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कृष्णराजानी सन्झाय नगरी द्वारीकामां नेमि जिनेसर, विचरंता प्रभु आवे; कृष्ण नरेशर वधाई सुणीने, जित निशान बजावे, हो प्रभुजी! नहि जाउं नरकनी गेहे. नहि जाउं नहि जाउं हो प्रभुजी,
नहि जाउं नरकनी गेहे. १ अढार सहस साधुजीने, विधिशुं वांद्या अधिके हरखे; पछी नेमि जिणेसर केरां, उभा मुखडां निरखे. हो प्रभुजी० २ नेमि कहे तुमे चार निवारी, त्रण तणां दुःख रहीया; कृष्ण कहे हुं फरी फरी वांदु, हर्ष धरी मन हइयां.
हो प्रभुजी० ३ नेमि कहे एह टाळ्या न टळे, सो वाते एक वात; कृष्ण कहे मारा बाळ ब्रह्मचारी, नेमि जिणेसर भ्रात.
___ हो प्रभुजी०४ महोटा राजानी चाकरी करतां, रांक सेवक बहु रळसे; सुरतरुसरीखा अफळ जशे त्यारे, विष वेलडी केम फळशे.
हो प्रभुजी० ५ पेटे आव्यो तेह भोरींग वेठे, पुत्र कपुत्र ज थाय; भलो मँडो पण जादवकुळनो, तुम बांधव कहेवाय. हो प्रभुजी०६
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