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आत्मानी स्त्री
आतम! परखो अपनी नारी, आतम.
देहकुं नारी मानत भूले, दु:खी सब संसारी.
रूप रंग धारक जो नारी, देह चामडी धारी; उपजे विणशे दुःखकी क्यारी, जूठी है तस यारी. आतम-२ मनकी शुभाशुभ परिणतिनारी, चतुर्गति दुःखकारी;
शुद्ध परिणति नारी प्यारी, जाण ले निजसे न न्यारी. आतम-३ ज्ञानानन्द स्वरूपी परिणति, मिलतां प्रभुता भारी; वर्ण गंध रस स्पर्श न जिसकुं, खेले खेल अपारी आतम-४ अज अविनाशी न खरे कबहुं, एक स्वरूप जयकारी; बुद्धिसागर शुद्ध परिणति, परब्रह्मपति नारी. अपूर्व संयम सेवीशुं क्यारे अहो, कहेजो श्यामने राग : ओधवजी संदेशो
अपूर्व संयम सेवीशुं क्यारे अहो, अपूर्व वैराग्ये राखी मन स्थिरजो; शुद्ध समाधि लीन थई रहीए सदा, क्यारे थईशुं अन्तरना वडवीर जो . समता भावे शाताशाता वेदशुं, घोर परिषह सहन करीशुं सर्वजो;
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आतम-१
आतम-५
अपूर्व १