Book Title: Sadhubhai Samaya Sudharas Pije
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 177
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ज्ञानी गुरुगम ज्ञान ग्रही ले, मनडुं वशमां आवे रे. तपिया ! १० मुक्ति न वर्णे मुक्ति न मरणे, मुक्ति छे मोह हठावे; बुद्धिसागर गुरुना संगे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमानंद सुख पावे रे. तपिया ! ११ संतो! अचरिज वात न लागे संतो! अचरिज वात न लागे, संतो-२ संतो-३ समज्या ते अंतरमां जागे रहे सदा वैरागे. राजा घर घर भीखने मांगे, सिंह ससाथी भागे; हंसलो मोती चारो त्यागे, उदधि बळतो आगे. कीडी मेरुने गळी जावे, बोबडो गायन गावे; मर्कट जगने नाच नचावे, सिंहने बकरी खावे. काचा सूत हाथी बांध्यो, डगलुं एक न चाले; पांगळो सब दुनिया फरी म्हाले, देवने सेवक पाळे. संतो-४ यान पात्र पर दरियो चाले, अंधो जमने भाळे; ब्राह्मण भंगीने ज वटाळे, टाढ घणी उनाळे. संतो-५ संतो-६ संतो पडिया वेश्या प्यारे, राजा बकरां चारे; शूरा जन नपुंसकथी हारे, सत्य ते बावन व्हारे. भूप प्रजानी आणा माने, मांछला वाघने ताणे; दुनिया भूखी भरिया भाणे, मुक्ति लडाई ठाणे. १६३ For Private And Personal Use Only संतो-१ संतो-७

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