SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इहभव परभव आचाँ, पाप अधिकरण मिथ्यात्व रे; जे जिनाशातनादिक घणां, निदिए तेह गुणघात रे. १० गुरुतणां वचन जे अवगणी, गुंथिया आप मत जाल रे; बहुपरे लोकने भोळव्यां, निदिए तेह जंजाल रे. जेह हिंसा करी आकरी, जेह बोल्या मृषावाद रे; जेह परधन हरी हरखीयां, कीधलो काम उन्माद रे. जेह धन धान्य मुर्छा धरी, सेवीया चार कषाय रे; राग ने द्वेषने वश हुआ, जे कीयो कलह उपाय रे. १३ जूठ जे आळ परने दिया, जे कर्या पिशुनता पाप रे; रति अरति निंद माया मृषा, वळीय मिथ्यात्व संताप रे. १४ पाप जे एहवा सेवियां, निदिए तेह त्रिहु काल रे; सुकृत अनुमोदना कीजीए, जिम होय कर्म विसराल रे. १५ विश्व उपकार जे जिन करे, सार जिन नाम संयोग रे; तेह गुण तास अनुमोदिए, पुण्य अनुबंध शुभयोग रे. १६ सिद्धनी सिद्धता कर्मना, क्षय थकी उपनी जेह रे; जेह आचार आचार्यनो, चरण वन सिंचवा मेह रे. १७ जेह उवज्झायनो गुण भलो, सूत्र सज्झाय परिणाम रे; साधुनी जेह वळी साधुता, मूळ उत्तर गुण धाम रे. १८ जेह विरति देशश्रावक तणी, जेह समकित सदाचार रे; १०४ For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy