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श्री नयविजय गुरु शिष्यनी, शीखडी अमृत वेल रे; एह जे चतुर नर आदरे, ते लहे सुयश रंगरेल रे. २९
राग - चार दिवसना चांदरडा क्या करु मन स्थिर नहि रहेता, अधर फिरे मन मेरा रे, यह मन को बेर बेर समजाया,
समज समज मन मेरा रे बेठ कहुं तो उठ चलत है, मन दोडे मन धीरा रे,
___ मन दोडे मन धीरा रे पलक पलक मन स्थिर नहि रहेता, कोण पनियारा
मन मेरा रे कुड कपट मह विष भरीयो, परनारी संग केरा रे, भव भवमां जीव, काल भटकतो, फोगट फरिया फेरा रे,
फोगट फरिया फेरा रे कुटुंब कबीला माल खजाना, इसमे नहि कोई तेरा रे, साज भई जब उठ चलेगा, जंगल होगा डेरा रे,
___ जंगल होगा डेरा रे कहत आनंदघन मन समजीया, मन कायर मन सुरा रे, मनका खेल अजबका प्याला, पीए सो पीवन हारा रे,
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