Book Title: Sadhubhai Samaya Sudharas Pije
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 182
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निन्दा (राग : प्रभात. अथवा. ऊठो चेतन आळस छंडी.) कर्माधीन छे संसारी जीव, निन्दा कोईनी न करशो रे; निन्दा करतां नीचपणुं छे, शिक्षा दिलमां धरजो रे. कर्मा० १ तरतमयोगे दोषी दुनिया, करशो तेवू भरशो रे, निन्दक जन चंडाल समो छे, निन्दाने परिहरशो रे. कर्मा० २ पोतानामां दोष घणां छे, तेने कोई न देखे रे; परनां चांदा खोळे पापी, सद्गुण दृष्टि उवेखे रे. कर्मा० ३ निन्दकनी दृष्टि छे अवळी, परने आळ चढावे रे; पोते सारो परने खोटो, कहेवामां ते फावे रे. कर्मा० ४ त्रियोगे निन्दक जन पापी, परनुं मूंडु धारे रे; बुद्धिसागर सद्गुण दृष्टि, धारी दोष निवारे रे. कर्मा० ५ आतम! क्या करे म्हारं व्हारं. (राग : सोरठ) आतम! क्या करे मारूं तारुं; स्वप्न सरिखी दुनिया बाजी, प्यारूं छे तुजथी न्यारूं. आतम!...१ कंचन कामिनी सारूं नठारूं, अंते सर्व अकारूं, भूल करी केम भूले भोळा, वागे मृत्यु नगारूं. आतम!...२ १६८ For Private And Personal Use Only

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