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मुज लब्धे मोदक मळ्या हुं वारी लाल, मुजने कहो कृपाळ रे,
हुं वारी लाल... लब्धि हनि वत्स ताहरी हुं वारी लाल, श्री पति लब्धि निहाळ रे,
हुं वारी लाल...७ तो मुजने लेवो नहि हुं वारी लाल, चाल्यो परठण काज रे,
हुं वारी लाल... इंट निभाडे जई करी हुं वारी लाल, चुर्या कर्म समाज रे,
हुं वारी लाल...८ आवी शुद्ध भावना हु वारी लाल, ऋषि पाम्या केवळज्ञान रे,
हुं वारी लाल... ढंढण ऋषि मुगते गया हुं वारी लाल, कहे जिन हर्ष सुजील रे,
हुं वारी लाल...९ आत्माने उपदेशनी सन्झाय
(राग : काशी रे नगरीनी जाहिर) यामे वासमे बे, मरदो मगन भया मेवासी रे काया रुप मेवास बन्यो है; माया ज्युं मेवासी रे साहेब की शिर आण न माने आखर क्यां ले जाशी रे. खाई अति दुर्गंध खजाना, कोटमें बहोंतेर कोठा;
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