Book Title: Sadhubhai Samaya Sudharas Pije
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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मनमां रहीने मेलो रे.
नाहक-४ बीजानुं देखीने सारुं, मनमा लागे नठारुं; भलुं थाशे केम तारुं रे.
नाहक-५ कपटथी काळु थाशे, धार मन विश्वासे, पोते तुं छेतराशे रे.
नाहक-६ कपट कळाने त्यागी, सद्गुरु शिख मागी, बुद्धिसागर घट जागी रे.
नाहक-७ धर्म कर आतमा धर्म कर आतमा
धर्मनो प्रभाव रागः झूलणा छंद धर्म कर आतमा धर्म कर आतमा, धर्म थी होय संसार पारो; धर्म करता कदी धाड आवी पडे, पूर्वना कर्मथी ते विचारो.
धर्म-१
धर्मथी देवता धर्मथी मानवी, धर्मथी नरपति श्रेष्ठ थावे; धर्मथी इष्ट संयोग आवी मळे, धर्मथी दुःख दौर्भाग्य जावे.
धर्म-२ अग्नि पण जल हुवे, सर्पमाला हुवे, धर्मथी कीर्ति जगगवाती. धर्मथी सिद्धिने पामतो मानवी, धर्मथी रिद्धिओ सह पमाती.
धर्म-३ धर्मना तेजथी मेघ वर्षा करे, धर्मना तेजथी वाय वायु;
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