो एह आचार; पडिक्कमणां बे टंकनां रे, राखे धर्मशुं प्यार रे. एहवां व्रत पाले सदा रे, ग्रंथतणे अनुसार; आराधक एहने कह्यो रे, ते पामे भवपार रे. मिथ्यात्वे भूलो भम्यो रे, एह अनादिनो जीव; सार धर्म नवि ओलख्यो रे, जेहथी मोक्ष सदीव रे. प्राणी. ७ आरंभ छांडी आतमा रे, समिति गुप्तिशुं कर प्रीत; प्राणी. ६ आठे मद दूरे त्यजी रे, करो धर्म सुविनीत रे. पालो जिनवर आणने रे, जो चाहो शिवराज; श्री विजय रत्न सूरिंदना रे, देवनां सर्यां काज रे. बीज तिथि सज्झाय बीज कहे भव्य जीवने रे लो, सुकृत करणि खेतमां रे लो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धरज्यो धर्मस्युं प्रितडी रे लो, प्राणी. ४ प्राणी. ५ निसुणो आणी उमंग रे सुगुण नर; For Private And Personal Use Only प्राणी. ८ प्राणी. ९ वावो समकित बीज रे सुगुण नर. करी निश्चे व्यवहार रे सुगुण नर. ३ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इहभवे परभवे भवोभवे रे लो, होवे ज्युं जग जयकार रे सुगुण नर. किरिया ते खातर नांखीये रे लो, उपशम नीरे सिंचजो रे लो, ऊगे ज्युं समकित छोड रे सुगुण नर. वाडी करो संतोषनी रे लो, समता दीजे खेड रे सुगुण नर व्रत पच्चक्खाण चोकी ठवो रे लो, वारे युं कर्मना चोर रे सुगुण नर. अनुभव केरे फुलडे रे लो, तस पाविली चिहुं छोर रे सुगुण नर; धरज्यो . ३ श्रुत चारित्र फल ऊतरे रे लो, ते फल चाखो शिक्षरे सुगुण नर. ज्ञानामृत रस पीजिये रे लो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धरज्यो. १ मोह हरे समकित वृक्ष रे सुगुण नर; धरज्यो. ४ इण रसे संतोष पामशो रे लो, धरज्यो. २ स्वाद ल्यो साम्य तांबूल रे सुगुण नर इणविध बीज तुमे सद्दहो रे लो, ४ For Private And Personal Use Only लहे ए भवनिधि फूल रे सुगुण नर धरज्यो . ५ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छांडी राग ने द्वेष रे सुगुण नर केवल कमला पामीये रे लो, वरिये मुक्ति विवेक रे सुगुण नर. धरज्यो .६ समकित बीज ते सद्दहे रे लो, ते टाले नरक निगोद रे सुगुण नर विजय लब्धि सदा लहे रे लो, नित नित विविध विनोद रे सुगुण नर. धरज्यो.७ __ पंचमी तिथि सन्हाय श्री गुरु चरण पसाउले रे लाल, पंचमीनो महिमाय रे हो आतम; विवरीने कहीश्युं सुणो रे लाल, सुणतां पातक जाय रे हो आतम पंचमी तप प्रेमे करो रे लाल. .१ मन शुद्धे आराधतां रे लाल, तूटे कर्म निदान रे हो आतम; आ भव सुख पामो घणा रे लाल, परभव अमर विमान रे. हो.२ सयल सूत्र रचना करी रे लाल, गणधर हुआ विख्यात रे हो आतम; ज्ञाने करीने जाणतां रे लाल, स्वर्ग नरकनी वात रे. हो.३ जे गुरु ज्ञाने दीपता रे लाल, ते तरीया संसार रे हो आतम; For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानवंतने सहु नमे रे लाल, ऊतारे भव पार रे. हो.४ अजुआली पक्ष पंचमी रे लाल, करो उपवास रे हो जगीश रे हो आतम; ॐ ह्रीं नमो नाणस्स गणणुं गणो रे लाल, नवकारवली वीस रे. हो.५ पांच वरस एक कीजीए रे लाल, उपर वली पांच मास रे हो आतम; यथाशक्ति करी ऊजवो रे लाल, जेम होय मनने उल्लास रे. हो.६ वरदत्त ने गुणमंजरी रे लाल, तपथी निर्मल थाय रे हो आतम; कीर्ति विजय उवज्झायनो रे लाल, कांति विजय गुण गाय रे. हो.७ अष्टमी तिथि सन्झाय सरस्वती चरण नमी करी, आपो वचन विलास भवियण; अष्टमी तप हुं वर्णवू, करो सेवकने उल्लास भवियण. .१ अष्टमी तप भावे करो, आणी हर्ष अपार भवियण; तो पार पामशो भवतणो, करशो कर्मनो छेद भ. अष्टमी.२ अष्ट प्रवचन पालीए, टालीए मदनां ठाम भ.; । अष्ट प्रातिहार्य मन धरी, जपीए जिननुं नाम भ. अष्टमी.३ For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञान आराधन तेह थकी, लहीए शिवसुख सार भ.; आवा-गमन ते नवि करे, ए छे जगत आधार भ. अष्टमी.४ एहवो तप तुमे आदरो, आराधो जिन धर्म भ.; तो तुम छूटशे आपदा, टालशो चउगति भर्म भ. अष्टमी.५ तीर्थंकर पदवी लहे, तपथी नवे निधान भ. जुओ मल्ली कुंवरी परे, पामे बहुगुण ज्ञान भ. अष्टमी.६ ए तपना छे गुण घणा, भाखे श्री जिन इश भ.; श्री विजय रत्न सूरीशनो, वाचक देवसूरीश भ. अष्टमी.७ अष्टमी तिथि सन्झाय अष्टकर्म चूरण करी रे लाल, आठ गुणे प्रसिद्ध मेरे प्यारे रे; क्षायिक समकितना धणी रे लाल, वंदुं वंदुं एवा सिद्ध मेरे प्यारे रे. अष्ट.१ अनंत ज्ञान दर्शन धरा रे लाल, चोथु वीर्य अनंत मेरे प्यारे रे; अगुरु लघु सुखमय कह्या रे लाल, अव्याबाध महंत मेरे प्यारे रे. अष्ट.२ जेहनी काया जेहवी रे लाल, उणी त्रीजे भाग मेरे प्यारे रे; सिद्ध शिलाथी जेमणे रे लाल, अवगाहना वीतराग मेरे प्यारे. अष्ट.३ For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सादि अनंता तिहां घणा रे लाल, समय समय तेह जाय मेरे प्यारे रे; मंदिर मांहि दीपालिका रे लाल, सघला तेज समाय मेरे प्यारे रे. अष्ट.४ मानव भवथी पामिये रे लाल, सिद्धि तणां सुख संग मेरे प्यारे रे एहनुं ध्यान सदा धरो रे लाल, एम बोले भगवति अंग मेरे प्यारे रे.अष्ट.५ श्री विजय देव पट्टधरु रे लाल, श्री विजय सेन सूरीश मेरे प्यारे रे; सिद्धतणा गुण ए कह्या रे लाल, देव दीए आशिष मेरे प्यारे रे. अष्ट.६ एकादशीनी सन्झाय आज मारे एकादशी रे, नणदल मौन करी मुख रहीए; पूछ्यानो पडिउत्तर पाछो, केहने कांई न कहीए. आज० १ मारो नणदोई तुजने वहालो, मुजने तारो वीरो; धूमाडाना बाचका भरतां, हाथ न आवे हीरो. आज० २ घरनो धंधो घणो कर्यो पण, एके न आव्यो आडो; परभव जाता पालव झाले, ते मुजने देखाडो. आज० ३ For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मागशर शुदि अगीयारस मोटी, नेवु जिनना निरखो; दोढसो कल्याणक मोटा, पोथी जोई जोई हरखो. आज० ४ सुव्रत शेठ थयो शुद्ध श्रावक, मौन धरी मुख रहीयो; पावके पुर सघळो परजाळ्यो, एहनो कांई न दहीयो.आज०५ आठ पहोर पोसह ते करीए, ध्यानु प्रभुनुं धरीए; मन वच काया जो वश करीए, तो भवसागर तरीए.आज० ६ इर्यासमिति भाषा न बोले, आडु अवळु पेखे; पडिक्कमणाशुं प्रेम न राखे, कहो केम लागे लेखे. आज० ७ कर उपर तो माळा फिरती, जीव फरे वनमांही; चित्तडं तो चिहुं दिशिये डोले, इण भजने सुख नाहि.आज०८ पौषधशाळे भेगा थईने, चार कथा वळी साधे; कांईक पाप मिटावण आवे, बार गणुं वळी बांधे. आज० ९ एक उठती आळस मोडे, बीजी उंधे बेठी; नदीओमांथी कोईक निसरती, जई दरियामां पेठी. आज० १० आई बाई नणंद भोजाई, न्हानी म्होटी वहुने; सासु ससरो मा ने मासी, शिखामण छे सहुने. आज० ११ उदयरत्न वाचक उपदेशे, जे नरनारी रहेशे; पोषहमांहे प्रेम धरीने, अविचळ लीला लहेशे. आज० १२ For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवपद सज्झाय नवपद महिमा सार, सांभलजो नर नार; आ छे लाल, हेत धरी आराधीयेजी ते पामे भवपार, पुत्र कलत्र परिवार; आ छे लाल, नवपद मंत्र आराधीयेजी. १ आसो मास सुविचार, नव आंबिल निरधार; आ छे लाल, विधिशुं जिनवर पूजियेजी. अरिहंत पद सार, गुणगुं तेर हजार; आ छे लाल, नवपदनुं एम कीजीए जी. २ मयणासुंदरी श्रीपाल, आराध्यो तत्काल; आ छे लाल, फल दायक तेहने थयोजी. कंचन वरणी काय, देहडी तेहथी थाय; आ छे लाल, श्री सिद्धचक्र महिमा कह्योजी. ३ सांभली सहु नरनार, आराधो नवकार; आ छे लाल, हेत धरी हैडे घणुंजी. चैत्र मासे वली एह, नवपद| धरो नेह; आ छे लाल, पूजे दे शिवसुख घणुंजी. ४ इण परे गौतम स्वामी, नवनिधि जेहने नाम; आ छे लाल, नवपद महिमा वखाणियोजी. १० For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्व.३ उत्तम सागर शिष्य, प्रणमे ते निशदिश; आ छे लाल, नवपद महिमा जाणियोजी. ५ पर्युषण पर्व सन्झाय पर्व पजुसण आवीया, आनंद अंग न माय रे; घर घर उत्सव अति घणां, श्री संघ आवे ने जाय रे. पर्व.१ जीव अमारि पलावीये, कीजिये व्रत पच्चक्खाण रे; भाव धरी गुरु वंदीये, सुणीये सूत्र वखाण रे. पर्व.२ आठ दिवस एम पालीये, आरंभनो परिहारो रे; न्हावण धोवण खंडण, लींपण पीसण वारो रे. शक्ति होय तो पच्चक्खीए, अट्ठाइ अति सारो रे; परम भक्ति प्रीते वहोरावीए, साधुने चार आहारो रे. पर्व.४ गाय सोहागण सर्व मली, धवल मंगल गीत रे; पकवान्नो करी पोषिये, पारणे साहम्मि मन प्रीतरे. पर्व.५ सत्तर भेदी पूजा रची, पूजो श्री जिनराय रे; आगल भावना भावीये, पातक मल धोवाय रे. लोच करावे रे साधुजी, बेसे बेसणा मांडी रे; शिर विलेपन कीजीये, आलस अंगथी छांडी रे. पर्व.७ गज गति चाले चालती, सोहागण नारी ते आवे रे; कुंकुम चंदन गहुंली, मोतीये चोक पुरावे रे. पर्व.८ पर्व.६ ११ For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रूपा महोर प्रभावना, करीये तव सुखकारी रे; श्री क्षमा विजय कविरायनो, लघु माणेक विजय जयकारी रे. पर्युषणपर्वनी सज्झाय पर्वपजुसण आवीयां रे लाल, कीजे घणुं धर्मध्यान रे भविकजन ! आरंभ सकळ निवारीए रे लाल, जीवोने दीजे अभयदान रे. सघळा मासमां मास वडो रे लाल, भाद्रव मास सुमास रे; तेहमां आठ दिन रुअडा रे लाल, कीजे सुकृतउल्लास रे. खांडण पीसण गारना रे लाल, नावण धोवण जेह रे; एहवा आरंभने टाळीए रे लाल, वांछो सुख अछेहरे. पुस्तक वासी न राखीए रे लाल, ओच्छव करीए अनेक रे; धर्म सारु वित्त वावरो रे लाल, हइडे आणी विवेक रे. १२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only पर्व ९ भ० १ भ० भ० २ भ० भ० ३ भ० भ० ४ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___भ० भ० भ० ५ भ० भ०६ भ० पूजी अर्चीने आणीए रे लाल, ___ श्री सद्गुरुनी पास रे; ढोल ददामा फेरिया रे लाल, मांगलिक गावो गीत रे. श्रीफळ सरस सोपारीयो रे लाल, दीजे साहम्मीने हाथ रे; लाभ अनंता बतावीया रे लाल, श्रीमुख त्रिभुवननाथ रे. नव वांचना कल्पसूत्रनी रे लाल, सांभळो शुद्ध भाव रे; साहम्मिवच्छल्ल कीजीये रे लाल, भवजळ तरवा नाव रे. चित्ते चैत्य जुहारीए रे लाल, पूजा सत्तर प्रकार रे; अंगपूजा सद्गुरु तणी रे लाल, कीजीये हर्ष अपार रे. जीव अमारि पळावीए रे लाल, तेहथी शिवसुख होय रे; दान संवत्सरी दीजीये रे लाल, इण समो पर्व न कोई रे. १३ भ०७ भ० भ० ८ भ० भ० ९ For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काउस्सग्ग करीने सांभळो रे लाल, आगम आपणे कान रे; छठ अट्ठम तपस्या करो रे लाल, कीजे उज्वल ध्यान रे. भ० इणविध पर्व आराधशे रे लाल, लेशे सुखनी कोड रे; मुक्ति मंदिरमा महालशे रे लाल, ___ मति हंस नमे करजोड रे. भ० ११ पडिक्कमणानी सन्झाय कर पडिक्कमणुं भावशुंजी, समभावे चित्त लाय; अविधि दोष जो सेवशोजी, तो नहि पातक जाय. चेतनजी! एम केम तरशोजी. १ सामायिकमां सामटीजी, निद्रा नयणे भराय; विकथा करतां पारकीजी, अति उल्लसित मन थाय. चेतनजी० २ काउस्सगमां उभा थका, करतां दुःखे रे पाय; नाटक प्रेक्षण जोवतांजी, उभा रयणी जाय. चेतनजी० ३ संवरमां मन नवि रुचेजी, आश्रवमां हुंशियार; सूत्र सुणे नहि शुभ मनेजी, वात सुणे धरी प्यार.चेतनजी० ४ १४ For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुजनथी वेगलोजी, नीचशुं धारे नेह; कपट करे क्रोडो गमेजी, धर्ममां ध्रुजे देह. चेतनजी० ५ धर्मनी वेला नवि दीएजी, फूटी कोडी रे एक; राजाए रुंध्यो थकोजी, खूणे गणी दीए छेक. चेतनजी० ६ जिनपूजा गुरु वंदनाजी, सामायिक पच्चक्खाण; । नवकारवाली नवि रुचेजी, करे मन आर्तध्यान. चेतनजी० ७ क्षमा-दया मन आणीयेजी, करीए व्रत पच्चक्खाण; । धरीये मनमांहि सदाजी, धर्म-शुक्ल दोय ध्यान. चेतनजी० ८ शुद्ध मने आराधशोजी, जो गुरुना पदपद्म; रूपविजय कहे पामशोजी, तो सुर शिवसुख सम. चेतनजी० ९ अरणिक मुनि सन्झाय अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी, तडके दाझे शीशोजी; पाय अडवाणे रे वेलु परजले,तन सुकुमाल मुनीशोजी. अरणिक. मुख करमाणुं रे मालती फूल ज्युं, ऊभो गोखनी हेठोजी; खरे बपोरे रे दीठो एकलो, मोही मानिनी ए दीठोजी. अरणिक.२ १५ For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वयण रंगीली रे नयणे वींधियो, ऋषि थंभ्यो तेणे ठाणोजी; दासीने कहे जा रे ऊतावली, ऋषि तेडी घर आणोजी.. अरणिक. ३ पावन कीजे रे ऋषि घर आंगणुं, वोहरो मोदक सारोजी; नवयौवन रस काया का दहो, सफल करो अवतारोजी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरणिक ४ चंद्र वदनीए चारित्रथी चूकव्यो, सुख विलसे दिन रातोजी; बेठो गोखे रे रमतो सोगठे, तव दीठी निज मातोजी. अरणिक.५ अरणिक अरणिक करती मा फिरे, गलीए गलीए बजारोजी; कहो केणे दीठो रे म्हारो अरणीओ, पुंठे लोक हजारोजी. अरणिक.६ हुं कायर छं रे म्हारी मावडी, चारित्र खांडानी धारोजी; धिग् धिग् विषया रे म्हारा जीवने, में कीधो अविचारोजी. अरणिक.७ गोखथी ऊतरीरे जननीने पाय पड्यो, मन शुं लाज्यो अपारोजी; वत्स तुज न घटे रे चारित्रथी चूक, हथी शिव सुख सारोजी. अरणिक.८ १६ For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एम समजावी रे पाछो वालीओ, आण्यो गुरुनी पासोजी; सदगुरु दीए रे शीख भली परे, वैरागे मन वासोजी. अरणिक.९ अग्नि धखंती रे शिला उपरे, अरणिके अणसण कीधोजी; रूप विजय कहे धन्य ते मुनिवरू, जेणे मन वांछित लीधोजी. अरणिक.१० बाहुबली सन्झाय राजतणा रे अति लोभिया, भरत बाहुबलि झूझे रे; मुठी उपाडी रे मारवा, बाहुबलि प्रतिबूझे रे. वीरा मोरा गज थकी ऊतरो, गज चड्ये केवल न होय रे. वीरा.१ ऋषभदेव तिहां मोकले, बाहुबलिजीनी पासे रे; बंधव गज थकी ऊतरो, ब्राह्मी सुंदरी एम भाखे रे. वीरा.२ लोच करीने चारित्र लीयो, वली आव्यो अभिमान रे; लघु बंधव वांदुं नहीं, काउस्सग्ग रह्या शुभ ध्यान रे. वीरा.३ वरस दिवस काउस्सग्ग रह्या, शीत तापथी सूकाणा रे; पंखीडे माला घालीया, वेलडीये वीटाणा रे. वीरा.४ साधवीनां वचन सुणी करी, चमक्यो चित्त मोझार रे; हय गय रथ सहु परिहरिया, वली आव्यो अहंकार रे. वीरा.५ वैरागे मन वालीयुं, मूक्युं निज अभिमान रे; पग ऊपाड्यो रे वांदवा, ऊपन्युं केवलज्ञान रे. वीरा.६ १० For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहोंत्या ते केवली परषदा, बाहुबलि मुनिराय रे; अजरामर पदवी लही, समय सुंदर वंदे पाय रे. वीरा.७ प्रसन्नचंद्र राजर्षि सन्झाय प्रणमुं तुमारा पाय, प्रसन्नचंद्र प्रणमुं तुमारा पाय; राज छोडी रलीयामणुं रे, जाणी अथिर संसार. वैरागे मन वालीयुं रे, लीधो संयम भार. प्रसन्न.१ समशाने काउस्सग्ग रही रे, पग उपर पग चढाय; बाहु बे ऊंचा करी रे, सूरज सामी दृष्टि लगाय. प्रसन्न.२ दुर्मुख दूत वचन सुणी रे, कोप चड्यो तत्काल; मनशुं संग्राम मांडीओ रे, जीव पड्यो जंजाल. प्रसन्न.३ श्रेणिक प्रश्न पूछे ते समे रे, स्वामी एहनी कुण गति थाय; भगवंत कहे हमणां मरे रे, तो सातमी नरके जाय. प्रसन्न.४ क्षण एक आंतरे पूछीयुं रे, सर्वारथ सिद्ध विमान; वागी देवनी दुंदुभि रे, ऋषि पाम्या केवलज्ञान. प्रसन्न.५ प्रसन्नचंद्र ऋषि मुगते गया रे, श्री महावीरना शिष्य; रूप विजय कहे धन्य धन्य रे, दीठा जे प्रत्यक्ष. प्रसन्न.६ मेघकुमार सन्झाय धारणी मनावे रे मेघकुमारने रे, तुं मुज एकज पुत्र; तुज विण जाया रे! सूना मंदिर मालीयां रे, १८ For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राखो राखो घर तणां सूत्र. धारणी.१ तुजने परणावू रे आठ कुमारिका रे, सुंदर अति सुकुमाल; मलपती चाले रे जेम वन हाथणी रे, नयण वयण सुविशाल. धारणी.२ मुज मन आशा रे पुत्र हती घणी रे, रमाडीश वहुनां बाल; दैव अटारो रे देखी नवि शक्यो रे, उपायो एह जंजाल. धारणी.३ धन कण कंचन रे ऋद्धि घणी अछे रे, भोगवो भोग संसार; छती ऋद्धि विलसो रे जाया घर आपणे रे, पछी लेजो संयम भार. धारणी.४ मेघकुमारे रे माता प्रतिबूझवी रे, दीक्षा लीधी वीरजीनी पास; प्रीति विमल रे इणि परे उच्चरे रे, पहोंती म्हारा मनडानी आश. धारणी.५ स्थूलिभद्र सज्झाय आंबो मोर्यो हे आंगणे, परिमल पुहवी न माय; पासे फूली हे केतकी, भ्रमर रह्यो हे लोभाय. आंबो.१ आवो स्थूलिभद्र व्हाला, लाछलदेना हो नंद; तुमशुं मुज मन मोहियुं, जिम सायरने हो चंद. आंबो.२ सुगुणा साथे प्रीतडी, दिन दिन अधिकी हो थाय; १९ For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बेठो रंग मजीठनो, कदीये चटकी न जाय. आंबो.३ नेह विहुणां रे माणसां, जेहवां आवल फूल; दीसंता रलीयामणां, पण नवि पामे हो मूल. आंबो.४ कोयलडी टहुका करे, आंबे लहेके रे लुंब; स्थूलिभद्र सुरतरु सारिखा, कोशा कणयर कंब. आंबो.५ स्थूलिभद्रे कोशाने बूझवी, दीधुं समकित सार; रूप विजय कहे शीलथी, लहिये सुख अपार. आंबो.६ मन वश सन्झाय मनाजी तुं तो जिन चरणे चित्त लाय, तेरो अवसर वीत्यो जाय मनाजी.; उदर भरण के कारणे रे, गौआं वनमें जाय; चारो चरे चिहं दिशी फरे रे, ___ वांकुं चित्त९ वाछरां मांह; मनाजी.१ चार पांच साहेली मलीने, हिल मिल पाणी जाय; ताली दीये रे खडखड हसे रे, ___ वांकुं चित्तधू गगरीया मांह. मनाजी.२ नटवा नाचे चोकमां रे, लख आवे लख जाय; वांश चढी नाटक करे रे, वांकुं चित्तधू दोरडीयां मांह. मनाजी.३ २० For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोनी सोनाने घडे रे, वली घडे रूपाना घाट; घाट घडे मन रीझवे रे, वांकुं चित्तडं सोनैया मांह. मनाजी.४ जुगटीयां मन जुगटुं रे, कामीने मन काम; आनंदघन एम विनवे रे, ऐसे प्रभुको धर ध्यान. मनाजी.५ मोक्षनगर सन्झाय मोक्ष नगर मारुं सासरूं, अविचल सदा सुखवास रे; आपणा जिनवर भेटीये, तिहां करो लील विलास रे. मोक्ष.१ ज्ञान दरिशण आणा आवीया, करो करो भक्ति अपार रे; शीयल शृंगार पहेरो शोभतां, उठी उठी जिन समरंत रे. मोक्ष.२ विवेक सोवन टीलुं तप, जीवदया कुंकुम रोल रे; समकित काजल नयणरो, साचुं साचुं वयण तंबोल रे. मोक्ष.३ समता वाट सोहामणी, चारित्र वहेल जोडाव रे; तप जप बलद धरी जोतरो, भावना भावो रसाल रे. मोक्ष.४ कारमुं सासरूं परिहरो, चेतो चेतो चतुर सुजाण रे; ज्ञान विमल सूरि इम भणे, तिहां छे मुक्तिनुं ठाम रे. मोक्ष.५ धोबीडा सम्झाय धोबीडा तुं धोजे मननुं धोतीयु रे, रखे राखतो मेल लगार रे; एणे रे मेले जग मेलो कर्यो रे, २१ For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धोबीडा.१ अधोयुं न राख लगार रे. जिनशासन सरोवर सोहामणुं रे, समकित तणी रूडी पाल रे; दानादिक चारे बारणां रे, मांही नवतत्त्व कमल विशाल रे धोबीडा . २ तिहां झीले मुनिवर हंसला रे, पीये छे तप जप नीर रे; शम दम आदे जे शिला रे, तिहां पखाले आतम चीर रे. धोबीडा .३ तपवजे तप तडके करी रे, जालवजे नव ब्रह्म वाड रे; छांटा उडाडे पाप अढारना रे, एम ऊजलुं होशे ततकाल रे. धोबीडा ४ आलोयण साबुडो सुधो करे रे, रखे आवे माया सेवाल रे; निश्चे पवित्र पणुं राखजे रे, पछे आपणा नियम संभाल रे. धोबीडा. ५ रखे मूकतो मन मोकलुं रे, पड मेलीने संकेल रे; समय सुंदरनी शीखडी रे, सुखडी अमृतवेल रे. नवकारवाळी सज्झाय For Private And Personal Use Only धोबीडा.६ जो चतुर नर ए कोण नारी, धरमी जनने प्यारी रे; जेणे जाया बेटा सुखकारी, पण छे बाल कुमारी रे. २२ कहेजो. १ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोई घेर राती ने कोई घेर लीली, कोई घेर दीसे पीली रे; पंचरूपी छे बाल कुमारी, मनरंजन मत वाली रे. कहेजो.२ हैडा आगल उभी राखी, नयणशुं बंधाणी रे; । नारी नहि पण मोहनगारी, जोगीश्वरने प्यारी रे. कहेजो.३ एक पुरुष तस उपर ठाहे, चार सखीशुं खेले रे; एक बेर छे तेहने माथे, ते तस केडने खेले रे. कहेजो.४ नव नव नामे सहुको माने, कहेजो अर्थ विचारी रे; विनय विजय उवज्झायनो सेवक, रूप विजय बुद्धि सारी रे. कहेजो.५ निंदा सन्झाय म कर जीवडा रे निंदा पारकी, म करजे विखवाद; अवगुण ढांकी रे गुण प्रगट करे, मृगमद जिम रे जवाद.म.१ गुण छे पूरा रे श्री अरिहंतना, अवर दूजा नहि कोय; जग सहु चाले रे जिम मादल मढ्यु, गुणवंत विरला रे कोय. म.२ पूंठ न सूझे रे प्राणी आपणी, किम सूझे पर पूंठ; मरम ने मोसो रे केहनो न बोलीए, लाख लहे बांधी मूठ.म.३ राग द्वेषे स्वामी हुं भर्यो, भरीयो विषय कषाय; रीस घणेरी मुज मन ऊपजे, किम पामुं भव पार. म.४ २३ For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेवा कीजे रे सूधा साधुनी, वहीए जिनवर आण; पराणे जइने रे तेह शुं बोलीए, जे होवे तत्त्वना जाण. म.५ जेहमां जेटला रे गुण लो तेटला, जिम रायणने लींबोल; । सहज करो जीव सुंदर आपणो, सहज सुंदरना रे बोल. म.६ आप स्वभाव सन्झाय आप स्वभावमां रे, अवधू सदा मगनमें रहेना; जगत जीव हे करमाधीना, अचरिज कछुअ न लीना. आप.१ तुम नहि केरा कोइ नहि तेरा, क्या करे मेरा मेरा; तेरा हे सो तेरी पासे, अवर सब अनेरा. आप.२ वपु विनाशी तुं अविनाशी, अब हे इनका विलासी; वपु संग जब दूर निकासी, तब तुम शिवका वासी. आप.३ राग ने रीसा दोय खवीसा, ए तुम दुःखका दीसा; जब तुम उनकुं दूर करीसा, तब तुम जगका ईसा. आप.४ पारकी आशा सदा निराशा, ए हे जग जन पासा; वो काटनकुं करो अभ्यासा, लहो सदा सुख वासा. आप.५ कबहीक काजी कबहीक पाजी, कबहीक हुआ अपभ्राजी; कबहीक जगमें कीर्ति गाजी, सब पुद्गलकी बाजी. आप.६ शुद्ध उपयोगने समता धारी, ज्ञान ध्यान मनोहारी; कर्म कलंककुं दूर निवारी, जीव वरे शिवनारी. आप.७ २४ For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जग सपना सन्झाय जग सपनेकी माया, रे नर! जग सपनेकी माया. सपने राज पाय कोउ रंक ज्युं, करत काज मन भाया; उघरत नयन हाथ लख खप्पर, मन हुं मन पछताया. रे नर! १ चपला चमकार जिम चंचल, नर भव सूत्र बताया; अंजलि जल सम जगपति जिनवर, आयु अथिर दरशाया. रे नर!.२ यौवन संध्या राग रूप फुनि, मल मलिन अति काया; विणसत जास विलंब न रंचक, जिम तरुवरकी छाया. रे नर!.३ सरिता वेग समान ज्युं संपत्ति, स्वारथ सुत मित जाया; आमिष लुब्ध मीन जिम तिन संग, मोह जाल बंधाया. रे नर!४ ए संसार असार सार पिण, यामें इतना पाया; चिदानंद प्रभु सुमरन सेंति, धरीए नेह सवाया. रे नर!.५ छट्ठा आरा सन्झाय छट्ठो आरो एवो आवशे, जाणशे जिनवर देव; पृथ्वी प्रलय थाशे, वरसशे विरूवा मेह; रे जीव! जिन धर्म कीजीए. रे १ २५ For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तावडे डुंगर तरडशे, वाए उडी उडी जाय; त्यां प्रभु गौतम पूछीओ, पृथ्वी बीजे केम थाय. वैताढ्य गिरि नामे शाश्वतो, गंगा सिंधु नदी नाम; तेणे बेकेडे बेहुं भेखडे, बहोंतेर बिलनी खाण रे. सर्वे मनुष्य तिहां रहेशे, मनखा केरी खाण; सोल वर्षनुं आउखु, मुडा हाथनी काय रे. छ वर्षनी स्त्री गर्भ धरे, दुःखी महा दुःखी थाय; रात्रे चरवा नीकले, दिवसे बिलमांहे जाय रे. सर्व भक्षी सर्वे माछलां, मरी मरी दुर्गति जाय; नर नारी होशे बहु, दुर्गंधि तस काय रे. प्रभु बालनी परे विनवुं, छट्ठे आरे जन्म निवार; कान्ति विजय कविरायनो, मेघ भणे सुखमाल रे जीव. रे.