Book Title: Sadhubhai Samaya Sudharas Pije
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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सासु जमाइ करवा मेळ; कोष उपाडी कीधो भेळ; खलहळ नामे भली कहेवाय, घी पीरसे तो प्रीत ज थाय. १२ वरे पूछे घी केतुं वळ्युं, घी अ पखे ते लेखं कह्यु; घी संचो रे विवाह अछे, बीजी वस्तु ले| पछे. १३ घृत दाने समकित आणीये, धन्नो सारथ पति जग जाणीये; ब्राह्मणने घी वखाणीया, नित्य जमे पुण्यवंत वाणीया. १४ पामर खाये परविवाहे करपी खाये परघर जाये; उंदर साप वृक्ष ते थाय, धन उपर परठी रहे पाय. १५ बुधवारे घी वहालुं सही, शूळ रोग उपद्रव हरे; घरडाने घी वहालुं सही, जूना हाड रहे घीथी लहे. १६ पाटी पींडे घी मूकीए, घाव वळी गुंमड गहदीए; घी खाधे तप सोहीलो थाय, पग बळ नयणे तेज कहाय. १७ छतुं घीय जे पीरसे नहि, नरनां नाम तस लीजे नहीं; सघळा उपर घृत छे सार, ते मत वारो वारो वार. १८ घीना गुणने उत्तमनां वयण, ए बे सरखां जाणो सयण; शुभ विजय पंडितथी लह्यो, लाभ विजय घीनो गुण कह्यो. १९
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