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ऋषभदेवनी सन्झाय सुख दुःख मनमां न आणीए क्यांथी प्रभु अवतर्या क्यां लीधो अवतारजी सर्वार्थसिद्ध विमानी च्यवी, भरतक्षेत्र अवतारजी. तारो रे दादा ऋषभजी चोथ भली रे अषाढनी, जननी कूखे अवतारजी; चौद सुपन निरमल लहीं, जाग्या जननी तेहीवारजी २ चैत्रवदि आठमने दिने, जनम्या त्रिभुवन नाथजी; छप्पन दिक्कुमारी मली करे, शुची कर्म तेणीवारजी चोसठ इन्द्र तिहां आवीया, नाभिराया दरबारजी; प्रभुने लई मेरुं गयां, स्नात्र महोत्सव करे तेणीवारजी ४ प्रभुने स्नात्र महोत्सव करी, लाव्या जननी नी पासजी; अवस्थापिनी निद्रा दुर करी, रत्ननो गेडी दडो मुकेजी ५ त्रासी लाख पूर्वगृहवासे वसीया, परण्या दोय ज नारीजी; सांसारिक सुख विलसी करी, लीधो संयम भारजी लोकांतिक सुर आवी करी, विनवे त्रिभुवन नाथजी; दान संवत्सरी आपीने, लीधो संयम भारजी पंच महाव्रत आदरी, चैत्रवदि अष्टमी जाणजी;
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