७ शीयलव्रत सज्झाय शीयल समुं व्रत को नहीं, श्री जिनवर एम भाखे रे. सुख आपे जे शाश्वतां, दुर्गति पडता राखे रे. व्रत पच्चक्खाण विना जुओ, नव नारद जेह रे. एक जशीयल तणे बले, गया मुक्ते तेह रे. साधु अने श्रावक तणां, व्रत छे सुख -दायी रे. शीयल विना व्रत जाणजो, कुशका सम भाई रे . २६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only रे . २ रे ३ रे. ४ रे.५ रे.६ शीयल. १ शीयल. २ शीयल.३ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तरुवर मूल विना जिस्यो, गुण विण लाल कमान रे. शीयल विना व्रत एहवू, कहे वीर भगवान रे. शीयल.४ नववाडे करी निर्मलुं, पहेलु शीयल ज धरजो रे. उदय रत्न कहे ते पछी, व्रतनो खप करजो रे. शीयल.५ कर्म सन्झाय प्रभुजी मारा कर्म लाग्यां छे मारा केडले, घडीए घडीए आतमराम मुंझाय रे. प्रभुजी.१ ज्ञानावरणीये ज्ञान रोकीयो, दर्शनावरणीये कर्यो दर्शन घात रे. प्रभुजी.२ वेदनी कर्मे वेदना मोकली, मोहनीय कर्मे खवराव्यो छे मार रे. प्रभुजी.३ आयुष्य कर्मे ताणी बांधीयो, नाम कर्मे नचाव्यो छे नाच रे. प्रभुजी.४ गोत्र कर्मे बहु रझडावीओ, अंतराय कर्मे वाल्यो छे आडो आंक रे.प्रभुजी.५ आठे कर्मनो राजा मोह छे, मुंझावे मने चोवीसे कलाक रे. प्रभुजी.६ आठ कर्मने जे वश करे, तेहनो होशे मुक्तिपुरीमा वास रे. प्रभुजी.७ २७ For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आठे कर्मने जे जीतशे, तेहने घेर होवे मंगल माल रे.प्रभुजी.८ हीर विजय गुरु हीरलो, पंडित रत्न विजय गुण गाय रे. प्रभुजी.९ क्रोध सन्झाय कडवां फल छे क्रोधनां, ज्ञानी एम बोले; रीस तणो रस जाणीये, हलाहल तोले. कडवां.१ क्रोधे क्रोड पूरव तणुं, संजम फल जाय; क्रोध सहित तप जे करे, ते तो लेखे न थाय. कडवां.२ साधु घणो तपियो हतो, धरतो मन वैराग; शिष्यना क्रोध थकी थयो, चंडकोशियो नाग. कडवां.३ आग ऊठे जे घर थकी, ते पहेलुं घर बाले; जलनो जोग जो नवि मले, तो पासेनुं परजाले. कडवां.४ क्रोध तणी गति एहवी, कहे केवलनाणी; हाण करे जे हेतनी, जालवजो एम जाणी. कडवां.५ उदय रतन कहे क्रोधने, काढजो गले साही; काया करजो निर्मली, उपशम रसे नाही. कडवां.६ मान सन्झाय रे जीव! मान न कीजिए, माने विनय न आवे रे; विनय विना विद्या नहीं, तो किम समकित पावे रे?. रे.१ २८ For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समकित विण चारित्र नहीं, चारित्र विण नहीं मुक्ति रे; मुक्तिनां सुख छे शाश्वतां, ते केम लहीए युक्ति रे?. रे.२ विनय वडो संसारमां, गुणमांहे अधिकारी रे; माने गुण जाये गली, प्राणी जोजो विचारी रे. मान कर्यु जो रावणे, ते तो रामे मार्यो रे; दुर्योधन गरवे करी, अंते सवि हार्यो रे. सूकां लाकडां सारिखो, दुःखदायी ए खोटो रे; उदय रतन कहे मानने, देजो देशवटो रे. माया सन्झाय समकितनुं मूल जाणीयेजी, सत्य वचन साक्षात; साचामां समकित वसेजी, मायामां मिथ्यात्व रे. प्राणी म करीश माया लगार. मुख मीठो जूठो मनेजी, कुड कपटनो रे कोट; जीभे तो जी जी करे जी, चित्तमां ताके चोट रे. प्राणी.२ आप गरजे आघो पडेजी, पण न धरे विश्वास; मेल न छंडे मन तणोजी, ए मायानो पास रे. प्राणी.३ जेह शुं मांडे प्रीतडी जी, तेह शुं रहे प्रतिकूल; मन शुं न मूके आमलोजी, ए मायानुं मूल रे. प्राणी.४ तप कीधो माया करीजी, मित्र शुं राख्यो रे भेद; मल्ली जिनेश्वर जाणजोजी, तो पाम्या स्त्री वेद रे. प्राणी.५ २९ For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदय रत्न कहे सांभलोजी, मूको मायानी बुद्ध; मुक्तिपुरी जावा तणोजी, ए मारग छे शुद्ध रे. प्राणी.६ माया सन्झाय जगमां माया छे धूतारी, माया अनन्त दुःख देनारी; माया सारी माया प्यारी, माया कामणगारी; अंधी छे मायाथी दुनिया, माया विषनी क्यारी. जगमां. १ कुमतिनी जननी छे माया, प्रगटे चोरी जारी; मायानां विष वृक्षो ज्यां त्यां, माया शक्ति भारी. जगमां. २ माया कामण माया टुंमण, माया नाच नचावे; मायाना अंधारा मांहिं, फरतां पार न आवे. जगमां. ३ माया दरियो कोईक तरीयो, माया युद्ध करावे; मायामां मारूं जे माने, ते दुर्गतिमां जावे. जगमां. ४ मायानी पूजारी दुनिया, ज्यां त्यां नरने नारी; बुद्धि सागर साचा सन्तो, सुरता अन्तर धारी. जगमां. ५ वैराग्य सन्झाय ऊंचां ते मंदिर मालीयां, सोड वालीने सूतो; काढो काढोरे एने सहु कहे, जाणे जन्म्यो ज न्होतो. १ एक रे दिवस एवो आवशे, मन सबलोजी साले; मंत्री मल्या सर्वे कारमा, तेनुं कांइ नवी चाले. एक.२ 30 For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साव सोनानां रे सांकलां, पहेरण नवा नवा वाघा; धोलुं रे वस्त्र एना कर्मनुं, ते तो शोधवा लाग्या. एक.३ चरू कढाइयां अति घणां, बीजा- नही लेखं; खोखरी हांडी एना कर्मनी, ते तो आगल देखुं. एक.४ केनां छोरू ने केनां वाछरू, केनां माय ने बाप; अंतकाले जावू झजीवनेट एकलुं, साथे पुण्य ने पाप. एक.५ सगी रे नारी एनी कामिनी, ऊभी डगमग जवे; तेनुं पण कांइ चाले नहीं, ध्रुसके ध्रुसके रूवे. एक.६ व्हाला ते व्हालां शुं करो, व्हालां वोलावी वलशे; व्हाला ते वननां लाकडां, ते तो साथे ज बलशे. नहि त्रापो नहि तुंबडी, नथी तरवानो आरो; उदय रतन मुनि इम भणे, प्रभु मने भवजल तारो. एक.८ वैराग्यनी सन्झाय तन धन जोबन कारमुंजी रे, कोना मात ने तात; कोना मंदिर माळियांजी रे, जेसी स्वप्ननी वात. सौभागी श्रावक! सांभळो धर्म सज्झाय. फोगट फांफां मारवाजी, अंते सगुं नहिं कोई; घेबर जमाई खाई गयोजी, कुटाई गयो कंदोई. सौ० २ पाप अढार सेवीनेजी, लावे पैसो एक; एक.७ ३१ For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापना भागी को नहींजी, खावावाळा छे अनेक. सौ० ३ जीवतां जस लीधो नहींजी, मुवा पछी शी वात; चार घडीनुं चांदणुंजी, पछी अंधारी रात. सौ० ४ धन्य ते मोटा श्रावकोजी, आणंद ने कामदेव; घरनो बोजो छोडीनेजी, वीर प्रभुनी करे सेव. सौ० ५ बाप दादा चाल्या गयाजी रे, पूरा थया नहि काम; करवी देवनी वेठडीजी, शेखचल्लीना परिणाम. सौ०६ जो समजो तो शानमांजी, सद्गुरु आपे छे ज्ञान; जो सुख चाहो मोक्षनाजी, धर्मरत्न करो ध्यान. सौ० ७ वैराग्यनी सन्झाय मारुं मारुं म कर जीव तुं, ताहरु जगमां नहि कोय रे; आप स्वारथे सहु मिल्यां, हृदय विचारीने जोय रे. मा० १ दिन दिन आयु घटे ताहरु, जिम जल अंजलि होय रे; धर्मनी वेळा नाव्यो ढुंकडो, कवण गति ताहरी होय रे. मा० २ रमणी संगे राच्यो रमे, केम दीये बाउले बाथ रे; तन धन जोबन स्थिर नहीं, परभव नावे तुज साथ रे. मा० ३ एक घरे धवल मंगल हुवे, एक घरे रुवे बहु नार रे; एक रामा रमे कंतशुं, एक छंडे सकल शणगार रे. मा० ४ एक घरे सहु मली बेसतां, नित नित करता विलास रे; ३२ For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा०७ ते रे साजनीयां उठी गयां, स्थिर न रह्यो एक वास रे. मा०५ एहवू स्वरूप संसारनु, चेत चेत जीव गमार रे; दश दृष्टांते दोहीलो, पामवो मनुष्य अवतार रे. मा०६ हर्षविजय कहे एह, जे भजे जिनपद रंग रे; ते नरनारी वेगे वरे, मुक्तिवधु केरो संग रे. __ वैराग्यनी सन्झाय पुण्यसंयोगे पामीयोजी रे, नरभव आरज क्षेत्र; श्रावककुळ चिंतामणिजी रे, चेती शके तो चेत रे. जीवडा! आ संसार असार..... सार मात्र जिनधर्म छे जीरे, आपणुं घर संभाळ रे. जीवडा० १ मातपिता सुत बंधवा जीरे, दास-दासी परिवार; स्वार्थ साधे सहु आपणो जीरे, सहु मतलबना यार रे. जीवडा० २ सरोवर जळनो देडको जीरे, ताके आपणो भक्ष; साप ताके छे देडको जीरे, सहुने आपणो लक्ष रे.जीवडा०३ मयूर ताके छ सापने जीरे, आहेडी ताके छे मोर; मच्छ गलागल न्याय छे जीरे, निर्भय नहि कोई ठोर रे. जीवडा० ४ ३३ For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मे नाटक मांडीयो जीरे, जीवडो नाचणहार; नवा नवा लेबाशमां जीरे, खेले विविध प्रकार रे. जीवडा० ५ चोरासी चोगानमां जीरे, रुप-रंगना ठाठ; तमाशा त्रण लोकमां जीरे, बाजीगरना पाठ रे. जीवडा०६ बहोत गई थोडी रही जीरे, परभव भातुं रे बांध; समतासुखनी वेलडी जीरे, धर्मरत्न पद साध रे. जीवडा० ७ वैराग्यनी सन्झाय मानमां मानमां मानमां रे, जीव मारुं करीने मानमां, अंतकाळे तो सर्व मूकीने, ठरवू छे जई स्मशानमां रे. जीव०१ वैभव विलासी पाप करो छो, मरी तिर्यंच थाशो रानमां रे. जीव- २ रागना रंगमां भूला भमो छो, पडशो चोराशीनी खाणमां रे. जीव० ३ जगतमां तारुं कोई नथी रे, मन राखने भगवानमां रे. जीव० ४ वृद्धावस्था आवशे त्यारे, धाको पडशे तारा कानमां रे. जीव० ५ कोक दिन जानमां तो कोक दिन काणमां, मिथ्या फरे अभिमानमां रे. जीव० ६ ३४ For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोकदिन सुखमां तो कोकदिन दुःखमां, सघळा ते दिन सरखा जाणमा रे.जीव० ७ सुतवित्त दारा पुत्री ने भृत्यो, अंते ते तारा जाणमां रे. जीव० ८ आयु अस्थिरने धन चपळ छे, ___फोगट मोह्यो तेना तानमां रे. जीव० ९ छेल बटुक थई शाने फरो छे, अधिक गुमान मान तानमां रे. जीव० १० मुनि केवळ कहे सुणो सज्जन सहु, चित्त राखोने प्रभु ध्यानमा रे. जीव० ११ वैराग्यनी सन्झाय केना रे सगपण केनी रे माया, जीव रह्यो छे लोभाई रे; अथिर संसारमां कोई नथी तारुं, साची धर्म सगाई रे. केना० १ श्रेणिकरायने पिंजरे पूर्यो, कोणीके राज्य लोभाई रे; पुत्रे पिताने अति दुःख दीधुं, क्यां गई पुत्र सगाई रे. केना० २ भरत बाहुबली राज्यने माटे, मांडी मोटी लडाई रे; चक्र मूक्युं निज भाईनी उपर, क्यां गई भ्रातृ सगाई रे. केना० ३ मयणरेहा वशे मोह्यो मणिरथ, मार्यो युगबाहु भाई रे; ३५ For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय-कषायमां मस्त बनीने, क्यां गई भ्रातृ सगाई रे. केना० ४ ब्राह्मणी निज पुत्रने वेचे, धनने अर्थे लोभाई रे; अमरकुमारने मारण काजे, क्यां गई पुत्र सगाई रे. केना० ५ सूरीकान्ताए परदेशीने मार्यो, गळे अंगुठो दबाई रे; रायपसेणीमां भगवते भाख्यु, क्यां गई पत्नी सगाई रे. केना०६ शेठाणी निज शेठने नांखे, ऊंडा कूवानी मांही रे; कर्म तणी जो जो विचित्रता, क्यां गई पत्नी सगाई रे. केना० ७ चुलणी माता निज पुत्रने बाळे, लाखनुं घर बनाई रे; विषयमां अति लंपट थईने, क्यां गई मातृसगाई रे. केना० ८ केनी रे माता ने केना रे पिता, केना भाई भोजाई रे; विनयविजय पंडित एम बोले, साची धर्म सगाई रे. केना० ९ वैराग्यनी सन्झाय (राग - जुनु रे थयुं रे देवळी) पंखी विना कोण माले रे, पांजरीयामां; पंखी विना कोण माले... हंसा पांजरीयु ताहरूं, नथी कायम रहेवार्नु जावु पडशे आज काल, छोडी रे पांजरीयाने ३६ For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जब गया पंखी उडी, पड रह्या माळा मुकी; जमडो आवीने रोळी जाशे रे पांजरीयाने वेपारी उठीने हाल्यो, हाट मुकीने चाल्यो; लेणा देणानो हिसाब चाले रे पांजरीयामां परणी डेली थी वळी, जेह लगे सगा संबंधी; खाली पांजरीयुं खोली बाळे रे, पांजरीयाने धमण पडी गई छाती, अंतर अग्नि बुझावी; कोश मुकीने लुहार हाल्यो रे, पांजरीयमां कवि मोहन विजय रूप, भजन करी ले प्यारे; जन्म मरणना फेरा टाळे रे, पांजरीयामां Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंखी विना कोण माले... For Private And Personal Use Only २ ३ ४ ५ ६ वैराग्यनी सज्झाय मारुं मारुं ममकर जीव तुं, ताहरुं नहिं कोय रे; आप स्वारथे सहु मिल्यां, हृदय विचारी तुं जोय रे. दिन दिन आयु घटे ताहरु, जीम जल अंजलि होय रे; धर्मनी वेळा नाव्यो ढुंकडो, कवण गति ताहरी होय रे. मा० २ रमणी संगे राच्यो रमे, केम दीये बाउंले बाथ रे; तन धन जोबन स्थिर नही, नहि आवे परभव साथ रे. मा० ३ एक घरे धवल मंगल गावे, एक घरे रोवे बहु नार रे; ३७ १ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा०७ एक रामारमे कंतY, एक छंडे सकल शणगार रे. मा० ४ एक घरे सहु मली बेसतां, नित नित करता विलास रे; ते रे साजनीयां उठी गयां, जाणतां अथिर संसार रे. मा० ५ एहवू स्वरुप संसारनु, चेत चेत जीव गमार रे; दश दृष्टांते दोहीलो करी, पामवो मानव अवतार रे. मा० ६ हर्षविजय कहे एह, जे भजे जिनपद रंग रे; ते नरनारी वेगे वरे, मुक्तिवधु केरो संग रे. वैराग्यनी सज्झाय (राग : नेम नेम करती नारी) आव्यो त्यारे मुठी वाळी, जाती वेळाए तो खाली; जाती वेळा खाली जीवडा, रे तुं समय सुधार रे, बहु फाल्यो बहु फुल्यो, अंते देशे बाली रे. अंते०१ उहां उहां तुं तो करतो, जनमतां ते वारे रे; सघळु ते रही गयुं प्रभुने दरबार रे. अंते०२ आव्यो त्यारे साकर वेंची, हरख न माय रे; जाति वेळा रोवा लाग्यो, करे हाय हाय रे. अंते० ३ आव्यो त्यारे पहेरवानां, खावानां अपार रे; जाति वेळा तारुं बधुं, लूंटी लेवाय रे. अंते०४ आव्यो त्यारे पारणामां, झुलावे अपार रे; ३८ For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाति वेळा वांस लावशे, साडा त्रण हाथ रे. अंते० ५ जीवq टुंकु जगतमां, आशा बहु बंधाय रे; रात थोडी वेश झांझां, वखत वही जाय रे. अंते०६ खाशे ते तो धराशे ने, बाकी भूख्या जाशे रे; माटे भजी लेने प्रभु, पार बेडो थाय रे. अंते०७ मोह माया छोडी भज, निरागी प्रभु आज रे; धर्म केरो संग करी, छोडी दे तुं काज रे. अंते० ८ मारु मारुं छोडी दे ने, करी ले भलाई रे; उदय रत्न कहे भला, साधी ले तुं काज रे. अंते० ९ वैराग्यनी सन्झाय तारुं धन रे जोबन धूळ थाशे रे, तारी कंचन जेवी काया रे राखमां रोळाशे; तारी कंचन वर्णी काया रे राखमां रोळाशे. १ पेट पीडाने काळा कळतर, जीवता केम जोवाशे; कळ उपडशे ने मुंझारो थाशे, पछी कडवा औषध कोण पाशे तारी० २ वैद तेडावी वैदु करावशे ने, तारी ते नाडीओ जोवडाशे; तुटी एनी जडी बुटी नही, ___ तारी नाकनी डांडी मरडाशे. तारी० ३ दश दरवाजातारा बंध करी देशे, पछी अति आतुरता वधशे; ३९ For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आंख फरकशेने अकळामण थाशे, पछी जीभलडीतारी जलाशे. तारी०४ जेना विना एक घडी पण न चालतुं, ते तारी प्रिया रंडाशे, भवो भव ना छेटा पडशे पछी, तारी नामनी चुडीओ भंगाशे. तारी० ५ खोखरी हांडीमां आग जलावशे ने, स्मशाने लाकडां नांखशे, सगाकुटुंब सळगावी देशे, पछी बारमाना कागळ लखाशे. तारी०६ दश दिवस पछी सुतक काढशेने, माथु ने मूंछ मुंडावशे, सारी पेठे तारु सुतक काढशेने, पछी बारमानी सुखडी खाशे. तारी० ७ दया धर्मने भक्ति वीना तारु, धन ने राज लुंटाशे, ज्ञानविमल प्रभु भजन विणा, आत्मराज्य लुटाशे. तारी० ८ वैराग्यनी सन्झाय मारे करवी छे मनडानी वात रे, ओ हंसा राणा... रही जाओ आजनी रात पहेलो रे विसामो हंसा, घरने उंबरीये, बीजो रे विसामो जापा बार रे, ओ हंसा राणा त्रीजो रे विसामो हंसा, गामने पादरे, ४० For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोथो रे विसामो स्मशान रे, ओ हंसा राणा चार जणा रे हंसा, उंचकीने चाल्या तने, पांचशो पाडे रे पोकार रे, ओ हंसा राणा गाडुं भरीने हंसा, लाकडा रे लीधा, हांडलीमां मेल्या अंगार रे, ओ हंसा राणा जेना विना एक घडीना चाले तारे, ते पण मुके रे तारी आश रे, ओ हंसा राणा सगा रे ताहरा सहु भेगा मळीने हंसा, जमणा अंगुठे मुके आग रे, ओ हंसा राणा ज्ञान विमल कहे प्रभु भजीले हंसा, तारुं मारुं मुकीने गमार रे, ओ हंसा राणा आत्मबोध सन्झाय जीव क्रोध म करजे, लोभ म धरजे; मान म लावीश भाई.. कूडा कर्म म बांधीश, धर्म म चूकीश; विनय म मूकीश भाई. रे जीवडा दोहीलो मानव भव लाधो, __ तुमे कांइ तत्वने साधोरे भोला. १ घर पछवाडे देरासर जातां, वीश विमासण थाय; भूख्यो तरस्यो राउल रातो, माथे सहेतो धाय. रे.२ धर्म तणी पोशाले चाल्या, सुणवा सद्गुरु वाणी; ४१ For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एक वात करे बीजो ऊठी जाये, नयणे नींद भराणी. नामे बेठो लोभे पेठो, चार पहोर निशि जाग्यो; बे घडीनुं पडिक्कमणुं करतां, चोक्खो चित्त न राख्यो. रे. ४ आठम चउदश पूनम पाखी, पर्व पर्युषण सारो; बे घडीनुं पच्चक्खाण करतां, एक बीजाने वारो. कीर्ति कारण पगरण मांडी, अरथ गरथ सवि लूंटे; पुण्य ने काजे पारकुं पोतानुं, गांठडीथी नवि छूटे. घर घरणीने घाट घडाव्या, पहेरण आछा वाघा; दश आंगलीए दश वेढ ज पहेर्या, निर्वाणे जावुं छे नागा. रे.७ वांको अक्षर माथे मीडुं, निलवट आधो चंदो; मुनि लावण्य समय इम बोले, ए त्रण काले वंदो. अध्यात्म सज्झाय अवधू एसो ज्ञान विचारी, वामें कोण पुरुष कोण नारी अवधू.; बम्मनके घर न्हाती धोती, जोगीके घर चेली; कलमा पढ पढ भई रे तुरकडी तो, आपही आप अकेली. ससरो हमारो बालो भोलो, सासु बाल कुंवारी; पीजी हमारो पोहढे पारणीए तो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में हुं झुलावन हारी. ४२ For Private And Personal Use Only रे . ३ रे.५ रे.६ रे.८ अवधू१ अवधू. २ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नहीं हुं परणी नहीं हुं कुंवारी, पुत्र जणावन हारी; काली दाढीको में कोइ नहीं छोड्यो, हजुए हुं बाल कुंवारी. अवधू. ३ अढी द्वीपमें खाट खटूली, गगन ओशीकुं तलाइ; धरणीको छेडो आभकी पीछोडी, तोय न सोड भराइ. गगन मंडलमें गाय वीआणी वसुधा दूध जमाइ; सउरे सुनो भाइ वलोणुं वलोवे तो, 1 तत्त्व अमृत कोइ पाइ नहीं जाउं सासरीये ने नहीं जाउं पियरीये, पीजीकी सेज बिछाई आनंद घन कहे सुनो भाइ साधु तो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवधू.४ For Private And Personal Use Only अवधू५ ज्योतसें ज्योत मिलाइ. अवधू.६ अध्यात्म सज्झाय अवधू निरपक्ष विरला कोइ, देख्या जग सहु जोइ अवधू.; समरस भाव भला चित्त जाके, थाप उथाप न होइ; अविनाशीके घरकी बातां, जानेंगे नर सोइ. राय-रंकमें भेद न जाने, कनक उपल सम लेखे; नारी नागणीको नहीं परिचय, तो शिव मंदिर देखे. ४३ अवधू.१ अवधू. २ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निंदा स्तुति श्रवण सुणीने, हर्ष शोक नवि आणे; ते जगमें जोगीसर पूरा, नित्य चढते गुणठाणे. अवधू.३ चंद्र समान सौम्यता जाकी, सायर जेम गंभीरा; । अप्रमत्त भारंड परे नित्य, सुरगिरि सम शुचिधीरा. अवधू.४ पंकज नाम धराय पंकश्युं, रहत कमल जिम न्यारा; चिदानंद ईश्या जन उत्तम, सो साहिबका प्यारा. अवधू.५ अध्यात्म सन्झाय अवधू क्या सोवे तन मठमें, जाग विलोकन घटमें; अवधू... तन मठकी परतीत न कीजे, ढहि परे एक पलमें; हलचल मेट खबर ले घटकी, चिन्हे रमता जलमें. अवधू.१ मठमें पंच भूतका वासा, सासा धूत खवीसा; । छिन छिन तोही छेलनकुं चाहे, समजे न बौरा सीसा.अवधू.२ शिरपर पंच वसे परमेश्वर, घटमें सूक्ष्म बारी; आप अभ्यास लखे कोइ विरला, निरखे ध्रुकी तारी. अवधू.३ आशा मारी आशन धरी घटमें, अजपा जाप जगावे; आनंद घन चेतनमय मूरति, नाथ निरंजन पावे. अवधू.४ अध्यात्म सन्झाय अवधू क्या मागुं गुनहीना, वे गुन गनि न प्रवीना अवधू.; गाय न जानुं बजाय न जानु, न जानुं सुर सेवा; ४४ For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रीझ न जानुं रीझाय न जानुं, न जानुं पद सेवा. वेद न जानुं किताब न जानुं, न लक्षन छंदा; तरकवाद विवाद न जानुं, न जानुं कवि फंदा. जाप न जानुं जुवाब न जानुं, न जानुं कथा वाता; भाव न जानुं भगति न जानुं, जानुं न सीरा ताता.. ग्यान न जानुं विग्यान न जानुं, न जानुं भजनामां; आनंद घन प्रभु के घर द्वारे, रटन करूं गुण धामा. अवधू. ४ अध्यात्म सज्झाय हम तो दुनियां से न डरेंगे, आतम ध्यान धरेंगे. हम. निंदक खांते निंदा करशे, भक्त जनो गुण गाशे; दुनिया दिवानी गांडो कहेशे, कोईक मारण धाशे. किरियावादी कपटी लेखे, ज्ञानवादी मन घहेलो; भोगी लेखे ए भिखारी, छटकी कहे छटकेलो. दुनियादारी नहि है हमारी, ज्ञानदशा चित्त धारी; डाक डमाला मूरख चाला, ए सब खटपट वारी. स्याद्वाद मारग मनमांहि, श्रद्धा जिननी साची; अवलंब्यो मारग ए मोटो, कलिकाले पण राची. चित्त हमारा ज्यां रंगाया, त्यां हम रंगे रहीशुं; योग्य जीवनी आगल अंतर, तत्त्वनी वातो कहीशुं. ४५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only अवधू. १ अवधू.२ अवधू.३ हम. १ हम . २ हम . ३ हम . ४ हम . ५ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाडा मांहि बकरा रहेशे, मृगपति वनमां चरशे; विष्टा भोजन रासभ मौक्तिक, चारो हंस ते चरशे. हम.६ चिद्घन आतम अंतर खोज्यो, स्थिर दृष्टि चित्त धारी; बुद्धि सागर शाश्वत शिवपद, पामी लह्यो सुख भारी. हम.७ अध्यात्म सन्झाय जगतना खेल छे खोटा, कदी नहीं थाय मन मोटा. जग. सदा छे दुःख मायामां, सदा सुख ध्यान छायामां; प्रभुनुं नाम सुख आपे, प्रभुनुं नाम दुःख कापे. जग.१ प्रभु भक्ति न जो थाशे, तदा दिन दिन दुःख थाशे; जीभलडी गा जिनेश्वरने, हृदय तुं देवने स्मरने. जग.२ मुवा जे मोजमां माता, तर्या जे देवने गाता; जगतमां जन्म धार्यो तें, भजन विण जन्म हार्यो तें. जग.३ छेवटनी आंख मींचाशे, तदा तुं खूब पस्ताशे; हजी छे हाथमां बाजी, करी ले आतमने राजी. जग.४ रमत घोडा गमत गाडी, सुंदर शय्या अने लाडी; मलेलो भोग पण जाशे, पाछलथी कोई ते खाशे. जग.५ गणी तुं फोक दुनियाने, प्रभुना भव्य गुण गाने; बुद्ध्यब्धि संतनो संगी, ग्रहे ते सुख गुणरंगी. जग.६ For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्म सन्झाय सुख दुःख आवे सहुना शीरे, भोगव्या विण ते कबु नहीं टले. कोटी जन्मनां करेल पापो, अवसर आवे फले; धीरज हारी शोक करीने, शीदने जीवडा रडे. सुख.१ सीता सती द्रौपदी दमयंती, वनवासे टलवले; सुख दुःख भोगो आवे एणी पेरे, जेम गजेंद्र कोठु गले. सुख.२ कलंक चड्यां छे महासतीओने, नामे मंगल करे; श्रीवीर प्रभुना काने खीला, ठोक्या गोपे अरे. सुख.३ जराकुमारने हाथे मरj, थयुं कृष्ण- अरे; दुःख आव्यां वीर प्रभुने, सहाय कोई नहीं करे. सुख.४ कर्यां कर्म भोगववां सहुने, कोई- कांई न वले; सुख दुःखमां समभाव धरे ते, मुक्ति पुरीमां भले. सुख.५ चंद्र सूरज जेवा पण जगमां, देखो नजरे फरे; बुद्धि सागर समता सेवे, रागद्वेष नहीं छले; ज्ञानीने सुखडां, इण विध मले. सुख.६ अध्यात्म सन्झाय सब जन धर्म धर्म मुख बोले, अंतर पडदो न खोले रे. कोई गंगा जमना झूल्या, कोई भभूते भूल्या; कोई जनोईमां झंखाणा, फकीरी लई फूल्या. सब.