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चार हजार साथे संयमी, उपन्यु चोथु ज्ञानजी कर्म खपावी केवल लही, लोकालोक प्रकाशजी; संशय टाळी जीवना, लेवा शिवरमणी राजजी खोट खजाने प्रभु तारे नथी देता लागे शुं वारजी; काजसरे निज दोसना, ए छे आपनो उपकारजी धरनाने तार्या तेमां शुं कर्यु, मुज सरिखाने तारोजी; कल्पवृक्ष जीहां फळ्यां, तिम दादो दयालजी शरणे आव्या ने प्रभु राखशो, बाहुबल भरत नरेशजी; पद्म विजय कहे वंदना, तारो तारो दयालजी
इलाची मुनिनी सन्झाय एलाची चित्त चिंतवे, इन्द्राणी अवतारो, धन्य धन्य ए मुनिरायने, नवि जुए नयण विकारो रे अहो-अहो समता एहनो, अहो निर्लोभी निर्ग्रन्थ रे, निरखे नहीं ए नारीने, एणे साधुनो पंथ रे ए कुलवंती सुंदरी, कंचन वरणी काय रे, अद्भूत रूपे उभी छे, ए पण मुनि न ठगाय एक माये एहने जण्यो एक जण्यो मुज माय रे, सरसव मेरूनो आंतरो, किहां हुं किहां मुनिराय रे
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