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रत्न चिंतामणि आव्यो हाथमां रे, भगवंतना गुण गावो नर नार. बळद थईने रे चीलाए चालशो रे, चढशो वळी चोराशीनी चाल; चोकथु बांधीने घाणीए फेरवशे रे, उपर बेसी मूरख देशे मार. कूतरा थईने घर घर भटकशो रे, घरमां पेसवा नहीं दे कोय; कानमां कीडा रे पडशे अति घणां रे, उपर पडशे लाकडीओना मार. गधेडा थईने रे गलीओमां भटकशो रे, उपाडशो अणतोल भार; उकरडानी ओथे रे जईने भूकशो रे, सांज पडे धणी न लीए संभाळ. भुंड थईने रे पादर भटकशो रे, करशो वळी अशुचिनो आहार; नजरे दीठा रे कोईने नवि गमो रे, उपर पडशे पथ्थरना प्रहार ऊंट थईने रे बोजो उपाडशो रे,
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