१ ४७ For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सब.४ चालत चालत दोड्यो दोटे, पण पासेनो पासे; टीलां टपकां छाप लगावी, शिवपुर केम पामशे. सब.२ मूंड मूंडावे गाडरीयां जग, केशने तोडे रंडी; माला मणका बेरी पहेरे, नित्य चाले पगदंडी. सब.३ धर्मना वरणे धर्मना मरणे, धर्मना करवत काशी; धर्म न जाति धर्म न भाति, धर्म न जंगल वासी. गद्धां खाख मांहि आलोटे, ते पण साचां खाखी; निर्वस्त्रां पशु पंखी फरे छे, ममता दिलमां राखी. सब.५ जब तक अंतर तत्त्व न खूले, तब तक भवमां झूले; बुद्धि सागर आतम धर्मे, भ्रांति भ्रमणा भूले. सब.६ अध्यात्म सन्झाय आतम ध्यानथी रे, संतो सदा स्वरूपे रहेj; कर्माधीन छ सहु संसारी, कोईने कांई न कहे. आतम.१ कोई जन नाचे कोई जन रुवे, कोई जन युद्ध करंता; कोई जन जन्मे कोइ जन खेले, देशाटन केई फरंता.आतम.२ वेलु पीली तेलनी आशा, मूरख जन मन राखे; बावलीयो वावीने आंबा, केरी रस शुं चाखे. आतम.३ वैरी उपर वैर न कीजे, रागीथी नहीं राग; समभावे सहु जनने निरखे, तो शिव सुखनो लाग. आतम.४ ४८ For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जूठी जगनी पुद्गलबाजी, त्यां शुं रहीए राजी?; तन धन यौवन साथ न आवे, आवे न मात पिताजी. आतम.५ लक्ष्मी सत्ताथी शुं थावे, मनमां जोशो विचारी; एक दिन ऊठी जावू अंते, दुनिया सहु विसारी. आतम.६ भलभला पण ऊठी चाल्या, जोने केईक चाले; बिलाडीनी दोटे चडीयो, उंदरडो शुं महाले?. आतम.७ काल झपाटो सहुने वागे, योगी जन जग जागे; बुद्धि सागर आतम अर्थी, रहेजो सहु वैरागे. आतम.८ अध्यात्म सन्झाय स्वप्ना जेवी दुनियादारी, कदी न तारी थनारी; दृष्टि खोलकर देखो हंसा, मिथ्या सब जगकी यारी. स्वप्ना.१ दर्पणमां प्रतिबिंब निहाली, श्वान भ्रांतिथी बहु भस्यो; जूठी माया जूठी काया, चेतन तेमां बहु धस्यो. स्वप्ना.२ निज छाया कूप-जलमां देखी, कूदी कूपे सिंह पड्यो; पर पोतानुं मानी चेतन, चार गतिमां रडवड्यो. स्वप्ना.३ छीपोमा रूपानी बुद्धि, मानी मूरख पस्तायो; जडमां सुखनी बुद्धि धारी, ज्यां त्यां चेतन बहु धायो. स्वप्ना.४ कुटुंब कबीलो मारो मानी, कीधां कर्मो बहु भारी; अंते तारुं थशे न कोई, समज समज मन संसारी. स्वप्ना.५ ४९ For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जन्म्या ते तो जरूर जाशे, अहींथी अंते परवारी; समज समज चेतन मन मेरा, बुद्धि सागर निर्धारी. स्वप्ना.६ अध्यात्म सन्झाय कोई न करशो प्रीत, चतुर नर कोई न करशो प्रीत; प्रीत वसे त्यां भीत, चतुर नर कोई न करशो प्रीत. प्रीति भवदुःख मूल छे रे, प्रीतिनुं फल शोक; प्रीति करतां प्राणीने रे, वाधे रोग वियोग. कोइ.१ स्वार्थमां अंधा बनी रे, प्रीत करे नरनार; पर पुद्गलनी लालचे रे, वृद्धि करे संसार. कोइ.२ स्वार्थनी जे प्रीतडी रे, तेनो अंते नाश; अनुभवीए दाखव्युं रे, धर तेनो विश्वास. कोइ.३ मूरख साथे प्रीतडी रे, करतां निशदिन दुःख; पंडित साथे प्रीतडी रे, करतां निशदिन सुख. कोइ.४ आतम ते परमातमा रे, प्रीति छे तस साच; मणि सम आतम प्रीतडी रे, पर प्रीति ज्युं काच. कोइ.५ धर्म स्नेहने साचवी रे, करीए सज्जन संग; योग्य जनो लही योग्यता रे, पामे अनुभव रंग, अनुभव रंग मजीठ ज्यु रे, आतम मांहि सुहाय; बुद्धि सागर हंस ज्युं रे, चंचु विरला पाय. कोइ.७ कोइ.६ ५० For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवकार मंत्रनी सन्झाय श्री नवकार जपो मनरंगे, श्री जिन शासन सार रे; सर्व मंगलमां पहेलुं मंगल, जपतां जय जयकार रे. श्री० १ पहेले पद त्रिभुवन जनपूजित, प्रणमुं श्री अरिहंत रे; अष्ट कर्म वरजित बीजे पद, ध्यावो सिद्ध अनंत रे. श्री० २ आचारज त्रीजे पद समरूं, गुण छत्रीस निधान रे; । चोथे पद उवज्झाय जपीजे, सूत्र सिद्धान्त सुजाण रे. श्री० ३ सर्व साधु पंचम पद प्रणमुं, पंच महाव्रत धार रे; नव पद अष्ट इहां छे संपदा, अडसठ वरण संभार रे.श्री० ४ सात अक्षर अछे गुरु जेहना, एकसठ लघु उच्चार रे; सात सागरनां पातक हणे, पद पंचाश विचार रे. श्री० ५ संपूरण पणसय सागरना, जाये पातक दूर रे; ईह भव सर्व कुशल मनवांछित, परभव सुख भरपूर रे.श्री०६ योगी सोवन पुरिसो कीधो, शिवकुमार इणे ध्यान रे; सर्प मिटी तिहां फूलमाळा, श्रीमतीने परधान रे. श्री० ७ जक्ष उपद्रव करतो वार्यो, परचो ए परसिद्ध रे; चोर चंडपिंगल ने हुंडक, पामे सुर तणी ऋद्धि रे. श्री० ८ ए पंच परमेष्ठि छे जग उत्तम, चौद पूरवनो सार रे; गुण बोले श्री पद्मराज गणी, महिमा जास अपार रे. श्री० ९ ५१ For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समकित सम्झाय समकित पामतां रे, मुक्ति पामे नर ने नारी, मोक्षनो एकडो रे, समकित पामंतां निर्धारी. जैन धर्मने देव गुरूनी, श्रद्धा द्रव्यने भावे रे; जैन शास्त्रनी श्रद्धा थतां, समकित मोक्ष विचारे. सम. १ समकित वण तप जप नहीं लेखे, दया न लेखे आवे रे; मुक्ति न आपे व्रत संयम पण, __ जो नही समता आवे. सम. २ नय निक्षेपे नव तत्त्वादिक, जाणी श्रद्धा धरतां रे; निश्चय समकित घटमां प्रगटे, नरनारी शिव वरतां. सम. ३ समकितीने व्रत चारित्र योगे, निश्चय मुक्ति थाती रे; समकित वण नहि ज्ञानने चारित्र, __ समकिती हणे घनघाती. सम४ समकितीनो कदी नाश न थावे, समकिती तरतो अंते रे; समकित हेतु अवलंबो सहु, रहो न मिथ्या भ्रान्ते. सम. ५ देवगुरु ने धर्मशास्त्रमा, शंकादिक परिहरीए रे; बुद्धि सागर समकित बलथी, चारित्र लही शिव वरीए. सम. ६ ५२ For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दश श्रावकनी सज्झाय (साहिबा मोतीडो हमारो - ए देशी) सयळ उपासकमां शिरदारा, सूत्र उपासक मध्य विचारा, नाम स्तवन मुज लागत प्यारा, __ तिणे थुणशुं दश समकित धारा; साहिबा दश श्रावक एहा, मोहना गुण गेहा. (ए आंकणी) १ गाथापति आणंद विचारी, चउ गोकुळ शिवानंदा नारी, द्वादश कोडी हिरण्य धनवंता, अवधिनाण कहे भगवंता. सा० २ कामदेव शुभ भद्रा नार, षट गोकुळ धन कोडी अढार, गोकुळ आठ सुशीमा जोडी, चुलणिपिया धन चोवीश कोडी. सा० ३ सूरदेव वनिता जस धन्ना, चुल्लशतक बहुळा एक मन्ना; कुंडकोळिक पुंसा समधर्मे, ए त्रण्य श्रावकने अनुक्रमे. सा० ४ कोडी अढार हिरण्य जस हर्मे, षट् गोकुळ अनुकुळ जिनधर्मे. सकडाळ पुत्र कह्या कुंभकार, एक गोकुळ तीन कोडी दिनार; अग्निमित्रा छे घर नार. सा० ५ महाशतक अड गोकुळ घेर, रेवती आदे कही वधु तेर; चोवीश कोडी हिरण्य परिमाण, अंते पाम्या अवधिनाण. सा०६ ५३ For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्विनी नारीने नंदिणी पिया, फल्गुणी वल्लभ सालणी पिया, ए दोई श्रावकने घर बार, बाळकोडी धन गोकुळ चार. सा० ७ धेनु दश हजार ज जाण, एक गोकुळनुं ए परिमाण; दंसण वय आदि अगीयार, पडिमा श्रावकनी वही सार. सा० ८ वीस वरस श्रावक घर जाय, दश श्रावक सोहम सुर थाय; जंबूसुणे ईम सोहम वाणी, दे शुभ वीरविजय शिवराणी. सा० ९ हीर विजयसूरी सन्झाय बे कर जोडी विनवू जी, शारदा लागुं जी पाय, वाणी आपो निर्मळी जी, गाशुं तपगच्छराय; तें मने मोडुं रे हीरजी. (एक आंकणी.) अकबर कागळ मोकले, हीरजी वांचे ने जोय, तुज मलवा अलजो घणो, बिरबल करनो जी जोय. तें० २ अकबर करे जी विनती, टोडरमल लागेजी पाय. पूज्य चोमासु ईहां करो, होशो तुमे सवाय तें० ३ तेजी घोडाजी अति घणा, पायक संख्या नहि पार, महाजन आवे जी अति घणा, थानसिंह शाह उदार तें० ४ पहेलुं चोमासुंजी आगरे, बीजूं लाहोर मांहि, त्रीजुं चोमासुं फत्तेपुरे, अकबर करे उत्साहि तें०५ ५४ For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तें०६ डामर सरोवर छोडियां, छोड्यां बंदीनां बान, छोड्यां पंखीने मृगलां, अकबर दे बहुमान तपगच्छनायक राजीयो. श्री विजयसेन सूरींद, तास शिष्य भक्ति भणे, होजो अतिहि आनंद तें०७ सात व्यसननी सम्झाय (कडखानी देशी) वार तुं व्यसन सप्तकमिदं, जीव तुं जोय मनमां विचारी, द्युत मांस सुरा वारवनिता वळी, चोर मृगया परकीय नारी. (ए आंकणी) वार० १ रूपवंती बहु गुणयुता कुळवंती, सुतवती निज पति प्रेमे लीधी एक ज धुतना व्यसनथी निज वशा, परवशा तोय नळराये कीधी. वार० २ मांसना व्यसनथी वनमांहि हरिणली, बाणे वेधी पराक्रम वखाणे, श्रेणिक नरपति श्रवण पितृभक्ति युत, नरके गयो ते सहु लोक जाणे.वार० ३ द्वारका द्वारिका स्वर्गनगरी तणी, लासिता यादवापति मुरारि; विस्तृता बार जोयण वने पूरिता, चूरिता तेह द्वैपायनारि. ५५ वार०४ For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नयर वसंत वसंत बंधव समो, वसित धम्मिल जस द्रविण कोडी; सकळ निज गेह सुख छोडी वेश्यातणी, संगते पामियो दुःख कोडी. चोरिका व्यसनथी दुःख दुर्गतितणां, भाजना तेजना भवन मांहीं, चोर मंडुक हरी चित्रक प्रमुखने, दुःखनुं घर थयो जेह मृगया थकी, राजदंडादि दुःख नरक प्राहीं. वार० ६ राघवो वनमांहि म्हेली सीता; हरणने मारवा निज वशा हारवा, लंपटी रावणे लीधी सीता. वासुदेवार्ध सम ऋद्धि सेनायुतो, जास महीमांही महिमा विराजे; प्रबळ लंकाधिनाथो परस्त्री थकी, नारकी तत्र अद्यापि गाजे. एम अनेक थया एक व्यसन थकी, दुःखी थया ते कहेवाय केतुं; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेहने सात व्यसन होय मोकळां, वार० ५ For Private And Personal Use Only वार० ७ वार० ८ ते लहे दुःख वळी मेरु जेतुं . वार० ९ ५६ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एम जाणी करी व्यसनने वारिये, धारिये धर्म वर धरिय नेहा; संयमे धीर गुरु चरण आराधिये, नय कहे जिम लहिये सुखसमूहा. वार० १० आशातनानी सन्झाय (चोपाई) श्री जिनवरने करी प्रणाम, बोलुं चोराशी आशातना नाम; श्रीजिनमंदिर जातां सही, आशातना ए टाळी नहि. खेल थुक रामत कलगला, कीधुं लेखुं शीखी कळा, मैथुन मज्जन मर्दन करे, जिनभुवने कोई हडे धरे छाण कापड पापड ने वडी, नव सूकविये देहरे चडी; शिर कर अंग पखाळे पाय, विंझणे करी विंझावे वाय. नाख्या नख निमाळा पळी, चामर छत्र ढळावे वळी, माथे मुगट पगे खासडां, धराव्या देहरे वाछडा. दोर भरे पहेरे चाखडी, नाखी गड गुंबड खालडी. बेसे पग उपर पग करी, रांध्युं अन्न अंगीठी करी. रगतपित्त नाख्या ओघला, न करे निंदा-मुंडा भला; न करे वणिज न रमे जूगटे, न लिये वस्तु आलट पालटे. ६ खाय तंबोळ भखी सुखडी, करे नित्य ते लहुडी वडी; । पग चंपावे कलहो करे, दिये श्राप के होडज धरे. ५७ For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाखे पगरज सुए निशंक, भंडकळा ने मारी ढंक; न करे भोजन नहि झीलj, वेण समारे पारिख पणुं. ८ पढे मंत्र राखे हथियार, चोरी करे ने दे तुंकार; सचित्त न राखे न दिये गाळ, न करे बाळक स्त्रीनी आळ. ९ न करे वैदं न करे होड, जिन दीठे न करे करजोड; आठ पडो न कर्यो मुखकोष, विण उत्तरासंग लागे दोष. १० पहेरे धोती सान विण जेह, बेठा पग पसारी बेह; न करे ठठाने हांसुं वळी, दांत न खोतरे लेई सळी. ११ न करे दातण विकथा वात, न करे क्रोध वळी उत्पात; लीधां शाक नीलां मन रळी, स्त्री संघाते बेठा मळी. १२ कीधो दीवो देहरा थकी, वस्तु वावरी जे देवकी; नखमां नवि राखे दीवेल, दीवे नवि पूरीजे तेल. आळस मोडे दीले बहु, आशातना ए जाणो सहु; आशातनाना बहुलां पाप, जे करशे ते लेहशे संताप. १४ श्रीविजयसेन तणो अधिकार, जिनसेवाथी लहे भवपार; पंडित राजविजय इम भणे, श्रीजिनवरने जाउं भामणे. १५ ५८ For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ मे. मे. 3 मेतारज मुनिनी सन्झाय (जीव रे तुं शीळतणो कर संग - ए देशी) शम दम गुणना आगरूजी, पंच महाव्रत धार; मासखमणने पारणेजी, राजगृही नगरी मोझार; मेतारज मुनिवर, धन धन तुम अवतार. (ए आंकणी) सोनीने घेर आवीआजी, मेतारज ऋषिराय; जवला घडतो ऊठीयोजी, वंदे मुनिना पाय. आज फळ्यो घर आंगणेजी, विण काळे सहकार; ल्यो भिक्षा छ सूझतीजी, मोदकतणो ए आहार. क्रौंच जीव जवला चण्योजी, वहोरी वळ्या ऋषि ताम सोनी मन शंका थईजी, साधुतणां ए काम. रीस करी ऋषिने कहेजी, द्यो जवला मुज आज; वाधर शीशे वीटीयुंजी, तडके राख्या मुनिराज. फट फट फूटे हाडकांजी, तड तड त्रटे चाम; सोनीडे परिषह दीयोजी, मुनि राख्यो मन ठाम. एहवा पण म्होटा यतीजी, मन नवि आणे रोष; आतम निंदे आपणोजी, सोनीनो शो दोष. गजसुकुमार संतापीयाजी, बांधी माटीनी पाळ, खेर अंगारा शिर धर्याजी, मुगते गया ततकाळ. मे. ४ मे. ५ मे.६ मे. ७ मे / For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाघणे शरीर वलूरियुंजी, साधु सुकोशळ सार; केवळ लही मुगते गयाजी, इम अरणिक अणगार. मे. ९ पालक पापी पीलियाजी, खंधकसूरिना शिष्य, अंबड चेला सातसेंजी, नमो नमो ते निश दिश. मे. १० एहवा ऋषि संभारतांजी, मेतारज ऋषिराय; अंतगड हुआ केवळीजी, वंदे मुनिना पाय. मे. ११ भारी काष्ठनी स्त्रीये तिहांजी, लावी नांखी तिणि वार; धबके पंखी जागीयोजी, जवला काढ्या तिणे सार. मे. १२ देखी जवला विष्ठमांजी, मन लाज्यो सोनार; ओघो मुहपति साधुना जी, लेई थयो अणगार. मे. १३ आतम तार्यो आपणो जी, थिर करी मन वच काय; राजविजय रंगे भणे जी, साधु तणी ए सज्झाय. मे. १४ धन्ना-शालीभद्रनी सन्झाय सरस्वती स्वामीने विनवू रे, रंगना रसीया; सद्गुरु लागु पाय, प्रीतम मन वसीया. धन्ना बेठा नावण करे रे. रंग वांसो चोळे छे तेमनी नार. प्री० २ वांसो चोळंता गोरी झुरता रे, रंग गोरी तने शा आवडां दुःख. प्री०३ ६० For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रंग प्री० ४ रंग प्री० ५ रंग प्री०६ रंग० प्री० ७ रंग० मारे तो दुःख मारा महियरतणुं रे, ते साले हृदय मोझार. शालिभद्र सरीखो तारे बंधवो रे, धन्ना सरीखो भरथार. मारो वीरो ते स्वामी! त्यागी थयो रे, दिन प्रत्ये छंडे एक नार रे. तारो वीरो ते गोरी! मूरखो रे, एक एक छंडे छे नार. कहेवू ते स्वामी घणुं सोहिलं रे, ते केवी रीते सयुं जाय खेर भर्या ते धन्ना उठीया रे, आठेने मेली निराधार. में रे कडं ते स्वामी सहेजमां रे, ताणी वाळो शुं गांठ. सात जोडे राखो संसार, में रे कडं ते मने छंडजो रे, नारी ते मोहनी वेलडी रे, छे स्वारथीयो संसार. झांपे जई धन्नाए कहावीयु, शालिभद्रे मेली बत्रीश नार. प्री० ८ रंग० प्री० ९ रंग प्री० १० रंग प्री० ११ __ रंग प्री० १२ __ रंग प्री० १३ ६१ For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शालिभद्रना माताजी एम वलवले, रंग एकवार पार्छ वाळी जुओ. प्री० १४ धन्नानी माताजी एम वलवले, __ रंग एकवार पार्छ वाळी जुओ. प्री० १५ शीला उपर कर्यो संथारो रे, __ रंग चारे आहारना कर्या पच्चक्खाण. प्री० १६ अणसण करी एक मास- रे, रंग० पहोंच्या सर्वारथ सिद्ध मोझार. प्री० १७ हीरविजय गुरु हीरलो रे, ___ रंग० 'मानविजय' गुण गाय. प्री० १८ धन्ना अणगारनी सन्झाय चरण कमल नमी वीरनां रे, पूछे श्रेणिकराय रे; मुनि स्युं मन मान्यो, चउद सहस मुनि ताहरे, अधिको कोण कहेवाय रे. मुनि० १ जिन कहे अधिको माहरे, धन धन्नो अणगार रे; मुनि० रिद्धि छती जेणे परिहरी रे, तजी तरुणी परिवार रे. मुनि० २ सिंह तणी पेरे नीकळी रे, पाळे व्रत सिंह समान रे; मुनिक क्रोध लोभ माया तजी रे, दूर कर्यो अभिमान रे. मुनि० ३ मुज हाथे संयम ग्रही रे, पाळे निरतिचार रे; मुनि० ६२ For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छट्ठ छट्ठ आंबिल पारणे रे, लीये निरस आहार रे.मुनि० ४ वंछे न कोई मानवी रे, तेवो लीये आहार रे; मुनिक चालतां हाड खडखडे रे, जेम खाखराना पान रे. मुनि० ५ शकट भर्यु जेम कोचले रे, तिम धन्ना मुनिनु वान रे; मुनि० पंच समिति त्रण गुप्तिशुं रे, रंगे रमे निशदिन रे. मुनि०६ सर्वार्थसिद्ध सुख पामीयो रे, धन धन्नो अणगार रे; मुनि० नवमे अंगे जेहनो रे, वीरे कह्यो अधिकार रे. मुनि० ७ पंडित जिनविजय तणो रे, नमे तेहने वारंवार रे; मुनिक प्रातः उठीने तेहगें रे, नाम लीजे सुविचार रे. मुनि० ८ जंबूस्वामीनी सन्झाय सरस्वती स्वामीने विनवू, सद्गुरु लागुं छु पाय; गुण रे गाशुं जंबूस्वामीना, हरख धरी मनमांय. धन धन जंबूस्वामीने. चारित्र छे वच्छ दोहिलं, व्रत छे खांडानी धार; पाये अडवाणेजी चालवू, करवाजी उग्र विहार. मध्याहन पछी करवी गौचरी, दिनकर तपे रे निलाड; वेळु कवळ सम कोळिया, ते किम वाळ्या ए जाय. कोडी नव्वाणुं सोवन तणी, तमारे छे आठेजी नार; संसारतणां सुख जाण्या नहीं, भोगवो भोग उदार. ६३ For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७ रामे सीताने विजोगडे, बहोत कीधा रे संग्राम; छती रे नारी तुमे कांई तजो, कांई तजो धन ने धाम. ५ परणीने शुं परिहरो, हाथ मल्यानां संबंध; पछी ते करशो स्वामी ओरतो, जिम कीधो मेघ मुणींद. ६ जंबू कहे नारी सुणो, अम मन संयम भाव; साचो स्नेह करी लेखवो, तो संयम लो अम साथ. तेणे समे प्रभवोजी आवीयो, पांचसे चोर संघात; तेने पण जंबूस्वामीए बुझव्यो, बुझवी मात ने तात. सासु ससराने बुझव्या, बुझवी आठे नार; पांचसे सत्तावीशशुं, लीधोजी संयमभार. सुधर्मास्वामी पासे आवीया, विचरे छे मन उल्लास; कर्म खपावी केवळ पामीया, पहोंच्याजी मुक्ति मोझार. १० गजसुकुमालनी सन्झाय गजसुकुमाल महामुनिजी, स्मशाने काउस्सग्ग; सोमील ससरे देखीने जी, कीधो महाउपसर्ग रे, प्राणी धन धन एह अणगार, वंदो वारंवार रे. प्राणी० १ पाळ बांधी शिर उपरे जी, भर्या अंगारा ते त्यांय; भडभड ज्वाळा सळगती जी, ऋषि चडिया उत्साह रे. प्राणी० २ ६४ For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए ससरो साचो सगो जी, आपे मुक्तिनी पाघ; इण अवसर चुकुं नहि जी, टाळु कर्मविपाक रे. प्राणी० ३ मारुं कांई बळतुं नथी जी, बळे बीजानुं रे एह; पाडोशीनी आगमां जी, आपणो अळगो गेह रे. प्राणी० ४ जन्मान्तरमा जे कर्या जी, आ जीवे अपराध; भोगवतां भली भात शुं जी, शुक्लध्यान आस्वाद रे. प्राणी० ५ द्रव्यानल भावानले जी, काया कर्म दहंत; अंतगड हुवा केवळी जी, धर्मरत्न प्रणमंत रे. प्राणी०६ रहनेमिनी सन्झाय नाजी-नाजी-नाजी छेडो नाजी, देवरीया मुनिवर छेडो नाजी; संयम व्रत भांगे छेडो नाजी, यदुकुल दुषण लागे. छेडो० १ अग्निकुंडमां निज तनु होमे, वम्युं विष नवि लेवे; जे अगंधन कुलना भोगी, ते केम फरी विष सेवे. छेडो० २ लोक हसे ने गुण सवि निकसे, विकसे दुर्गति बारी; एम जाणीने कहो कोण सेवे, पाप पंक परनारी. छेडो० ३ वळी विशेषे संयतिनी संगे, बोधिबीज बळी जावे; साहिब बांधव नाम धरावो, तो केम लाज न आवे. छेडो० ४ मूरख कोई दही गुण चंदन, छार कोयला काजे; ६५ For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय हळाहळ पान थकी पण, कोण चिर जीवित राजे. छेडो० ५ राजुल बाळा वचन रसाळा, जेम अंकुशे सूंढाळा; एम थिर करी रहनेमि प्रगट्या, ज्ञानविमल गुणमाळा. छेडो० ६ विजयशेठ-विजयाशेठाणीनी सन्झाय शुक्लपक्ष विजयाव्रत लीनो, शेठ कृष्ण पक्षरो जानी, धन धन श्रावक पुण्य प्रभावक, विजयशेठ शेठाणी. सजी शणगार चढी पियु मंदिर, हैये हर्ष ओर हुलसाणी, त्रण दिवस मुज व्रत तणा रे, शेठ बोले मधुर वाणी. धन० २ वचन सुणीने नैण ढलियां, वदन कमल थई विलकाणी, प्रेम धरी पद्मीणीने पूछे, चिंता मनमां केम आणी. धन०३ शुक्लपक्ष व्रत गुरुमुख लीनो, थें परणोजी दुजी नारी, ६६ For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन०४ धन० ५ दुजी नार मारे बेन बराबर, धन धीरज तारी जाणी. हैये हार शणगार सजी सब, श्याम घटा हिये हुलसानी, वर्षाकाल अति घणो गरजे, चिंहुधारा हो वरसे पाणी. एक शैयाए दोनुं प्रबल, बेउए मन राख्युं ताणी, षट्रस भोजन द्वादश संवत्सर, बीजी नारीओ भरशे पाणी. मन वचन काया अखंडित निर्मल, शील पाळ्युं उत्तम प्राणी, विमल केवली करी प्रशंसा, ए दोर्नु उत्तम जाणी. प्रगट हुवा संयम व्रत लीनो मोह कर्म कीया धूळधाणी, रतनचंद करजोडी विनवे, केवल लही गया निर्वाणी. धन०६ धन० ७ धन०८ ६७ For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्णराजानी सन्झाय नगरी द्वारीकामां नेमि जिनेसर, विचरंता प्रभु आवे; कृष्ण नरेशर वधाई सुणीने, जित निशान बजावे, हो प्रभुजी! नहि जाउं नरकनी गेहे. नहि जाउं नहि जाउं हो प्रभुजी, नहि जाउं नरकनी गेहे. १ अढार सहस साधुजीने, विधिशुं वांद्या अधिके हरखे; पछी नेमि जिणेसर केरां, उभा मुखडां निरखे. हो प्रभुजी० २ नेमि कहे तुमे चार निवारी, त्रण तणां दुःख रहीया; कृष्ण कहे हुं फरी फरी वांदु, हर्ष धरी मन हइयां. हो प्रभुजी० ३ नेमि कहे एह टाळ्या न टळे, सो वाते एक वात; कृष्ण कहे मारा बाळ ब्रह्मचारी, नेमि जिणेसर भ्रात. ___ हो प्रभुजी०४ महोटा राजानी चाकरी करतां, रांक सेवक बहु रळसे; सुरतरुसरीखा अफळ जशे त्यारे, विष वेलडी केम फळशे. हो प्रभुजी० ५ पेटे आव्यो तेह भोरींग वेठे, पुत्र कपुत्र ज थाय; भलो मँडो पण जादवकुळनो, तुम बांधव कहेवाय. हो प्रभुजी०६ ६८ For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छप्पन क्रोड जादवनो रे साहिबो, कृष्ण जो नरके जाशे; नेमि जिनेसर केरो रे बांधव, जगमां अपजश थाशे; हो प्रभुजी० ७ शुद्ध समकितनी परीक्षा करीने, बोल्या केवलज्ञानी; नेमि जिनेसर दियो रे दिलासो, खरो रुपैयो जाणी. हो प्रभुजी० ८ नेमि कहे तुमे चिंता न करशो, तुम पदवी अम सरखी; आवती चोवीशीमां होशो तीर्थंकर, हरि पोते मन हरखी. हो प्रभुजी० ९ जादवकुळ अजवाळ्युं रे नेमिजी, समुद्रविजय कुळ दीवो; इंद्र कहे रे शिवादेवीना नंदन, क्रोड दीवाळी जीवो. हो प्रभुजी० १० नंदिषेणमुनिनी सम्झाय साधुजी न जईए रे परघर एकलां रे, नारीनो कवण विश्वास; नंदिषेण गणिका वचने रह्यां रे, बार वरस घरवास. सा० १ सुकुमालिनी वर कामिनी पांचशे रे, समरथ श्रेणिक तात; प्रतिबुझ्यो वचने जिनराजनां रे, व्रतनी काढी रे वात. सा० २ भोग करम पोते विण भोगवे रे, न होवे छुटक बार; वात करे छे शासनदेवता रे, लीधो संजम भार. सा० ३ ६९ For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंचन कोमल काया शोषवी रे, विरस निरस आहार; संवेगी मुनिवर शिर सेहरो रे, बहु बुद्धि सकल भंडार.सा० ४ वेश्या घर पहोंच्यो अणजाणतो रे, धर्मलाभ दीये जाम; धर्मलाभनुं काम इहां नहि रे, अर्थ लाभनुं काम. सा० ५ बोल खमी न शक्या गरवे चड्या रे, खेंच्युं तरणुं रे नेव; दीर्छ घर सारु अरथे भर्यु रे, जाणे प्रत्यक्ष देव. सा०६ हाव भाव विभ्रम वसे आदरी रे, वेश्या शें घरवासः । पण दिन प्रति दश दश बुझवी रे, मूके प्रभुजीनी पास. सा० ७ एक दिवस नव तो आवी मल्या रे, दसमो न बुझे कोय; आसंगायत हास्य मिषे कहे रे, पोते दशमा रे होय. सा० ८ नंदिषेण फरी संयम लीये रे, विषय थकी मन वाळ; चूकीने पण जे पाछा वळे रे, ते विरला इण काळ. सा० ९ व्रत अकलंक जो राखवा खप करो रे, तो इण जुठे संसार; कवि जिनहर्ष कहे तुं एकलो रे, परघर गमन निवार.