Book Title: Sadhubhai Samaya Sudharas Pije
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समता विण स्थिरता नहीं रे, स्थिरता लीनता काज; समता दुःखहरणी सदा रे, समता गुण शिरताज. सदा० ४ परपरिणति त्यागी मुनि रे, समतामां लयलीन; नरपति सुरपति साहिबारे, तस आगळ छे दीन. सदा० ५ राची निजपद ध्यानथी रे, सेवो समता सार; बुद्धिसागर पीजीए रे, समतामृत गुणकार. सदा०६ ज्ञानप्राप्ति माटे योग्यता (ए राग - जे कोई प्रेम अंश अवतरे, प्रेमरस तेना उरमां ठरे) ज्ञान कहो केम थाय, मूरखने ज्ञान कहो केम थाय कोटि करो उपाय. मूरख० बार मेघ जो साथ चढीने, वरसे मूशळधार; मृगशेलीयो पाषाण न भींजे, जळमध्ये नीरधार. मूरख० १ श्वानपूंछडी वांकी टाली, सीधी नहीं कराय; गंगाजलमां न्हाय कागडो, कागपणुं नवी जाय. मूरख० २ साबुए चोळीने कोयला, धूवे जलमां कोय; पण रंगबेरंग न हुवे, गर्दभ गाय न होय. मूरख०३ दारू घटमां दूध भरो पण, मटे न दारू वास; झांझवाना जलथकी कदी, मटे न जलनी प्यास. मूरख० ४ १७५ For Private And Personal Use Only

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