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ऊंघ नहीं आतमा ऊंघ नहीं आतमा
निद्रा त्याग राग : झूलणा छंद ऊंघ नहीं आतमा ऊंघ नहीं आतमा, ऊंघता काळ वीत्यो अनादि; ऊंघता आतमा दुःख पाम्यो बहु, भूलियो शुद्ध चैतन्य यादि.
ऊंघ-१ ऊंघथी आळसु, सत्य जोयुं नहीं, ऊंघथी कार्य करवू विसापुं; ऊंघमां शत्रु छे आपणो आतमा, सत्य जीवन अहो जाय हार्यु.
ऊंघ-२ खडग चौधार निद्रा बडी वैरिणी, ऊंघमां कर्म बंधाय जाणो; ऊंघथी ज्ञानने ध्यान भूले सहु, ऊंघथी दुःखडा दिल आणो.
ऊंघ-३ सर्वनी घात की अहो ऊंघ छे, ऊंघमां टेकनी भूल थावे; ऊंघने टाळतां ऊंघने खाळतां, भान चेतन तणुं दिल आवे.
ऊंघ-४ द्रव्य अने भाव भेदे अहीं ऊंघ छे,
जगतमां भावथी ऊंघ छे मोटी; राग अने द्वेषथी रमणता बाह्यमां,
भाव निद्रा अहो केम छोटी. ऊंघ-५
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