सा० १० वज्रस्वामीनी सन्झाय सांभळजो तुमे अद्भुत वातो, वयर कुंवर मुनिवरनी रे; षट् महिनाना गुरु झोळीमां, आवे केलि करंता रे, त्रण वरसना साधवी मुखथी, अंग अगीयार भणंता रे. सां० १ राजसभामां नहि क्षोभाणा, मात सुखलडी देखी रे; ७० For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुयें दीक्षां ओघो मुहपत्ति, लीधां सर्व उवेखी रे. सां० २ गुरु संगाथे विहार करे मुनि, पाळो शुद्ध आचार रे; बाळपणाथी महा उपयोगी, संवेगी शिरदार रे. सां०३ कोळा पाक ने घेबर भिक्षा, दोय ठामें नवि लीधी रे; गगम गामिनी वैक्रिय लब्धि, देवे जेहने दीधी रे. सां० ४ दशपूरव भणिया जे मुनिवर, भद्रगुप्त गुरु पासे रे; क्षीरास्रव प्रमुख जे लब्धि, परगट जास प्रकाशे रे. सां० ५ कोटि सेंकडो धनने संचे, कन्या रुक्मिणि नामे रे; शेठ धनावह दिये पण न लीये, वधते शुभ परिणामे रे. सां० ६ देई उपदेश ने रुक्मिणि नारी, तारी दीक्षा आपी रे; युगप्रधान जे विचरे जगमां, सूरज तेज प्रतापी रे. सां० ७ समकित शियळ तुंब धरी करमां, मोह सागर को छोटो रे; ते केम बूडे नारी नदीमां, ए तो मुनिवर मोटो रे. सां० ८ जेणे दुर्भिक्षे संघ लईने, मूक्यो नगर सुकाळ रे; शासन शोभा उन्नति कारण, पुष्प पद्म विशाळ रे. सां० ९ बौद्धरायने पण प्रतिबोध्यो, कीधो शासन रागी रे; शासन शोभा जय पताका, अंबर जईने लागी रे. सां० १० विसर्यो शुंठ गांठियो काने, आवश्यक वेळा जाण्यो रे, विसरे नहीं पण ए विसरीयो, आयु अल्प पिछाण्यो रे. सां०११ ७१ For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाख सोनये हांडी चडे तिणे, बीजे दिन सुकाळ रे; एम संभळावी वयरसेनने, जाणी अणसण काळ रे. सां० १२ रथावर्त गिरि जई अणसण कीर्छ, सोहमहरि तिहां आवे रे; प्रदक्षिणा पर्वतने देईने, मुनिवर वंदे भावे रे. सां० १३ धन्य सिंहगिरिसूरि उत्तम, जेहना ए पटधारी रे; पद्मविजय कहे गुरुपद पंकज, नित्य नमिये नरनारी रे. सां० १४ खंधकमुनिनी सन्झाय ___ ढाळ पहेली नमो नमो खंधक महामुनि, खंधक क्षणा भंडार रे; उग्र विहारे मुनि विचरंता, चारित्र खड्गनी धार रे. नमो० १ समिति गुप्तिने धारतो, जितशत्रु राजानो नंद रे; धारणी उदरे जनमियो, दर्शन परमानंद रे. नमो० २ धर्मघोष मुनि देशना, पामीयो तेणे प्रतिबोध रे; अनुमति लेई मायतातनी, कर्म शुं युद्ध थई योद्ध रे. नमो० ३ छठ अट्ठम आदे अति घणा, दुष्कर तप तनु शोष रे; रात दिवस परिसह सहे, तो पण मन नहि रोष रे. नमो० ४ दव दीधा खीजडा देहमां, चालतां खडखडे हाड रे; तो पण तप तपे आकरा, जाणतां अथिर संसार रे. नमो० ५ ७२ For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एक समे भगिनी पूरी प्रते, आवीया साधुजी सोय रे; गोखे बेठी चिंते बेनडी, ए मुज बंधव होय रे. बेनने बांधव सांभर्यो, उलट्यो विरह अपार रे; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमो० ८ छाती लागी छे फाटवा, नयणे वहे आंसुडानी धार रे. नमो० ७ राय चिंते मनमां इस्युं, ए कोई नारीनो जार रे; सेवकने कहे साधुनी, लावोजी खाल उतार रे. ढाळ बीज रायसेवक तव कहे साधुने, खालडी जीवथी हणशुं रे, अम ठाकुरनी एह छे आणा, ए अमे आज करीशुं रे; अहो अहो साधुजी समताना दरिया, नमो० ६ मुनि ध्यान थकी नवि चलिया रे. मुनिवर मनमांहि आणंद्या, परिषह आव्यो जाणी रे; कर्म खपाववानो अवसर एहवो, फरी नहीं आवे प्राणी रे. अहो० २ एतो वळी सखाई मलीयो, भाई थकी भलेरो रे; प्राणी तुं कायरता परिहरजे, ७३ For Private And Personal Use Only जिम न थाये भव फेरो रे. अहो० ३ राय सेवकने तव कहे मुनिवर, कठण फरस मुज काया रे; बाधा रखे तुम हाथे थाये, कहो तिम रही भाया रे. अहो० ४ १ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चारे शरणां चतुर करीने, भव चरम आवर्ते रे; शुक्लध्यानशुं तान लगाव्युं, कायाने वोसिरावे रे. अहो० ५ चडचड चामडी तेह उतारे, मुनि समतारस झीले रे; क्षपकश्रेणि आरोहण करीने, कठिण करमने पीले रे. अहो०६ चोथु ध्यान धरंता अंते, केवळ लई मुनि सिध्या रे; अजर अमरपद मुनिवर पाम्या, कारज सघळां सिध्या रे; अहो० ७ एहवे ते मुहपत्ति लोहीए खरडी, पंखीडे आमिष जाणी रे; लेईने नांखी ते राजदुवारे, सेवक लीधी ताणी रे. अहो० ८ सेवक मुखथी वात ज जाणी, व्हेने मुहपत्ति दीठी रे; निश्चय भाई हणायो जाणी, हईडे ऊठी अंगीठी रे. अहो० ९ विरह विलाप करे राय राणी, साधुनी समता वखाणी रे; अथिर संसार संवेगे जाणी, संजम लीये राय राणी रे. अहो० १० आलोई पातकने सवि छंडी, कठिन कर्मने निंदी रे; दुष्कर तप करी काया गाळी, शिव सुख लहे आणंदी रे. ____ अहो० ११ भवियण एहवा मुनिवर वंदी, मानवभव फळ लीजे रे; कर जोडी मुनि मोहन विनवे, सेवक सुखिया कीजे रे. अहो० १२ ७४ For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुरगडुमुनिनी सज्झाय उपशम आणो उपशम आणो, उपशम तप मांही राणो रे; विण उपशम जिन धर्म न शोभे, जिम जग नरवर काणो रे.१ तुरमिणी नयरी कुंभ नरेसर, राज करे तिंहा सुरो रे; तस नंदन ललितांग महामति, गुणमणी मंडित पूरो रे. गुरु तणी वरवाणी श्रवणे, सुणी संवेग न मायो रे; राजऋद्धि रमणी सह छंडी, चारित्र नीरे न्हायो रे. देश विदेश गुरु संघाते, विहार करे मुनि मोटो रे; सहे परिषह दोष निवारे, ऋषि उपशम रस लोटो रे. अन्य दिवस तस क्षुधा वेदनीय, करमे न सही जाय रे; इंद्र चंद्र विद्याधर मुनिवर, कर्म करे तेम थाय रे. कूर घडो दिन प्रत्ये लावे, एषणा दोष निवारी रे; कूरगडु ते माटे कहेवाया, संयम शोभा वधारी रे. दिवस पजुसण गुरु आदेशे, वोहरी कूर सुसाधु रे; चार श्रमण चउमासी तपीया, देखाडे निराबाध रे. ते चारे तस पात्रमां थुंके, रोषे, लवे तु पापी रे; आज पजुसण कां तुं विमासे, दुरगतिशुं मति थापी रे. कूरगडु समता रसना भरीया, हैये विमासे रुडुं रे; ७५ For Private And Personal Use Only २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९ १० खो आहार जाणी ते मुनिवर, घी नांख्युं नवि कूडुं रे. आहार करी निज आतम निंदे, शुक्लध्यान लय लागी रे; घनघाती चउ कर्म निवारी, केवलज्ञानी महाभागी रे. शासनदेवी क्षपकने पूछे, कूरगडु किहां ध्याए रे; रोष भर्यो जल्पे ते मुनिवर, ओ जा खुणे खाये रे. देव दुंदुभी गयणे वाजी, क्षपक खमावे जाणी रे; केवल पामी मुक्ति सिधावे, वात सिद्धांते लखाणी रे. श्री विजयदानसूरीश्वर राज्ये, विमलहर्ष उवज्झाया रे; आणंदविजय पंडित वरशिष्ये, धनविजय गुण गाया रे . अनाथीमुनिनी सज्झाय १३ बंभसारे वनमां भमतां, ऋषि दीठो रयवाडी रमतां; रुप देखीने मन रीज्यो, भारे कर्मी पण भींज्यो. कर जोडीने एम पूछे, संबंध तमारो शुं छे; नरनाथ हुं छं अनाथ, नथी माहरे कोई नाथ. हरखे जोडी कहे हाथ, हुं थाउं तमारो नाथ; नरनाथ तुं छे अनाथ, शुं मुजने करे छे सनाथ. मगधाधिप हुं हुं मोटो, शुं बोले छे भूप खोटो; तुं नाथपणुं नवि जाणे, फोगट शुं आप वखाणे. ७६ For Private And Personal Use Only ११ १२ १ २ ४ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नयरी कौशम्बीनो वासी, राजपुत्र हुँ छु विलासी; एक दिन महारोगे घेर्यो, केमे ते पाछो न फर्यो. मातापिता छे मुज बहु महिला, वहेवरावे आंसुना वहेला; वडा वडा वैद्यो तेडावे, पण वेदना कोई न हठावे. एह जाणी तव शूल, में धार्यो धर्म अमूल; रोग जाय जो आजनी रात, तो संयम लेउं प्रभात. एम चिंतवता वेदना नाठी, आखर बांधी में काठी; बीजे दिन संयमभार, लीधो न लगाडी वार. अनाथ सनाथनो वहेरो, तुमने दाख्यो करी चहेरो; जिनधर्म विना नरनाथ, नथी कोई मुगतिनो साथ. श्रेणिक तिहां समकित पाम्यो, अनाथीने शीर नाम्यो; मुगते गया मुनिराय, उदयरत्न वंदे उवज्झाय. द्रौपदी (कडवा तुंबडा)नी सन्झाय साधुजीने तुंबडं वहोरावीयुंजी, करमे हलाहल थायरे; विपरीत आहार वहोरावीयोजी, वधार्यो अनंत संसार रे. आहार लेई मुनि पाछा वळ्यांजी, आव्या आव्या गुरुजीनी पास रे; भात पाणी आलोवीयाजी, १ ७७ For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए आहार नहि तुज योग रे. निरवद्य ठामे जईने परठवोजी, तुमे छो दयाना जाण रे; बीजो आहार आणी करीजी, तुमे करो निरधार रे. गुरुवचन श्रवण सुणीजी, पहोंच्या पहोंच्या वन मोझार रे; एक ज बिंदु तिहां परठव्युंजी, दीठा दीठा जीवना संहार रे. जीवदया मनमां वसीजी, आवी आवी करुणा सार रे; मासक्षमणने पारणेजी, पडिवज्यां शरणां चार रे. संथारे बेसी मुनि आहार कर्योजी, उपजी उपजी दाहनी ज्वाळ रे; काळ करी सर्वार्थ सिद्धेजी, पहोंच्या पहोंच्या स्वर्ग मोझार रे. दुःखिणी दुर्भागिणी ब्राह्मणीजी, तुंबडा तणे अनुसार रे, काळ अनंतो ते भमीजी, रुली रुली तिर्यंच मोझार रे. ६ ७८ For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साते नरके ते भमीजी, पामी पामी मनुष्यनी देह रे; चारित्र लई तपस्या करीजी, बांध्युं बांध्युं निया| तेह रे. द्रुपद राजा घेर उपनीजी, पामी पामी यौवन वेष रे; पांचे पांडव ते वरीजी, हुई हुई द्रौपदी एष रे. मनुष्य जन्म पामी करीजी, लेशे लेशे चारित्र निरधार रे; केवलज्ञान पामी करीजी, जस कहे जाशे जाशे मुक्ति मोझार रे. देवानंदानी सम्झाय जिनवर रूप देखी मन हरखी, स्तनसें दूध झराया; तब गौतमकुं भया अचंबा, प्रश्न करणकुं आया; गौतम ए तो मेरी अम्मा, (ए आंकणी) तस कुखे तुमे काहु न वसिया, कवण किया ईण कम्मा, गौ. २ ७९ For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिशलादे देराणी हुंती, देवानंदा जेठाणी, विषय लोभ करी कांई न जाण्यो, कपट वात मन आणी. गौ. ३ देराणीकी रत्न डाबली, बहुलां रत्न चोरायां; झगडो करतां न्याय हुओ तव, तब कछु नाणां पायां. गौ. ४ ऐसा श्राप दिया देराणी, तुम संतान अम होज्यो; कर्म आगळ कोईनुं नवि चाले, इंद्र चक्रवर्ती जोज्यो. गौ. ५ भरतराय जब ऋषभने पूछे, एहमें कोई जिणंदा; मरिचि पुत्र त्रिदंडी तेरो, चोवीशमो जिणंदा. गौ. ६ कुळनो गर्व कियो में गौतम, भरतराय जब वंद्या; मन वचन कायाए करीने, हरख्यो अति आणंदा. गौ. ७ कर्म संयोगे भिक्षु कुळ पाया, जनम न होवे कबहि. इंद्र अवधिये जोतां अपहर्यो, देव भुजंगम तबहि. गौ. ८ ब्यांशी दिन तिहां कणे वसियो, हरिणगमेषी जब आया; सिद्धारथ त्रिशलादे राणी, तस कुखे छटकाया. गौ. ९ सिद्धारथ त्रिशलादे दे राणी, अच्युत देवलोके जाशे; बीजे अंगे आचारांगे, ते सूत्रे कहेवाशे गौ. १० ऋषभदत्तने देवानंदा, लेशे संयम भारा; तब गौतम ए मुगते जाशे, भगवती सूत्र विचारा. गौ. ११ ८० For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तपागच्छ श्री हीरविजय सूरी, दियो मनोरथ वाणी; सकळचंद्र प्रभु गौतम पूछे, उलट मनमां आणी. गौ. १२ मनोरमा सती सन्झाय मोहनगारी मनोरमा, शेठ सुदर्शन नारी रे; शील प्रभावे शासन सुरी, थई जस सानिध्य कारी रे.मोहन.१ दधिवाहन नृपनी प्रिया, अभया दीए कलंक रे; कोप्यो चंपापति कहे, शूली रोपण वंक रे. मोहन.२ ते निसुणीने मनोरमा, करे काउस्सग्ग धरी ध्यान रे; दंपती शील जो निर्मलुं, तो वधो शासन मान रे. मोहन.३ शूली सिंहासन थई, शासन देवी हजूर रे; संयम ग्रही थयां केवली, दंपती दोय सनूर रे. मोहन.४ ज्ञान विमल गुण शीलथी, शासन शोभ चढावे रे; सुर नर तस किंकरा, शिव सुंदरी ते पावे रे. मोहन.५ चंदन बाळानी सन्झाय वीर प्रभुजी पधारो नाथ, वीर प्रभुजी पधारो, विनंती मुज अवधारो नाथ, वीर प्रभुजी पधारो, चंदन बाळा सती सुकुमाला, बोले वचन रसाला; हाथ पगमा जड दीया ताळा, सांभळो दीन दयाळा नाथ. वीर...१ ८१ For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कठण छे मुज कर्मनी कहाणी, सुणो प्रभुजी मुजवाणी; राजकुंवरी हुं चौटे व्हेंचाणी, दुःख तणी नथी खामी नाथ. वीर...२ तात ज मारो बंधन पडीयो, माता मरण ज पामी; मस्तकनी वेणी कतराणी, भोगवी में दुःख खाणी नाथ. वीर...३ मोंघी हती हुं राज कुटुंबमां, आजे हुं त्रण उपवासी; सुपडाने खूणे अडदना बाकुला, शुं कहुं दुःखनी राशी नाथ. वीर ४ श्रावण भादरवा मासनी पेरे, वरसे आंसुडानी धारा; गद्गद् कंठे चंदन बाळा, बोले वचन करूणा नाथ. वीर...५ दुःख ए सघळु भुलुं पूर्वमुं, आपना दर्शन थातां; दुःख ए सघळु हैये आवे, प्रभु तुम पाछा जाता नाथ. वीर...६ चंदन बाळानी अरज सुणीने, नीर नयणमां निहाळे; बाकुळा लई वीर प्रभुजी पधारे, दया करी दीन दयाळे नाथ. वीर...७ सोवन केरी त्यां थई वृष्टि, साडी बार कोडी सारी; ८२ For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच दिव्य तत्काले ज प्रगट्या, बंधन सर्व विदारी नाथ. वीर...८ संयम लई काज सुधार्या, चंदन बाळा कुमारी; वीर प्रभुनी शिष्या पहेली, पंच महाव्रत धारी नाथ. वीर...९ कर्म खपावी मुक्ते सीधाव्या, धन्य सती शिरदार; विनय विजय कहे भाव धरीने, वंदु हुं वारंवार नाथ. वीर.१० स्वार्थनी सज्झाय जगत हे स्वार्थका साथी, समज ले कौन है अपना; ये काचा काचका कुंभा, नाहक तुं देखके फूलता, पलकमें फुट जावेगा, पता ज्युं डालसे गिरता. जगत० १ मनुष्यकी एसी जींदगानी, अब तुं चेत अभिमानी; जीवनका क्या भरोसा है, करी ले धर्म की करणी. जगत० २ खजाना माल ने मंदिर, तुं तुं क्युं कहेता मेरा मेरा; इहां सब छोड जाना है, न आवे साथ अब तेरा. जगत० ३ कुटुंब परिवार सुत दारा, सुपन सम देख जग सारा; । नीकल जब हंस जावेगा, उसी दिन है सभी न्यारा. जगत० ४ तरे संसार सागर को, जपे जो नाम जिनवरको; कहे खान्ति वही प्राणी, तोडदे कर्म जंजीर को. जगत० ५ ८3 For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मानी सन्झाय क्या तन मांजतां रे, एक दिन मिट्टीमे मील जाना; मीटीमें मील जाना बंदे, खाखमें खप जाना. क्या० १ मीट्टीया चून चून महेल बंधाया, बंदा कहे घर मेरा; एक दिन बंदे उठ चलेंगे, यह घर तेरा न मेरा. क्या० २ मीट्टीया ओढण मीट्टीया बीछावण, मीट्टीका सीराना; इस मीट्टीका एक भूत बनाया, अमर जाल लुभाना.क्या० ३ मीटाया कहे कुंभारने रे, तुं क्यां खोदे मोय; एक दिन एसा आवेगा प्यारे, में खुदुंगी तोय. क्या०४ लकडी कहे सुथारने रे, तुं क्यां छोले मोय; एक दिन ऐसा आवेगा प्यारे, मे भुंलुंगी तोय. क्या० ५ दान-शीयल-तप-भावना रे, शिवपुर मारग चार; आनंदघन कहे चेतलो प्यारे, आखर जाना गमार. क्या० ६ शिखामणनी सन्झाय गरभावासमां चिंतवे रे, हवे न करशुं पाप; जब आयो तब विसर्यो रे, मांड्यो मांड्यो घणो रे संताप के, सुण रे चंचळ जीवडा रे, तुं तो परभव कैसो लईश के. १ जो नवकार गणावीये तो, नयणे नींद भराय; नाटक चेटक निरखता तो, ८४ For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाये जाये रयणी विहाय के. सुण० २ जो सामायिक करावीये तो, लागे थाक अपार; वातो साथे जो मीले तो, करे करे पहोर दो चार के. सुण० ३ उभा काउस्सग्ग करावीए तो, कहे दुःखे मोरा पाय; माथे पोटकुं मूकीए तो, दोड्यो दोड्यो मारगे जाय के. सुण० ४ जो उपवास करावीए तो, लागे भूख अपार; लेणा कारण रोकीए तो, लांघे लांघे दो दिन चार के. सुण० ५ धर्मने काजे मागीए तो, एक बदाम न देय; राज्य के वैद्यक रोकी ले तो, खूणे बेसी गणी गणी देय के. सुण० ६ लोभने वश थई प्राणीयो रे, मेळवे घणेरी रे आथ; दान सुपात्रे देवतां तो, थर थर ध्रुजे छे हाथ के. सुण० ७ त्रण तत्त्व आराधीये रे, जपीए श्री नवकार; खिमाविजय गुण आणीए तो, पहोंचे मुक्ति मोझार के.सुण० ८ उत्तराध्ययना दशमा अध्ययननी सन्झाय समवसरण सिंहासनेजी, वीरजी करे रे वखाण; दशमे उत्तराध्ययनमेंजी, दीये उपदेश सुजाण, ८५ For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयमें रे गोयम म कर प्रमाद... वीर जिनेश्वर शीखवेजी, परिहर मद विखवाद. जिम तरु पंडुर पांदडुडुंजी, पडतां न लागेजी वार; तिम ए चंचळ जीवडोजी, स्थिर न रहे संसार. समयमें० २ डाभ अणी जाल उसनोजीरे, क्षण एक रहे जलबिंदु; तिम ए चंचल जीवडो जी, न रहे इन्द्र नरीन्द्र. समयमें० ३ सूक्ष्म निगोद भमी करीजी रे, राशी चढ्यो व्यवहार; लाख चोराशी जीवायोनिमांजी, लाध्यो नरभव सार. समयमें ४ शरीर जराए जर्जयुंजी, शिरपर पळिया रे केश; इन्द्रिय बळ हीणा पड्याजी, पग पग पेखे कलेश.समयमें० ५ भवसायर तरवा भणीजी, चारित्र प्रवहण पूर; तप जप संयम आकराजी, मोक्ष नगर छे दूर. समयमें ६ इमनिसुणी प्रभुदेशनाजी गणधर थया सावधान; पाप पडल पाछा पड्याजी, पाम्या केवलज्ञान. समयमें० ७ गौतमना गुण गावताजी, घर संपत्तिनी क्रोड; वाचक श्रीकरण इम भणेजी, वंदु बे करजोड. समयमें० ८ मनुष्यभवनी सन्झाय मनुष्य भवनुं टाणुं रे, काले वही जशे रे, अरिहंतना गुण गावो नर नार; ८६ For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्न चिंतामणि आव्यो हाथमां रे, भगवंतना गुण गावो नर नार. बळद थईने रे चीलाए चालशो रे, चढशो वळी चोराशीनी चाल; चोकथु बांधीने घाणीए फेरवशे रे, उपर बेसी मूरख देशे मार. कूतरा थईने घर घर भटकशो रे, घरमां पेसवा नहीं दे कोय; कानमां कीडा रे पडशे अति घणां रे, उपर पडशे लाकडीओना मार. गधेडा थईने रे गलीओमां भटकशो रे, उपाडशो अणतोल भार; उकरडानी ओथे रे जईने भूकशो रे, सांज पडे धणी न लीए संभाळ. भुंड थईने रे पादर भटकशो रे, करशो वळी अशुचिनो आहार; नजरे दीठा रे कोईने नवि गमो रे, उपर पडशे पथ्थरना प्रहार ऊंट थईने रे बोजो उपाडशो रे, ८७ For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरशो वळी कांटा ने कंथार; हाथने हडसेले घर भेगा थाशो रे, उपर पडशे पाटुना प्रहार. घोडा थईने रे गाडीओ खेंचसो रे, उपर पडशे चाबूकना प्रहार; चोकथु बांधीने उपर बेसशे रे, रायजादा थई सवार. झाड थईने वनमां ध्रुजशो रे, सहेशो वळी तडको ने टाढ; डाळे ने पांदडे रे पंखी माळा घालशे रे, उपर पडशे कुहाडाना घा. उत्तम नरभव फरी फरी आतमा रे, मेळववो छे मुश्केल; हीरविजयनी एणी पेरे शिखडी रे, तुमे सांभळजो अमृत वेल. कर्म विडंबनानी सन्झाय सुख दुःख सरज्या पामीये रे, आपद संपद होय; लीला देखी परतणी रे, रोष म धरजो कोय रे; ८८ For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राणी! मन न आणो विखवाद, ए तो कर्म तणो प्रसाद रे.प्रा० १ फळने आहारे जीवीया रे, बार वरस वन राम; सीता रावण लई गयो रे, कर्म तणाए काम रे. प्रा०२ नीर पाखे वन एकलो रे, मरण पाम्यो मुकुंद; नीच तणे घर जळ वह्यो रे, शिर धरी हरिश्चंद्र रे. प्रा० ३ नळे दमयंती परीहरी रे, रात्रि समय वनमांय; नाम-ठाम-कुळ गोपवी रे, नळे निरवाह्यो काळ रे. प्रा०४ रुप अधिक जग जाणीए रे, चक्री सनत्कुमार; वरस सातसें भोगवी रे, वेदना सात प्रकार रे. प्रा० ५ रूपे वान सूर सारीखा रे, पांडव पांच विचार; ते वनवासे रडवड्या रे, पाम्या दुःख अपार रे. प्रा०६ सुरनर जस सेवा करे रे, त्रिभुवन पति विख्यात; ते पण कर्मे विटंबीया रे, तो माणस केई मात्र रे. प्रा० ७ दोष न दीजे केहने रे, कर्म विडंबणहार; दान मुनि कहे जीवने रे, धर्म सदा सुखकार रे. प्रा० ८ पंचगतिनी सन्झाय आरंभ करतो रे जीव छोडी शके नहि, धन मेलण तृष्णा अपारोजी; घात करे पंचेन्द्रिय जीवनो, वळी करे मद्य मांसनो आहारोजी, For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए चार प्रकारे रे जीव जाये नारकी. कूडकपट ने गूढ माया करे, वळी बोले मृषावादजी; कुडा तोलां ने कुडां राखे मापलां, खोटा लेख लखायजी, ए चार प्रकारे रे जीव जाय तिर्यंचमां. भद्रिक परिणामे रे सरल स्वभावथी, वळी विनयतणां गुण गायजी; दयाभाव राखे जे दिलमां, मत्सर नही घटमांयजी, ए चार प्रकारे रे जीव जाय मनुष्यमां. सरागपणाथी रे पाळे साधुपगुं, वली श्रावकनां व्रत बारजी; अज्ञानकष्ट ने अकाम निर्जरा, तिणशुंसुर अवतारोजी, ए चार प्रकारे रे जीव थाय देवता. ज्ञानथी जाणे रे जीव-अजीवने, श्रद्धाथी समकित थाय जी; चारित्रथी रोके नवां कर्म आवतां, तपथी पूर्वलां कर्म खपावेजी. ए चार प्रकारे रे जीव जाय मोक्षमां. आर्त-रौद्रध्यान बेउ परिहरो, धर्म-शुक्ल धरो ध्यानजी; परपरिणति तजी निजपरिणति भजो, तो जीवनुं शिवनिशानजी. मति प्रमाणे रे गति थाय जीवनी. ९० For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनयनी सन्झाय पवयण देवी चित्त धरी जी, विनय वखाणीश सार; जंबूने पूछे कह्योजी, श्री सोहम गणधार; भविक जन, विनय वहो सुखकार; (ए आंकणी.) पहेले अध्ययने कह्योजी, उत्तराध्यन मझार; सघळा गुणमां मूळगोजी, जे जिनशासन सार. भ०वि० २ नाण विनयथी पामीये जी, नाणे दरिसण शुद्ध; चारित्र दरिसणथी हुवे जी, चारित्रथी पुण सिद्ध भ०वि० ३ गुरुनी आण सदा धरे जी, जाणे गुरुनो भाव, विनयवंत गुरु रागीया जी, ते मुनि सरळस्वभाव भ०वि० ४ कण- कुंडं परिहरी जी, विष्ठानो मन राग; गुरुद्रोही ते जाणवा जी, सूअर उपम लाग. भ०वि० ५ कोह्या काननी कूतरी जी, ठाम न पामे रे जेम; शिळ हीण अकह्यागरा जी, आदर न लहे तेम भ०वि०६ चंद्र तणी परे उजळी जी, कीरति तेह लहंत; विषय कषाय जीती करीजी, जे नर विनय वहंत भ०वि० ७ विजय देवगुरु पाटवी जी, श्री विजयसिंह सूरींद; शिष्य उदय वाचक भणे जी, विनय सयळ सुखकंद भ०वि०८ ९१ For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनयनी सन्झाय विनय करो चेला गुरु तणो, जिम लहो सुख अपारो रे; विनय थकी विद्या भणो, तप जप सूत्र आचरो रे. विनय० १ गुरु वचन नवि लोपीये, नवि करीये वचन विघातो रे; ऊंचे आसन नवि बेसीये, वच्चे वच्चे नवि करीए वातो रे. विनय० २ गुरु आगळ नवि चालीए, नवि रहीये पाछळ दूर रे; बरोबर उभा नवि रहीये, गुरुने शाता दीजे भरपूर रे. विनय० ३ वस्त्र पात्र नित्य गुरुतणां, पडिलेहीए दोय वारो रे; आसन बेसण पुंजीए, पाथरीए सुखकारो रे. विनय०४ असन वसनादि सुख दीए, गुरु आणाए मुख निरखो रे; विबुध विमलसूरि इम कहे, शिष्य थाये गुरु सरखो रे. विनय० ५ विनयनी सन्झाय पवयण देवी चित्त धरी जी, विनय वखाणीश सार; जंबूने पूछे कह्योजी, श्री सोहम गणधार; ९२ For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भविक जन!, विनय वहो सुखकार. पहेले अध्ययने कह्योजी, उत्तराध्ययन मझार; सघळा गुणमां मूळगोजी, जे जिनशासन सार. भ० २ नाण विनयथी पामीये जी, नाणे दरिसण शुद्ध; चारित्र दरिसणथी हुवे जी, चारित्रथी पुण सिद्ध. भ०३ गुरुनी आण सदा धरे जी, जाणे गुरुनो भाव; विनयवंत गुरु रागीया जी, ते मुनि सरळस्वभाव. भ०४ कण- कुंडं परिहरी जी, विष्ठाशुं मन राग; गुरुद्रोही ते जाणवा जी, सूअर उपम लाग. भ० ५ कोह्या काननी कुतरी जी, ठाम न पामे रे जेम; शील हीण अकह्यागरा जी, आदर न लहे तेम. भ०६ चंद्र तणी परे उजळी जी, कीरति तेह लहंत; विषय कषाय जीती करीजी, जे नर विनय वहंत. भ० ७ विजय देवगुरु पाटवी जी, श्री विजयसिंह सूरीद; शिष्य उदयवाचक भणे जी, विनय सियल सुखकंद. भ० ८ नारी संग निवारवानी सन्झाय प्रभु साथे जो प्रीत वंछो तो, नारी संग निवारो रे; कपटनी पेटी कामणगारी, निश्चे नरक दुवारो रे. एहनी गत एह ज जाणे, रखे कोई संदेह आणो रे, ९3 For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अबळा एव॒ नाम धरावे, सबळाने समजावे रे; हरिहर-ब्रह्मा-पुरंदर सरखा, ते पण दास कहावे रे. २ जांग चीरीने मांस खवडाव्युं, तो पण न थई एहनी रे; मुखनी मीठी दिलनी जुट्ठी, कामिनी न होय कोईनी रे. ३ पगले पगले मन ललचावे, श्वासोश्वासथी जुदी रे; गरज पडे त्यारे घेली थाये, काम सरे जाये कूदी रे. ४ करणी एहनी कही नवि जाए, कामिनी तणी गति न्यारी रे, गायुं एहनुं जे नर गाशे, तेणे सद्गति हारी रे. जो लागी तो सर्वस्व लूंटे, रुठी तो राक्षसी तोले रे; एम जाणीने अळगा रहेजो, उदयरत्न इम बोले रे. जीवदयानी सन्झाय गजभवे ससलो उगारीयो रे, करुणा आणी अपार; श्रेणीकने घेर उपन्यो रे, अंगज मेघकुमार चतुरनर! जीवदया धर्मसार, जेथी पामीये भवनो पार. चतुर० १ वीर वांदी वाणी सुणी रे, लीधो संयम भार; विजय विमाने ऊपन्यो रे, सिद्धशे महाविदेह मोझार. चतुर० २ नेमि प्रभु गया परणवा रे, सुणी पशुडानो पोकार; पशुडानी करुणा उपनी रे, तज्या राजीमती नार. चतुर० ३ ९४ For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शरणे पारेवो उगारीयो रे, जुओने मेघरथ राय; शांतिनाथ चक्री थया रे, दया तणे सुपसाय. चतुर० ४ मासखमणने पारणे रे, धर्मरुचि अणगार; कीडीओनी करुणाए कर्यो रे, कडवा तुंबडानो आहार. चतुर० ५ सर्वार्थसिद्धमां उपन्या रे, सिध्या विदेह मोझार; धर्मघोषना शिष्य थया रे, रुडी दया तणा ए पसाय.