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समकित सम्झाय समकित पामतां रे, मुक्ति पामे नर ने नारी, मोक्षनो एकडो रे, समकित पामंतां निर्धारी. जैन धर्मने देव गुरूनी, श्रद्धा द्रव्यने भावे रे; जैन शास्त्रनी श्रद्धा थतां, समकित मोक्ष विचारे. सम. १ समकित वण तप जप नहीं लेखे, दया न लेखे आवे रे; मुक्ति न आपे व्रत संयम पण,
__ जो नही समता आवे. सम. २ नय निक्षेपे नव तत्त्वादिक, जाणी श्रद्धा धरतां रे; निश्चय समकित घटमां प्रगटे,
नरनारी शिव वरतां. सम. ३ समकितीने व्रत चारित्र योगे, निश्चय मुक्ति थाती रे; समकित वण नहि ज्ञानने चारित्र,
__ समकिती हणे घनघाती. सम४ समकितीनो कदी नाश न थावे, समकिती तरतो अंते रे; समकित हेतु अवलंबो सहु, रहो न मिथ्या भ्रान्ते. सम. ५ देवगुरु ने धर्मशास्त्रमा, शंकादिक परिहरीए रे; बुद्धि सागर समकित बलथी,
चारित्र लही शिव वरीए. सम. ६
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