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सब.४
चालत चालत दोड्यो दोटे, पण पासेनो पासे; टीलां टपकां छाप लगावी, शिवपुर केम पामशे. सब.२ मूंड मूंडावे गाडरीयां जग, केशने तोडे रंडी; माला मणका बेरी पहेरे, नित्य चाले पगदंडी. सब.३ धर्मना वरणे धर्मना मरणे, धर्मना करवत काशी; धर्म न जाति धर्म न भाति, धर्म न जंगल वासी. गद्धां खाख मांहि आलोटे, ते पण साचां खाखी; निर्वस्त्रां पशु पंखी फरे छे, ममता दिलमां राखी. सब.५ जब तक अंतर तत्त्व न खूले, तब तक भवमां झूले; बुद्धि सागर आतम धर्मे, भ्रांति भ्रमणा भूले.
सब.६ अध्यात्म सन्झाय आतम ध्यानथी रे, संतो सदा स्वरूपे रहेj; कर्माधीन छ सहु संसारी, कोईने कांई न कहे. आतम.१ कोई जन नाचे कोई जन रुवे, कोई जन युद्ध करंता; कोई जन जन्मे कोइ जन खेले, देशाटन केई फरंता.आतम.२ वेलु पीली तेलनी आशा, मूरख जन मन राखे; बावलीयो वावीने आंबा, केरी रस शुं चाखे. आतम.३ वैरी उपर वैर न कीजे, रागीथी नहीं राग; समभावे सहु जनने निरखे, तो शिव सुखनो लाग. आतम.४
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