चतुर०६ अर्जुनमाली जाणजो रे, लीधो संयम भार; कर्म छ मासे क्षय करी रे, पहोंता मुगती मोझार. चतुर० ७ देवकीनंदन सोहामणा रे, नामे ते गजसुकुमाल; धगधगती सगडी सही रे, आवी दया रे अपार. चतुर० ८ धर्मरत्न सुरतरु समो रे, जेहनी शीतल छांय; सेवक जन नीत सेवजो रे, एह चे मुक्तिनो दाय. चतुर० ९ दान-शील-तप भावनी सन्झाय (राग : अहो अहो साधुजी समताना दरीया) श्री महावीरे भाखीया, सखी धर्मना चार प्रकार रे; दान-शीयल-तप-भावना, सखी पंचमी गति दातार रे. श्रीमहा० १ दाने दोलत पामीये सखी दाने क्रोड कल्याणो रे; ९५ For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान सुपात्र प्रभावथी, सखी क्यवन्नो शालिभद्र जाणो रे. __ श्रीमहा० २ शियळे संकट सवि टळे, सखी शियळे वांछित सिद्ध रे; शियळे सुर सेवा करे, सखी सोळ सती प्रसिद्ध रे. श्रीमहा० ३ तप तपो भवि भावशू, सखी तपथी निर्मळ तन्न रे; वरस उपवासी ऋषभजी, सखी धन्नादिक धन्य धन्य रे. श्रीमहा०४ भरतादिक शुभ भावथी, सखी पाम्या पंचम ठाम रे; उदयरत्न मुनि तेहने, सखी नित्य करे प्रणाम रे. श्रीमहा० ५ वर्धमानतपनी सन्झाय प्रभु! तुज शासन अति भलं, तेमां भलु तप वर्धमान रे, समताभावे सेवतां, जल्दी लहे शिवगेह रे. प्रभु० १ षटरस तजी भोजन करे, विगय करे षट दूर रे, खटपट सघळी परिहरी, कर्म करे चकचूर रे. प्रभु० २ पडिकमणां दोय टंकना, पोषहव्रत उपवास रे, नियम चिंता करे सर्वदा, ज्ञान-ध्यान सुविलास रे. प्रभु० ३ ९६ For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा.१ देहने दुःख देवा थकी, महाफल प्रभु भाखे रे, खड्गधारा व्रत ए सही, आगम अंतगड साखे रे. प्रभु० ४ चौद वर्ष साधिक होवे, ए तप, परिणाम रे, देहना दंड दूरे करे, तपचिंतामणी जाण रे. प्रभु० ५ सुलभ बोधि जीवने, ए तप उदये आवे रे, शासन सुर सान्निध्य करे, धर्मरत्न पद पावे रे. प्रभु०६ हिंसा पापस्थानकनी सन्झाय पाप स्थानक पहेलुं कर्तुं रे, हिंसा नामे दुरंत, मारे रे जग जीवने रे, ते लहे मरण अनंत रे. प्राणी! जिनवाणी धरो चित्त. मातपितादि अनन्तना रे, पामे वियोग ते मंद; दारिद्र दोहग नवि टले रे, मिले न वल्लभवृंद रे. प्रा.२ होए विपाके दशगणुं रे, एकवार कीयुं कर्म; शत सहस कोडी गमे रे, तीव्र भावना मर्म रे. प्रा.३ 'मर' महेता पण दुःख हुवे रे, मारे किम नहि होय; हिंसा भगिनी अति बूरी रे, वैश्वानरनी जोय रे. प्रा.४ तेहने जोरे जे हुआ रे, रौद्रध्यान प्रमत्त; नरक अतिथि ते नृप हुआ रे, जिम सुभूम ब्रह्मदत्त रे. प्रा.५ राय विवेक कन्या क्षमा रे, परणावे जस साच; तेह थकी दूरे टले रे, हिंसा नामे बलाय रे. प्रा.६ ९७ For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मैथुन पापस्थानकनी सज्झाय पापस्थानक चोथु र्वजीए, दुर्गति मूल अबंभ, जग सवि मुंझ्यो छे एहमां, छांडे तेह अचंभ. रुडं लागे रे ए धुरे, परिणामे अति अति क्रुर; फल किंपाकनी सारिखं, वरजे सज्जन दूर. अधर विद्रुम स्मित पूलडा, कुच फल कठिन विशाल, रामा देखी न राचीये, ए विषवेली रसाल. प्रबल ज्वलित अयपूतली, आलिंगन भलु तंत, नरक दूवार नितंबिनी, जघन सेवन ते दुरंत. दावानल गुणवन तणो, कुल मशीकूर्चक एह, राजधानी मोहरायनी, पातक-कानन मेह. प्रभुताए हरि सारीखो, रुपे मयण अवतार, सीताए रे रावण यथा, छांडो पर नर नार. दश शिर रजमांहे रोळिया, रावण विवश अबंभ, रामे न्याये रे आपणो, रोप्यो जगि जय थंभ. पाप बंधाए रे अतिघणां, सुकृत सकल क्षय जाय, अब्रह्मचारीनुं चिंतव्यु, कदिय सफल नवि थाय. मंत्र फले जगि जस वधे, देव करे रे सानिध, ब्रह्मचर्य धरे जे नरा, ते पामे नवनिध. ९८ For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेठ सुदर्शनने टली, शूली सिंहासन होय, गुण गाये गगने देवता, महिमा शीलनो जोय. मूल चारित्र- ए भलुं, समकित वृद्धि निदान, शील सलिल धरे जि के, तस हुए सुजश वखाण. ११ दशमा अध्ययननी सन्झाय ते मुनि वंदो ते मुनि वंदो, उपशम रसनो कंदो रे; निर्मल ज्ञान क्रियानो चंदो, तप तेजे जेहवो दिणंदो रे. ते० १ पंचाश्रवनो करी परिहार, पंच महाव्रतधारो रे; षट्कायजीव तणो आधार, करतो उग्र विहारो रे. ते० २ पंच समिति त्रण गुप्ति आराधे, धर्म ध्यान निराबाध रे; पंचम गतिनो मारग साधे, शुभ गण तो इम वाधे रे. ते० ३ क्रय विक्रय न करे व्यापार, निर्मम निरहंकार रे; चारित्र पाळे निरतिचारे, चालतो खड्गनी धार रे. ते० ४ भोगने रोग करी जे जाणे, आपे पुण्य वखाणो रे; तप-श्रुतनो मद नवि आणे, गोपवी अंग ठेकाणे रे. ते० ५ छांडी धन-कण-कंचन-गेह, थई निःस्नेही निरिह रे; खेह समाणी जाणी देह, नवि पोसे पापे जेह रे. ते०६ दोष रहित आहार जे पामे, जे लुखे परिणामे रे; लेतो देहनुं सुख नवि कामे, जागतो आठेइ जामे रे. ते० ७ ९९ For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसना रस रसीयो नवि थावे, निर्लोभी निर्माय रे; सहे परिषह स्थिर करी काया, अविचल जिम गिरिराया रे. ते०८ राते काउस्सग्ग करी स्मशाने, जो तिहां परिषह जाणे रे; तो नवि चूके तेहवे टाणे, भय मनमां नवि आणे रे. ते० ९ कोई उपर न धरे क्रोध, दिये सहुने प्रतिबोध रे; कर्म आठ झींपवा जोद्ध, करतो संयम शोध रे. ते० १० दशवैकालिक दशमाध्ययने, एम भाख्यो आचार रे; ते गुरु लाभविजयथी पामे, वृद्धिविजय जयकार रे. ते० ११ धर्म दृढतानी सन्झाय जुओ रे जुओ जैनो केवा व्रतधारी, केवा व्रतधारी आगे थया नरनारी रे; थया नरनारी तेने वंदना हमारी. जुओ० १ जुओ जुओ जंबुस्वामी, बाळ वये बोध पामी; तजी भोग रिद्धि जेणे, तजी आठ नारी. जुओ० २ गजसुकुमाल मुनि, धखे सिर पर धूणी; अडग रह्या ते ध्याने, डग्या ना लगारी. जुओ०३ कोश्याना मंदिर मध्ये, रह्या मुनि स्थूलभद्र; वेश्या संग वासो तोये, थया ना विकारी. जुओ० ४ १०० For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सती ते राजुल नारी, जगमां न जोडी एनी; पतिव्रता काजे कन्या, रही ते कुंवारी. जुओ० ५ जनक सुता ते सीता, बार वर्ष वनमां वीत्या; घणुं कष्ट वेठ्युं तोये, डग्या ना लगारी. जुओ०६ विजयशेठ ने विजयानारी, कच्छदेशे ब्रह्मचारी; केवलीए शील वखाण्यु, संयमे चित्त आण्यु. जुओ० ७ सुदर्शनने अभयाराणीए, उपसर्ग कीधो भारी; शूळी, सिंहासन थयुं, संयमे मनडुं वाळी. जुओ० ८ धन्य धन्य नरनारी, एवी द्रढ टेक धारी; जीवित सुधार्यु जेणे, पाम्या भव पारी. जुओ० ९ ए, जाणी सुज्ञजनो, एवा उत्तम आप बनो; वीरविजय धर्म प्रेमे, दीए गति सारी. जुओ० १० अशरण भावनानी सन्झाय को नवि शरणं को नवि शरणं, मरतां कुणने प्राणी रे, ब्रह्मदत्त मरतो नवि राख्यो, जस हय गय बहुराणी रे. तस नवनिधि धन खाणी रे. को नवि. १ मातपितादिक टगमग जोतां, यम ले जनने ताणी रे, मरण थकी सुरपति नवि छूटे, नवि छूटे इन्द्राणी रे. को नवि. २ १०१ For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हय गय रथ नर कोडी विद्याधर, रहे न नित राया राय रे, बहु उपाय ते जीवन काजे, करतां अशरण जाय रे. को नवि. ३ मरण भीतिथी कदाचित जीवो, जो पेसे पायाले रे, गिरि दरि वन अंबुधिमां जावे, तो भी हरिये काळे रे. को नवि. ४ अष्टापद जेणे बळे उपाड्यो, सो दशमुख संहरीयो रे, को जग धर्म विना नवि तरीयो, पापी को नवि तरीयो रे. को नवि. ५ अशरण अनाथ जीव जीवन, शांतिनाथ जग जाणे रे, पारेवो जेणे शरणे राख्यो, मुनि तस चरित्ते वखाण्यो रे. को नवि.६ मेघकुमार जीव गजगतिमां, ससलो शरणे राख्यो रे, वीर पासे जेणे भवभय कचर्यो, तप संयम करी नाख्यो रे. को नवि.७ मत्स्यपरे रोगी तडफडतो, कोणे नवि सुखी करीयो रे, अशरण अनाथ भावना भरीयो, अनाथी मुनि निसर्यो रे. को नवि.८ १०२ For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतवेलनी सन्झाय चेतन! ज्ञान अजवाळीये, टाळीये मोह संताप रे; चित्त डमडोलतुं वाळीए, पाळीए सहज गुण आप रे. १ उपशम अमृतरस पीजीए, कीजीए साधु गुण गान रे; अधम वयणे नवि खीजीए, दीजीए सज्जनने मान रे. २ क्रोध अनुबंध नवि राखीए, भाखीए वयण मुख साच रे; समकित रत्नरुचि जोडीए, छोडीए कुमति मति काच रे. ३ शुद्ध परिणामने कारणे, चारनां शरण धरे चित्त रे; प्रथम तिहां शरण अरिहंतनुं, जेह जगदीश जग मित्त रे. ४ जे समोसरणमां राजतां, भांजता भविक संदेह रे; धर्मना वचन वरसे सदा, पुष्करावर्त जिम मेह रे. शरण बीजुं भजे सिद्धनु, जे करे कर्म चकचूर रे; भोगवे राज शिव नगरनु, ज्ञान आनंद भरपूर रे. साधुनुं शरण त्रीजुं धरे, जेह साधे शिव पंथ रे; मूळ उत्तर गुणे जे वर्या, भव तर्या भाव निग्रंथ रे. शरण चोथु धरे धर्मनु, जेहमां वर दयाभाव रे; जेह सुख हेतु जिनवरे कह्यो, पाप जल तरवा नाव रे. ८ चारनां शरण ए पडिवजे, वळी भजे भावना शुद्ध रे; दुरित सवि आपणा निदिए, जीम होये संवर वृद्धि रे. ९ १०३ For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इहभव परभव आचाँ, पाप अधिकरण मिथ्यात्व रे; जे जिनाशातनादिक घणां, निदिए तेह गुणघात रे. १० गुरुतणां वचन जे अवगणी, गुंथिया आप मत जाल रे; बहुपरे लोकने भोळव्यां, निदिए तेह जंजाल रे. जेह हिंसा करी आकरी, जेह बोल्या मृषावाद रे; जेह परधन हरी हरखीयां, कीधलो काम उन्माद रे. जेह धन धान्य मुर्छा धरी, सेवीया चार कषाय रे; राग ने द्वेषने वश हुआ, जे कीयो कलह उपाय रे. १३ जूठ जे आळ परने दिया, जे कर्या पिशुनता पाप रे; रति अरति निंद माया मृषा, वळीय मिथ्यात्व संताप रे. १४ पाप जे एहवा सेवियां, निदिए तेह त्रिहु काल रे; सुकृत अनुमोदना कीजीए, जिम होय कर्म विसराल रे. १५ विश्व उपकार जे जिन करे, सार जिन नाम संयोग रे; तेह गुण तास अनुमोदिए, पुण्य अनुबंध शुभयोग रे. १६ सिद्धनी सिद्धता कर्मना, क्षय थकी उपनी जेह रे; जेह आचार आचार्यनो, चरण वन सिंचवा मेह रे. १७ जेह उवज्झायनो गुण भलो, सूत्र सज्झाय परिणाम रे; साधुनी जेह वळी साधुता, मूळ उत्तर गुण धाम रे. १८ जेह विरति देशश्रावक तणी, जेह समकित सदाचार रे; १०४ For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समकित दृष्टि सुरनर तणो, तेह अनुमोदिये सार रे. १९ अन्यमां पण दयादिक गुणो, जेह जिनवचन अनुसार रे; सर्व ते चित्त अनुमोदिये, समकित बीज निरधार रे. २० पाप नवि तीव्र भावे करे, जेहने नवि भवराग रे; उचित स्थिति जेह सेवे सदा, तेह अनुमोदवा लाग रे. २१ थोडलो पण गुण परतणो, सांभळी हर्ष मन आण रे; दोष लव पण निज देखतां, निर्गुण निजातमां जाण रे. २२ उचित व्यवहार अवलंबने, एम करी स्थिर परिणाम रे; भाविये शुद्धनय भावना, पापनाशय तणुं ठाम रे. २३ देह मन वचन पुद्गल थकी, कर्मथी भिन्न तुज रुप रे; अक्षय अकलंक छ जीवनू, ज्ञान आनंद स्वरूप रे. २४ कर्मथी कल्पना ऊपजे, पवनथी जेम जलधि वेल रे; रूप प्रगटे सहज आपणुं, देखतां दृष्टि स्थिर मेल रे. २५ धारतां धर्मनी धारणा, मारतां मोहवड चोर रे; ज्ञानरुचि वेल विस्तारतां, वारतां कर्मनुं जोर रे. राग विष दोष उतारतां, झारतां द्वेष रस शेष रे; पूर्व मुनि वचन संभारतां, वारतां कर्म निःशेष रे. देखीए मार्ग शिव नगरनो, जे उदासीन परिणाम रे; तेह अणछोडतां चालीए, पामीये जिम परमधाम रे. १०५ For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री नयविजय गुरु शिष्यनी, शीखडी अमृत वेल रे; एह जे चतुर नर आदरे, ते लहे सुयश रंगरेल रे. २९ राग - चार दिवसना चांदरडा क्या करु मन स्थिर नहि रहेता, अधर फिरे मन मेरा रे, यह मन को बेर बेर समजाया, समज समज मन मेरा रे बेठ कहुं तो उठ चलत है, मन दोडे मन धीरा रे, ___ मन दोडे मन धीरा रे पलक पलक मन स्थिर नहि रहेता, कोण पनियारा मन मेरा रे कुड कपट मह विष भरीयो, परनारी संग केरा रे, भव भवमां जीव, काल भटकतो, फोगट फरिया फेरा रे, फोगट फरिया फेरा रे कुटुंब कबीला माल खजाना, इसमे नहि कोई तेरा रे, साज भई जब उठ चलेगा, जंगल होगा डेरा रे, ___ जंगल होगा डेरा रे कहत आनंदघन मन समजीया, मन कायर मन सुरा रे, मनका खेल अजबका प्याला, पीए सो पीवन हारा रे, १०६ For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अईमुत्ता मुनिनी सन्झाय संयम रंगे रंग्युं जीवन, नानो बाल कुमार, वंदो अईमुत्ता अणगार... गौतम स्वामी गोचरी जावे, नाना बालकने मन भावे, प्रेम थकी निज घर बोलावे, भाव धरी मोदक वहोरावे, माहरे पण गौतम सम थाउ, एम करे विचार... वंदो० १ मननी इच्छा पूरण कीधी, मात पितानी आज्ञा लीधी, राज तणी ऋद्धिने छोडी, गौतम पासे दिक्षा लीधी, रहे उमंगे गुरुने संगे, वहेता संयम भार... वंदो० २ तलावडी एक जलनी आवी, बाल मुनीने मन बहुभावी, पात्र तणी नौका खेलावी, गुरुने देखी लज्जा आवी, अण घटतुं ते कारज कीg, पाम्या क्षोभ अपार... वंदो० ३ समव सरणमां प्रभुजी पासे इरियावहीं पडिक्कमी प्रमाणे, चार कर्मनी गति विमे, केवलज्ञान तिहां मुनि पामे, देव देवी सहु उत्सव करतां, वरत्यो जय जयकार... वंदो० ४ क्षणमां सघळां कर्म खपाव्या, एवा अईमुत्ता मुनि राया भव्य जीवोने बोध पमाडी, अंते मुक्ति पुरी सीधाव्या, ज्ञान विमल ए मुनीने वंदो, थाये बेडो पार... वंदो० ५ १०७ For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषभदेवनी सन्झाय सुख दुःख मनमां न आणीए क्यांथी प्रभु अवतर्या क्यां लीधो अवतारजी सर्वार्थसिद्ध विमानी च्यवी, भरतक्षेत्र अवतारजी. तारो रे दादा ऋषभजी चोथ भली रे अषाढनी, जननी कूखे अवतारजी; चौद सुपन निरमल लहीं, जाग्या जननी तेहीवारजी २ चैत्रवदि आठमने दिने, जनम्या त्रिभुवन नाथजी; छप्पन दिक्कुमारी मली करे, शुची कर्म तेणीवारजी चोसठ इन्द्र तिहां आवीया, नाभिराया दरबारजी; प्रभुने लई मेरुं गयां, स्नात्र महोत्सव करे तेणीवारजी ४ प्रभुने स्नात्र महोत्सव करी, लाव्या जननी नी पासजी; अवस्थापिनी निद्रा दुर करी, रत्ननो गेडी दडो मुकेजी ५ त्रासी लाख पूर्वगृहवासे वसीया, परण्या दोय ज नारीजी; सांसारिक सुख विलसी करी, लीधो संयम भारजी लोकांतिक सुर आवी करी, विनवे त्रिभुवन नाथजी; दान संवत्सरी आपीने, लीधो संयम भारजी पंच महाव्रत आदरी, चैत्रवदि अष्टमी जाणजी; १०८ For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार हजार साथे संयमी, उपन्यु चोथु ज्ञानजी कर्म खपावी केवल लही, लोकालोक प्रकाशजी; संशय टाळी जीवना, लेवा शिवरमणी राजजी खोट खजाने प्रभु तारे नथी देता लागे शुं वारजी; काजसरे निज दोसना, ए छे आपनो उपकारजी धरनाने तार्या तेमां शुं कर्यु, मुज सरिखाने तारोजी; कल्पवृक्ष जीहां फळ्यां, तिम दादो दयालजी शरणे आव्या ने प्रभु राखशो, बाहुबल भरत नरेशजी; पद्म विजय कहे वंदना, तारो तारो दयालजी इलाची मुनिनी सन्झाय एलाची चित्त चिंतवे, इन्द्राणी अवतारो, धन्य धन्य ए मुनिरायने, नवि जुए नयण विकारो रे अहो-अहो समता एहनो, अहो निर्लोभी निर्ग्रन्थ रे, निरखे नहीं ए नारीने, एणे साधुनो पंथ रे ए कुलवंती सुंदरी, कंचन वरणी काय रे, अद्भूत रूपे उभी छे, ए पण मुनि न ठगाय एक माये एहने जण्यो एक जण्यो मुज माय रे, सरसव मेरूनो आंतरो, किहां हुं किहां मुनिराय रे १२ १०९ For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारे कर्मी हुं घणो, मेली कुल आचार रे, नीच नटडीने कारणे, छोडी दीधो व्यवहार रे ए नारीना संगथी, वंश चडीयो हुं आकाश रे, जो च्यवुं तेहना ध्यानथी, तो पहोचुं नरकावाश दान लेवाने कारणे, हुं क्रोड करुं उपाय रे, तो पण देता नथी, माहे फंदे राय साधु आपे श्राविका, मोहक मनने उल्लास रे, ल्यो-ल्यो कहे छे लेता नथी, तो धन्य तेहने शाबाश धन्य वेळा धन्य ते घडी, मुकुं मोहनी जाळ रे, थईए मुनिवर सारिखा, मूकी आळ-पंपाळ रे मोह तणे जोरे करी नाटक फरी फरी कीध रे, पांचमी ढाळ सोहामणी, मुनी मान कहे सुप्रसिद्ध ढंढण ऋषिनी सज्झाय राग - दिलके अरमा ढंढण ऋषिजीने वंदना हुं वारी लाल, उत्कृष्टो अणगार रे, अभिग्रह लीधो आकरो हुं वारी लाल, निज लब्दे ले शुं आहार रे, दिन प्रत्ये जीवे गौचरी हुं वारी लाल, ११० For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ ६ ७ ८ ९ १० हुं वारी लाल.... हुं वारी लाल...१ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न मले शुद्ध आहार रे, हुं वारी लाल... न लीये मूळ असुझतो हुं वारी लाल, पिंजर हुं ओ गात्र रे, हुं वारी लाल...२ हरि पूछे श्री नेमने हुं वारी लाल, मुनीवर सहस अढार रे, हुं वारी लाल... उत्कृष्टो कुण एह मे हुं वारी लाल, मुजने कहो कृपाळ रे, हुं वारी लाल..३ ढंढण अधिको दाखीयो हुं वारी लाल, श्री मुखे नेमि जिणंद रे, हुं वारी लाल... कृष्ण उमाह्यो वांदवा हुं वारी लाल, धन्य जादव कुळ चंद रे, हुं वारी लाल...४ मारग मां हे मुनिवर मळ्यो हुं वारी लाल, वांदे कृष्ण नरेश रे, हुं वारी लाल... किणही मिथ्यात्वी देखीने हुं वारी लाल, आव्यो भाव विशेष रे, हुं वारी लाल...५ आवो अम घर साधुजी हुं वारी लाल, ल्यो मोदक छे शुद्ध रे, हुं वारी लाल... ऋषिजी लेई आवीया हुं वारी लाल, प्रभुजी पास विशुद्ध रे, हुं वारी लाल...६ १११ For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुज लब्धे मोदक मळ्या हुं वारी लाल, मुजने कहो कृपाळ रे, हुं वारी लाल... लब्धि हनि वत्स ताहरी हुं वारी लाल, श्री पति लब्धि निहाळ रे, हुं वारी लाल...७ तो मुजने लेवो नहि हुं वारी लाल, चाल्यो परठण काज रे, हुं वारी लाल... इंट निभाडे जई करी हुं वारी लाल, चुर्या कर्म समाज रे, हुं वारी लाल...८ आवी शुद्ध भावना हु वारी लाल, ऋषि पाम्या केवळज्ञान रे, हुं वारी लाल... ढंढण ऋषि मुगते गया हुं वारी लाल, कहे जिन हर्ष सुजील रे, हुं वारी लाल...९ आत्माने उपदेशनी सन्झाय (राग : काशी रे नगरीनी जाहिर) यामे वासमे बे, मरदो मगन भया मेवासी रे काया रुप मेवास बन्यो है; माया ज्युं मेवासी रे साहेब की शिर आण न माने आखर क्यां ले जाशी रे. खाई अति दुर्गंध खजाना, कोटमें बहोंतेर कोठा; ११२ For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जे वणसी जातां वार न लागे, जेसा जल पंपोटा रे. नव दरवाजा वहे निरंतर, दुःखदाई दुर्गंधा रे; क्या उसमें तल्लीन भया है, रे रे आतम अंधा रे. छिनमें छोटा छिनमें मोटा, छिनमें छेहदियासी रे; जब जमरेकी नजर लगेगी, तब छिनमे उड जासी रे. मुलक मुलक की मली लोकाई, बहोत करे फरीयादी रे; पण मुझरो माने नहि पापी, अति छाक्यो उन्मादी रे. सारा मुलक मेला संतापी, काम हिराडी कोटो रे; लोभ तलाटी लोचा वाले, तो केम नावे तोटो रे. उदय रत्न कहे आतम मेरा, मेवासी पणुं मेलो रे; भगवंत ने भेटो भली भाते, मुक्ति पुरीमां खेलो रे. वणझारानी सज्झाय (राग : उंची डुंगरीआनी टोच) वणझारो धुतारो, कामणगारो, सुंदर वर काया छोड चाल्यो वणझारो धुतारो, कामणगारो, रे काया में प्रभुजी पांच पाणीयारी, पाणी भरे छे. न्यारी न्यारी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ For Private And Personal Use Only २ वणझारो; एनी देहलडीने छोड चालयो वणझारो. सुं० १ सुं० २ ३ ४ ५ ६ ७ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एणी रे काया में प्रभुजी सात समुद्र, तेनुं नीर छे खारु मीठं. एणी रे काया में प्रभुजी नवसें नावडीयो, तेनो स्वभाव न्यारो न्यारो. एणी रे काया में प्रभुजी पांच रतनीया, परखे परखण हारो. खुट गयुं तेल ने बुज गई बतीयां, मंदिर में पड गयो अंधेरो. खस गयो थंभो ने पड गई देहीयां, मीट्टी में मील गयो गारो. आनंद घन कहे सुन भाई साधु, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवा गमन निवारो निवारो. करमचंदनी सज्झाय ( राग : तारी जारूं बलिहारी) कई कई नाच नाचवे करमचंद, कई कई नाच नचावे; ए अचरिज मन आवे करमचंद, कई कई नाच नचावे. सागरचक्री साइठ हजार, सुत युग महापराक्रमी; तुम प्रसादे एकन साथे, हुवा पलकमां भस्मी आदि जिनेश्वर अंतरयामि हुवा आदिना कर्ता; ११४ For Private And Personal Use Only सुं० ३ सुं० ४ सुं० ५ सुं० ६ सुं० ७ सुं० ८ १ कंई० २ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुम प्रासादे आहारने काजे, रहिया वरस लगे फीरता.कई०३ अतुल बली महावीर सरीखा, अंगूठे मेरु कंपाव्यो; तुम प्रसादे अनार्य देशमां, संगम चालीने आयो. कई० ४ दधिवाहन राजानी बेटी, चंदनबाला कहीये; तुम प्रसादे राजगृही के, चौटेमें वेचाणी कहीए. कई० ५ हरिश्चंद्र राया सु तारा सती, पुत्र लईने नीसर्या, सुभंगी कुलकी करी चाकरी, पाणी पीवाना रह्या. कई०६ कुड कपट माया विष, भरीयो काम चलीयो एक ठगाई, अधिकी कटके, श्रावक नाम धरायो. कई० ७ इत्यादिक मोटा पुरुषोत्तम करणी करी ठाम पाम्या, आनंदघन इम संगत बोले कर्मथी मेरा पार न आया.