Book Title: Sadhubhai Samaya Sudharas Pije
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूरख जीवडा कांई न समज्यो राग - मराठी साखी मूरख जीवडा काई न समज्यो, पाप कीधां कंई भारी; तप जप दान क्रियादिक छोडी, कीधां ते चोरी जारी. अब चेतो रे चित्तमां चतुर विचारी, छोडी आ दुनियादारी. अब. १ कोई कोईनी साथ न आवे, तन धन जूठ कहावे; नाहक ममता तेमां राखी, नरक निगोदे जावे. अब. २ कीधां वार अनंति सगपण, लाख चोराशी भटकी; तारुं तेमां वळ्युं शुं चेतन, लालच मांही लटकी. अब. ३ मायाना विष वृक्षो वावे, आवे फळ तो नठारां; प्यार करतां जगमां परगट, थतां जनो दुःखियारां. अब. ४ आतम ते परमातम देहे, छे प्रीति तस साची; आतम समोवड कोई नथी जग, रहेजो तेह शुं राची. अब. ५ अलख पन्थमां अजब तमासा, कोई न कोई का दासा; बुद्धिसागर अवसर पाकर, धर आतम विश्वासा. अब. ६ चेतन! अनुभव रंग रमीजे, चेतन! अनुभव रंग रमीजे, आगम दोहन अनुभव अमृत, योगी अनुभव रीजे. चेतन! १ अनुभव अमृत वल्ली सरिखो, अनुभव केवल भाई; १४५ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196