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हय गय रथ नर कोडी विद्याधर, रहे न नित राया राय रे, बहु उपाय ते जीवन काजे, करतां अशरण जाय रे.
को नवि. ३ मरण भीतिथी कदाचित जीवो, जो पेसे पायाले रे, गिरि दरि वन अंबुधिमां जावे, तो भी हरिये काळे रे.
को नवि. ४ अष्टापद जेणे बळे उपाड्यो, सो दशमुख संहरीयो रे, को जग धर्म विना नवि तरीयो, पापी को नवि तरीयो रे.
को नवि. ५ अशरण अनाथ जीव जीवन, शांतिनाथ जग जाणे रे, पारेवो जेणे शरणे राख्यो, मुनि तस चरित्ते वखाण्यो रे.
को नवि.६ मेघकुमार जीव गजगतिमां, ससलो शरणे राख्यो रे, वीर पासे जेणे भवभय कचर्यो, तप संयम करी नाख्यो रे.
को नवि.७ मत्स्यपरे रोगी तडफडतो, कोणे नवि सुखी करीयो रे, अशरण अनाथ भावना भरीयो, अनाथी मुनि निसर्यो रे.
को नवि.८
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