कई० ८ नरक दु:खनी सन्झाय (राग - सुणो चंदाजी...) हे सुण गोयमजी, वीर पयंपे, नरक तणा दुःख वारता; परनारी संगत जे करता, वली पाप थकी पण नही डरतां, जमरायनी शंका नवि धरतां. सुण० १ हे श्रोताजनो, नरकनां दु:ख सांभलता हैया थर थरे; हे गुणवंता, वीरवाणी सांभलीने धर्म खजानो भरो, लोहनी पुतलीने तपावे छे, अति अग्नि मय बनावे छे; ११५ For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस आलिंगन देवरावा छे. सुण० २ पांचसो जोजन उछाले छे, पछी पटकी भोंय पछाडे छे; पछी तेहनी देहने बाले छे. सुण०३ श्वान थईने फरी फरी करडे छे झाली परमाधामी मरडे छे, वळी तेहनी पाछळ दोडे छे. सुण० ४ मृगनी जेम पासमां पकडे छे, करवत करी तेहने फाडे छे; वळी पकडी पकडी भमावे छे. सुण०५ वळी तेहने शूळीए ए चडावे छे, कान नाक पण तेहना कापे छे; वळी भरसाडमां तेहने भारे छे. सुण०६ वळी खाल उतारी जलावे छे, ताता तेलमां पण घाले छे; विरुआ विपाको तेहने देखाडे छे. सुण०७ मांसनो तेहने आहार करावे छे, एम नकरमां दुःख घणा पावे छे; अति त्रासमां दिवस गमावे छे. सुण० ८ वळी शरीरमां खार मिलावे छे, एम परमाधामी दुःख देखाडे छे; शुभवीरनी वाणीथी शीतळ थावे छे. सुण० ९ ११६ For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उणोदरी व्रतनी सन्झाय __ (राग : देखी श्री पार्श्वतळी) सासु ने वहु मंदिरे गया ता, मने आवी लाज रे. पच्चख्युं एकासगुं. १ सासुए लीधा बेलानां पच्चक्खाण, मने आवी लाज रे. पच्चख्युं एकासगुं. २ घरे आवीने भट्ठीओ सळगावी, सळगाव्या चूला बे चार रे. ३ पहेले ते चूले भात ज ओर्यो, बीजा ते चूले दाळ ज ओरी. त्रीजे चूले केळव्यो कंसार रे. मने० ४ बजारमाथी ससराजी आव्या, लाव्या घेबर हाथ रे. वहुने एकासगुं. ५ मेडीएथी सासुजी आव्या, लाव्या पापड हाथ रे वहुने एकासगुं. ६ दुकानेथी जेठजी आव्या, लाव्या दुधडे भार रे. भाभीने एकासगुं. ७ ओरडामांथी जेठाणी आव्या, लाव्या खाखरा हाथ रे. देराणीने एकासगुं. ८ बजारमाथी दीयरजी आव्या, लाव्या फळ फुल हाथ रे. भाभीने एकासगुं. ९ ११७ For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पारसाळेथी देराणी आव्या, लाव्या मुखवास हाथ रे. भाभीने एकासणुं. रुमजुम करती नणंदो आवी, लावी पकवान हाथ रे. भाभीने एकासणुं. महेलमांथी स्वामीजी आव्या, लाव्या लाडु बे चार रे. गोरीने एकासणुं. काम करंता घाटी ज आव्यो, ढाळ्या बाजोठ बे चार रे. शेठाणीने एकासणुं. १३ एकासणुं करीने वहुजी उठ्या, कीधी लोटालोट रे. है दो दिन का जग मेलारे, सब चला - चलीकामेला कोई चला गया कोई जीवे रे, गठडी बांध सिधावेरे कोई खडा तैयार एकेला रे... कर पाप कपट कर छलमाया, धन लाख करोड कमायारे ११८ For Private And Personal Use Only १० ११ पच्चक्ख्युं एकासणुं. १४ १५ एकासणुं करीने चार पांच कोळीया उणा रहीए एतो उणोदरी व्रत कहेवाय रे. पच्चख्युं एकासणुं. हीर विजयजीनी विनंती ए तो, वीर विजय गुण गाय रे. पच्चख्युं एका. १६ संसार असारनी सज्झाय १२ १ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संग चले न एक अंधेलारे... २ सुतनार मात-पिता भाई, कोई अंत सहायक नाहीजी क्यो भरे पापका थेला रे... ३ तु कहेता है धन मेरा रे, यह कोई नहि है तेरा है चोरासी का फेरा रे... यह नश्वर सबसंसारा, कर भजन प्रभुका प्याराजी कहे हित विजय सुन चेलारे... ५ बेइंद्रियनी सन्झाय (राग : सिद्धारथनारे नंदन वन) बेइंद्रिय बोले मुखथी एह, शुं करवा अम मारो रे; तारुं हैडु रे केम फुटी गयुं, दया दया पोकारे रे. वासी अन्नने धान ने रोटला, तेहमें रह्या अमे झाझा रे; तेहनुं भक्षण करतो तुं नवि बीए, शास्त्रनी मूकी ते माझा रे. २ वीस वसानी रे तारी दया गई, कांई न रही बाकी रे; । उनुं पाणी रे वासी पीवतां, सचित समान रे वाकी रे. ३ एठवाणी तारे पाणीमां हवे, समुर्छिम पंचेन्द्रि सुधी रे; चौद स्थानकीया रे जीवने विचारतां, केम गई तुज बुद्धि रे.४ मोढे पाटो रे दिन आखो रहे, थुक मेल परसेवो रे; ११९ For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिहां कने उपजे जीवन असंख्य जे, तेह विचारीने जुओ रे.५ ढुंढक ढुंढक सघळो भटके, धर्म न पाम्यो लेश रे; राज दरबार ने नीचना आहारथी, दया गई छे विशेष रे. ६ बेइंद्रि वचन ते एहवा बोलतां, शाने तुं साध कहावे रे. वडीनीतिने लघुनीति चुंथतां, तिहां तुज दया न आवे रे. ७ एकेन्द्रियनो उगारो करे, बेइंद्रियने तुं खाये रे; विदळ विदारीने कूडां बोलता, नीच गतिए ते जाय रे. ८ दया विचारी रे सूत्र सिद्धांतथी; धारजो गुरु उपदेश रे; दशवैकालिके रे हिंसा टाळवी, अनुबंधी विशेषो रे. ९ इम जाणीने रे हिंसा टाळजो, ए जिन मुनिवर वाणी रे; रत्नविजय गुरु चरण कमल नमी, धर्म करो सवि प्राणी रे.१० सूत्र उत्थापेरे समकित हीणो, ते करे नीचनो आहार रे; समकित विना तो समकित आपे, ते नहि तारणहार रे. ११ घीना गुणनी सन्झाय (दोहा) भवियण भाव घणो धरी; आणी गुणनी श्रेणी, सूपडा सरखा थाय जो, चाळणि परे महजेणी. साप तणां गुण म आमजो, गाय तणां गुण आप; जुओ चार नीरस चरी, आपे धृत अहि नाण. १२० For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धृत तणां गुण वर्णवू, सांभळजो नरनार; वस्तु सघळी जोई सही, धृत समी नहि संसार. (ढाल) (राग : रघुपति राघव राजाराम) धृत रुप वाघे बळ कांति, धृत क्रोधे थाय उपशांति; लुंखु धान्य ते दोहीलुं पचे, घृत सहित सहुकोने पचे. ४ कुकस बाकस जेहमां घृत तेह धान्य लागे अमृत; वाणीया ब्राह्मण सर्व सुजाण; घृत पामे ते ध्रुजे प्राण. ५ हाथ पग उतर्या संधाय, दील तणा ते खोडा जाय; घृतनी परे विगल कहेवराय, ए उपमा घृत ने देवराय. बाळकने घृत वहालु सही, रोईने रोटी घी लेही; वळी लहे एकवार ते रगे, घृत जीभे देही तगतगे. घृत थकी नारा पूराय, सुवावडी पण घीअज खाय; बळद पीए तो मातो थाय, घी खाये नबळाई जाय. उभा रहीने घी पीजीए, तेज सबळ आंखे कीजीए; गायनुं घी हरे सवि वाय; व्याधि सर्वे घीथी जाय. शाक पाक थाय भला घीथी, बीजूं एहवू ओसड नथी; घीनो दीवो मांगलीक कह्यो, घी ए जमाइ रीसातो रह्यो. १० न्हानां मोटा कूलेर करे, थीजें होय तो लबको भरे; सुवालुं गलगल उतरे, सीहारी होय तो माखण हरे. ११ १२१ For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सासु जमाइ करवा मेळ; कोष उपाडी कीधो भेळ; खलहळ नामे भली कहेवाय, घी पीरसे तो प्रीत ज थाय. १२ वरे पूछे घी केतुं वळ्युं, घी अ पखे ते लेखं कह्यु; घी संचो रे विवाह अछे, बीजी वस्तु ले| पछे. १३ घृत दाने समकित आणीये, धन्नो सारथ पति जग जाणीये; ब्राह्मणने घी वखाणीया, नित्य जमे पुण्यवंत वाणीया. १४ पामर खाये परविवाहे करपी खाये परघर जाये; उंदर साप वृक्ष ते थाय, धन उपर परठी रहे पाय. १५ बुधवारे घी वहालुं सही, शूळ रोग उपद्रव हरे; घरडाने घी वहालुं सही, जूना हाड रहे घीथी लहे. १६ पाटी पींडे घी मूकीए, घाव वळी गुंमड गहदीए; घी खाधे तप सोहीलो थाय, पग बळ नयणे तेज कहाय. १७ छतुं घीय जे पीरसे नहि, नरनां नाम तस लीजे नहीं; सघळा उपर घृत छे सार, ते मत वारो वारो वार. १८ घीना गुणने उत्तमनां वयण, ए बे सरखां जाणो सयण; शुभ विजय पंडितथी लह्यो, लाभ विजय घीनो गुण कह्यो. १९ १२२ For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ बाहुबलीनी सन्झाय (फूल तुम्हें भेजा है तर्ज) घोर भयंकर वन वगडामां, बहुबली धरे ध्यानरे, अंतरमां अभिमान भर्युने, मांगे केवळज्ञान रे, राजपाट त्याग करीने, त्यजी दीधो परिवार रे, एकज क्षणमां साधु थयाने, छोडी दीधो संसार रे. बधु तज्युंने पण न भूलायुं, मान अने अपमान रे, संदेशो लेई ऋषभदेवनो, ब्राह्मी सुंदरी आवे रे, वडिल बंधु बाहुबलजीने, बे बहेनो समजावे रे. गज थकी उतरो एहवू कहीने, थई थई अंतर ध्यान रे, आंख उघाडी जोयुं त्यांतो, आव्यों कंईक विचार रे. अभिमान रूपी गज पर हुं बेठो, ए समजायुं सार रे, साचुं ज्ञान थयुं अंतरमां, दूर थयुं अभिमान रे. पश्चात्ताप थयो अंतरमा सत्यवात समजाई रे, भूल जोईने बाहुबलीनी, आंखलडी भीजायरे. नानकडाए संदेशाथी, मुनिने आव्युं भान रे, जावू पूज्य प्रभुनी पासे, एहवो निर्णय थाय रे. नाना तोये मुजथी मोटां, सहुने लागुं पाय रे, १२३ For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक ज डगलुं भर्यु त्यां तो, उपन्यु केवलज्ञान रे. अंतरथी अभिमान गयुने, मांगे केवलज्ञान रे, ज्ञानविमल कहे बाहुबलीजी, पाम्यां अक्षरधाम रे. रात्री भोजननी सन्झाय अवनीतले वारु (सारु) वसेजी, कुंडनपुर उदार, शेठ यशोधन जाणीयेजी, करे व्यवसाय अपार रे मानवी रात्रीभोजन वार. १ रंभा धरणी रुयडीजी रे, पुत्र सलुणारे दोय, हंसकुमार भाई वडोजी रे, लघुभाई केशव होय रे.... दोष अनंता ओलख्याजी रे, जिम न पडे संसार रे. एकदिन रमतां भेटीयजी, साधु शिरोमनिसूरि, धर्मघोष नामे नमीजी, आवी आनंदपुर रे... सूरि भणे रजनी तनुजी, भोजन छंडे जेह, तस सूरनर सेवा करेजी, लहे मुक्ति निःसंदेह रे... सांजे रांधी राते जमेजी रे, ते उत्कृष्टो रे दोष, दिवसे रांधी राते जमेजी रे, पाप तणो बहु पोष रे... ५ राते रांधी मुकियुं जीरे, दिवसे ते करे आहार, ते जीवीत पाये बाहिराजीरे, अति जीव तणो सहार रे... ६ दिवसे रांधी दिवसे जमेजी रे, घडीए तजे दोय दोष, १२४ For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यवंत ते पूजीएजी, जे नर एहवा होय रे... घेर आव्या माता कनेजी, भोजन मांगे रे दीश, चार घडीजे पाछलेजी, पिता कहे बहु रीश... माता व्हीती नवी दीयेजी, मान करे ते त्यांय, लांघन करता दहडलाजी, पांच इंणी परे जाय... छेक दीवसे सहोदराजी मलीया एकन चीत्त राते जमो के बाहीर रमोजी, नही अम घर ए रीत रे... १० हंसकुमार तीहां क्षोमीयो जी, वालु कीधु रे जाम... विहदर गरले मूकीयुजी, माहे जमातु ताम रे... केशवकुमार वनमा गयोजी तीहां कीधो विश्राम यज्ञदेव तीहां आवीयोजी, मढी नीहाले ताम रे... ए पुरुष म्होटो अछे जी, व्रत नवी भांज्यु रे जेण, भंजातुं हुं तेहना जी, माया मांडी तेण रे... सुरज रचीयो कारमोजी, माणस रच्यां बहु थोक केशवकुमार जगावीयोजी उठ जमे छे सहु लोक रे... केशव मनमां चीतवेजी, हजीय न थयो प्रभात ए कांईक कौतुक अछेजी, अमे न जमशुं रात रे... त्रण प्रदक्षीणा देई करी जी, लाग्यो केशवजीने पाय मांग वत्स तुढ्ये तुनेजी, कांईक करु पसाय रे... १२५ For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुज भाईए व्रत भाजीयुंजी, विषधर ग्रहीयो जेन हुं मागुं छु तुज कनेजी, जो जीवडो एन रे.... यक्षदेव तिहा आवीयोजी, लई मानसर्नु रूप वमन करीने, छांडीयोजी, जागी उठ्यो भूप रे... रात्रीभोजन परीहरी जी, हुओ साकेतपुर राज संयम लेई तप करीजी, सांर्या आतम काज रे... कायानो महेल नथी तारो रे कायानो महेल नथी तारो रे, मुसाफर जीवडा, कायानो. माने शुं मोहे मारो मारो रे. मुसाफर. लाख चोराशीमां देह धर्या बहु, जन्म जरा दुःख पामी, मानव भव एळे चूक न जीवडा, भजी लेने अन्तरयामी रे. ___मुसा. १ कायाना महेलनो कांई न भरोसो, जळमां उठेल परपोटो, अमूल्य श्वासोश्वास वहे छे, मूरख वाळ नहीं गोटो रे. मुसा. २ कळा करो काया माटे करोड पण, तारी न थाय कांई काळे, चेतो चेतनजी समजी स्वरूप निज, पड नहीं मोहनी जंजाळे. मुसा. ३ अरे जगतमां जन्मीने जीवडा शुं? धर्मसाधन तें तो साध्यु क्षण क्षण मांहे भूल्यो भान पोतार्नु, १२६ For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनडुं तो मोह मांही वाध्युं रे. मुसा. ४ विषय वासनानाना अवळा जे घाटो, ओळंगी चालजो रे वाटे, बुद्धिसागर खेल नथी रे बाळकनो, शिवसुख छे शिर साटे. ___ मुसा. ५ भजन करी ले भजन करी ले भजन करी ले भजन करी ले, भजन करी ले भाई रे, आ दुनियादारी, दुःखनी क्यारी, जूठी जगनी सगाई रे. भजन. १ काया सुकोमळ केळ जेवी, बीगडतां नहि वार रे; भला भला पण चालीया, तो पामरनो शो भार रे. भजन. २ कादव केरा कीचमांही, कीडा लाख करोड रे, कीटक जेवो मानवी तुं, जाणी प्रभु मन जोड रे. भजन. ३ लाडी गाडी वाडीमांही, खरचै पैसा लाख रे, एवा मरी मशाणे चालीया, तेना शरीर थई गया राख रे. भजन. ४ बाजीगरनी बाजी जेवी, जूठी जगतनी जंजाळ रे, झांझवाना नीर जेवू, जूलु जगतनुं वहाल रे. भजन. ५ काळ पाछळ लागीओ, जेम तेतर उपर बाज रे, झडपी लेशे जीवडा, तो क्युं करी रहेशे लाज रे. भजन. ६ १२७ For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जरूर जावुं एकलुं भाई, कोई न आवे साथ रे, बुद्धिसागर करुणासागर, गुरुनो झालो हाथ रे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भजन. ७ भजन कर मन भजन कर मन भजन कर मन भजन कर मन, भजन कर भगवंत रे, मृत्यु माथे गाजतुं तुज, मनमां शुं हरखंतरे. मूछ मरडी महालताने, गर्वे देता गाळ रे, भजन. १ रावण जेवा राजवी पण, कोळीया थई गया काळ रे. भजन. २ देतां हसी हसी ताळीओने, मायामां गुलतान रे, For Private And Personal Use Only परभव वाटे चालीया ते, भूली भमे नादान रे. रजनी थोडी वेष झांझां, आयु एळे न गुमावरे, फरी फरीने नहीं मळे जीव, धर्म करणनो दाव रे. भजन. ४ जरूर जन्मी जावुं एक दिन कोई न जग उगरंत रे, बुद्धिसागर शरण करी ल्यो, देवश्री अरिहंत रे. हवे हुं समज्यो जिनवर नाम भजन. ५ भजन. ३ हवे हुं समज्यो जिनवर नाम एक साचुं; साचुं जिन नाम बीजुं काचुं रे. हवे. १ मातपिता भाई दिकराने दिकरी, ललना कुटुंब नहीं मारुं; मारुं मारुं करी ममताथी हार्यो, जाण्युं हवे सहु न्यारुं रे. हवे. २ जन्मीने जाण्युं न तत्त्व स्वरूप में, फोगट फंदमां हुं फूल्यो; १२८ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लक्ष्मी सत्तानी घेंने घेरायो, भतर भणीने हुं तो भूल्यो रे. हवे. ३ काया मन वाणीथी न्यारो हुं आतम, अलख स्वरूपी सुहायो; ध्यान धरीने जोयुं स्वरूप तो, आनंद अतिशय पायो रे. हवे. ४ भेदु गुरुए भेद बतावीने, विषय वासनाथी वार्यो, बुद्धिसागर धन्य धन्य गुरुजी, आप तर्याने मने तारो रे. हवे. फूल्यो शुं फरे छे फूली रे ५ फूल्यो शुं फरे छे फूली रे, मूरख प्राणी काया माया जूठी केवी, झांझवाना नीर जेवी; तेने तुच्छ करी देवी रे, मुरख प्राणी. आउखुं जावे छे खूटी, करे शुं तुं माथाकूटी; खूटी तेनी नहीं बूट्टी रे. पाणी तणो परपोटो, खेल एम सहु खोटो, मान नहीं मन मोटो रे. कुटुंब कबीलो सारो, मान नहीं मन मारो, एक दिन थशे न्यारो रे. आंखे जे जे देखे सालं, ते ते भाई नहीं तारुं; माने केम मारुं मारुं रे. चेती लेने जाय चाली, करी माथाकूट खाली, १२९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १ मुरख. २ मुरख. ३ मुरख. ४ मुरख. ५ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायामां शुं रह्यो म्हाली रे. मुरख.६ काया मायाथी रे न्यारो, अरूपी अलख धारो; बुद्धिसागर मन प्यारो रे. मुरख. ७ ___जडनो राग निवारो, चेतन! जडनो राग निवारो, चेतन! सुखनी बुद्धि जडमां मानी, मूढपणुं केम धारो; कोटी उपाये नामरूपमय, जडथी सुख न भाळो. चेतन. १ नामरूपना रागे राची, रहेतां नही सुख आरो; समजी फरी क्यां भूला भमतां, अंतर सत्य विचारो. चेतन. २ काम्यभावना अज्ञाने छे, मोहो पुदगल प्यारो; अमृत मूकी विष क्यां खातो, निज क्यां रूप विसारो.चेतन. ३ पुद्गल चूंथाणाने शुं चूंथे, शांति नही तलभारो; त्यागी दे जड सुखनी बुद्धि, एळे जन्म न हारो. चेतन. ४ अनुभव गम्य स्वरूप कर तारुं, नासे विषय विकारो, बुद्धिसागर चेतन चेतो, देखो घट उजियारो. चेतन. ५ सहुने छे मरवा, अन्ते सहुने छे मरवानुं अन्ते, सहुने भूलातुं करवानुं अंते. १ राजाराणी शेठ शेठाणी, शहेनशाहने बानु, १३० For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जोगी भोगी सती सन्यासी, कोण मोटुं कोण नानु. अंते. २ चक्रवर्ती महाराजा बळीया, लेता निशदिन खाणुं; चाल्या ऊठी मींची आंखो, रहीयुं खाली भाj. अंते. ३ मूछराळा मुछाळा मानव, करता बहु धींगाणुं; नाम न रहीया दुनियामांही, जाणो नही ए छानुं अंते. ४ खळखळ नदीनुं पूर वहाणुं, जेवू पींपळ पार्नु; जोनारा मरताने देखे, जोनाराने जवानु. अंते. ५ संध्या रागने झाकळ बिन्दु, कदी नहीं स्थिर थवानु, बुद्धिसागर साचुं समज, धर्म कृत्य करवानु. अंते. ६ अलख देशमें वास हमारा अलख देशमें वास हमारा माया से हम है न्यारा निरमल ज्योति निराकार हम, हरदम हम ध्रुवका तारा. अलख.१ सुरता संगे क्षण क्षण रहेता, दुनियादारी दूर करणी; सोऽहं जापका ध्यान लगाना, मोक्ष महेल की निसरणी. अलख. २ पढना गणना सबही जूठा, जब नहीं आतम पिछाना, वर विना क्या जान तमासो, लुण बिन भोजन का खाना. अलख.३ १३१ For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतम ज्ञान विना जंग जाणो, जरामां सघळे अंधियारा, सद्गुरु संगे आतम ध्याने, घट भिंतरमें उजीयारा. अलख. ४ सबसे न्यारा सबहममांही, ज्ञाता होयपणा धारे, बुद्धिसागर धनधन जगमें, आप तपे परकुं तारे. अलख. ५ रे जीव धर्मने धारीए रे जीव धर्मने धारीए, वारीए मोहमाया, हुं ने मारुं फोक छे, पाणीना पडछाया. रे जीव. १ पथ्वी थई नहीं कोईनी, गाडी वाडी ने लाडी, भ्रान्तिमां भटके अरे, पडियो मोह खाडी. रे जीव. २ जेवी संध्या वादळी, जल मध्ये पतासा. कायानी माता तेहवी, दर्पण गगन छाया. रे जीव.३ पूर नदी- जेहेवू, जेवी स्वप्ननी सृष्टि, झांझवानां जळ जेवी, जूठ मोहनी दृष्टि. रे जीव. ४ पुद्गल वाजाथी भिन्न तुं, शुद्ध चेतन राया; बुद्धिसागर जागता नर, रत्न कमाया. रे जीव. ५ चेतन चतुर थईने चेतन चतुर थईने, मोहे | मुंझाय छे रे; खरेखर धन दाराथी, कदी नहीं शांति थाय छे रे. चेतन. १ माया ममताथी शुं फूले, बाह्य दृष्टिथी भवमां झूले; १३२ For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समजु धोळे दहाडे, शुं चउटे लूटाय छे रे. चेतन. २ अवसर मळीयो शीदने चूके, गद्धानी पेठे | भुके, अरे जीव मळीयुं टाणुं, शीदने हारी जाय छे रे. चेतन. ३ अर्क तणां आफुलां जेवा, तन धन यौवन मन छे तेवां, हीरो हाथे चढीयो, चूकी क्यां भटकाय छे रे. चेतन. ४ चेत चेत आतम तुं चटपट, दूर करी दुनियानी खटपट, प्रेमे बुद्धिसागर सद्गुरू संगत सहाय छे रे. पामी अन्तर्धनने, आतम तो हरखाय छे रे. चेतन. ५ आप स्वरूप संभाळो, आतम आप स्वरूप संभारो, आतम!!! चिदानंद तुज धर्म खरो छे, निज उपयोगे धारो. आतम. १ जड क्रियाने जड तो करे छे, आतम उपयोग किरिया, आत्म स्वभावे आत्म धर्म छे, समजी ज्ञानी तरिया. आतम. २ हरिहर ब्रह्मा देव देवी सहु, आतमना छे दासा, प्रकृति बलथी नहीं प्रभुता, धर ऐसा विश्वासा. आतम. ३ आनंदनो दरियो तुं सदा छे, तुं प्यारी तुं प्यारो, हुं तुं ते ज्यां भेद नहीं त्यां, प्रगटे छे निर्धारी. आतम. ४ नभथी पण तुं सूक्ष्म अरूपी, गुण पर्याय आधारो; बुद्धिसागर अलख निरंजन, आपो आप सुधारो. आतम. ५ १३३ For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अब हम उत्तर गये भवपारा अब हम उत्तर गये भवपारा, मृत्यु भय निवारा; प्राण तनुका जन्म है मृत्यु, हम है उससे न्यारा; आतम का नहीं जनम मरण है, निश्चय ए निर्धारा. अब. १ अज अविनाशी अलख अमर हम, सब भयकु ही निवारा; काल के काल महाकाल हम, पुद्गल मोह निवारा. अब. २ ब्रह्मस्वरूप हम ब्रह्म समाए, ज्यां नहीं द्वैत पसारा; देह रहा संसारके मांही, हम नही है संसारा. अब. ३ सबसे न्यारा शुद्ध ब्रह्म हम, बावन अक्षर बहारा; हम है प्यारी हम है प्यारा, गुण पर्याय आधारा. अब. ४ पंच भूतसे न्यारा हम है, सर्व विश्व आधारा; बुद्धिसागर आतम पाया, आनंद अपरंपारा. अब. ५ संतो! धर्मी तेह कहीजे संतो! धर्मी तेह कहीजे, धर्मीनी संगत कीजे, संतो! दया दान दम सत्यने धारे, चोरी चुगली निवारे, ब्रह्मचर्यने भावथी धारे, क्रोध कपट संहारे. संतो. १ न्याय थकी निज जीवन गाळे, मोहनी वृत्ति बाळे, देव गुरुनी सेवा सारे, दुर्व्यसनो बहु टाळे. संतो. २ पर उपकारमा प्राण समर्प, विकथा न लागे प्यारी, १३४ For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतम सम विश्वने माने, सात्त्विक प्रेमाचारी. संतो. ३ मुदिता मैत्री माध्यस्थ करूणा, दुर्गुण दोषने वारे; जूठने त्यागे सत्यने धारे, मानवभव अजवाळे. संतो. ४ जूठनो पक्ष धरे नहीं क्यारे, जीवे संतना प्यारे, बुद्धिसागर सद्गुरु सेवे, चढतो धर्मी व्हारे. संतो. ५ आत्म कुटुंबने देखो आतम! आत्म कुटुंबने देखो आतम! मन माया जग कुटुंब छे न्याय जूलु, तेने दूर उवेखो. आतम. १ भक्ति माता बोध पिता छे, कर्मयोग छे भाई, उपासना छे बहेनी नीति, जीवननी छे कमाई. आतम. २ शुद्ध परिणति साची स्त्री छे, शुद्ध स्वरूपी सुहाई, निजथी भिन्न कदापि न थाये, पूर्णानंद प्रदायी. आतम. ३ सात्त्विक परिणति साची सासु, ध्यान तेससरो पेखो, केवल ज्ञान ते पुत्र पवित्र ज, प्रगटे निश्चय एको. आतम. ४ असंख्य प्रदेशी साचुं घर छे, टळे खरे नहीं क्यारे, अन्तर दृष्टि प्रगटे ज्यारे, कुटुंब प्रगटतु त्यारे. आतम. ५ आत्म कुटुंबनी साथे रमवू, शिक्षा छे सुखकारी, बुद्धिसागर आनंद मंगल, आत्म कुटुंब बलिहारी. आतम. ६ १३५ For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मानव भव नहीं हारो, मनुष्यो ! मानव भव नहीं हारो, मनुष्यो !!! निज आतमने सुधारो; क्षण क्षण दिलमां प्रभुने संभारो, ममता अहंता वारो, धन सत्ता अभिमान निवारी, दिलमां दया सत्य धारो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राग रोष अरि प्रगट्या संहारो, त्यागो दुष्ट विचारो; आतम सरिखा सहु जीव भाळो, मन प्रगट्यो मोह मारो. मनुष्यो ! २ मनुष्यो ! १ शत्रु उपर सम प्रीत धारो, प्रभुमां मनडुं वाळो; गुणी पणानी अहंता टाळो, टाळो दुष्ट आचारो. मनुष्यो ! ३ तन धन यौवन गर्वने गाळो, कामनी वृत्ति विदारो; दान दया दम तप जप पूजा, धर्मना साधना सारो . मनुष्यो ! ४ सद्गुण धारो जन्म सुधारो, प्रभु मळशे निर्धारो; मनुष्यो ! ५ बुद्धिसागर आतम तारो, समजीने नहीं हारो. माया नहीं छे तारी, आतम! १३६ माया नहीं छे तारी, आतम!!! माने शुं मारी मारी. आतम. १ माया स्वप्न क्षणिक पडछाया, साची न माया यारी, माया पाछळ दुनिया मरी पण, माया न गई कोई ल्हारी. आतम. २ For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेम जेम माया पाछळ दोडे, तेम तेम दुःख खुवारी; मायाथी कदी सुख न साधु, दुःखी नर ने नारी. आतम. ३ सर्व विश्व छे माया वशमां, नाना रूप विचारी; मायाने मारी कहेवामां, संकट दुःख अपारी. आतम. ४ अज्ञान मोहनी मायामांही, मुंझाया सहु संसारी; हुं तुं वृत्ति माया रूपी, माया गति छे न्यारी. आतम. ५ नाम रूपनी विषय वासना, लोक वासना भारी; शास्त्रने मत पंथ वासना टळतां, आनंद प्रगटे अपारी. आतम.६ चिदानन्द तुज रूप खरूं छे, तुजमां न दुःख लगारी; बुद्धिसागर निजमां आनंद, प्रभुता छे जयकारी. आतम. ७ क्यांथी आव्यो क्यां जईश भाई! क्यांथी आव्यो क्यां जईश भाई! जोने तपासी तारी सगाई. क्यांथी १ काया माया काची के साची, रंगमा रह्यो शुं? राची माची. क्यांथी २ फूली फोगट शुं फांफां मारे? फोगट जन्म गुमावी शुं हारे. क्यांथी ३ कंचन कामिनी मारा मानी, १३७ For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाहक मुझे छे नादानी. क्यांथी ४ मरण समये तुं खाली जाशे, त्यारे मूरख तुं पस्ताशे. क्यांथी ५ चाल्या सहु निज निज वाटे, चेत चतुर तुं चेतन घाटे. क्यांथी ६ मधु बिन्धु सम सुख संसारे, तृप्ति न वळशे तेहथी क्यारे. क्यांथी ७ मोहनी माया जगमां मोटी, क्षणमां नाशी दुःखदा खोटी. क्यांथी ८ लटपट चटपट झटपट त्यागी आत्म स्वरूपनो था तुं रागी. क्यांथी ९ सत्य शुद्ध परमात्म स्वरूपी, बुद्धिसागर सुख चिद्रूपी. क्यांथी १० ____धर्मी बनो नर नार, जगतमां धर्मी बनो नर नार, जगतमां धर्मी धर्मथी शान्ति सुखडां अपार जगत रोगीनां रोग हरो रे, तन धन अी सार, दुःखीना दुःख टाळवा रे, धारो दिलमां उदार. जगतमां. १ १३८ For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काळा गोरा पीळा तणो रे, भेद न राखो लगार, देश धर्म भेद त्यागीने रे, सहु पर करी उपकार. जगतमां. २ भूख्याने भोजन आपq रे, मांदानी सारवार, मरता मनुष्योने बचाववा रे, करो बहु उपकार. जगतमां. ३ सत्य अहिंसा शील धरी रे, धरो सत्य आचार, आतम सम जीवो गणो रे, क्रोधे न देशो मार, जगतमां. ४ मांस दारू ने जुगटु रे, चोरी ने व्यभिचार, शिकार व्यसनो निवारतारे, सुख शान्ति जयकार जगतमां. ५ दुष्ट विचारो दूर करो रे, करशो र्धम्य विचार, प्रमाणिक पूरा बनो रे, मनना टाळो विकार. जगतमां. ६ प्रभु महावीर देवनो रे, सदुपदेशनो सार, निज आचारे उतारतारे, सफळ थतो अवतार. जगतमां. ७ लक्ष्मी सत्तानी तोरमारे, मुंझो नही नरनार, बुद्धिसागर धर्मने रे, आराधो सुखकार. जगतमां. ८ समता भावमां रे चेतन! समता भावमां रे, चेतन! अनुभव ज्ञाने रहेg, दुनिया साचा खोटा कहेवे, त्यां नही मनडुं देवू. समता. १ दुनियामांही को नही तारूं, मान नहीं मन मारूं, कोई न अन्ते साथे आवे, अन्ते सर्वे न्यारूं. समता.२ १३९ For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुद्गलनी बाजी सहु जुठी, ममता तेनी खोटी, करोडपतिनी साथ न कोई, लखपति नही लंगोटी. समता. ३ सुख दुःख वादळ छाया पेठे, क्षण क्षणमां बदलातुं, नाटकीया पेठे अवतारो, लहीने नाटक थातुं. समता. ४ कर्म वशे सहु जीवो भमतां, भमतां दुःखडा पावे, कर्म नचावे तेवू नाचे, स्थिरता क्यांय न पावे. समता. ५ नहीं नारी ने नहीं नपुंसक, नहीं तुं नर अवतारी, पुद्गलना वेषो पहेरीने, भटके भवमां भारी. समता.६ पुद्गलना संगे क्रोधादिक, थाता ते नहीं पोते, आतम सत्ताए परमातम, शुद्धज्ञाननी ज्योते. समता. ७ निंदा के स्तुति नही तारी, रागादिकथी न्यारो, सत्ताए तुं सिद्ध समोवड, ज्ञानादिक आधारो. समता.८ आत्मस्वरूपे तारे रहे, धर्म ए ज छे साचो, रागद्वेषमा चित्त न देवू, परमभावमां राचो. समता. ९ अलख निरंजन रूप मझार्नु, सत्ता ध्याई लेवू, बुद्धिसागर सिद्ध सनातन, ब्रह्म रूपने से. समता. १० मायामां मनडुं मोर्खा रे मायामां मनडु मोर्खा रे, जागीने जो तुं, नरभवनुं जीवन खोयुं रे, जागीने जो तुं. १४० For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मातानी कूखे आवी, नवमास ऊधो रहीयो, त्यां दुःख अनन्तु, लहीयो रे, जागीने जो तुं. बालपणामां समज्यो, न देव गुरु सेवा, रमवू ने मीठा मेवा रे, जागीने जो तुं. जुवानीमां युवतीनां संग बहु खेल्यो, तें धर्मने पडतो मेल्यो रे, जागीने जो तुं. पैसाने माटे पापो, कर्या तें बहु भारी, ते आतमने विसारी रे, जागीने जो तुं. राग द्वेषे वाह्यो, अज्ञाने भरमायो, नाहक ज्यां त्यां धायो रे, जागीने जो तुं. सुखे दुःखे प्राणीने, एक दिन मरवू, पण काम वधार्यु वरवू रे, जागीने जो तुं. करीश तुं जेवू भाई, पामीश भाई तेवू, कोईने कांई न कहेवू रे, जागीने जो तुं. स्वप्ननी जूठी बाजी, रह्यो | तेमां राजी, कोईने कांई न छाजी रे, जागीने जो तुं. बुद्धिसागर भव्यो! चेतजो विचारी, समजो नर ने नारी रे, जागीने जो तुं. १४१ For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माया न मूरख तारी रे माया न मूरख तारी रे, शुं माने मारी मारी, मारी मारी करतां तारी, उमर सहु परवारी रे. माया. १ रावण सरखा राजा चाल्या, चाल्यां रंक भिखारीए, जेनी हाके धरणी धूजे, ते पण चाल्या हारी रे. माया. २ डहापणना दरियामां डूबी, शिर पर घूली डारी रे, कपट कळामां काळो थईने, मारी कटारी रे. माया. ३ निर्दय नफ्फट नागो थईने, कीधी चोरी जारी रे, दगा प्रपंचो पाखंड मांडी, दोड्यो नरकनी बारी रे. माया. ४ अभिमानना तोरे फूली, वात करी तकरारी रे, वात वातमां लडी पड्यो तुं, धर्म न हृदये धारी रे. माया. ५ निंदामां निशदिन शूरो थई, दोष कर्यो ते भारी रे, संतनी संगत कीधी रे, पापीथी प्रीति प्यारी रे. माया. ६ लालचु लंपट लुच्चो बनी तें, करी कुसंगी यारी रे, भजन प्रभुनुं भूली तें तो, धर्मी संग निवारी रे. माया. ७ ज्ञानीनी वात मनमां नगमती, प्यारी होबर धारी रे, फोगल ममतामां फूलीने, उंमर आखी हारी रे. माया. ८ ये तो चेतो चित्तमां चटपट, समजो नरने नारी रे, १४२ For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आंख मींचाये कशुं न हाथे, जावू सहु विसारीरे. माया. ९ करशो परमातमथी प्रीति, गुरु सेवो उपकारी रे, बुद्धिसागर धर्मीजननी, हुं जाउं बलिहारी रे. माया. १० गुरुगमथी भाई ज्ञान ग्रहो तुम गुरुगमथी भाई ज्ञान ग्रहो तुम, गुरु देवता गुरु दीवो, गुरु आंखो ने गुरु छे पांखो, गुरु गीतारथ जगदीवो. गुरु १ गुरु कृपाथी ज्ञान ज प्रगटे, विघटे मिथ्या मल भारी, चिरंजीवजो गुरु गीतारथ, बूंडतां बेडली तारी. गुरुगम २ देवगुरु दो खडे देखकर, वंदो किसकुं पहेला भाई, उपकारी गुरु वंदन पहेला, सज्जनोए दीधुं बताई. गुरुगम ३ गुरुने देखी वंदन करवू, नम्र वचन उच्चर, हाथ जोडकर सुणो देशना, गुरुविनये मनडुं धरवू. गुरुगम ४ समकित दायक सद्गुरु दर्शन, विधिए करजो नरनारी, प्राणान्ते पण गुरुनी आणा, लोपो नहीं हिंमतहारी. गुरुगम ५ जेना माथे सद्गुरु नहीं, ते नगुरा दुःख लहेशे भारी, सेवो गुरुने ज्ञानना अर्थे, समज समज मन संसारी.गुरुगम ६ गुरुनी भक्ति करजो प्रेमे, श्रद्धा मन लावी सारी, बुद्धिसागर वंदो सद्गुरु, हुं जाउं तस बलिहारी. गुरुगम ७ १४३ For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पामर प्राणी न पारखे पामर प्राणी न पारखे, आव्यो हीरलो हाथ, कापी अरे कल्पवृक्षने, दीये बावळीये बाथ. रासभ साकर शुं करे ? जेने विष्टाथी राग, दाक्ष लुंबने शुं करे ? काळो कपटी रे काग. लालचथी ललचाय छे. प्रमदा देखीने प्रेम, विरूवा विषयमां वहाल छे, नथी नीतिने नेम. दान देवामां दीनता, प्रभु पूज्यामां पंग, शूरो छे निज स्वार्थमां, ढोल जेवो कुढंग. आशाना आधीन छे, दया देव न दील, सद्गुरु संत न सेवतो, जेवो वननो रे भिल. कस्तुरी मृग गंधने, लेवा मारेरे दोट, कस्तुरी छे निज नाभिमां, जेनी वर्ते न खोट. भूल्यो पामर प्राणीयो, प्रभु परख्या न प्रेम, अन्तरना अज्ञानथी, हार्यो हीरलो एम. सद्गुरु शरण कर्या विना, जाय जन्मारो फोक, बुद्धिसागर मोह बाजीमां, फूले दुनियामां फोक. १४४ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पामर १ पामर २ पामर ३ पामर ४ पामर ५ पामर ६ पामर ७ पामर ८ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूरख जीवडा कांई न समज्यो राग - मराठी साखी मूरख जीवडा काई न समज्यो, पाप कीधां कंई भारी; तप जप दान क्रियादिक छोडी, कीधां ते चोरी जारी. अब चेतो रे चित्तमां चतुर विचारी, छोडी आ दुनियादारी. अब. १ कोई कोईनी साथ न आवे, तन धन जूठ कहावे; नाहक ममता तेमां राखी, नरक निगोदे जावे. अब. २ कीधां वार अनंति सगपण, लाख चोराशी भटकी; तारुं तेमां वळ्युं शुं चेतन, लालच मांही लटकी. अब. ३ मायाना विष वृक्षो वावे, आवे फळ तो नठारां; प्यार करतां जगमां परगट, थतां जनो दुःखियारां. अब. ४ आतम ते परमातम देहे, छे प्रीति तस साची; आतम समोवड कोई नथी जग, रहेजो तेह शुं राची. अब. ५ अलख पन्थमां अजब तमासा, कोई न कोई का दासा; बुद्धिसागर अवसर पाकर, धर आतम विश्वासा. अब. ६ चेतन! अनुभव रंग रमीजे, चेतन! अनुभव रंग रमीजे, आगम दोहन अनुभव अमृत, योगी अनुभव रीजे. चेतन! १ अनुभव अमृत वल्ली सरिखो, अनुभव केवल भाई; १४५ For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुभव शाश्वत सुख सहोदर, ध्यान तनुज सुखदाई.चेतन! २ अनुपम अनुभव वर्णन करवा, को'न समर्थ कहावे; वचन अगोचर सहज स्वरूपी, अनुभव कोईक पावे. चेतन! ३ अनुभव हेतु तप जप किरिया, अनुभव नात न जाति; नयनिक्षेपाथी जे न्यारो, कर्म हणे घनघाति. चेतन! ४ विरला अनुभव रस आस्वादे, आतम ध्याने योगी; आतम अनुभव विण जे लोको, शिव साधे ते ढोंगी. चेतन! ५ अनुभव योग आतम दर्शन, पामी बहुत खुमारी; बुद्धिसागर साची व्हाली, अनुभव मित्तसुं यारी. चेतन! ६ चेतन! स्वारथीयो संसार चेतन! स्वारथीयो संसार, सगपण सर्वे खोटा रे. चेतन! जूठी छे काया वाडी, न्यारी छे गाडी लाडी; फोगट शाने मन फुलाय, अन्ते सर्वे जाशे रे. चेतन-१ हाके धरणी धूजावे, भय तो दिलमां नहि लावे, चाल्या रावण सरखा राय, पांडव कौरव योद्धा रे. चेतन-२ स्वारथी जूठं बोले, स्वारथथी जूळू तोले, स्वारथ माटे युद्धो थाय, लडतां रंकने राणा रे. चेतन-३ स्वारथथी नीति त्यागे, स्वारथथी पाये लागे; स्वारथ कपट कळानुं मूळ, पाप अनेक करावे रे. चेतन-४ १४६ For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वारथमां सर्वे डूब्या, भणतर भणीने भूल्या; । स्वारथ आगळ सत्य हणाय, अंधा नरने नारी रे. चेतन-५ स्वार्थथी मस्तक कापे, स्वारथथी पदवी आपे; स्वारथ आगळ शानो न्याय, बहेरा आगळ गाणुं रे. चेतन-६ स्वारथथी विरला छुट्या, स्वार्थमां सर्वे खुंच्या; । जगमां स्वारथतणो प्रपंच, न्याय चूकादा भेळो रे. चेतन-७ धर्मी स्वार्थने त्यागे, दिलमां आतमने रागे; रविकिरण स्वारथ तम नाश, होवे आतम ज्ञाने रे. चेतन-८ परमातम प्रीति धारी, सेवो गुरु उपकारी; बुद्धिसागर धरजो धर्म, दुनिया सर्व विसारी रे. चेतन-९ शाने तुं करे छे माया रे शाने तुं करे छे माया रे, नाहक प्राणी; मरडी मूछोने चाले, मगरूरी मांही म्हाले; जवू पडे हाथ ठाले रे, नाहक-१ प्रभु नाम नहीं लीg, संतने न दान दीधुं, विषय विष प्रेमे पीधुं रे. नाहक-२ भ्रान्तिमां भूली भारी, आखी उमर हारी; थाशे कोण गति तारी रे. नाहक-३ खोदे ते पडे छे पहेलो, परनां बूरामां घेलो; १४७ For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनमां रहीने मेलो रे. नाहक-४ बीजानुं देखीने सारुं, मनमा लागे नठारुं; भलुं थाशे केम तारुं रे. नाहक-५ कपटथी काळु थाशे, धार मन विश्वासे, पोते तुं छेतराशे रे. नाहक-६ कपट कळाने त्यागी, सद्गुरु शिख मागी, बुद्धिसागर घट जागी रे. नाहक-७ धर्म कर आतमा धर्म कर आतमा धर्मनो प्रभाव रागः झूलणा छंद धर्म कर आतमा धर्म कर आतमा, धर्म थी होय संसार पारो; धर्म करता कदी धाड आवी पडे, पूर्वना कर्मथी ते विचारो. धर्म-१ धर्मथी देवता धर्मथी मानवी, धर्मथी नरपति श्रेष्ठ थावे; धर्मथी इष्ट संयोग आवी मळे, धर्मथी दुःख दौर्भाग्य जावे. धर्म-२ अग्नि पण जल हुवे, सर्पमाला हुवे, धर्मथी कीर्ति जगगवाती. धर्मथी सिद्धिने पामतो मानवी, धर्मथी रिद्धिओ सह पमाती. धर्म-३ धर्मना तेजथी मेघ वर्षा करे, धर्मना तेजथी वाय वायु; १४८ For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मना तेजथी रात्रि दिवस थतां, धर्मना तेजथी दीर्घ आयु. धर्म-४ मानवी ऊंघतो धर्म पण जागतो, धर्मनुं बांधीए सत्य भातुं; चोर चोरे नहीं अग्नि बाळे नहीं, समजने धर्मनुं सत्य खातुं. धर्म-५ धर्मथी परभवे उच्च अवतार ले, धर्मथी पाप सर्व प्रणाशे; धर्मथी लब्धिओ जीवने संपजे, धर्मथी सर्व बुद्धि प्रकाशे धर्म-६ पग पगे रिद्धिओ प्रगटती धर्मथी, धर्मथी दुनिया हाथ जोडे; धर्म हीरो तजी मूढ मानव अरे; पापना पत्थरे शिर फोडे. ___ धर्म-७ सत्य आनंदने मोज छे धर्मथी, पूर्व भवना कर्या आज पावे; हालना धर्मने भोगवे परभवे, पामतो फल यथा बीज वावे. धर्म-८ आम बावळ अने लींबडो आंबली, मानवी जे रूचे तेहि वावो; वावीए जेहवू पामीए तेह, नास्ति तेमां जरा कोई दावो. धर्म-९ धर्मना बीज वावो सदा प्रेमथी, चालजो धर्मथी मुक्ति वाटे; बुद्धिसागर अरे चेतजे आतमा, माल छे मुक्तिनो शिर साटे. धर्म-१० १४९ For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊंघ नहीं आतमा ऊंघ नहीं आतमा निद्रा त्याग राग : झूलणा छंद ऊंघ नहीं आतमा ऊंघ नहीं आतमा, ऊंघता काळ वीत्यो अनादि; ऊंघता आतमा दुःख पाम्यो बहु, भूलियो शुद्ध चैतन्य यादि. ऊंघ-१ ऊंघथी आळसु, सत्य जोयुं नहीं, ऊंघथी कार्य करवू विसापुं; ऊंघमां शत्रु छे आपणो आतमा, सत्य जीवन अहो जाय हार्यु. ऊंघ-२ खडग चौधार निद्रा बडी वैरिणी, ऊंघमां कर्म बंधाय जाणो; ऊंघथी ज्ञानने ध्यान भूले सहु, ऊंघथी दुःखडा दिल आणो. ऊंघ-३ सर्वनी घात की अहो ऊंघ छे, ऊंघमां टेकनी भूल थावे; ऊंघने टाळतां ऊंघने खाळतां, भान चेतन तणुं दिल आवे. ऊंघ-४ द्रव्य अने भाव भेदे अहीं ऊंघ छे, जगतमां भावथी ऊंघ छे मोटी; राग अने द्वेषथी रमणता बाह्यमां, भाव निद्रा अहो केम छोटी. ऊंघ-५ १५० For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भावथी ऊंघता मोहना जोरथी, अटकता प्राणीया दुःख पावे; विविध काया ग्रही घोर संसारमा, भटकता पार रे केम आवे. त्याग दुष्कर अहो त्याग दुष्कर अहो, भाव निद्रा तणो भव्य भाळो; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोलतां चालतां ऊंघतां प्राणीया, ऊंघ-७ भाव निद्रा तणो एह चाळो. ऊंघनी लहेरमां झेर छे मोटकुं, ऊंघमां दुःखनो पार नावे; जागरे आतमा पामी सम्यक्त्वने, भोर वेळा अहो बोधि भावे. ऊंघ-८ ऊंघनी घेनमां घोर रात्री अहो, ऊंघ मिथ्या महा दुःखदायी; जागने आतमा पामी सम्यक्त्वने, १५१ ऊंघ-६ भक्ति उत्साहने चित्त लायी. ऊंघ - ९ ऊंघने त्याग रे ऊंघने त्याग रे, चित्तमां चेतना शुद्ध धारी; बुद्धिसागर सदा मुक्तिना पंथमां, जागीने चाल शीख सारी. ऊंघ - १० For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हार नहीं आत्मा दृष्टि खूले, रिद्धि मिले राग : झूलणा छंद हार नहीं आतमा हार नहीं आतमा, ___ पुण्ययोगे मनुष्य जन्म धार्यो, विषयनी वासना पाशना बंधथी, __ हाथ हीरो चढ्यो फोक हार्यो. हार-१ मारूं मारूं करी नाचीयो भव विषे, मारूं मारूं करी फोक फूले; जन्म त्यां मृत्यु छे चेतजे आत्मा, __ सद्गुरु संगथी नेत्र खूले. हार-२ काळनी पांख छे जगतमां कारमी, झडपी ले जीवने एक फाळे; केई चाल्या अने चालशे प्राणीया, मूढ शुं मोहमां दिन गाळे. हार-३ लक्ष्मीना लोभमां थोभ छे नही जरा, ज्ञानथी देखतां सर्व खोटुं; स्वप्ननी सुखलडी भूख भांगे नहीं, __ सत्य छे ज्ञानीनुं वाक्य मोटुं. हा-४ मणि अने रत्ननी खाण पामी अरे, शीदने पत्थरोने उपाडे; १५२ For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्य योगे लही भव्य तेजतुरी; रमतमां मूढ | उडाडे. हार-५ रत्न चिंतामणी हाथमां आवीयुं, फेंकी दे धूळमां हीन भागी; पामी रससिद्धिने पापना योगथी, त्यागी दे मानवी मोहरागी. हा-६ चेत चेतन जरा ज्ञानथी जागीने, साधी ले सत्य तुं कृत्य सारूं; बुद्धिसागर सदा चेतजे चित्तमा । शुद्ध चैतन्यनुं रूप तारूं. हार-७ सर्व संसारना खेल छे कारमा संसारनी असारता राग : झूलणा छंद सर्व संसारना खेल छे कारमा, सार तेमां नथी सत्य भाऱ्या, रूप जूदा धरे प्यार त्यां शु धरे?, __ समज जे आतमा सत्य दाखं सर्व-१ क्षणिक आनंदमां मोहथी मुंझीने, भव्य! मानवपणुं केम हारो; आज ने काल करतां थका मानवी, काळ आयु हरे को विचारे. सर्व-२ बाह्य आनंदनो रंग छे अभिनवो, नष्ट ते तो थशे चित्त धारो; १५३ For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आधि ने व्याधिथी मुक्त कर आतमा, समजीने सत्यने केम हारो. सर्व-३ लक्ष चोराशीमां विविध देहो धर्या, मोह अज्ञानथी पार नाव्यो; आतमा सत्य जाण्यो लही ज्ञानने, दिलमां ते सदा खूब भाव्यो. सर्व-४ जूठ संसारमा सार छे नही कशुं, तत्त्वदृष्टि थकी ले विचारी; वर्णने वेष लिंगादिके धर्म नहीं, भ्रान्तिमां भूलतां छे खूवारी. सर्व-५ सद्गुरु संगथी समज रे धर्मने, धर्मथी पाप सघळां प्रणाशे; साद्यनंति स्थिति-पामतो आतमा, धर्मथी शुद्धरूप प्रकाशे. सर्व-६ वित्तना फंदमां दुःखना कंद छे, सत्य वैराग्यथी ते विचारो; सत्य आनंदमां रमणता राखवी, जाप अजपा थकी जीव तारो. सर्व-७ फोक झघडा करी धर्मना फंदमां, केम आयु अरे भव्य गाळो; तत्त्व नहीं अन्यथा कोई काळे थतुं, सत्य सारांशथी धर्म पाळो. सर्व-८ वीर वचनो सदा सर्व सापेक्ष छे, समजीए ज्ञानने दिल धारी; बुद्धिसागर सदा मुक्तिना पंथमां, वीर वचनो महा उपकारी. सर्व-९ १५४ For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वार्थना फंदमां सर्व दुनिया फसी स्वार्थनी भयानकता राग : झूलणा छंद स्वार्थना फंदमां सर्व दुनिया फसी, तत्त्वनी वात दीलमां न धारी; खेलता नाचता बोलता दोडता, पामता प्राणीया दुःख भारी. स्वार्थ-१ स्वार्थना छंदमां सत्य स्वप्ने नहीं, __ स्वार्थना जलधिमां मीन प्यासी; स्वार्थनी छांयडी केरडा जेहवी, स्वार्थनी जगतमां और फांसी. स्वार्थ-२ स्वार्थथी सत्य छानुं रहे छे सदा, स्वार्थथी दुःखोनो पार नावे; स्वार्थना पाशमां प्राणिया जे पड्या, विविध देहो ग्रही दुःख पावे. स्वार्थ-३ जगतमां व्यापीया सर्व छे महाबली, सर्व जग जंतुने ते नचावे; स्वार्थनी भ्रान्तिमां ब्रह्मनी भूल छे, स्वार्थथी मोटका पाप लागे. स्वार्थ-४ स्वार्थमां सहु फस्या, कोई विरला बच्या, स्वार्थथी पापनी वात थावे; स्वार्थथी धर्मनी चक्षुए अन्ध छे, स्वार्थथी पापर्नु अन्न खावे. स्वार्थ-५ १५५ For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोषनुं मूळ छे स्वार्थ अवनी विषे, स्वार्थथी मानवी सत्य हारे; मात पुत्रो हणे बाप पुत्री हणे, स्वार्थना दोषथी जीव मारे. स्वार्थ-६ जगतना स्वार्थमां न्याय छे नहीं कशो, जगतना स्वार्थमां दुःख मोटुं, मोह अज्ञानथी स्वार्थनी आशमां, बोलता प्राणिया वेण खोटुं. स्वार्थ-७ स्वार्थनी धूनमां देव भासे नहीं, स्वार्थनी धूनमां भजन भूले; स्वार्थना त्यागथी सत्य तो सांपडे, सत्य आनंदता दील खूले. स्वार्थ-८ संगति गुरु तणी सर्व सुख मूळ छे, स्वार्थना पाशने तेही कापे; बुद्धिसागर सदा स्वार्थने त्यागीए, ध्यान कीजे मुदा ब्रह्म जापे. स्वार्थ-९ अमूल्य शिक्षा राग : वहाला वीर जिनेश्वर सुखकर अमूल्य शिक्षा मानवी होय तो मानवीरे; फीकरनी फाकी करीने फकीर होय तो फाकवी रे.सुखकर १ मौन विना मुनिवर ते शानो? दान कर्या विण शानो दानो; १५६ For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छबीलो होय तो दिलमां सत्य वातने छापवी रे. सुखकर २ न्याय विना राजा नही दीपे, तृषा छीपे नही समुद्र टीपे; धर्म विना नही सुखनी वात पीछानवी रे. सुखकर ३ नाक विना नही शोभे काया, शोभे शुं तरुवर विण छाया; धर्म विना तेवी जिंदगानी जाणवी रे. सुखकर ४ अक्कल विण जेवी छे शक्कल, मेघ विना शोभे नही मरुथल; धर्म विना तिम मूंडी वेळा भाळवी रे. सुखकर ५ हळी मळी आनंदे चालो, बोल्युं तेवू निश्चय पाळो; रसने निंदाथी राखो रसनाने जाळवी रे. सुखकर ६ देश वेशने कदी न त्यागो, अन्तरना उपयोगे जागो; बूरी परनी वातो दूर थकी ते वाळवी रे. सुखकर ७ जननी जुओ न बाजु काळी, अवगुण दृष्टि टेवो टाळी; जीवन वेळा सर्वे सज्जन साथे गाळवी रे. सुखकर ८ नीतिनी रीतिमां प्रीति, धर्म करतां कदी न भीति; वेगे वेळा सारी ब्रह्मज्ञानथी वाळवी रे, सुखकर ९ सर्व कार्यमां राखो समता, उत्तम सज्जन सहेजे नमतां; बोली वाणी भव्यो प्राण पडे पण पाळवी रे. सुखकर १० साचुं ते जाणो मन मारूं, जूठाने करशो झट न्यारूं; बुद्धिसागर हितशिक्षा दिल लाववी रे. सुखकर ११ १५७ For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवा १ एवा २ एवा ३ एवा ४ धर्मी बनो नरनार धर्मी बनो नरनार, एवा धर्मी. दया करो सर्व जीवो उपर, द्वेष धारो न लगार. वेरी उपर वेर न धारो, सत्य धरो नरनार, गरीब दुःखीनी वहारे धाशो, करो न हिंसा विचार. पशु पंखी- मांस न खाशो, करो न क्यारे शिकार; क्रोध मान माया ने लोभने, कामनो करशो संहार. दुष्ट व्यसनना दुर्गुण टाळो, टाळो दुष्ट विकार; धर्मना नामे करो न युद्धो, धारो न्यायाचार. परमेश्वरना सर्व जीवो, बाळक छे निर्धार; एक बीजाने दुःख न देशो, भूलो न शुभ आचार. विश्व मुसाफरखानुं जीवो, कोई अमर न रहेनार; माटे मनुष्य हळीमळीने चालो, धर्म अहिंसा सार. सत्य दया मैत्रीने लघुता, क्षण सरलता विचार; विषयोना मोहे न मुंझावु, संयम सेवो उदार. दुष्ट विचारोथी दूर रहे, धर्म सदा सुखकार; पश्चातापथी आतम शुद्धि, पामी संग परिहार. प्रभु दर्शने मुक्ति प्राप्ति, एवा धर्मे थनार; बुद्धिसागर धर्म धर्याथी, सहुने प्रभु मळनार. १५८ एवा ५ एवा ६ एवा ७ एवा ८ एवा ९ For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आत्मानी स्त्री आतम! परखो अपनी नारी, आतम. देहकुं नारी मानत भूले, दु:खी सब संसारी. रूप रंग धारक जो नारी, देह चामडी धारी; उपजे विणशे दुःखकी क्यारी, जूठी है तस यारी. आतम-२ मनकी शुभाशुभ परिणतिनारी, चतुर्गति दुःखकारी; शुद्ध परिणति नारी प्यारी, जाण ले निजसे न न्यारी. आतम-३ ज्ञानानन्द स्वरूपी परिणति, मिलतां प्रभुता भारी; वर्ण गंध रस स्पर्श न जिसकुं, खेले खेल अपारी आतम-४ अज अविनाशी न खरे कबहुं, एक स्वरूप जयकारी; बुद्धिसागर शुद्ध परिणति, परब्रह्मपति नारी. अपूर्व संयम सेवीशुं क्यारे अहो, कहेजो श्यामने राग : ओधवजी संदेशो अपूर्व संयम सेवीशुं क्यारे अहो, अपूर्व वैराग्ये राखी मन स्थिरजो; शुद्ध समाधि लीन थई रहीए सदा, क्यारे थईशुं अन्तरना वडवीर जो . समता भावे शाताशाता वेदशुं, घोर परिषह सहन करीशुं सर्वजो; १५९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only आतम-१ आतम-५ अपूर्व १ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निर्भय भेद रहित थईने निःसंगथी, मुक्ति मार्गमां विचरीशुं तजी गर्वजो. अपूर्व २ चैतनभावे चेतन परिणमतो रहे, देहभावमां परिणमन नहीं थायजो; एनी अन्तरमा साक्षी वर्ते सदा, वस्तु वस्तु स्वभावे नित्य जणावजो. अपूर्व ३ परम प्रभुथी लागी रहे लगनी सदा, औदयिक भावे साक्षीपणुं वर्तायजो, कर्म विपाको भोगवतां योगीपणुं, पूर्णपणे अन्तरथी अनुभव थायजो. अपूर्व ४ परम प्रभुता प्रगटे परमानंदमय, जन्म मरणना बंधना छूटी जायजो; तेनुं कारण चारित्र ज मनमां धरी, बुद्धिसागर भाव भलो वर्तायजो. अपूर्व ५ आतम!!! कोई न तारुं रे आतम!!! कोई न तारूं रे, मोहे करे |! मारुं मारुं मरण पछी कोई साथ न आवे, तन धन सर्वे न्यारु.