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निंदा स्तुति श्रवण सुणीने, हर्ष शोक नवि आणे; ते जगमें जोगीसर पूरा, नित्य चढते गुणठाणे. अवधू.३ चंद्र समान सौम्यता जाकी, सायर जेम गंभीरा; । अप्रमत्त भारंड परे नित्य, सुरगिरि सम शुचिधीरा. अवधू.४ पंकज नाम धराय पंकश्युं, रहत कमल जिम न्यारा; चिदानंद ईश्या जन उत्तम, सो साहिबका प्यारा. अवधू.५
अध्यात्म सन्झाय अवधू क्या सोवे तन मठमें, जाग विलोकन घटमें; अवधू... तन मठकी परतीत न कीजे, ढहि परे एक पलमें; हलचल मेट खबर ले घटकी, चिन्हे रमता जलमें. अवधू.१ मठमें पंच भूतका वासा, सासा धूत खवीसा; । छिन छिन तोही छेलनकुं चाहे, समजे न बौरा सीसा.अवधू.२ शिरपर पंच वसे परमेश्वर, घटमें सूक्ष्म बारी; आप अभ्यास लखे कोइ विरला, निरखे ध्रुकी तारी. अवधू.३ आशा मारी आशन धरी घटमें, अजपा जाप जगावे; आनंद घन चेतनमय मूरति, नाथ निरंजन पावे. अवधू.४
अध्यात्म सन्झाय अवधू क्या मागुं गुनहीना, वे गुन गनि न प्रवीना अवधू.; गाय न जानुं बजाय न जानु, न जानुं सुर सेवा;
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