आतम! १ गाडी वाडी लाडी तारी, कुटुंब नहीं छे तारुं, कर्या कर्म भोगववा पडशे, कोई न सहाय थनारुं. आतम! २ १६० For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वप्ना जेवू मननुं मान्युं, भ्रान्तिनुं अंधारूं; दुनियामां स्वारथना सगपण, कोई नहीं प्यारो प्यारं.आतम! ३ वहाल करे सहु स्वारथ वळग्यां, पछी देवता दारुं; स्वार्थ सरे थावे सहु अळगु, नगुणा नगुरा नकारुं. आतम! ४ पाणीना परपोटा जेवी, काया कारमी भाळु; पलक पछीनी खबर न पडती, जाशे सघळु चाल्यु. आतम! ५ जगमां सुख कीर्तिने माटे, थतो क्रूर झघडाळु; काल पकडशे ओचिंतो झट, पडतुं रहेशे प्यालु. आतम! ६ बाजीगर बाजी सम सघळु, देखतां ज जनारुं; माया मोहमां मुंज न मूरख, कर नहीं कर्म नठारूं. आतम! ७ सद्गुरु शिक्षा मानी चेतो, धर्मे थातुं सारुं; बुद्धिसागर प्रभु भजी ले, दिल प्रगटे उजीयालं. आतम! ८ तपिया! तन कां तपावे उपदेश तपस्वीने! राग : होरी तपिया! तन कां तपावे, अंतरमां बहु तापरे. तपिया! कामनी अग्नि मनडुं तपावे, तन इन्द्रिय बळी जावे; मनमांही तुं जोने तपासी, धूणी तापशुं थावे रे. तपिया! १ जटा वधारी जोगी बनीने, दिलने क्रोध धखावे; . काम जिहां तिहां राम न प्रगटे, शुं लंगोट लगावे रे.तपिया!२ १६१ For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माया मरी नहीं मन नहीं मरीयु, शुं तन भरम लगावे; चिपीयो राखे नहीं चित्त वशमां, दंभशुं कंथा धरावे रे. तपिया! ३ सूरज तापे वृक्षो तपे छे, वडला जटाओ वधारे; खाखमांही आळोटे गद्धा, मुक्ति छे मोह मारे रे. तपिया! ४ समता वण शंख फंके वळे शु? भेख धरे नहीं फावे; आतम ज्ञान विना नही मुक्ति, मूढने शुं भरमावे रे. तपिया! ५ जळना स्नाने मुक्ति मळे तो, मीनादिक शिव पावे; आश त्यजा वण आसन वाळी, _ शानो जोग जगावे रे. तपिया! ६ देह तापथी मननां तापो, क्यारे शांत न थावे; आतमज्ञानथी मननां तापो, शांतपणाने पावे रे. तपिया! ७ मोह काम आशाने त्यागे, त्यागी सहु कहावे; बाह्य त्यागी पण अंतर रागी, त्यागी बनी नही फावे रे. तपिया! ८ मन वश नहीं तो वनमां गये शुं?, लाख चोराशी न जावे? वासना ज्यां त्यां वन घर सरखां, शुं जगने समजावे रे. तपिया! ९ मन नहीं दंडयुं दंड धरे शुं? क्यां मनु जन्म गमावे; १६२ For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ज्ञानी गुरुगम ज्ञान ग्रही ले, मनडुं वशमां आवे रे. तपिया ! १० मुक्ति न वर्णे मुक्ति न मरणे, मुक्ति छे मोह हठावे; बुद्धिसागर गुरुना संगे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमानंद सुख पावे रे. तपिया ! ११ संतो! अचरिज वात न लागे संतो! अचरिज वात न लागे, संतो-२ संतो-३ समज्या ते अंतरमां जागे रहे सदा वैरागे. राजा घर घर भीखने मांगे, सिंह ससाथी भागे; हंसलो मोती चारो त्यागे, उदधि बळतो आगे. कीडी मेरुने गळी जावे, बोबडो गायन गावे; मर्कट जगने नाच नचावे, सिंहने बकरी खावे. काचा सूत हाथी बांध्यो, डगलुं एक न चाले; पांगळो सब दुनिया फरी म्हाले, देवने सेवक पाळे. संतो-४ यान पात्र पर दरियो चाले, अंधो जमने भाळे; ब्राह्मण भंगीने ज वटाळे, टाढ घणी उनाळे. संतो-५ संतो-६ संतो पडिया वेश्या प्यारे, राजा बकरां चारे; शूरा जन नपुंसकथी हारे, सत्य ते बावन व्हारे. भूप प्रजानी आणा माने, मांछला वाघने ताणे; दुनिया भूखी भरिया भाणे, मुक्ति लडाई ठाणे. १६३ For Private And Personal Use Only संतो-१ संतो-७ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदधि उपर पत्थर तरता, पहाड चले आकाशे; बुद्धिसागर आतम समजे, साचुं सहु समजाशे. संतो-८ चार दिवस- चांदरणुं संसार, चार दिवसनुं चांदरणुं संसारर्नु, बाजीगरनी बाजी जेवू फोकजो; लक्ष्मी सत्ताथी छाक्यो शुं मानवी? पाछळ अंते पडशे तारी पोकजो. चार दिवसमुं. १ छेल छबीला मोजीला जे महालता; वेश्या संगत करतां दारू पानजो, चश्मा जूता गर्व धरीने घालता, गोदी घाल्या चाल्या केई मशाणजो. चार दिवसमुं. २ मरडी मूछो चम चम करता चालता, मगफरीमां बोले कडवा बोलजो; राम रमी गया पर रमणीना रागमां, पाप पुण्यनो थाशे अंते तोलजो. चार दिवसनु. ३ खांते हाथे जे न उडाडे कागने, कृपण एवा अंते चाल्या जायजो; दान पुण्य करशे ते आवे साथमां, अन्ते पामर पाप करीने पस्तायजो. चार दिवस. ४ १६४ For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनी ठणीने दर्पणमां शुं देखतो, मुख छाया मिषे मृत्यु देखाय जो; एवी जाणी चेतो चेतन चित्तमां, हाथे ते साथे परभवमां थायजो. चार दिवसमुं. ५ डहापण तारुं धूळमां मळशे जीवडा, करजो दिलमां देवगुरु विश्वासजो, बुद्धिसागर धर्म जगतमां सार छे, धर्म ध्यानथी होवे शिवपुर वासजो. चार दिवसचें. ६ पैसा पैसा पैसा तारी. (भजन पद) पैसा पैसा पैसा तारी, वात लागे प्यारी रे, रात दिवस पैसा ने माटे, भटके नर ने नारी रे. पैसा १ भणदुं गणवू पैसा माटे, पैसे घेबर घारी रे, पैसाथी बालुडा छानां, पैसाथी छे यारी रे. पैसा २ पैसाथी परमेश्वर नानो, पैसो देव वेचावे रे, पैसानी पूजारी दुनिया, पैसो नाच नचावे रे. पैसा ३ हिंसा चोरी पैसा माटे, पैसाथी सर्वे व्हालु रे, आजीजी पैसाने माटे, वचन बोलवू कालु रे. पैसा ४ पैसा माटे नोकर रहेg, पैसा माटे शेठो रे, पैसा माटे राजा रैयत, पैसा माटे वेठो रे. १६५ पैसा ५ For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पैसा आगळ गुरु नकामा, पैसा माटे दोडे रे, पैसा माटे गांडो, पैसा माटे माथु फोडे रे. पैसा माटे व्हाला छे बापा, पैसा माटे छापा रे, पैसाना लोभे छे टंटा, युद्धे कापं कापा रे. पैसाथी दूरे जे रहेता, ते जन साचा त्यागी रे, 'बुद्धिसागर 'निर्लोभी जन, मुनिवर छे वैरागी रे. गप्पा गप्पा गप्पा मारे १६६ ܀ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only पैसा ६ गप्पा गप्पा गप्पा मारे, कदी न सारुं थासे रे, गप्पा मारे ज्ञान न मळशे, उंमर एळे जासे रे.... गप्पा मारे आळस प्रगटे, थाय न पर उपकारी रे, अंतर्धननो नाश ज नक्की, उमर जासे हारी रे.... नवरो बेठो नख्खोद काढे, समजो नर ने नारी रे, एदीजनना लक्षण एवा, मारे पेट कटारी रे.... प्रभु भजनमां कायर कंपे, गप्पा मारे हरखे रे, हिताहित शुं करवुं म्हारे, मूरख ते नहीं परखे रे... गप्पा ४ परनी पंचातो करवाथी, धर्म कदी न बुझे रे, 'बुद्धिसागर' समजु समजे, सारो रस्तो सुझे रे.... पैसा ७ पैसा ८ गप्पा १ गप्पा २ गप्पा ३ गप्पा ५ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन तने शी रीते समजावू? मन तने शी रीते समजावू? कोटी कोटी उपाय करुं पण, वश करवामां नहीं फायूँ. मन० १ सर्व विषयनो भोग करे पण, लेश न तृप्ति पावे; क्षणक्षण विषयो नवनवा चाहे, किण विध वशमां न आवे. मन० २ वायु विजळी करतां अति वेगी, कडुं न काने धारे, शिखामणने नहीं गणकारे, जगमां कोथी न विहारे. मन० ३ तारी माया भव पडछाया, तुजथी प्रगटे काया, सर्व जीवनो नाच नचावे, अजब छे तारी माया. मन० ४ श्वाननी पूंछडी पेठे वाकुं, सिद्धुं न क्यारे थावे; कोटी वर्ष सुधी वशमा रहे पण, क्षणमां छूटी जावे. मन० ५ तुजने वशमां करवा माटे ज्ञानोत्साह जगावू, तुज साथे लडी महावीर पदवी, लेवामां लय लावू. मन तने ज्ञान वडे वश लावू, निश्चय एह न डगावू. मन० ६ शुद्धातम उपयोगे आतम, आपो आप रमावू; बुद्धिसागर शिवसुख पावू, जग जश डंको बजावू, मन तने आतममांही समावूस परब्रह्म थई जावू. मन० ७ भ.प.१०, पृ.१३ १६७ For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निन्दा (राग : प्रभात. अथवा. ऊठो चेतन आळस छंडी.) कर्माधीन छे संसारी जीव, निन्दा कोईनी न करशो रे; निन्दा करतां नीचपणुं छे, शिक्षा दिलमां धरजो रे. कर्मा० १ तरतमयोगे दोषी दुनिया, करशो तेवू भरशो रे, निन्दक जन चंडाल समो छे, निन्दाने परिहरशो रे. कर्मा० २ पोतानामां दोष घणां छे, तेने कोई न देखे रे; परनां चांदा खोळे पापी, सद्गुण दृष्टि उवेखे रे. कर्मा० ३ निन्दकनी दृष्टि छे अवळी, परने आळ चढावे रे; पोते सारो परने खोटो, कहेवामां ते फावे रे. कर्मा० ४ त्रियोगे निन्दक जन पापी, परनुं मूंडु धारे रे; बुद्धिसागर सद्गुण दृष्टि, धारी दोष निवारे रे. कर्मा० ५ आतम! क्या करे म्हारं व्हारं. (राग : सोरठ) आतम! क्या करे मारूं तारुं; स्वप्न सरिखी दुनिया बाजी, प्यारूं छे तुजथी न्यारूं. आतम!...१ कंचन कामिनी सारूं नठारूं, अंते सर्व अकारूं, भूल करी केम भूले भोळा, वागे मृत्यु नगारूं. आतम!...२ १६८ For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असंख्य प्रदेशी अलख निरंजन, चिदानंदरूप त्हारूं, आतमनो उपयोगी थातुं, गण निज रूपने प्यारूं. आतम!...३ जे देखे ते पुद्गल माया, अज्ञाने अंधारूं, ज्ञान थकी घटमां उजियारूं, गण निजरूपने सारूं. आतम!...४ चेती ले हवे निश्चय चेतन, दुनिया देवता दारू, बुद्धिसागर जागी ले झट, चूक न अवसर चारू. आतम!...५ छोड दे यारी. (राग : सोरठ) आतम! छोड दे मोहकी यारी, मोहकी यारी सें दुःख हैं भारी, बहोत भरी हैं खूवारी आतम!१ जबतक मनमें मोह है तबतक, आंख रहत है बिकारी; अस्थिर मनतन रहत है वाचा, समजो चित्त विचारी. आतम!...२ काल अनादि भवमां भटक्यो, अब दें भ्रान्ति निवारी; आतम ज्ञान से आतम जागो, आप हो आपकी व्हारी.आतम!३ समता भावमें निशदिन रहेना, वेदो आत्म खुमारी; समतासें मोह क्षणमें विनसे, मुक्ति मिलत है प्यारी.आतम!...४ आतम आपो आपकी यारी, कर उपयोग समारी; बुद्धिसागर शुद्धातमरस, प्रगटे अपरंपारी. आतम करदे आपकी यारी!...५ १६९ For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिल मिल चलो (राग : आशावरी.) आतम! सबसे हिलमिल चलना, आतम सम सब जगजीवो है, प्रभुमय जीवन धरना. आतम० नरनारी सब बाह्य भेद है, आतमरूप समजना; हिंदु मुसलीम खीस्ति बौद्धो, आतमरूप समजना. आतम० १ देश जातिका भेदकुं मिथ्या, मानी सबसें मिलना; शुद्धप्रेम से सर्व जीवोंकी, साची सेवा करना. आतम० २ धर्म भेद में समता धरना, मोहसें है जग मरना; आतम रसका रसिया होकर, शुद्धब्रह्मकुं वरना. आतम० ३ आतम शुद्धि से है मुक्ति, पक्षपात नहि करना; निर्गुण आतम मस्तीकुं वरना, भवसागरकुं तरना. आतम० ४ भोजनपाणी सबकुं देना, ज्ञानसे जग उद्धरना; बुद्धिसागर चिदानंदरस, पीकर जीवन धरना. आतम० ५ ज्ञानी. ज्ञानी विरला कोई जगतमां, ज्ञानी० वंदु विचारी जोई. जगतमां ज्ञानी० १ कोई भाषा ज्ञानथी रे, धरतां मन अहंकार; भाषा कारण ज्ञान- रे, नावे भाषा पार. जगतमां० २ १७० For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाद विवादे मानता रे, कोईक साचुं ज्ञान; पर परिणति पोष्या थकी रे, वाधे उलटुं मान. जगतमां० ३ राग-द्वेषनो क्षय करी रे, अर्पे आतम भान; पूरण शान्ति जेहथी रे, जाणो सत्य ते ज्ञान. जगतमां० ४ आतम अनुभव ज्ञानथी रे, नाशे भवभय फंद; बुद्धिसागर पामता रे, ज्ञानी पूर्णानन्द. जगतमां० ५ मुसाफरचं घर (राग : कव्लाली) मुसाफर बहु मळ्या मानव, जगतनी धर्मशाळामां; मळी छूटा थर्बु सहुने, मुसाफर, क्युं घर छे. रह्या तीर्थंकरो नहि कोई, गया राणा अने शेठो; अमीरी वा फकीरीमां, मुसाफरनुं कयुं घर छे. पड्यां नामो सकळ मिथ्या, धर्यां रूपो नथी निजनां; गमे त्यारे जवू पडशे, मुसाफरनु कयुं घर छे. उठावी तंबुओ जावू, मळे नहीं क्यांय विश्रान्ति; सकळ देख्युं रहे त्यां रे, मुसाफर, कयुं घर छे. चणाव्या बंगला जूठा, चणाव्या महेल पडवाना; वपु घरनो भरूंशो शो? मुसाफर, कयुं घर छे. १७१ For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जगतमां सूर्य ने चंद्र ज, ठरे नहि ठाम ते क्यारे; रहे नहि ठाम ताराओ, मुसाफरनु कयुं करे छे. अमारा प्रेम पंखीडा, मुसाफर जाग निद्राथी; ग्रही ले सत्यनो रस्तो, मुसाफर, कयुं घर छे. घणो रस्तो रह्यो बाकी, प्रमोदो ने त्यजी जावू; 'बुध्यब्धि' मार्ग मुक्तिनो, मुसाफरनुं खलं शिव घर. __ हार नहीं. (राग : आशावरी) अरे जीव! मानव भव शीद हारे, चड नहि मोहना चाळे. अरे० १ तन धन जीवन राज्य ने भूमि, थाशे न तुज कोई काळे; मूकी अनंता गया ने जाशे, जाय ते नजरे भाळे. अरे० २ राज्य ने लक्ष्मी काया माया, ममताथी शीद हारे; बाजीगर बाजी सम सघर्छ, पड नहि मोह जंजाळे. अरे० ३ मारूं मारूं करी मुंझ न मनमां, त्हारूं नहीं कोई क्यारे; परमातम भजी आतमशुद्धि, कर शीद मोहमां म्हाले. अरे० ४ दुर्गुण त्यागी कर प्रभु भक्ति, चेती ले ब्रह्म विचारे; । बुद्धिसागर सन्तने सेवो, मानव भव जे सुधारे. अरे० ५ १७२ For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषयेच्छा वार! (राग : अवसर बेर बेर नहीं आवे. आशावरी) चेतन! विषयनी इच्छा निवारो; विषसम विषयना भोगे न शांति, आवे नहि भव आरो.चेतन... ज्यां सुधी मनमां विषयनी इच्छा, त्यां लगी स्थिरता न पावो; वर्ण गंध रस स्पर्श ने शब्दना, मोहे न मनने मुंझावो. चेतन...१ पांचे इन्द्रिय मनना कामे, प्रगटे सर्व कषायो; डगले पगले दुःख अनंता, अनुभव दिल प्रगटायो. चेतन...२ जडपुद्गलमां ममता अहंता, सुख बुद्धि संसारो; जडचेतन जगमांहि समता, प्रगटे तो भवपारो. चेतन...३ विषयरसे व्हाया हडकाया, पामे दुःख अपारो; चेत चेत वैराग्यने धारी, छंडो काम लवारो. चेतन...४ स्वप्न विषे पण विषयनी इच्छा, प्रगटंती झट वारो; बुद्धिसागर आतम शुद्धि, थातो घट उजियारो. चेतन...५ स्वारथियो संसार सघळो स्वारथियो संसार, ज्यां त्यां स्वारथियां नरनार. स्वारथ होय तो स्नेह ने सगपण, करे खुशामत प्यारं; १७३ For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्वार्थ सर्यो के दूरे नाशे, स्वार्थे मारामार. हिंसा जूठ चोरी चुगली, व्यभिचार महापाप; स्वारथथी करे लांबी सलामो, स्वार्थे कहे माबाप. सघळो० २ हाजी हा साहेबजी स्वार्थे, कपटकला सहु थाय; स्वार्थ सर्यो के सगुं न स्नेही, कोई न पासे जाय. सघळो० ३ माता पिता भाई पति ने पत्नी, स्वारथमां हुंशियार; स्वारथमां सपडाणा सर्वे, जुल्म करे छे अपार. राजा शेठ ने मंत्री योद्धो, न्यायाधीशो फोजदार; जड सुख माटे स्वार्थ करे सहु, स्वारथमां तैयार. सघळो० ५ आत्म प्रभुमां प्रीतिवाळा, परमार्थी नरनार; बुद्धिसागर परमार्थी संत, धन्य तेनो अवतार. सघळो० ६ समता स्वरूप सदा सुखकारी प्यारी रे, समता गुण भंडार. ज्ञानदशाफल जाणीए रे, तप जप लेखे मान; समता विण साधुपणुं रे, कासकुसुम उपमान. वेद पढो आगम पढोरे, गीता पढो कुरान; समता विण शोभे नहीं रे, समजो चतुरसुजाण. निश्चय साधन आत्मनुं रे, समतायोग वखाण; अध्यातम योगी थवारे, समता प्रशस्य प्रमाण. १७४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only सघळो० १ सघळो० ४ सदा० सदा० १ सदा० २ सदा० ३ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समता विण स्थिरता नहीं रे, स्थिरता लीनता काज; समता दुःखहरणी सदा रे, समता गुण शिरताज. सदा० ४ परपरिणति त्यागी मुनि रे, समतामां लयलीन; नरपति सुरपति साहिबारे, तस आगळ छे दीन. सदा० ५ राची निजपद ध्यानथी रे, सेवो समता सार; बुद्धिसागर पीजीए रे, समतामृत गुणकार. सदा०६ ज्ञानप्राप्ति माटे योग्यता (ए राग - जे कोई प्रेम अंश अवतरे, प्रेमरस तेना उरमां ठरे) ज्ञान कहो केम थाय, मूरखने ज्ञान कहो केम थाय कोटि करो उपाय. मूरख० बार मेघ जो साथ चढीने, वरसे मूशळधार; मृगशेलीयो पाषाण न भींजे, जळमध्ये नीरधार. मूरख० १ श्वानपूंछडी वांकी टाली, सीधी नहीं कराय; गंगाजलमां न्हाय कागडो, कागपणुं नवी जाय. मूरख० २ साबुए चोळीने कोयला, धूवे जलमां कोय; पण रंगबेरंग न हुवे, गर्दभ गाय न होय. मूरख०३ दारू घटमां दूध भरो पण, मटे न दारू वास; झांझवाना जलथकी कदी, मटे न जलनी प्यास. मूरख० ४ १७५ For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org माथाकूट मूरखनी आगल, रणमांही ज्युं पोक; अंधा आगल आरसी जेवी, जावे वाणी फोक. भागवत भेंसनी आगले रे, गांडा आगल गान; कपि न करशे रत्न पारखं, ए युक्ति दिल आण. मूरख आगल बोध करे ते, भारे खत्ता खाय; सुगरी वानरने उपदेशे, माळो निज विखराय. बाळक समजे दूध पानमां, जाणे शुं ते वेद; अंधारा अजवाळा वच्चे, शो अंधकने भेद. गया गामडीआ राजसभामां, दिल्ली नगर मझार; गायन करतां गायकने तो, दीधा डाम गमार. गुणी न्यायी जाणीने रे, देजो भाई बोध; मूढ कदाग्रही बोधतां रे, ऊलटो वाधे क्रोध. योग्यता लोहचुंबके रे, समजण साची ग्रहाय; बुद्धिसागर योग्यता रे, कोईक विरला पाय. निंदा त्यजो! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only मूरख० ५ मूरख० ६ मूरख० ७ मूरख० ८ मूरख० ९ मूरख० १० मूरख० ११ (दडी रमतमां पडी रे सन्तो, दडी रमतमां पडी-ए राग. पापकर्म बहु भारी रे निंदा, पापकर्म बहु भारी; मनमां जोजो विचारी रे, निंदा निंदकनी दृष्टि छे अवळी, गुण अवगुण देखाय; १७६ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापीमां पापी छे निंदक, मरी नरकमां जाय रे. निंदा० १ कागडो देखे चांदांने जेम, निंदक देखे दोष; धत्तुर भक्षकनी पेठे ए, शुं करवो त्यां रोष रे. निंदा० २ चाडी चुगली निंदक करतो, कलंक चढावे शीर; चंडालथी पण निंदक पापी, धोतो परनां चीर रे. निंदा० ३ क्रियाकाण्ड निंदकनां संतो, लेखे नहीं गणाय; नाम देईने निंदा करतो, मुक्तिपुरी नहि पाय रे. निंदा० ४ साधु संत वैरागी त्यागी, जोगी भोगी फकीर; निंदा परतणी परहरशो, पामो भवजल तीर रे. निंदा० ५ निंदामांहि सहु लपटाया, बचिया कोईक संत; निंदक माथे नथी शिंगडां, वाणीथी ओळखंत रे. निंदा० ६ अदेखाईनी पुत्री निंदा, मुक्तिमार्ग प्रतिकूळ; लाख चोराशीमां भटकावे, नाखी माथे धूळ रे. निंदा० ७ समकिती निंदा नवि करशे, करशे गुणनुं गान; श्वानदंतने कृष्ण वखाणे, गुण, करे बहुमान रे. निंदा० ८ सर्व गुणो जाणो जिनवरमां, बाकी दोषी होय; निजमां अवगुण पोठ भरी छे, जुवे न तेने कोय रे. निंदा० ९ कर्मवशे सौ दोषे भरीया,करो न निंदा भाई; बुद्धिसागर गुणने गातां, जगमां होवे वडाई रे. निंदा० १० १७७ For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायाना महापाश (जय जय आरति) मोह मायामां जे जकडाणा, कर्मपाशमां ते पकडाणा; जेणे माया कीधी यारी, तेणे पाम्यां दुःखडां भारी. मोह० १ विषना प्याली पीधा तेणे, करी मायानी संगत जेणे; भय चंचलता हर्ष विषादे, मनडुं फरतुं वादविवादे. मोह० २ प्रभु भजन पलवार न थावे, चार दिशामां मनडुं धावे; हृदये धर्मनी कांई न प्रीति, राखे नहि सज्जननी रीती. __मोह० ३ क्रोध कपट निंदामां पूरा, हिंसा चोरीमां ते शूरा; विनय विवेक विचार न जाणे, रातदिवस रहेता अभिमाने. मोह०४ जूठी वाते जन भरमावे, दुर्जन शठतामां ते फावे; दान दयानी रीत न राखे, मुक्तितणां सुख ते नहि चाखे. मोह० ५ मननी मोजे दुनिया म्हाले, नथी मरवू जाणे कोई काले; काल झपटमां पकडी पाडे, नाखे दुर्गति दुःखना खाडे. ___ मोह० ६ चिंता मणि नरभवने हारी, जन्म मरण पामे संसारी; बुद्धिसागर आतमरागी, थावे मोह मायाने त्यागी. मोह० ७ १७८ For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरणिक मुनि सन्झाय अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी, तडके दाझे शीशोजी; पाय अडवाणे रे वेलु परजले,तन सुकुमाल मुनीशोजी. अरणिक.१ मुख करमाणुं रे मालती फूल ज्यु, ऊभो गोखनी हेठोजी; खरे बपोरे रे दीठो एकलो, मोही मानिनी ए दीठोजी. अरणिक.२ वयण रंगीली रे नयणे वींधियो, ऋषि थंभ्यो तेणे ठाणोजी; दासीने कहे जा रे ऊतावली, ऋषि तेडी घर आणोजी. __अरणिक.३ पावन कीजे रे ऋषि घर आंगणुं, वोहरो मोदक सारोजी; नवयौवन रस काया कां दहो,सफल करो अवतारोजी. __अरणिक.४ चंद्र वदनीए चारित्रथी चूकव्यो, सुख विलसे दिन रातोजी; बेठो गोखे रे रमतो सोगठे, तव दीठी निज मातोजी. अरणिक.५ अरणिक अरणिक करती मा फिरे, गलीए गलीए बजारोजी; कहो केणे दीठो रे म्हारो अरणीओ, पुंठे लोक हजारोजी. अरणिक.६ १७९ For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हुं कायर छु रे म्हारी मावडी, चारित्र खांडानी धारोजी; धिग् धिग् विषया रे म्हारा जीवने, में कीधो अविचारोजी. अरणिक. ७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोखथी ऊतरीरे जननीने पाय पड्यो, मन शुं लाज्यो अपारोजी; वत्स तुज न घटे रे चारित्रथी चूक, जेहथी शिव सुख सारोजी. अरणिक. ८ एम समजावी रे पाछो वालीओ, आण्यो गुरुनी पासोजी; सद्गुरु दीए रे शीख भली परे, वैरागे मन वासोजी. अरणिक. ९ अग्नि धखंती रे शिला उपरे, अरणिके अणसण कीधोजी; रूप विजय कहे धन्य ते मुनिवरू, जे मन वांछित लीधोजी. १८० For Private And Personal Use Only अरणिक. १० Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू. मुनिश्री पद्मरत्नसागरजी द्वारा संपादीत पुस्तके કેલાસ-પદા સ્વીથી સગર કેલાસ-પકા સ્વાધ્યાય સાગર કેલાસ-પા સ્વાધ્યાય સાગર કેલાસ-પૂડા સ્વાધ્યાય સાગર , કેલાસ-પા સ્વાધ્યાય સાગર કલાસ-પકા : સ્વાધ્યાય સાગર કેલાસ-પડા સ્વાધ્યાય સાગર જ साधुमाई समय सुधारस पीने... તા . પETની મેગા નિત-AિRI કરી For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमती कंचनबेन कांतिलालजी सतावत गुडाबालोतान अरिहंत जनरल स्टोर्स श्री सम्यक् इंन्टरनेशनल 269, ब्राहाण आली. गौरीशंकर बिल्डींग, भीवंडी, मुंबई फोन : 223770,255067 मोबाईल : 9869795851 मांगीलाल, दिनेश, नरेन्द्र, हर्षिल, समस्त सतावत परिवार की और से जय जिनेन्द्र Concept : BIJAL GRAPHICS : 079-22112392 For Private And Personal Use Only